एक बेघर बच्चे ने अरबपति की विकलांग पत्नी को फिर से चलने में मदद की! फिर क्या हुआ?

राजू, मोती और ओबेरॉय मेंशन का बगीचा

शुरुआत:
कहते हैं, इंसान की असली कीमत उसके बटुए से नहीं, उसकी इंसानियत से आंकी जाती है।

मुंबई की एक तूफानी रात, अरबों की चमक-दमक के बीच, एक फ्लाईओवर के नीचे 10 साल का राजू अपने फटे त्रिपाल के नीचे, अपने इकलौते दोस्त मोती (एक आवारा कुत्ता) के साथ भीग रहा था। उसके पास दुनिया की कोई दौलत नहीं थी, बस एक बेदाग दिल और अपनी मां की एक पुरानी तस्वीर।

वहीं कुछ किलोमीटर दूर, ओबेरॉय मेंशन के महलनुमा कमरे में प्रिया ओबेरॉय व्हीलचेयर पर कैद थी। दो साल पहले बेटे रोहन की मौत के बाद, उसने चलना छोड़ दिया था। डॉक्टरों ने कहा, बीमारी शारीरिक नहीं, मानसिक है। अरबपति विक्रम ओबेरॉय दुनिया जीत सकता था, लेकिन अपनी पत्नी का टूटे दिल नहीं जोड़ पाया।

तूफान की रात:
राजू का त्रिपाल फट गया। भीगता, कांपता, मां की तस्वीर छाती से लगाए वह ओबेरॉय मेंशन के गेट के पास आ गया। गार्ड ने उसे धक्का देकर भगा दिया। उसकी मां की तस्वीर पानी में बह गई। ऊपर खिड़की से प्रिया ने पहली बार किसी अजनबी के लिए इंटरकॉम दबाया—“उसे अंदर लाओ।”

विक्रम गुस्से में था, लेकिन प्रिया की जिद के आगे सब चुप। राजू को साफ कपड़े, खाना मिला। प्रिया ने पूछा, “मां कहां है?” राजू ने बताया, “स्टेशन पर छोड़ गई थी, बस तस्वीर थी।” प्रिया की आंखें नम हो गईं।

मोती के लिए भी प्रिया ने गार्ड को भेजा। विक्रम भड़क उठा, “कुत्ता इस घर में नहीं!” लेकिन प्रिया ने दो साल बाद पहली बार कुछ मांगा और विक्रम हार गया।

बगीचे की ओर:
राजू को काम मिला—बगीचे की देखभाल और प्रिया की व्हीलचेयर चलाना। सूखे बगीचे में, राजू ने तुलसी का पौधा देखा—“मेम साहब, यह जिंदा है!” प्रिया ने कांपते हाथों से पहली बार पानी डाला। बगीचे में जिंदगी की पहली बूंद गिरी। प्रिया बस जिंदा थी।

जिंदगी लौटती है:
राजू हर रोज बगीचे में काम करता, गेंदे के बीज लाता। प्रिया धीरे-धीरे व्हीलचेयर खुद घुमाने लगी। दो हफ्ते बाद, मोती ने गड्ढा खोदकर पौधा उखाड़ दिया, प्रिया हंस पड़ी। दो साल बाद पहली बार घर में हंसी गूंजी।

विक्रम जलता रहा। उसकी दौलत, ताकत सब बेकार थी। प्रिया उसकी नहीं, राजू की वजह से बदल रही थी। विक्रम ने राजू को फंसाने की साजिश रची—रोहन का लॉकेट उसकी जेब में डाल दिया।

चोरी का इल्जाम:
अगली सुबह, लॉकेट गुम। तलाशी में राजू की जेब से मिला। सबने उसे चोर समझा। गार्ड ने उसे और मोती को धक्के मारकर बाहर निकाल दिया। मोती को चोट लगी। प्रिया फिर पत्थर हो गई। बगीचा सूखने लगा।

प्रिया को शक हुआ—राजू सुबह बगीचे में था, कमरे में नहीं। लॉकेट उसकी जेब में कैसे? विक्रम झूठ बोल रहा था। प्रिया समझ गई, असली चोर कौन है।

अंतिम मोड़:
चैरिटी पार्टी में विक्रम भाषण दे रहा था—“कमजोरों की मदद।” तभी प्रिया अपने पैरों पर, रीटा के सहारे हॉल में आई। सब हैरान। प्रिया ने सबके सामने सच खोला—“जिस बच्चे ने मुझे हंसना सिखाया, उसे चोर बनाकर घर से निकाला गया। विक्रम ने लॉकेट खुद रखा, CCTV फुटेज डिलीट किया।”

प्रिया ने राजू को बुलवाया। वह दौड़ता हुआ आया। प्रिया ने उसे गले लगाया—“माफ कर दो बेटा, असली चोर तुम नहीं, मैं थी। तुमने मुझे चलना सिखाया।”

समापन:
प्रिया ने राजू का हाथ थामा, धीरे-धीरे उठी। “चलो राजू, हमारे गेंदे के पौधे सूख रहे होंगे।”

सीख:
सच्ची इंसानियत, प्यार और उम्मीद किसी भी तूफान को हरा सकती है। दौलत नहीं, दिल बड़ा होना चाहिए।

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