कहानी: विवेक और उसकी बहनों का मिलन
शाम के 6:00 बज रहे थे। सूरज ढल चुका था और सरकारी दफ्तरों की रोशनी जल उठी थी। दिनभर की भागदौड़ के बाद अब वहां एक अजीब सी शांति थी। अंदर के हॉल में पंखा धीमी आवाज में चल रहा था। कुछ सिपाही अपनी ड्यूटी खत्म होने का इंतजार कर रहे थे। तभी ऑफिस के भारी लकड़ी के दरवाजे पर हल्की सी सरसराहट हुई। दरवाजा थोड़ा सा खुला और एक दुबली-पतली लड़की अंदर झांकने लगी। उसकी उम्र 18 से 19 साल रही होगी। चेहरे पर थकान और चिंता थी।
उसने कांपती आवाज में कहा, “साहब, मेरी मदद कीजिए।” लेकिन वहां मौजूद सिपाही उसकी बात को अनसुना कर रहे थे। पांडे जी ने व्यंग्य से कहा, “यह एसपी ऑफिस है, कोई धर्मशाला नहीं। भागो बाहर।” लड़की की आंखों में आंसू भर आए, लेकिन उसने हिम्मत जुटाकर कहा, “मेरी बहन गायब हो गई है।”
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इस पर पांडे जी और शर्मा ने हंसते हुए उसे और भी अपमानित किया। लड़की पूरी तरह टूट चुकी थी और समझ नहीं पा रही थी कि वह कहां जाए। तभी एएसपी विवेक राठौर की कड़क आवाज गूंजी, “क्या हो रहा है बाहर इतना शोर क्यों है?” विवेक का नाम पूरे जिले में मशहूर था। उनकी ईमानदारी और अनुशासन के लिए सब कायल थे।
पांडे जी ने डरते-डरते कहा, “एक लड़की आई है, उसकी बहन गायब हो गई है।” विवेक ने तुरंत कहा, “किसी का गायब होना कोई मामूली बात नहीं है। उसे अंदर भेजो।” लड़की कांपते हुए विवेक के केबिन की तरफ बढ़ी। विवेक ने उसे पानी दिया और कहा, “डरो मत, बताओ क्या हुआ?”
मीरा ने अपनी कहानी सुनाई, “मेरी छोटी बहन गुड़िया कल रात अचानक गायब हो गई। हमने हर जगह ढूंढा, लेकिन वह नहीं मिली। थाने गई थी, लेकिन वहां के पुलिस वाले ने मुझे भगा दिया।” विवेक की आंखों में आंसू आ गए। उन्होंने मीरा की धुंधली तस्वीर देखी और उसके पिता रघुवीर सिंह का नाम सुनकर उनकी धड़कनें तेज हो गईं।

विवेक ने मीरा से पूछा, “तुम्हारे पिता का नाम क्या था?” जब मीरा ने बताया, “रघुवीर सिंह,” तो विवेक का चेहरा सफेद पड़ गया। वह वही नाम था जो उनके बचपन की यादों में था। विवेक ने मीरा को बताया, “मैं भी रघुवीर का बेटा हूं। तुम मेरी बहन हो।”
मीरा ने चौंक कर पूछा, “आप सच कह रहे हैं?” विवेक ने कहा, “हाँ, मैं तुम्हारा बड़ा भाई हूँ।” दोनों भाई-बहन एक दूसरे के गले लग गए। इतने सालों का दर्द और अकेलापन एक बार में बह गया।
विवेक ने तुरंत अपनी पुलिस टीम को अलर्ट किया। उन्होंने कहा, “हर चौकी और थाने में इस बच्ची की फोटो भेजो। हमें गुड़िया को ढूंढना है।” पुलिस मशीनरी तुरंत हरकत में आ गई।
रात के लगभग 11:00 बजे विवेक को एक सूचना मिली कि बस्ती के पास एक पुरानी मिल के गोदाम में कुछ लोग एक बच्ची को छिपा कर रखे हैं। विवेक ने तुरंत एक टीम को वहां भेजा। कुछ ही समय बाद, पुलिस ने गुड़िया को सही-सलामत ढूंढ लिया।
जब गुड़िया को लेकर एक महिला कांस्टेबल वापस आई, तो मीरा ने उसे देखकर खुशी से चिल्ला दिया। दोनों बहनें एक-दूसरे से लिपट गईं। यह खुशी के आंसू थे, मिलन के आंसू थे। विवेक ने उन्हें प्यार से गले लगाया और कहा, “अब तुम दोनों मेरे साथ रहोगी। तुम्हें कभी भी अकेला नहीं छोड़ूंगा।”
विवेक ने मीरा और गुड़िया को अपने सरकारी बंगले ले जाने का फैसला किया। वहां सोनिया, विवेक की पत्नी, ने दोनों का स्वागत किया। सोनिया ने कहा, “यह घर अब तुम्हारा भी है। मुझे हमेशा से एक ननंद की कमी महसूस होती थी। भगवान ने आज मेरी सुन ली।”
उस रात, मीरा और गुड़िया ने पहली बार आरामदायक बिस्तर पर सोया। उनकी आंखों में आने वाले कल के खूबसूरत सपने थे। विवेक और सोनिया अपने कमरे की बालकनी में खड़े होकर उन दोनों के भविष्य की योजना बना रहे थे।
इस तरह, विवेक ने न केवल अपनी बहनों को पाया, बल्कि एक परिवार की अधूरी गाथा को भी पूरा किया। यह सिर्फ एक लापता बच्ची की कहानी नहीं थी, बल्कि उस विश्वास की कहानी थी कि अगर इरादे नेक हों, तो बंद दरवाजे भी खुल जाते हैं।
यह कहानी हमें सिखाती है कि परिवार का प्यार और एकता किसी भी मुश्किल को पार कर सकती है।
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