एक बुज़ुर्ग महिला हॉस्पिटल में अकेली थी… लेकिन जब डॉक्टर ने असली पहचान बताई, पूरा स्टाफ रो पड़ा!
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एक बुज़ुर्ग महिला हॉस्पिटल में अकेली थी… लेकिन जब डॉक्टर ने असली पहचान बताई, पूरा स्टाफ रो पड़ा!
पहला भाग: अस्पताल का सन्नाटा
शाम की हल्की रोशनी में डूबा अस्पताल। वार्ड में डॉक्टर, नर्स और मरीजों की आवाजें मिलकर एक धीमी हलचल पैदा कर रही थीं। लेकिन उस कमरे में जहां वो बुजुर्ग महिला पड़ी थी, वहां एक अलग ही सन्नाटा था। जैसे कोई कहानी अपनी पूरी ताकत से दबी रहना चाहती हो और टूटकर बाहर आने को बेचैन हो।
कमला देवी, उम्र करीब 75 साल। शरीर कमजोर, आंखें धंसी हुई लेकिन उनमें एक अजीब सी चमक थी। नर्स सना जब पहली बार उसे देखने आई तो उसके कदम खुद-ब-खुद रुक गए। फाइल में नाम लिखा था – कमला देवी। कोई रिश्तेदार, कोई पता, कोई संपर्क नंबर नहीं।
डॉक्टर आरव भी परेशान थे। उनका मन बार-बार कह रहा था कि इस महिला के बारे में कुछ तो ऐसा है जो वह खुद बताना नहीं चाहती या शायद कोई ऐसी मजबूरी है जिसे सुनने भर से दिल कांप जाए।
दूसरा भाग: इंतजार की रात
रात को वार्ड में खामोशी थी। अचानक कमला देवी ने सना का हाथ पकड़ लिया। आवाज कमजोर थी पर दर्द से भरी। “बेटा, मैं यहां अकेली नहीं हूं। कोई आएगा मुझे लेने।”
सना ने पूछा, “कौन आएगा दादी? आपने तो बताया था आपका कोई नहीं है।”
कमला देवी बस मुस्कुराई, “बताया नहीं, लेकिन कोई आएगा।” उनकी मुस्कान में एक अनकहा राज छिपा था।
तीसरा भाग: बिगड़ती तबियत और उम्मीद
अगली सुबह डॉक्टर राउंड पर आए तो देखा कमला देवी की तबीयत अचानक बिगड़ रही है। दिल की धड़कन अनियमित, शरीर ठंडा पड़ रहा था। डॉक्टर ने स्टाफ को बुलाया। इसी बीच कमला देवी ने करवट लेकर धीरे से कहा, “डॉक्टर साहब, अगर मैं बोल न पाऊं तो याद रखना, मेरा बेटा आएगा। मैं उसे पहचान लूंगी।”
रिकॉर्ड के मुताबिक उनका कोई बेटा नहीं था। लेकिन इससे पहले कि डॉक्टर कुछ पूछते, कमला देवी बेहोश हो गईं।
चौथा भाग: एक अजनबी का आगमन
अस्पताल के मेन गेट पर एक अधेड़ उम्र का आदमी हाफता हुआ दौड़ता हुआ पहुंचा। चेहरे पर बेचैनी, आंखों में डर। उसने रिसेप्शन पर कहा, “मुझे कमला देवी को ढूंढना है। मैं उनका बेटा हूं।”
स्टाफ हैरान था क्योंकि रिकॉर्ड में बेटे का कोई जिक्र नहीं था। सना को बुलाया गया। सना ने उस आदमी को देखा—धूल में सने कपड़े, चेहरे पर पछतावा।
सना ने पूछा, “आप सच में उनके बेटे हैं?”
उस आदमी की आंखें भर आईं, “हां, मैं उनका बेटा हूं, लेकिन मैं लायक नहीं हूं। बहुत सालों से उनसे दूर रहा। बस एक बार माफी मांग लूं।”
पाँचवां भाग: पहचान और मिलन
सना उसे लेकर ICU की तरफ दौड़ी। डॉक्टर आरव बाहर मिले। “स्थिति नाजुक है, किसी को अंदर नहीं जाने दे सकते।”
तभी अंदर से कमला देवी की आवाज आई, “उसे अंदर आने दो। मैं उसकी आहट पहचान गई हूं।”
दरवाजा खोला गया। वह आदमी अंदर गया। कमला देवी ने आंखें खोलने की कोशिश की, कांपते हुए हाथ उठाए। “बेटा, इतनी देर क्यों लगा दी?”
वह आदमी घुटनों के बल गिर पड़ा, “मां, मैं बहुत गलत था। मैंने आपको अकेला छोड़ दिया। अब कभी नहीं जाऊंगा।”
कमला देवी की आंखों में आंसू थे, “मुझे तुमसे कोई शिकायत नहीं। मां का दिल शिकायत रखने के लिए नहीं बना। बेटा, मां का दिल सिर्फ इंतजार करने के लिए बना है।”
छठा भाग: असली सच का खुलासा
सबकी आंखें नम थीं। लेकिन सबसे बड़ा झटका तब लगा जब उस आदमी ने कहा, “डॉक्टर साहब, मैं उनका असली बेटा नहीं हूं।”
कमरा सन्न रह गया। डॉक्टर आरव, सना और कमला देवी सब उसे देखने लगे।
वह आदमी रोते हुए बोला, “मैं असली बेटा नहीं हूं। उन्होंने मुझे बचपन में मौत से बचाया था। मुझे पाला था। उनके अपने बेटे ने उन्हें घर से निकाल दिया था। मुझे यह बात बहुत देर से पता चली।”
कमरे में दर्द की लहर उठी। कमला देवी ने कहा, “बेटा, खून से नहीं, दिल से रिश्ता बनता है। तुम मेरे बेटे नहीं होते तो मेरी आंखें तुम्हें पहचानती कैसे?”
सातवां भाग: मातृत्व की ताकत
कमला देवी की सांसें भारी होने लगीं। डॉक्टर ने इशारा किया, समय कम है। वह आदमी उनके हाथ पकड़कर रो रहा था, “मां, मुझे माफ कर दो। मैं आपको अपने साथ ले जाऊंगा। बस एक मौका दे दो।”
कमला देवी मुस्कुराई, “मुझे कहीं नहीं जाना। बस तुमने मुझे पहचान लिया, यही काफी है।”
फिर उन्होंने एक राज बताया, “जिस बेटे ने मुझे घर से निकाला था, वह मेरा असली बेटा नहीं था। मैंने किसी को नहीं बताया। वह मुझे मां मानता भी नहीं था। मैं अकेली थी, मेरे पास बस मेरी चुप्पी थी। लेकिन तुम मेरे दिल के बेटे हो।”
आठवां भाग: अंतिम विदाई
कुछ देर बाद मॉनिटर की बीप धीमी होने लगी। कमला देवी की सांसे कम होती गईं और एक गहरी शांत सांस लेकर उनका जीवन थम गया। कमरे में ऐसा सन्नाटा फैल गया जैसे समय रुक गया हो।
वह आदमी उनकी छाती पर सिर रखकर रोता रहा, “मां, उठो ना। मैं आ गया हूं, अब कभी नहीं जाऊंगा।”
डॉक्टर आरव ने उसकी पीठ पर हाथ रखा, पर शब्द नहीं निकल पाए। पूरे स्टाफ की आंखें नम थीं। किसी ने सोचा भी नहीं था कि एक अकेली महिला अपने दिल में इतना बड़ा सच लिए चली जा रही थी।
अंतिम संस्कार उसी बेटे ने किया जिसे उन्होंने दिल से अपनाया था। जब चिता की लौ उठी तो वह आदमी धीरे से बोला, “मां, अब चाहे आप जहां हो, मैं हर जन्म में आपका बेटा बनकर ही आऊंगा।”
उस पल खुद आसमान भी जैसे थोड़ी देर के लिए रो पड़ा।

निष्कर्ष
यह कहानी सिर्फ खून के रिश्ते की नहीं, दिल के रिश्ते की ताकत की है। रिश्ते खून से नहीं, दिल से बनते हैं और दिल कभी गलत पहचान नहीं करता।
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