दसवीं फ़ैल लड़के ने करोड़पति से कहा मुझे नौकरी दें 3 महीने में आपकी कंपनी का नक्शा बदल दूंगा , न बदल
.
.
रात के 10:30 बज रहे थे। गुरुग्राम की चमकती हुई इमारतों के बीच ओबेरॉय टावर्स की ऊंची सी इमारत अपनी भव्यता से सबका ध्यान खींच रही थी। यह वही ओबेरॉय एंटरप्राइजेज का मुख्यालय था, जो भारत की सबसे पुरानी और बड़ी कंपनियों में से एक थी। नमक से लेकर साबुन तक, ओबेरॉय का नाम हर घर में जाना जाता था। इस साम्राज्य के शासक थे सचिन ओबेरॉय, 60 साल के एक अनुभवी उद्योगपति, जिन्होंने अपने पिता के छोटे से कारोबार को अपनी मेहनत और तेज दिमाग से एक मल्टीनेशनल कंपनी में बदल दिया था। सचिन के लिए बिजनेस एक पूजा था, और इस पूजा के नियम थे अनुशासन, परफेक्शन और क्वालिफिकेशन। उनकी कंपनी में चपरासी से लेकर वाइस प्रेसिडेंट तक हर कोई अपनी डिग्री और अनुभव के आधार पर चुना जाता था। उनके लिए किसी इंसान की कीमत उसकी फाइल में लगे सर्टिफिकेट से तय होती थी।
लेकिन पिछले कुछ सालों से इस महान साम्राज्य की नींव में दीमक लगनी शुरू हो गई थी। कंपनी का मुनाफा घट रहा था, नए प्रोडक्ट बाजार में सफल नहीं हो रहे थे, और कर्मचारियों का जोश ठंडा पड़ चुका था। सचिन ओबेरॉय हर रोज अपने शानदार ऑफिस में बैठकर बड़ी-बड़ी यूनिवर्सिटी से पढ़े मैनेजरों के साथ मीटिंग करते थे। ये मैनेजर एयर कंडीशन कमरों में बैठकर लैपटॉप पर प्रेजेंटेशन दिखाते, मुश्किल अंग्रेजी के शब्दों का इस्तेमाल करते, और समस्या की जड़ तक पहुंचे बिना ही सतही समाधान पेश करते। सचिन यह सब देखकर थक चुके थे। उन्हें अपनी कंपनी में वह पुराना जुनून, वह आग नजर नहीं आती थी जो उन्होंने और उनके पिता ने मिलकर जलाई थी।
इसी शहर के दूसरे छोर पर, एक पुरानी भीड़भाड़ वाली कॉलोनी में एक छोटा सा परिवार रहता था। उस परिवार का मुखिया था दिलीप, 24 साल का एक नौजवान, जिसके नाम के आगे ‘दसवीं फेल’ का ठप्पा लगा हुआ था। दिलीप पढ़ाई में कभी अच्छा नहीं था। उसका मन आंकड़ों और तारीखों को रटने में नहीं लगता था। लेकिन उसकी आंखें किसी चील की तरह तेज़ थीं और उसका दिमाग किसी मशीन की तरह चलता था। वह चीजों को वैसे नहीं देखता था जैसे वे दिखती थीं, बल्कि वैसे देखता था जैसी वे हो सकती थीं।
घर की जिम्मेदारियों के बोझ तले वह अपनी मां की चलाने वाली छोटी सी चाय की दुकान पर काम करता था। दिनभर चाय बनाते और धोते हुए उसकी नजरें फैक्ट्री के गेट पर टिकी रहती थीं। वह घंटों देखता कि कैसे फैक्ट्री से माल लेकर निकलने वाले ट्रकों को गेट पास के लिए घंटों इंतजार करना पड़ता है। वह देखता कि कैसे फैक्ट्री के कर्मचारी उदास चेहरों के साथ अंदर जाते और थके हुए चेहरों के साथ बाहर आते हैं। वह सुनता कि कैसे ट्रक ड्राइवर आपस में बात करते हैं कि फैक्ट्री के अंदर कितना माल बर्बाद होता है। वह देखता कि कंपनी के बड़े-बड़े मैनेजर अपनी शानदार गाड़ियों में आते हैं और बिना किसी से बात किए सीधे अपने कैबिन में चले जाते हैं। दिलीप को उस बड़ी कंपनी में हजारों कमियां नजर आती थीं जो शायद अंदर बैठे किसी एमबीए को नजर नहीं आती थीं।
एक दिन दिलीप की मां की तबीयत बहुत खराब हो गई। डॉक्टर ने बताया कि उनके दिल का ऑपरेशन करना पड़ेगा, जिसमें लाखों का खर्च आएगा। दिलीप के पैरों तले जमीन खिसक गई। चाय की दुकान की छोटी सी कमाई से दो वक्त की रोटी तो चल जाती थी, लेकिन इतना बड़ा खर्च उठाना नामुमकिन था। उस रात दिलीप सो नहीं पाया। वह अपनी मां को खोना नहीं चाहता था। उसने एक ऐसा फैसला किया जो कोई भी सामान्य इंसान करने की सोच भी नहीं सकता था। उसने ठाना कि वह सचिन ओबेरॉय से मिलेगा।
अगली सुबह दिलीप ओबेरॉय टावर्स के बाहर खड़ा था। उसके कपड़े सामान्य थे, लेकिन उसकी आंखों में एक असाधारण चमक थी। उसने गेट पर खड़े गार्ड से कहा, “मुझे सचिन ओबेरॉय साहब से मिलना है।” गार्ड ने उसे ऊपर से नीचे तक देखा और हंसकर बोला, “पागल है क्या? साहब किसी से भी नहीं मिलते। अपॉइंटमेंट है?” दिलीप ने शांति से जवाब दिया, “नहीं।” गार्ड ने कहा, “तो फिर जा, यहां से टाइम खराब मत कर।” और धकेलने की कोशिश की। लेकिन दिलीप वहां से हिला नहीं। वह चुपचाप एक कोने में जाकर खड़ा हो गया।
दिन बीते, हफ्ते बीते, दिलीप रोज सुबह आता और शाम तक वहीं खड़ा रहता। धूप, बारिश, भूख-प्यास सब कुछ सहता रहा। उसकी जिद देखकर गार्ड भी परेशान हो गए। आखिरकार यह बात कंपनी के सिक्योरिटी हेड तक पहुंची, जिसने सचिन ओबेरॉय के पर्सनल सेक्रेटरी को बताई। सचिन को जब पता चला कि एक लड़का एक हफ्ते से उनसे मिलने के लिए बाहर खड़ा है तो उन्हें गुस्सा आया। उन्होंने उसे अपने कैबिन में बुलवाया ताकि उसे दो-चार बातें सुनाकर भगा सकें।
जब दिलीप सचिन के आलीशान कैबिन में दाखिल हुआ, तो उसकी आंखों में कोई घबराहट या आश्चर्य नहीं था। वह उस कैबिन को ऐसे देख रहा था जैसे वह किसी समस्या का विश्लेषण कर रहा हो। सचिन ने गुस्से में पूछा, “क्या चाहते हो तुम? क्यों मेरा वक्त बर्बाद कर रहे हो?” दिलीप ने बिना किसी भूमिका के सीधे कहा, “साहब, मुझे नौकरी चाहिए।” सचिन हंस पड़े, “नौकरी? तुम्हारे पास कौन सी डिग्री है?” दिलीप ने कहा, “मैं दसवीं फेल हूं।” सचिन का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया, “दसवीं फेल और तुम मेरी कंपनी में नौकरी करने आए हो? तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई? गेट आउट!” लेकिन दिलीप अपनी जगह से हिला नहीं। उसने कहा, “साहब, मुझे सिर्फ तीन महीने का वक्त दीजिए। अगर तीन महीने में मैंने आपकी कंपनी का नक्शा नहीं बदल दिया, तो आप मुझे जेल भिजवा दीजिएगा। मैं खुद पुलिस के सामने कहूंगा कि मैंने आपके साथ धोखाधड़ी की है।”
यह सुनकर सचिन को लगा कि यह लड़का या तो पागल है या फिर इसमें कुछ खास है। उन्होंने पूछा, “तुम्हें ऐसा क्यों लगता है कि तुम कुछ कर सकते हो जो मेरे लाखों की तनख्वाह लेने वाले मैनेजर नहीं कर पा रहे हैं?” दिलीप ने कहा, “क्योंकि आपके मैनेजर आपकी कंपनी को ऊपर से देखते हैं और मैं उसे नीचे से देखता हूं। मैं जानता हूं कि आपकी कंपनी की असली समस्या क्या है। आपकी फैक्ट्री के गेट नंबर तीन से रोज हजारों लीटर डीजल चोरी होता है क्योंकि वहां का गार्ड ट्रक ड्राइवरों से मिला हुआ है। आपके साबुन के गोदाम में हर महीने लाखों की सीलन से बर्बादी होती है क्योंकि उसकी छत टूटी हुई है और किसी को परवाह नहीं। आपका सबसे ज्यादा बिकने वाला बिस्किट सम्राट अब बाजार में इसलिए नहीं बिक रहा क्योंकि आपके प्रतियोगियों ने उससे कम दाम में बेहतर क्वालिटी देना शुरू कर दिया है, और यह बात आपके किसी मैनेजर ने आपको नहीं बताई क्योंकि वे अपनी नौकरी बचाने में लगे हैं।”
दिलीप की बातें इतनी सटीक और सच्ची थीं कि सचिन हैरान रह गए। यह वे बातें थीं जो उन तक कभी पहुंची ही नहीं थीं। उन्होंने दिलीप की आंखों में एक जुनून देखा, एक ऐसी आग जो वे सालों से अपनी कंपनी में ढूंढ रहे थे। शायद उन्हें अपने जवानी के दिन याद आ गए जब वे भी बिना किसी डिग्री के सिर्फ अपने जुनून और विश्वास के दम पर आगे बढ़े थे। उन्होंने गहरी सांस ली और एक ऐसा फैसला किया जिसने उनके सारे मैनेजरों को हैरान कर दिया।
“ठीक है, मैं तुम्हें तीन महीने का वक्त देता हूं। तुम्हारी तनख्वाह होगी 10,000 रुपए महीना। तुम्हें कोई पद नहीं मिलेगा, कोई कैबिन नहीं मिलेगा। तुम सिर्फ एक ऑब्जर्वर होगे। तुम कंपनी में कहीं भी जा सकते हो, किसी से भी बात कर सकते हो। लेकिन शर्त यही रहेगी कि अगर तीन महीने में तुमने कुछ ऐसा नहीं किया जिससे कंपनी को फायदा हो, तो मैं तुम्हें सच में जेल भिजवा दूंगा।”
दिलीप के चेहरे पर मुस्कान आई, “मंजूर है साहब।” अगले दिन से दिलीप का मिशन शुरू हो गया। जब कंपनी के बड़े-बड़े मैनेजरों को यह पता चला तो सबने उसका मजाक उड़ाया। ऑपरेशन हेड मिस्टर चढ़ा, जो हार्वर्ड से एमबीए करके आए थे, ने सचिन से कहा, “सर, आप एक दसवीं फेल लड़के पर भरोसा करके कंपनी की इज्जत दांव पर लगा रहे हैं।” सचिन ने कहा, “तीन महीने इंतजार करो, चढ़ा।”
दिलीप ने अपना काम एयर कंडीशंड ऑफिस से शुरू नहीं किया। वह सीधे फैक्ट्री के सबसे निचले स्तर पर गया। उसने पहले कुछ दिन सिर्फ लोगों से बात करने में बिताए। मजदूरों के साथ उनकी कैंटीन में खाना खाया, ट्रक ड्राइवरों के साथ चाय पी, सिक्योरिटी गार्ड्स के साथ उनकी ड्यूटी पर खड़ा रहा। उसने उनकी समस्याएं पूछीं, सुझाव सुने। शुरू में तो सब उससे डरते थे, उन्हें लगता था कि वह मैनेजमेंट का कोई जासूस है। लेकिन दिलीप के सरल स्वभाव और सच्ची बातों ने धीरे-धीरे उनका दिल जीत लिया।
उसने फैक्ट्री की सबसे बड़ी समस्या, बर्बादी, को निशाना बनाया। साबुन बनाने की प्रक्रिया में बहुत सारा कच्चा माल जमीन पर गिरकर बर्बाद हो जाता था। उसने मजदूरों से बात की और एक सरल सा समाधान निकाला। मशीनों के नीचे बड़ी-बड़ी ट्रे लगवा दीं ताकि गिरने वाला सारा माल उसमें इकट्ठा हो जाए। उस इकट्ठे माल को दोबारा इस्तेमाल किया जाने लगा। यह छोटा सा बदलाव कंपनी को हर महीने लाखों रुपए की बचत करने लगा।
दूसरा निशाना था समय की बर्बादी। उसने ट्रक ड्राइवरों के लिए एक नया सिस्टम बनाया। हर ट्रक के लिए एक टाइम स्लॉट तय किया, जिससे उन्हें गेट पर घंटों इंतजार नहीं करना पड़ता था। उसने लोडिंग और अनलोडिंग की प्रक्रिया इतनी सरल बना दी कि जो काम पहले 3 घंटे में होता था, वह अब सिर्फ 1 घंटे में होने लगा।
मिस्टर चढ़ा और दूसरे मैनेजर यह सब देखकर जल भुन गए। एक दसवीं फेल लड़का वह कर रहा था जो वे अपनी महंगी डिग्रियों के साथ नहीं कर पाए थे। उन्होंने दिलीप के रास्ते में रोड़े अटकाने शुरू कर दिए। मजदूरों को उसके खिलाफ भड़काने की कोशिश की। उसके सुझावों को बकवास बताकर खारिज कर दिया। लेकिन दिलीप रुका नहीं।
उसने महसूस किया कि कंपनी की सबसे बड़ी समस्या कर्मचारियों का ठंडा पड़ा जोश है। उन्हें लगता था कि उनकी कोई सुनता नहीं है, उनकी मेहनत का कोई मोल नहीं है। दिलीप ने एक सुझाव पेटी शुरू की। उसने ऐलान किया कि जिसका भी सुझाव कंपनी के लिए फायदेमंद साबित होगा, उसे न सिर्फ इनाम मिलेगा बल्कि उस सुझाव को लागू करने वाली टीम का लीडर भी बनाया जाएगा। यह एक क्रांतिकारी विचार था।
धीरे-धीरे मजदूरों और छोटे कर्मचारियों ने सुझाव देना शुरू किया। एक पुराने मैकेनिक ने मशीन की आवाज सुनकर बताया कि उसका कौन सा पुर्जा खराब होने वाला है, जिससे लाखों की मशीन बर्बाद होने से बच गई। एक महिला कर्मचारी ने पैकेजिंग का नया तरीका सुझाया जिससे मटेरियल की लागत 20% कम हो गई। दिलीप हर अच्छे सुझाव को तुरंत लागू करता और उस कर्मचारी को सबके सामने सम्मानित करता।
देखते ही देखते फैक्ट्री का माहौल बदलने लगा। कर्मचारी सिर्फ मजदूर नहीं रहे, वे कंपनी के हिस्सेदार बन गए। उनके चेहरों पर उदासी की जगह आत्मविश्वास और गर्व आ गया। दो महीने बीत चुके थे। कंपनी के निचले स्तर पर क्रांति आ चुकी थी। उत्पादन लागत कम हो गई थी, प्रोडक्टिविटी बढ़ गई थी, और कर्मचारियों का मनोबल आसमान पर था।
लेकिन यह सब अंदरूनी बदलाव थे। दिलीप जानता था कि असली लड़ाई बाजार में है। उसने कंपनी के सबसे पुराने और प्रतिष्ठित प्रोडक्ट, सम्राट बिस्किट को चुना। वह बाजार में जाकर छोटे-छोटे दुकानदारों, ग्राहकों और बच्चों से बात की। पाया कि लोग अब सम्राट को एक पुराना और बोरिंग बिस्किट मानते हैं।
दिलीप सीधे रिसर्च एंड डेवलपमेंट लैब पहुंचा। वहां के वैज्ञानिकों ने उसे देखकर मुंह बनाया। दिलीप ने कहा, “हमें सम्राट को बदलना होगा। नया फ्लेवर, नई पैकेजिंग, और नई सोच लानी होगी।” उसने चॉकलेट, फ्रूट और मसालों के ऐसे कॉम्बिनेशन सुझाए जिनके बारे में वैज्ञानिकों ने कभी सोचा भी नहीं था।
मिस्टर चढ़ा को जब यह पता चला तो वह आग बबूला हो गया। उसने सचिन ओबेरॉय से शिकायत की कि यह लड़का कंपनी की इज्जत से खेल रहा है और सबसे प्रतिष्ठित ब्रांड को बर्बाद कर देगा। लेकिन सचिन ने दिलीप को रोकने की बजाय खुली छूट दे दी। शायद वे देखना चाहते थे कि यह लड़का और क्या कर सकता है।
दिलीप ने दिन-रात काम करके सम्राट का नया वर्जन तैयार किया, जिसका नाम रखा गया “सम्राट नेक्स्ट जन”। उसकी पैकेजिंग चमकदार थी, स्वाद नया था, और कीमत उतनी ही थी। तीन महीने पूरे होने में सिर्फ एक हफ्ता बचा था।
मिस्टर चढ़ा और उसकी टीम ने दिलीप को फंसाने का जाल बुन लिया। उन्होंने बोर्ड मीटिंग के लिए झूठे आंकड़े और रिपोर्ट्स तैयार कर लीं, जो साबित करती थीं कि दिलीप के आने से कंपनी को कोई फायदा नहीं, बल्कि नुकसान हुआ है। उन्होंने कुछ कर्मचारियों को डराकर दिलीप के खिलाफ झूठी गवाही देने के लिए तैयार कर लिया था। वे उस दिन के इंतजार में थे जब दिलीप को जलील करके कंपनी से बाहर निकालेंगे और सचिन के सामने अपनी वफादारी साबित करेंगे।
आखिरकार वह दिन आ गया। बोर्ड रूम खचाखच भरा हुआ था। कंपनी के सारे डायरेक्टर और बड़े अधिकारी मौजूद थे। सचिन ओबेरॉय अपनी कुर्सी पर जज की तरह बैठे थे। दिलीप एक कोने में चुपचाप खड़ा था। मिस्टर चढ़ा ने अपनी प्रेजेंटेशन शुरू की। बड़े-बड़े चार्ट्स और ग्राफ्स दिखाते हुए उसने यह साबित करने की कोशिश की कि दिलीप के सारे फैसले गलत थे। उसने कहा, “सर, इस लड़के की वजह से हमारी उत्पादन प्रक्रिया बाधित हुई है, कर्मचारियों में अनुशासनहीनता बढ़ी है, और हमारे सबसे बड़े ब्रांड सम्राट की पहचान खतरे में पड़ गई है। यह लड़का एक धोखेबाज है और शर्त के मुताबिक इसे अब जेल जाना चाहिए।”
सारे डायरेक्टर चढ़ा की बातों से सहमत लग रहे थे। सचिन का चेहरा गंभीर हो गया। उन्हें लगा कि शायद उन्होंने दसवीं फेल लड़के पर भरोसा करके बड़ी गलती कर दी है। उन्होंने दिलीप की तरफ देखा जैसे वह उससे कोई सफाई मांग रहे हों।
तभी बोर्ड रूम का दरवाजा जोर से खुला। अंदर फैक्ट्री के 100 से ज्यादा मजदूर, ट्रक ड्राइवर, सिक्योरिटी गार्ड और कुछ छोटे दुकानदार आए। उनका नेतृत्व कर रहा था फैक्ट्री का सबसे पुराना फोरमैन राम भरोसे। मिस्टर चढ़ा चिल्लाया, “यह सब लोग यहां क्या कर रहे हैं? सिक्योरिटी इन्हें बाहर निकालो।”
सचिन ने हाथ के इशारे से सबको शांत किया और राम भरोसे से पूछा, “क्या बात है?”
राम भरोसे ने कांपते हुए लेकिन बुलंद आवाज में कहा, “साहब, जो कुछ भी मिस्टर चढ़ा कह रहे हैं, वह सब झूठ है। सच तो यह है कि इस लड़के दिलीप ने तीन महीने में वह कर दिखाया है जो आप लोग 30 साल में नहीं कर पाए। उसने हमें हमारी इज्जत वापस दिलाई है। उसने कंपनी को लाखों का फायदा करवाया है।”
फिर एक-एक करके सबने बोलना शुरू किया। एक ड्राइवर ने बताया कि अब उसका ट्रक घंटों इंतजार नहीं करता। एक महिला कर्मचारी ने बताया कि उसके एक छोटे से सुझाव से कंपनी की लागत कम हुई। एक दुकानदार ने बताया कि कैसे सम्राट नेक्स्ट जन के सैंपल उसके यहां हाथों-हाथ बिक गए और लोग और माल की मांग कर रहे हैं। राम भरोसे ने वह रजिस्टर भी पेश किया जिसमें दिलीप के आने के बाद हुई सारी बचत और फायदों का असली हिसाब किताब था।
यह सब सुनकर मिस्टर चढ़ा और उसके साथी मैनेजरों के चेहरे का रंग उड़ गया। उनका बुना हुआ सारा जाल तार-तार हो चुका था। सचिन ओबेरॉय अपनी कुर्सी से उठे। उनकी आंखों में गुस्सा नहीं, बल्कि एक अजीब सी चमक थी। वे सालों बाद इतना खुश और उत्साहित महसूस कर रहे थे। उन्होंने मिस्टर चढ़ा और उसके साथियों की तरफ देखकर कहा, “अब सब लोग अभी इसी वक्त अपना इस्तीफा दीजिए और यहां से निकल जाइए।”
फिर वे दिलीप के पास आए, उसके कंधे पर हाथ रखा और पूरे बोर्ड के सामने ऐलान किया, “आज से ओबेरॉय एंटरप्राइजेज के नए चीफ ऑपरेटिंग ऑफिसर मिस्टर दिलीप होंगे।”
पूरे बोर्ड रूम में सन्नाटा छा गया। एक दसवीं फेल लड़का अरबों की कंपनी का सीईओ, यह अविश्वसनीय था। दिलीप ने हाथ जोड़कर कहा, “साहब, मैं इस पद के लायक नहीं हूं। मैं तो बस…” सचिन ने बीच में ही टोक दिया, “तुम इस पद के नहीं बल्कि इससे भी बड़े पद के लायक हो। तुमने मुझे सिखाया है कि कंपनी सिर्फ मशीनों और इमारतों से नहीं बनती, वह लोगों से बनती है। तुमने मुझे सिखाया है कि ज्ञान सिर्फ डिग्रियों में नहीं बल्कि नजरों में होता है। आज से यह कंपनी तुम्हारी है। इसे वैसे ही चलाना जैसे तुम चाहते हो।”
उस दिन के बाद ओबेरॉय एंटरप्राइजेज का नक्शा सच में बदल गया। दिलीप ने कंपनी चलाने का पूरा तरीका ही बदल दिया। अब फैसले एयर कंडीशंड कमरों में नहीं बल्कि फैक्ट्री के फ्लोर पर लिए जाते थे। कंपनी ने कुछ ही सालों में सफलता के नए कीर्तिमान स्थापित किए। और दिलीप, जो कभी दसवीं फेल था, आज देश के सबसे सफल और सम्मानित बिजनेस लीडर्स में से एक था। लेकिन वह आज भी अपना ज्यादातर समय उन्हीं मजदूरों और कर्मचारियों के बीच बिताता था जिन्होंने उस पर तब भरोसा किया था जब किसी ने नहीं किया था।
यह कहानी हमें सिखाती है कि किसी भी इंसान को उसकी डिग्री या एकेडमिक योग्यता से नहीं आंकना चाहिए। हुनर और काबिलियत किसी कागज के मोहताज नहीं होते। दिलीप के पास डिग्री नहीं थी, लेकिन उसके पास वह नजर थी जो समस्या की जड़ तक पहुंच सकती थी। उसके पास वह हिम्मत थी जो व्यवस्था से लड़ सकती थी, और उसके पास वह दिल था जो लोगों को समझ सकता था।
News
मैकेनिक ने 24 घंटे काम करके आर्मी ट्रक को ठीक किया और पैसे तक नहीं लिए, फिर जब…
मैकेनिक ने 24 घंटे काम करके आर्मी ट्रक को ठीक किया और पैसे तक नहीं लिए, फिर जब… . ….
विमान में एक व्यापारी को दिल का दौरा पड़ा, लड़के ने अपनी समझदारी से उसकी जान बचा ली।
विमान में एक व्यापारी को दिल का दौरा पड़ा, लड़के ने अपनी समझदारी से उसकी जान बचा ली। . ….
एयरलाइन ने जब एक गरीब दिखने वाले बुज़ुर्ग को बिजनेस क्लास में जाने से रोका, फिर जो हुआ…
एयरलाइन ने जब एक गरीब दिखने वाले बुज़ुर्ग को बिजनेस क्लास में जाने से रोका, फिर जो हुआ… . ….
8 साल की बच्ची ने करोड़पति से कहा अंकल, आपके ऑफिस में छुपा कैमरा है… फिर जो हुआ
8 साल की बच्ची ने करोड़पति से कहा अंकल, आपके ऑफिस में छुपा कैमरा है… फिर जो हुआ . ….
BİR MİLYONERİN BEBEĞİNİ EMZİREN KABİN MEMURU, REDDEDİLMESİ ZOR BİR TEKLİF ALDI…
BİR MİLYONERİN BEBEĞİNİ EMZİREN KABİN MEMURU, REDDEDİLMESİ ZOR BİR TEKLİF ALDI… . . Gökyüzünde Başlayan Hikaye Akdeniz Hava Yolları’nın lüks…
ÖĞRETMEN FAKİR ÖĞRENCİYİ AŞAĞILAMAYA ÇALIŞTI AMA ONUN 9 DİLDE YAZDIĞINI GÖRÜNCE ŞOKE OLDU
ÖĞRETMEN FAKİR ÖĞRENCİYİ AŞAĞILAMAYA ÇALIŞTI AMA ONUN 9 DİLDE YAZDIĞINI GÖRÜNCE ŞOKE OLDU . . Mehmet Demir ve Sessiz Devrim…
End of content
No more pages to load