कहानी: आशा किरण – ईमानदारी की रौशनी
क्या होता है जब ईमानदारी का एक छोटा सा टुकड़ा कूड़े के ढेर से निकलकर किसी की पूरी दुनिया को रोशन कर देता है? यही कहानी है 17 साल की आशा किरण की, जो दिल्ली की झुग्गी बस्ती जीवन नगर में अपनी मां शांति के साथ रहती थी। आशा के पिता सूरज एक मेहनती मजदूर थे, जिनका सपना था कि उनकी बेटी पढ़-लिखकर अफसर बने। लेकिन तीन साल पहले एक हादसे में उनके पिता चल बसे और मां की तबीयत भी बिगड़ गई। अब घर का सारा बोझ आशा के कंधों पर आ गया।
आशा को आठवीं कक्षा में ही पढ़ाई छोड़नी पड़ी। अब उसकी दुनिया थी – एक बड़ा सा बोरा, जिसे वह हर सुबह पीठ पर लादकर कचरा बीनने निकलती। प्लास्टिक, कांच, पुराने कागज – जो भी मिलता, कबाड़ी वाले को बेच देती। दिन के आखिर में मिले 50-100 रुपये से घर का चूल्हा जलता और मां की दवा आती। उसके हाथ सख्त हो गए थे, मगर दिल अब भी नरम था। वह रोज अपनी पुरानी किताबें पढ़ती, सपने देखती।

एक दिन, वसंत विहार की गलियों में कचरा बीनते हुए उसे एक मोटी लेदर की फाइल मिली। सोचा, इसमें कुछ रद्दी कागज होंगे, बिक जाएंगे। लेकिन रात को झोपड़ी में फाइल खोलने पर देखा – ये तो प्रॉपर्टी के असली सरकारी कागजात थे। नाम था – सुरेश आनंद। पता था – आनंद विला, वसंत … आगे का हिस्सा मिटा हुआ था।
आशा के मन में आया – अगर वह ये कागज बेच दे तो गरीबी मिट सकती है। मगर पिता की आवाज कानों में गूंजी – “बेईमानी की रोटी खाने से अच्छा है, ईमानदारी से भूखा सो जाना।” उसने तय किया – ये कागज लौटाने होंगे।
अगली सुबह, आशा ने अपनी सबसे साफ सलवार-कमीज पहनी, कागजों को प्लास्टिक में रखा और वसंत विहार पहुंच गई। वहां हर गार्ड से आनंद विला का पता पूछती रही, मगर कोई मदद नहीं मिली। कई दिन तक यही सिलसिला चलता रहा। घर में खाने के लाले पड़ने लगे, मां परेशान थी। मगर आशा ने हार नहीं मानी।
पांचवें दिन, एक डाकिया मिला। उसने कागज देखे और बताया – आनंद विला वसंत कुंज में है, वसंत विहार में नहीं। आशा ने धन्यवाद कहा और वसंत कुंज पहुंच गई। आखिरकार, वह एक बड़ी सी सफेद कोठी के सामने खड़ी थी – आनंद विला। गेट पर सुरक्षाकर्मी ने रोका, तभी सुरेश आनंद की पत्नी सविता जी बाहर आईं। आशा ने कागज लौटाने की बात कही, तो वे उसे अंदर ले गईं।
सुरेश आनंद आए, आशा ने कांपते हाथों से फाइल दी। उन्होंने फाइल खोली, तो हैरान रह गए – ये वही कागजात थे, जिनके लिए उनका परिवार अदालत में केस लड़ रहा था। उनके सौतेले भाई ने असली कागज गायब करवा दिए थे, और सुरेश आनंद केस हारने वाले थे। आशा ने पूरी कहानी बताई – कैसे वह पांच दिन से उन्हें ढूंढ रही थी।
सुरेश आनंद ने आशा को एक लाख रुपये इनाम में देने चाहे। लेकिन आशा ने मना कर दिया – “मेरे पिता कहते थे नेकी का सौदा नहीं किया जाता। अगर मैं पैसे ले लूंगी तो मेरी ईमानदारी की कीमत लग जाएगी।” सुरेश आनंद बहुत प्रभावित हुए। उन्होंने पूछा – तुम्हारे परिवार, पढ़ाई, मां की बीमारी के बारे में। पूरी बात जानकर उनकी आंखें नम हो गईं।
उन्होंने फैसला किया – आशा की पढ़ाई का सारा खर्च आनंद फाउंडेशन उठाएगा, मां का इलाज सबसे अच्छे अस्पताल में होगा। इसके अलावा, मार्केट में जो दुकान कई महीनों से बंद थी, वह आज से आशा किरण की है। दुकान के ऊपर का फ्लैट भी आशा और उसकी मां का घर होगा। “यह तुम्हारी मेहनत की कमाई होगी, किसी का एहसान नहीं।”
आशा की आंखों से आंसू बहने लगे। कल तक कचरा बीनने वाली लड़की आज एक दुकान, एक घर और एक सुनहरे भविष्य की मालकिन बन गई थी। मां का इलाज हुआ, दोनों नए घर में शिफ्ट हो गईं। आशा ने फिर से पढ़ाई शुरू की, सुबह स्कूल जाती, शाम को दुकान संभालती। “आशा किरण जनरल स्टोर” अब पूरे मोहल्ले में ईमानदारी और मीठे स्वभाव के लिए मशहूर हो गई।
सुरेश आनंद और उनका परिवार अब आशा के अपने परिवार जैसे थे। कई साल बाद आशा ने ग्रेजुएशन पूरी की, पिता का सपना पूरा किया – वह एक सरकारी अफसर बन गई। लेकिन उसने अपनी दुकान बंद नहीं की। वहां जरूरतमंद लड़कियों को काम पर रखा, ताकि वे भी इज्जत से जिंदगी जी सकें।
आशा अक्सर अपनी मां से कहती – “मां, बाबूजी ठीक कहते थे। ईमानदारी की राह मुश्किल जरूर होती है, मगर मंजिल बहुत सुंदर होती है।”
दोस्तों, यह थी आशा किरण की कहानी। यह हमें सिखाती है कि हालात कितने भी मुश्किल हों, अच्छाई और ईमानदारी का दामन कभी नहीं छोड़ना चाहिए। नेकी की रौशनी देर-सवेर हर अंधेरे को मिटा देती है।
अगर आपको यह कहानी पसंद आई, तो लाइक करें, कमेंट करें और चैनल सब्सक्राइब करें। ऐसी ही और प्रेरणादायक कहानियों के लिए जुड़े रहें।
**धन्यवाद!**
News
कहानी: हुनर की असली पहचान
कहानी: हुनर की असली पहचान जब घर का मालिक ही अपनी दीवारों को समझ न पाए, तो चौखट पर बैठा…
कहानी: रामनिवास का ठेला – इंसानियत की रसोई
कहानी: रामनिवास का ठेला – इंसानियत की रसोई जुलाई की झुलसती दोपहर थी। वाराणसी के चौक नंबर पांच पर आम…
कहानी: आशा किरण – ईमानदारी की रौशनी
कहानी: आशा किरण – ईमानदारी की रौशनी क्या होता है जब ईमानदारी का एक छोटा सा टुकड़ा कूड़े के ढेर…
ठेलेवाले ने मुफ्त में खिलाया खाना – बाद में पता चला ग्राहक कौन था, देखकर सब हक्का-बक्का/kahaniya
कहानी: रामनिवास का ठेला – इंसानियत की रसोई जुलाई की झुलसती दोपहर थी। वाराणसी के चौक नंबर पांच पर आम…
महिला मैनेजर ने Mechanic का मज़ाक उड़ाया , “इंजन ठीक करो, शादी कर लूंगी” | फिर जो हुआ…
कहानी: हुनर की असली पहचान जब घर का मालिक ही अपनी दीवारों को समझ न पाए, तो चौखट पर बैठा…
Khesari Lal Yadav and Wife Chanda Devi Campaign in Chhapra: “We’re Contesting to Serve, Not to Earn”
Khesari Lal Yadav and Wife Chanda Devi Campaign in Chhapra: “We’re Contesting to Serve, Not to Earn” Chhapra, Bihar —…
End of content
No more pages to load






