“तू मुझे कानून सिखाएगी? तू जानती नहीं मैं कौन हूं” — उसे नहीं पता था सामने IPS खड़ी है… फिर जो हुआ!
सुबह का समय था, बाजार में हलचल थी। लोग अपने-अपने काम में व्यस्त थे। कोई सब्जी खरीद रहा था, कोई चाय की दुकान पर बैठा था, और कुछ लोग पानी पूरी के ठेले पर लाइन लगाए हुए थे। इसी भीड़ में एक महिला, आईपीएस अधिकारी नेहा वर्मा, भेष बदलकर बिना किसी सिक्योरिटी गार्ड के बाजार में घूम रही थी। वह यह जानना चाहती थी कि सिस्टम आम लोगों के साथ कैसे काम करता है।
जैसे ही वह चलती गई, उनकी नजर एक पानी पूरी के ठेले पर पड़ी, जो गोपाल काका नाम के एक मिडिल एज वाले आदमी का था। गोपाल काका तेजी से पानी पूरी भरकर ग्राहकों को दे रहा था। चेहरे पर पसीना था लेकिन आंखों में संतोष की चमक थी। नेहा ठेले के पास जाकर बोली, “काका, एक प्लेट पानी पूरी लगाना।”
गोपाल काका मुस्कुराते हुए बोले, “हां, मैडम! बताइए, तीखा या मीठा?” नेहा की आंखों में शरारत चमकी। “एकदम तीखा बनाना, ऐसा कि मजा आ जाए।” गोपाल काका ने मुस्कुराते हुए कहा, “बस, मैडम, अभी देखिए।” उन्होंने एक पानी पूरी उठाई, उसमें बारीक कटे हुए प्याज और आलू का मसाला भरा और फिर उसे पुदीने इमली वाले मसालेदार पानी में डुबोकर नेहा की ओर बढ़ा दिया।
जैसे ही नेहा ने पानी पूरी मुंह में डाली, अचानक आसपास की हंसी-ठिठोली की आवाजें थम गईं। उसने मुड़कर देखा कि दो बुलेट बाइक पर तीन पुलिस वाले और उनके साथ एक रौबदार इंस्पेक्टर विक्रम सिंह सवार थे। उनकी बाइक ठीक ठेले के सामने आकर रुकी। इंस्पेक्टर विक्रम सिंह अपनी मूछों पर ताव देते हुए बाइक से उतरे और गोपाल काका को घूरते हुए कड़क आवाज में बोले, “ऐ गोपाल काका, तेरा ठेला आज फिर यहां लग गया। कितनी बार बोला है कि सड़क पर धंधा नहीं करना है!”
गोपाल काका का खिला हुआ चेहरा पल भर में मुरझा गया। उन्होंने घबराकर अपने दोनों हाथ जोड़ लिए। “गरीब आदमी हूं, बच्चों को पालना है। थोड़ा साइड में ही लगाया है। किसी को तकलीफ नहीं हो रही।” इंस्पेक्टर विक्रम सिंह जोर से हंसते हुए बोले, “तकलीफ नहीं हो रही? तू हमें सिखाएगा कि तकलीफ हो रही है या नहीं? और इस हफ्ते का हिस्सा कहां है? लगता है धंधा ज्यादा अच्छा चल रहा है!”
गोपाल काका हाथ जोड़कर बोला, “नहीं साहब, ऐसी बात नहीं है। अभी बोहनी भी ठीक से नहीं हुई है। शाम तक जो भी बनेगा, मैं आपका हिस्सा थाने में पहुंचा दूंगा।”
इंस्पेक्टर विक्रम सिंह की आंखें गुस्से से लाल हो गईं। “शाम तक हमें बेवकूफ समझा है क्या? तू हमें शाम तक इंतजार कराएगा?” गोपाल काका डरते हुए बोला, “नहीं साहब, मेरा वह मतलब नहीं था।” लेकिन उससे पहले ही एक कांस्टेबल ने आगे बढ़कर ठेले पर रखे पानी के जग को उठाकर सड़क पर फेंक दिया। मसालेदार पानी सड़क पर फैल गया और इससे पहले कि कोई कुछ समझ पाता, इंस्पेक्टर विक्रम सिंह ने अपनी भारीभरकम लात ठेले पर दे मारी, जिससे पूरा ठेला पलट गया।
उबले हुए आलू, कटे हुए प्याज, मटर, मीठी चटनी सब सड़क पर बिखर गए। सैकड़ों पानी पूड़िया उस जमीन पर गिरकर गंदे पानी में लथपथ हो गईं। गोपाल काका की दिनभर की मेहनत, उसकी बेटी के डॉक्टर बनने का सपना सब उस गंदी सड़क पर बिखरा पड़ा था। गोपाल काका जमीन पर बैठकर अपनी बिखरी हुई पूरियों को देख रहा था और उसकी आंखों से आंसू बह रहे थे।
यह सब देखकर आईपीएस नेहा का खून खौल उठा। एक आईपीएस के तौर पर नहीं, बल्कि एक इंसान के तौर पर। वह एक कदम आगे बढ़ी और अपनी आवाज को जितना हो सके सख्त बनाते हुए बोली, “यह क्या तरीका है? किसी गरीब की रोजीरोटी को इस तरह लात मारते हुए आपको शर्म नहीं आती?”
नेहा की आवाज सुनते ही इंस्पेक्टर विक्रम सिंह और उसके साथी चौंक कर उसकी तरफ मुड़े। विक्रम सिंह ने नेहा को ऊपर से नीचे तक घूर कर सोचा कि एक मामूली सी सूट पहनी औरत मुझे कानून सिखाने की हिम्मत कर रही है। विक्रम सिंह हंसते हुए बोला, “ओहो, तो देखो जरा, आज समाज सेवा करने कौन आया है? अरे मैडम, तुम कौन हो? इसके रिश्तेदार हो? जाओ, अपना काम करो। ज्यादा नेतागिरी मत यहां झाड़ो।”
कांस्टेबल सुरेश ने भी हंसकर कहा, “लगता है मैडम नई-नई इस शहर में आई हैं। इन्हें पता नहीं इंस्पेक्टर विक्रम सिंह साहब कौन हैं।” नेहा ने गहरी सांस ली और बोली, “मैं कोई भी हूं लेकिन इस देश की नागरिक हूं। मैं पूछ रही हूं, किस कानून ने आपको यह हक दिया कि आप किसी की मेहनत को ऐसे बर्बाद करें? यह गरीबों पर जुल्म नहीं तो और क्या है?”

यह सुनकर विक्रम सिंह का पारा चढ़ गया। वह भीड़ के सामने चीखे, “रुक, तुझे अभी कानून सिखाता हूं!” अगले ही पल बिना किसी चेतावनी के उन्होंने नेहा के गाल पर एक जोरदार थप्पड़ जड़ दिया। आवाज इतनी तेज थी कि एक पल को जैसे वक्त रुक गया। नेहा के गाल पर पांचों उंगलियों के लाल निशान उभर आए। भीड़ आवाक थी। किसी को यकीन नहीं हुआ कि एक पुलिस वाले ने खुले बाजार में एक औरत पर हाथ उठा दिया। गोपाल काका तो जैसे सदमे में चले गए थे।
लेकिन पुलिस वालों को इससे कोई फर्क नहीं पड़ा। वे जोर-जोर से हंसने लगे। “बढ़िया है। बड़ी कानून सिखाने आई थी।” इंस्पेक्टर विक्रम सिंह ने अपनी हथेली झाड़ते हुए कहा, “अब पता चला पुलिस से जुबान लगाने का नतीजा।”
नेहा ने अपना गाल सहलाया। दर्द से ज्यादा उसे बेइज्जती महसूस हो रही थी। लेकिन उसके अंदर का गुस्सा अब आग बन चुका था। तभी एक सिपाही ने उसकी कलाई पकड़ ली। “साहब, ले चलें इसे थाने।” विक्रम सिंह गरजे, “हां, ले चलो, वहीं इसकी सारी अकड़ निकाल दूंगा।”
भीड़ अब भी चुप थी। किसी की हिम्मत नहीं थी इंस्पेक्टर के खिलाफ आवाज उठाने की। हर आंख में पुलिस का डर साफ दिख रहा था। नेहा को एहसास हुआ कि अब स्थिति गंभीर है। मन में आया कि अपनी असली पहचान बता दें। बस एक फोन करना है और यह चारों उसके कदमों में होंगे।
लेकिन फिर उसने सोचा, “अगर मैंने अब बता दिया कि मैं आईपीएस हूं तो यह सब डर के मारे मेरे आगे पीछे घूमेंगे। लेकिन उस आम औरत का क्या, जिसके पास आईपीएस का टैग नहीं है?” उसने मन ही मन फैसला किया, “मैं अभी अपनी पहचान नहीं बताऊंगी। मुझे देखना है कि यह सिस्टम एक आम बेसहारा औरत के साथ कितनी नीचता तक गिर सकता है।”
वह चुप रही। पुलिस वालों ने उसे धकेलते हुए गाड़ी में बिठाया और गाड़ी थाने की ओर चल पड़ी। नेहा खामोश बैठी रही। चेहरा शांत लेकिन आंखों में तूफान था। रास्ते भर पुलिस वाले बेहूदा मजाक करते रहे। “अरे, यह औरत तो बहुत तेज निकली। लगता है किसी बड़े घर की है।” “अरे नहीं रे, बड़े घर की होती तो भिखारियों की तरह पानी पूरी खाती। जरूर किसी के साथ भाग कर आई होगी। हां हां, थाने चलने दे, सारी हेकड़ी निकाल देंगे।”
नेहा ने सब सुना लेकिन एक शब्द नहीं बोली। हर चेहरे को, हर नाम को अपने ज़हन में कैद कर रही थी। थाना पहुंचते ही उसे लगभग घसीट कर उतारा गया। इंस्पेक्टर विक्रम सिंह चिल्लाए, “डालो इसे लॉकअप में।” एक महिला कांस्टेबल ने उसे पकड़ कर औरतों के लॉकअप में धकेल दिया और बाहर से लोहे का दरवाजा बंद कर दिया।
लॉकअप के भीतर माहौल किसी नर्क से कम नहीं था। घुटन भरा कमरा, कोनों में गंदगी, बदबूदार कंबल कोने में फेंका हुआ। वहां दो और औरतें पहले से थीं। एक का नाम पार्वती, दूसरी 20 साल की मीरा। पार्वती ने सहमी आवाज में पूछा, “बहन, तुझे क्यों पकड़ा?” नेहा ने हल्की मुस्कान के साथ कहा, “मैंने बस एक गरीब की मदद करने की गलती कर दी।”
पार्वती ने आह भरी, “गरीब, इस देश में गरीबों की कोई जगह नहीं बहन। कानून सिर्फ अमीरों के लिए है। अगर तेरे पास पैसे नहीं या पहचान नहीं, तो यह तुझे बहुत सताएंगे।” दूसरी लड़की जिसका नाम मीरा था, रोते हुए बोली, “दीदी, मैंने बस अपनी पसंद के लड़के से शादी करने की सोची थी। मेरे घर वालों ने ही मुझे पुलिस से पकड़वा दिया। यह लोग सुबह से पीट रहे हैं। कह रहे हैं कि कबूल कर, तूने चोरी की है।”
नेहा का दिल दहल गया। यही थी जमीनी हकीकत। वही सिस्टम जिसकी वह खुद अधिकारी थी। कुछ देर बाद इंस्पेक्टर विक्रम सिंह पान चबाते हुए लॉकअप के पास आए। उन्होंने सलाखों से झांक कर कहा, “और समाज सुधारक मैडम जी, कैसा लगा हमारा सरकारी मेहमान खाना?”
नेहा ने आंखों में आंखें डालकर कहा, “इंस्पेक्टर, तुमने अच्छा नहीं किया। तुमने अपनी वर्दी का अपमान किया है।” विक्रम सिंह हंसे और थूकते हुए बोले, “वर्दी का पाठ मुझे मत पढ़ा। चुपचाप इस कागज पर साइन कर दे। इस पर लिखा है, तूने सरकारी काम में बाधा डाली और नशे में हंगामा किया।”
नेहा बोली, “मैं किसी झूठे कागज पर साइन नहीं करूंगी। मैंने कोई गलती नहीं की है।” विक्रम सिंह गुर्राया, “नहीं करेगी? तब ठीक है। यही मच्छर काटेंगे, तब अकेले ठिकाने आएगी। या फिर दूसरा तरीका भी है हमारे पास। बताओ मंजूर है?” नेहा समझ गई कि उसका इशारा कहां है। उसने कहा, “अपनी औकात में रहो इंस्पेक्टर। मैं साइन नहीं करूंगी।”
विक्रम सिंह गुर्राया, “ठीक है, सुरेश, इसे अंदर ले जाओ और समझाओ कि पुलिस की बात ना मानने का अंजाम क्या होता है।” दो सिपाही अंदर आए। “चल, बाहर निकल।” नेहा बोली, “मैं बेकसूर हूं।” एक सिपाही ने उसके बाल पकड़ कर खींचा। “साहब बुला रहे हैं।” नेहा दर्द से चिल्लाई, “छोड़ो मुझे। यह गलत है।”
सिपाही ठहाका मारकर बोला, “बड़ी आई न्याय की देवी। यहां हमारा कानून चलता है।” उन्होंने नेहा को घसीटते हुए एक अंधेरे कमरे में ले जाकर फेंक दिया। वह गिर पड़ी। सूट का पल्लू खुल गया। इंस्पेक्टर विक्रम सिंह हाथ में लकड़ी का डंडा लिए अंदर आए। “अब बता, साइन करेगी या यह डंडा तेरी सारी समाज सेवा निकाल देगा?”
नेहा ने आंखों में गुस्सा भरकर कहा, “मारो मुझे, लेकिन याद रखना, हर एक चोट का हिसाब देना होगा तुम्हें।” विक्रम सिंह हंसे। “कौन लेगा हमसे हिसाब?”
नेहा को फिर लॉकअप में डाल दिया गया। लेकिन अब उसका संकल्प और मजबूत हो चुका था। आधी रात को उसे दो बासी रोटियां और पानी जैसी दाल दी गई। बदबूदार कंबल, मच्छरों का हमला और औरतों की सिसकियां, वह सो नहीं पाई। सोचती रही, “यह रात मेरे लिए एक सबक है। यह मेरे काम की असली परीक्षा है।”
सुबह की किरणें खिड़की से आईं, तो नेहा के गाल पर थप्पड़ का निशान नीला पड़ चुका था। तभी इंस्पेक्टर विक्रम सिंह फिर आए। “अबे, आज तेरी किस्मत अच्छी है। चल, तेरी जमानत हो गई।” नेहा चौकी, “मेरी जमानत किसने कराई?”
विक्रम सिंह हंसे, “कोई पत्रकार है। कल रात का तमाशा किसी ने उसे बता दिया होगा। तेरे जैसे लोगों को बचाने कोई ना कोई मूर्ख आ ही जाता है। चल, निकल यहां से।”
नेहा को लॉकअप से बाहर निकाला गया। बाहर अब तक मीडिया की कई गाड़ियां और आम लोगों की भारी भीड़ जमा हो चुकी थी। गोपाल काका भी वहां खड़े थे। अपनी आंखों में आंसू लिए। नेहा सीधा उनके पास गई। गोपाल काका उन्हें देखते ही हाथ जोड़ने लगे। “नेहा ने उनके हाथ पकड़ लिए।”
“गोपाल काका, माफी तो मुझे मांगनी चाहिए। मेरे ही सिस्टम के लोगों ने आपकी रोजी-रोटी छीनी। मैं वादा करती हूं, आपका ठेला आपको वापस मिलेगा और पूरे सम्मान के साथ आपको म्युनिसिपल कॉरपोरेशन से आधिकारिक लाइसेंस भी दिलवाया जाएगा। आज से कोई आपसे हफ्ता नहीं मांगेगा।”
गोपाल काका रो पड़े। “मैडम, आप तो देवी हैं। आपने हमें बचा लिया।” नेहा ने कहा, “मैं देवी नहीं, बस अपना फर्ज निभा रही हूं।” फिर वह मीडिया की तरफ मुड़ी। सोनिया ने माइक आगे किया।
“नेहा बोली, आज जो हुआ वह शर्मनाक है। लेकिन यह एक शुरुआत भी है। मैं इस शहर के हर नागरिक को यह भरोसा दिलाना चाहती हूं कि कानून से ऊपर कोई नहीं है। ना कोई नेता, ना कोई अफसर और ना ही कानून के रखवाले। अगर पुलिस जनता की रक्षक बनेगी तो हम उसे सलाम करेंगे। लेकिन अगर वह भक्षक बनेगी तो उसे बख्शा नहीं जाएगा।”
“मैं चाहती हूं कि इस थाने के हर कोने में सीसीटीवी कैमरे लगाए जाएं और हर हफ्ते उनकी फुटेज की जांच हो।” कमिश्नर ने सिर झुकाकर कहा, “जी मैडम।” इंस्पेक्टर विक्रम सिंह और उसके साथी अब हथकड़ी लगाकर पुलिस की जीप में बिठाए जा रहे थे।
कल तक जो वर्दी उनका घमंड थी, आज वही वर्दी उनकी बेइज्जती का सबक बन गई थी। उनकी नौकरी, उनकी इज्जत सब एक रात में खत्म हो गई थी।
तो दोस्तों, यह कहानी केवल मनोरंजन और शिक्षा के उद्देश्य से बनाई गई है। इसमें दिखाए गए सभी पात्र, घटनाएं और संवाद काल्पनिक हैं। किसी भी वास्तविक व्यक्ति, संस्था या घटना से इनका कोई संबंध नहीं है। कृपया इसे केवल कहानी के रूप में देखें और इसका आनंद लें। हम किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाना नहीं चाहते।
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