अंतिम विदाई में सबसे बड़ी नाइंसाफी: हेमा मालिनी और ईशा देओल केवल 2 मिनट में क्यों निकल गईं?

मुंबई: बॉलीवुड के ‘ही-मैन’ धर्मेंद्र देओल ने 89 साल की उम्र में अंतिम सांस ली। उनके निधन से पूरा देश शोकाकुल था, लेकिन उनके अंतिम संस्कार के दौरान जो हुआ, वह हैरान कर देने वाला और दिल तोड़ देने वाला था।

धर्मेंद्र की दूसरी पत्नी, हेमा मालिनी, अपनी बेटी ईशा देओल के साथ अंतिम दर्शन के लिए पहुँचीं, लेकिन उन्हें वहाँ एक ऐसी नाइंसाफी का सामना करना पड़ा कि वे और ईशा केवल 2 मिनट में वहाँ से चली गईं। जिस ग्राउंड पर धर्मेंद्र जी की अंतिम विदाई हो रही थी, वहाँ से दोनों चुपचाप अपनी गाड़ी में बैठीं और सीधे चली गईं।

पत्नी का धर्म और पहली पत्नी का हक़

धर्मेंद्र जी की मौत के बाद, अंतिम संस्कार की सभी महत्वपूर्ण रस्में उनकी पहली पत्नी प्रकाश कौर ने अपने पूरे परिवार के साथ निभाईं। प्रकाश कौर, जो धर्मेंद्र की पहली साथी थीं, ने पत्नी होने का धर्म पूरी शिद्दत से निभाया।

हेमा मालिनी ने 1980 में धर्मेंद्र से शादी की थी। यह शादी पूरी दुनिया के ख़िलाफ़ जाकर की गई थी। हेमा जी ने उस वक्त यह कसम खाई थी कि वह कभी भी प्रकाश कौर का सामना नहीं करेंगी। लेकिन आज, धर्मेंद्र जी के गुज़रने के बाद, उन्हें प्रकाश कौर का सामना करना पड़ा। प्रकाश कौर अपने पूरे परिवार—सनी, बॉबी, और उनकी बहनों—के साथ उसी ग्राउंड में मौजूद थीं।

हेमा मालिनी, धर्मेंद्र जी को आखिरी बार देखने के लिए रोती हुई आगे बढ़ रही थीं, लेकिन उन्हें रोक दिया गया।

रिचुअल्स के नाम पर अपमान

ग्राउंड में पंडित जी पूरे रीति-रिवाजों और मंत्रोच्चार के साथ धर्मेंद्र जी की अंतिम विदाई दे रहे थे। यह विदाई पंजाबी स्टाइल में, एक ‘हीरो’ के माफ़िक दी जा रही थी। जब पंडित जी ने रस्में कराने के लिए पत्नी को बुलाया, तो देओल परिवार ने बिना किसी देरी के प्रकाश कौर को आगे कर दिया।

दूर खड़ी हेमा मालिनी यह सब देखती रहीं। उनके पास भी नहीं जाया गया, और उन्हें केवल दूर से धर्मेंद्र जी का चेहरा दिखाया गया। उन्हें धर्मेंद्र जी के पास, एक पत्नी के तौर पर, अंतिम वक्त में रहने नहीं दिया गया।

हेमा मालिनी यह सब देखकर फूट-फूट कर रोने लगीं। उनकी आँखों में दर्द, अपमान और टूटे हुए रिश्ते का सारा बोझ साफ़ झलक रहा था। यह सब देखकर वहाँ मौजूद बॉलीवुड के छोटे-बड़े हर स्टार सन्न रह गया। सभी को लगा कि एक पत्नी के साथ यह सबसे बड़ी नाइंसाफी थी, क्योंकि वह चाहती थीं कि अंतिम बार वह अपनी पत्नी होने का धर्म निभा जाएँ।

ईशा का दर्द और हेमा का फ़ैसला

धर्मेंद्र जी को दूसरी शादी से दो बेटियाँ हैं: ईशा देओल और अहाना देओल। ईशा देओल अपनी माँ के साथ वहाँ मौजूद थीं। अपनी माँ के साथ यह अपमान होता देखकर ईशा भी बहुत दुखी हुईं। वह अपने पिता को अंतिम विदाई देना चाहती थीं, लेकिन परिवार के बैर के सामने वह बेबस थीं।

इतनी बड़ी बेइज्जती और नाइंसाफी हेमा मालिनी से बर्दाश्त नहीं हुई। जैसे ही अंतिम संस्कार की विदाई शुरू होने वाली थी, हेमा मालिनी ने तुरंत वहाँ से निकलने का फ़ैसला किया। वह सीधे अपनी कार की तरफ़ बढ़ीं। वहाँ मौजूद सारे मीडिया कैमरे और लोगों की निगाहें उन पर टिकी थीं। हेमा मालिनी ने अपने सिर पर दुपट्टा ओढ़ रखा था और वह फूट-फूट कर रो रही थीं। वह कार में बैठीं और ईशा देओल के साथ सीधे वहाँ से निकल गईं।

माफ़ी और बैर की दीवार

यह बात तो कही जाती है कि प्रकाश कौर ने धर्मेंद्र जी को माफ़ कर दिया था। लेकिन, धर्मेंद्र जी का बाक़ी पूरा परिवार—सनी और बॉबी—ने कभी भी हेमा मालिनी को माफ़ नहीं किया। सनी और बॉबी के मन में यह बात हमेशा रही कि हेमा मालिनी की वजह से उनकी माँ (प्रकाश कौर) को जीवन भर दुख और अकेलापन सहना पड़ा।

उनका गुस्सा जायज़ था, क्योंकि एक बेटा अपनी माँ के दर्द को नहीं देख सकता। हेमा मालिनी भी यह बात अच्छी तरह जानती थीं। वह जानती थीं कि वहाँ उनका कोई सम्मान नहीं होगा, और वह कहीं न कहीं यह भी समझती थीं कि उन्होंने प्रकाश कौर के साथ ग़लत किया है। यही वजह थी कि वह 40 साल तक प्रकाश कौर से मिलने और उनके सामने जाने से बचती रहीं।

धर्मेंद्र जी की अंतिम विदाई में यह नाइंसाफी एक बार फिर साबित कर गई कि बरसों पुराना बैर और बँटवारा, प्यार और सम्मान की भावना पर भारी पड़ गया। एक पत्नी, एक माँ, को अपने पति और पिता को अंतिम विदाई देने का हक़ भी नहीं मिला।

समाज की धारणाएँ और सच्चाई

यह घटना न केवल एक परिवार के भीतर के संबंधों को उजागर करती है, बल्कि समाज की उन धारणाओं को भी सामने लाती है, जो अक्सर महिलाओं को उनके हक से वंचित करती हैं। हेमा मालिनी और प्रकाश कौर के बीच की खाई, केवल व्यक्तिगत नहीं थी, बल्कि यह एक बड़े सामाजिक ढांचे का हिस्सा थी, जहाँ महिलाओं को हमेशा से कमतर आंका गया है।

इस नाइंसाफी ने यह सवाल खड़ा किया कि क्या एक पत्नी को अपने पति के अंतिम संस्कार में सम्मान के साथ शामिल होने का हक नहीं है? क्या समाज ने यह तय कर लिया है कि एक पत्नी की पहचान उसके पति की पहचान से अलग नहीं हो सकती?

अंत में

हेमा मालिनी और ईशा देओल का वहाँ से निकल जाना, न केवल उनकी व्यक्तिगत पीड़ा का प्रतीक था, बल्कि यह एक बड़ा संदेश भी था। यह दर्शाता है कि समाज में कितनी भी भेदभाव और नाइंसाफियाँ क्यों न हों, एक महिला की पहचान और उसकी गरिमा हमेशा महत्वपूर्ण होती है।

यह घटना हमें यह सिखाती है कि हमें अपने पूर्वाग्रहों को छोड़कर सच्चाई को स्वीकार करना चाहिए। हमें यह समझना चाहिए कि हर व्यक्ति की कहानी महत्वपूर्ण है, और हमें एक-दूसरे के प्रति सहानुभूति और सम्मान के साथ पेश आना चाहिए।

(आप इस पर क्या कहेंगे? क्या हेमा मालिनी के साथ यह नाइंसाफी सही थी? क्या उन्हें पत्नी होने के नाते अंतिम रस्में निभाने का हक़ मिलना चाहिए था? कमेंट के थ्रू आप हमें यह बात ज़रूर बताएँ। और ज़्यादा अपडेट्स के लिए, चैनल को सब्सक्राइब करना न भूलें।)

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