गरीब लड़की ने अपाहिज करोड़पति को रोटी के बदले चलने सीखाने का वादा किया फिर…

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सड़क के किनारे एक छोटी सी गली में राधा बैठी थी। उसके फटे-पुराने कपड़े, उलझे बाल और हाथ में एक छोटी थाली जिसमें दो सूखी रोटियां और आधा अचार रखा था, उसे देखकर कोई यह नहीं सोच सकता था कि उसके अंदर कितनी बड़ी उम्मीद की लौ जल रही है। राधा का चेहरा धूल-धूसरित था, लेकिन उसकी आंखों में एक चमक थी, जो किसी भी विपरीत परिस्थिति को झेलने की ताकत देती थी। वह गरीबी में पली-बढ़ी थी, पर कभी हार नहीं मानी थी।

उस दिन सुबह की धूप मोहल्ले की संकरी गलियों में फैल रही थी, और मंदिर के पास बने चौराहे पर लोग रोजाना की भाग-दौड़ में व्यस्त थे। कुछ लोग यहां रुकते, कुछ अपनी थाली में खाना खाते और फिर भाग जाते। राधा भी वहीं बैठी थी, जैसे हर रोज़। लेकिन आज कुछ अलग था। उसकी नजरें एक चमक लिए हुए थीं, जैसे उसने अपने भीतर कोई बड़ा फैसला कर लिया हो।

उसी चौराहे पर अचानक एक चमचमाती काली कार आई। कार इतनी महंगी और आलीशान थी कि वहां खड़े हर शख्स की नजरें उसी पर टिक गईं। ड्राइवर ने फुर्ती से दरवाजा खोला और अंदर से शहर के सबसे बड़े बिजनेस टाइकून मनोहर अग्रवाल को बाहर निकालने में मदद की। मनोहर अग्रवाल करोड़ों का साम्राज्य खड़ा करने वाला शख्स था, लेकिन आज वह अपनी ही टांगों का गुलाम था। दस साल पहले हुए एक भयानक एक्सीडेंट ने उसे चलने-फिरने से वंचित कर दिया था। दुनिया के सबसे बड़े अस्पतालों और डॉक्टरों ने उसे ठीक करने से मना कर दिया था। अब व्हीलचेयर ही उसकी दुनिया थी, और उसके चेहरे पर कड़वाहट और निराशा की छाप थी।

लोग उसे देखकर कानाफूसी करने लगे, “इतना पैसा किस काम का जब इंसान चल भी ना सके।” “देखो, आज फिर मंदिर आया है, शायद भगवान कोई चमत्कार कर दें।” “पागल है क्या?” इस तरह की बातें वहां के माहौल को गंदा कर रही थीं। लेकिन राधा ने मनोहर को देखा। उसने उसकी महंगी घड़ी, डिजाइनर सूट या आलीशान गाड़ी को नहीं देखा। उसने उसकी आंखों में झांका, जहां दौलत की चमक नहीं थी बल्कि एक गहरा, अंतहीन अकेलापन और दर्द का समंदर था। एक ऐसा दर्द जिसे कोई दवा ठीक नहीं कर पा रही थी।

राधा के अंदर अचानक एक हिम्मत जाग उठी। वह अपनी जगह से उठी, अपने फटे आंचल को ठीक किया और सीधे उस काली गाड़ी की तरफ बढ़ चली। लोगों की हंसी और तंज उस पर बरस रहा था। “देखो, यह गरीब लड़की क्या कर देगी? करोड़पति को ठीक कर देगी? पागल हो गई है क्या?” लेकिन राधा रुकी नहीं। वह मनोहर अग्रवाल के सामने जाकर खड़ी हो गई। मनोहर ने उसे सिर से पांव तक घृणा भरी नजरों से देखा, जैसे वह कोई कीड़ा-मकोड़ा हो। उसने ड्राइवर को इशारा किया कि उसे भगा दो। पर राधा की आवाज में कुछ ऐसा था कि उसके हाथ रुक गए।

“साहब,” राधा ने बिना डरे कहा, “मैं जानती हूं कि आप चल नहीं सकते। दुनिया के सारे डॉक्टरों ने आपको जवाब दे दिया है।” मनोहर की आंखों में गुस्सा छलका, “तो तुम क्या चाहती हो? भीख?” राधा ने शांति से जवाब दिया, “नहीं साहब, मैं आपको चलना सिखाऊंगी। बस बदले में मुझे हर रोज पेट भरने के लिए खाना दे देना।” यह सुनते ही वहां खड़े हर शख्स जोर-जोर से हंसने लगे। यह किसी मजाक जैसा था। मनोहर को भी लगा कि यह लड़की या तो पागल है या बहुत बड़ी धोखेबाज। पर उसने राधा की आंखों में देखा। वहां न तो डर था, न लालच। वहां एक आत्मविश्वास था, एक ऐसी चमक जो उसने सालों से किसी डॉक्टर की आंखों में भी नहीं देखी थी। एक उम्मीद की जद।

मनोहर जो अपनी जिंदगी की एक्सटा और निराशा से तंग आ चुका था, उसने एक फैसला किया। उसकी भारी आवाज गूंज उठी, “ठीक है, कल सुबह मेरे घर के पते पर आ जाना। पर याद रखना, अगर तुमने अपना वादा नहीं निभाया तो अंजाम बहुत बुरा होगा।” राधा ने सिर हिलाया और मुस्कुराई। यह एक ऐसा सौदा था जो किसी बिजनेस डील से कहीं ज्यादा बड़ा था।

अगली सुबह, राधा जब मनोहर के आलीशान बंगले के गेट पर पहुंची, तो गार्ड्स ने उसे ऐसे देखा जैसे वह कोई कचरा हो। उसे अंदर जाने से रोक दिया गया। लेकिन मनोहर के आदेश के बाद उसे अंदर जाने दिया गया। अंदर का नजारा किसी महल जैसा था—ऊंची-ऊंची छतें, महंगे कालीन, दीवारों पर लगी करोड़ों की पेंटिंग्स। राधा एक पल के लिए सहम गई, पर फिर उसे अपना वादा याद आया।

मनोहर उसे अपने पर्सनल जिम में मिला, जहां दुनिया की सबसे महंगी एक्सरसाइज मशीनें धूल खा रही थीं। उसका रवैया अब भी संदेह और तिरस्कार से भरा था। पहला दिन किसी जंग से कम नहीं था। मनोहर दर्द से चीख रहा था, गुस्सा कर रहा था, “यह सब बकवास है। मुझसे नहीं होगा। इतने बड़े-बड़े फिजियोथेरेपिस्ट कुछ नहीं कर पाए तो तुम क्या कर लोगी? तुम जानती भी हो स्पाइनल कॉर्ड इंजरी क्या होती है?”

पर राधा ने हार नहीं मानी। उसने उन महंगी मशीनों को हाथ तक नहीं लगाया। उसने मनोहर को व्हीलचेयर से नीचे जमीन पर बिठाया। उसने गर्म तेल से उसकी बेजान टांगों की मालिश शुरू की। वह कोई डॉक्टर नहीं थी, पर उसे पता था कि शरीर से पहले मन का इलाज जरूरी है। वह उससे बातें करती रही, “साहब, आपके पैर कमजोर नहीं हैं, आपका भरोसा कमजोर हो गया है। आपने मान लिया है कि आप कभी नहीं चल सकते। जिस दिन आपका दिमाग आपके पैरों को हुक्म देगा, वे जरूर उठेंगे।”

उसने छोटी-छोटी एक्सरसाइज शुरू करवाई—पैरों की उंगलियों को हिलाने की कोशिश करना, घुटनों को थोड़ा सा मोड़ने का प्रयास करना। हर कोशिश नाकाम होती और हर नाकामी पर मनोहर का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच जाता। लेकिन राधा शांत रहती। वह उसे बताती कि असली ताकत पैरों में नहीं दिमाग में होती है। “साहब, दवा नहीं, आपका हौसला आपको चलाएगा।”

दिन हफ्तों में और हफ्ते महीनों में बदल गए। राधा का हर रोज सुबह आना और मनोहर के साथ घंटों मेहनत करना अब उस घर की दिनचर्या बन चुका था। जो नौकर-चाकर पहले राधा को हिकारत से देखते थे, वे अब उसे सम्मान से देखने लगे थे। उन्होंने मनोहर अग्रवाल को इन महीनों में बदलते हुए देखा था। मनोहर का गुस्सा कम हो गया था। उसकी जगह अब एक अजीब सी शांति ने ले ली थी। वह अब दर्द होने पर चीखता नहीं था, बल्कि अपनी सांसों पर ध्यान केंद्रित करता जैसा राधा ने उसे सिखाया था।

वह अब राधा से अपने बिजनेस, अपनी पुरानी जिंदगी और उस एक्सीडेंट के बारे में बातें करने लगा था। राधा चुपचाप सब सुनती, कोई सलाह नहीं देती, बस उसकी बातों को सुनती, उसके दर्द को महसूस करती। और फिर एक दिन वह हुआ जिसकी किसी को उम्मीद नहीं थी।

राधा हमेशा की तरह उसकी टांगों की मालिश कर रही थी। “साहब, अपनी आंखें बंद कीजिए और सोचिए कि आप अपने पैरों पर चल रहे हैं। उस एहसास को महसूस कीजिए।” मनोहर ने वैसा ही किया, और तभी उसके दाहिने पैर के अंगूठे में एक हल्की सी हरकत हुई। इतनी हल्की कि शायद किसी को पता भी न चलता। पर मनोहर ने उसे महसूस कर लिया था। राधा लगभग चीखी, “देखो, मेरा पैर हिला!” उसने देखा, अंगूठा फिर से थोड़ा सा हिला। यह एक चमत्कार था। सालों से बेजान पड़े शरीर के एक हिस्से में जिंदगी लौट आई थी।

उस दिन मनोहर की आंखों में आंसू थे, पर वे दर्द के नहीं, खुशी के थे। पहली बार उसने राधा को सिर्फ एक गरीब लड़की की तरह नहीं, बल्कि उम्मीद की देवी की तरह देखा। यह बस शुरुआत थी। उस छोटी सी हरकत ने मनोहर के अंदर एक ज्वालामुखी जैसी ऊर्जा भर दी थी। अब वह दोगुनी मेहनत करने लगा। उसका आत्मविश्वास लौट आया था।

कुछ ही हफ्तों में वह सपोर्ट के सहारे खड़ा होने लगा। फिर वह दिन भी आया जिसका सबको इंतजार था। राधा ने कहा, “आज आप बिना सहारे के चलेंगे।” पूरा स्टाफ बगीचे में इकट्ठा था। मनोहर का दिल जोरों से धड़क रहा था। उसने वॉकर को देखा, फिर कुछ दूर खड़ी राधा को, जिसकी आंखों में अटूट विश्वास था। उसने एक गहरी सांस ली और वॉकर को छोड़ दिया। उसके पैर कांपे, शरीर बुरी तरह लड़खड़ाया। एक पल को लगा कि वह गिर जाएगा, पर वह गिरा नहीं। उसने पहला कदम उठाया, फिर दूसरा और फिर तीसरा।

वहां मौजूद हर शख्स की आंखों में आंसू थे। जो लोग कभी राधा का मजाक उड़ाते थे, वे आज हैरान और निशब्द थे। मनोहर के चेहरे पर सालों बाद एक असली, बच्चों जैसी मुस्कान थी। वह लड़खड़ाता हुआ राधा तक पहुंचा और उसे गले लगा लिया, “तुमने मुझे मेरी जिंदगी वापस दे दी, राधा।” वह रोते हुए बोला।

लेकिन कहानी यहीं खत्म नहीं हुई। यह तो बस एक नई कहानी की शुरुआत थी। उस दिन मनोहर को एहसास हुआ कि राधा ने सिर्फ उसके पैर ठीक नहीं किए थे, बल्कि उसकी आत्मा को भी ठीक कर दिया था। उसे समझ आया कि असली दौलत बैंक में पड़े करोड़ों रुपए नहीं, बल्कि इंसानियत और किसी की मदद करने से मिलने वाली खुशी है।

उसने एक बड़ा फैसला किया। अपनी कंपनी की तरफ से एक बहुत बड़ा रिहैब सेंटर खोलने का ऐलान किया। एक ऐसा सेंटर जहां राधा जैसे गरीब, बेसहारा और शारीरिक रूप से अक्षम लोगों का मुफ्त में इलाज होगा और उन्हें आत्मनिर्भर बनाने के लिए काम भी दिया जाएगा। और इस सेंटर की हेड कौन बनी? वही राधा, जो कल तक सड़क पर एक रोटी के लिए तरसती थी, आज हजारों लोगों की जिंदगी बदलने वाली संस्था की प्रमुख बनने वाली थी।

जब मनोहर ने एक बड़े इवेंट में प्रेस के सामने यह ऐलान किया, तो वही लोग जो कभी राधा पर हंसते थे, आज खड़े होकर उसके सम्मान में तालियां बजा रहे थे। मनोहर ने माइक पर कहा, “मुझे दुनिया की सबसे महंगी दवाओं और डॉक्टरों ने ठीक नहीं किया। मुझे इस लड़की की उम्मीद, इसकी जिद और इसकी निस्वार्थ इंसानियत ने ठीक किया है। इसने मुझे सिर्फ चलना ही नहीं सिखाया, बल्कि यह भी सिखाया कि जिंदगी का असली मतलब क्या होता है। किसी की मदद करने से बड़ा कोई धर्म नहीं होता।”

यह कहानी हमें यही सिखाती है कि कभी किसी को उसके कपड़ों या उसकी हालत से जज मत करना। क्या पता जिसे आप छोटा और कमजोर समझ रहे हो, वही आपकी जिंदगी में सबसे बड़ा बदलाव ले आए। क्योंकि एक छोटी सी दया, एक जरा सा भरोसा और एक रोटी का कर्ज भी पूरी दुनिया बदल सकता है।

राधा और मनोहर की यह कहानी उम्मीद, इंसानियत और जज्बे की मिसाल बन गई। आज भी जब लोग उस रिहैब सेंटर में आते हैं, तो वे सिर्फ इलाज नहीं पाते, बल्कि एक नई जिंदगी की शुरुआत भी करते हैं। राधा की मेहनत और मनोहर की हिम्मत ने साबित कर दिया कि जब दिल मजबूत हो, तो कोई भी मुश्किल राहें आसान हो जाती हैं।

और इस तरह, एक गरीब लड़की ने न केवल एक अपाहिज करोड़पति को चलना सिखाया, बल्कि पूरे समाज को यह सिखाया कि इंसानियत से बड़ा कोई धन नहीं होता।