औकात की असली पहचान
रोहित अपनी बहन रिया को नए कपड़े दिलाने शहर के सबसे बड़े मॉल गया। रिया कॉलेज में पहली बार जा रही थी और उसे एक अच्छी ड्रेस चाहिए थी। दोनों ने अपनी बचत जोड़कर सिर्फ 3800 रुपये जुटाए थे। मॉल के बड़े शोरूम में नीली ड्रेस देखकर रिया की आंखें चमक उठीं। लेकिन सेल्समैन ने उन्हें ऊपर से नीचे तक देखा और ताना मारते हुए बोला, “यह ड्रेस 7990 की है, आपकी औकात के बाहर है। डिस्काउंट रैक पर जाइए।”
रिया की आंखों में उदासी थी, रोहित का दिल टूट गया। दोनों बाहर आ गए, सेल्समैन और बाकी लोग हंसते रहे। फूड कोर्ट में बैठकर रोहित ने रिया से वादा किया, “एक दिन इसी मॉल में तू जो चाहेगी, वही खरीदेगी। और जिस सेल्समैन ने ताना मारा है, वो हमें देखकर नजरें झुका लेगा।”
रात को रोहित ने इंटरनेट पर होलसेल कपड़ों के बारे में रिसर्च किया। अगली सुबह वह आजाद मार्केट पहुंचा, वहां से एक्सपोर्ट सरप्लस कपड़े खरीदे। शांति आंटी से सिलाई करवाकर रिया की फोटो इंस्टाग्राम पर डाली। धीरे-धीरे ऑर्डर्स आने लगे। रोहित ने कॉलेज के बाहर स्टॉल लगाया, सस्ती और अच्छी क्वालिटी की ड्रेस बेचने लगा। मुश्किलें आईं—कभी माल खराब, कभी ग्राहक नाराज। लेकिन रोहित ने हार नहीं मानी। उसने गारंटी दी, “ड्रेस खराब निकली तो अगली मुफ्त।”
धीरे-धीरे “सांची सी ड्रेस” ब्रांड मशहूर हो गया। सोशल मीडिया पर फॉलोअर्स बढ़ने लगे। एक दिन मॉल के उसी ब्रांड “मेरीडियन फैशन” के मैनेजर का फोन आया, “हम आपके ब्रांड को पॉपअप काउंटर देना चाहते हैं।” रोहित मीटिंग में गया, सामने वही सेल्समैन बैठा था जिसने ताना मारा था। अब उसकी आंखों में डर था।
मैनेजर ने कहा, “आपके कपड़े एक महीने ट्रायल पर रहेंगे।”
रोहित ने मुस्कुरा कर जवाब दिया, “मुझे ट्रायल नहीं चाहिए, मैं पूरा स्टोर खरीदना चाहता हूं।” सब चौंक गए। रोहित ने फाइल निकाली, ब्रांड की हालत दिखाई और डील फाइनल कर दी।
कुछ हफ्तों बाद उसी मॉल में “सांची सी ड्रेस” का ग्रैंड ओपनिंग हुआ। मीडिया, भीड़, कैमरे… रोहित ने रिया का हाथ पकड़कर स्टेज पर ले गया। बोला, “आज मेरी बहन कोई भी ड्रेस चुनेगी, क्योंकि उसकी औकात अब किसी सेल्समैन की जुबान नहीं, उसकी मेहनत और सपनों से तय होगी।”
भीड़ तालियों से गूंज उठी। सेल्समैन सिर झुकाकर खड़ा था। रोहित ने मुस्कुराकर कहा, “याद है, औकात से बाहर कहा था? देखो, औकात बदल गई।”
रिया ने वही नीली ड्रेस पहनकर स्टेज पर मुस्कराते हुए खड़ी थी। भीड़ ने खड़े होकर ताली बजाई।
रोहित ने कहा, “औकात इंसान की जेब से नहीं, उसकी मेहनत और इज्जत से बनती है।”
उस रात मॉल की कांच की दीवारों में तानों की नहीं, इज्जत की आवाज गूंज रही थी।
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**सीख:**
कभी किसी की औकात मत आंकना, क्योंकि मेहनत और सपनों की कोई कीमत नहीं होती।
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