कहानी: एक माँ का संघर्ष और बेटे की पहचान
एक व्यस्त शहर में, जहां गाड़ियों का शोर और लोगों की भीड़ हमेशा रहती थी, एक दिन एक आईपीएस अफसर अर्जुन सिंह राठौर की जिंदगी में एक अनोखा मोड़ आया। अर्जुन, जो अपने करियर के शिखर पर था, एक दिन अपनी गाड़ी में बैठा था जब अचानक एक बूढ़ी महिला उसकी कार के सामने आ गई। उसके हाथ में एक फटी कटोरी थी और वह कांपती आवाज में बोली, “बेटा, दो रोटी दे दे।”
जब अर्जुन ने उस महिला के चेहरे को देखा, तो उसकी धड़कनें थम गईं। यह तो उसकी माँ थी, जिसे उसने सालों पहले खो दिया था। उसकी माँ, जो गरीबी और मजबूरी के कारण घर छोड़कर चली गई थी। अर्जुन के मन में अतीत की यादें ताजा हो गईं। उसकी माँ ने उसे अकेले पाला था, लेकिन एक दिन वह अचानक गायब हो गई।
अर्जुन ने अपनी माँ को पहचान लिया और उसे गाड़ी में बैठाने का फैसला किया। लेकिन उस पल में ही उसकी जिंदगी के कई सवाल एक साथ उभरे। “इतने साल तुम कहाँ थीं?” उसने पूछा। उसकी माँ ने आँखों में आंसू भरकर कहा, “बेटा, हालात ने मुझे मजबूर कर दिया था।”
अर्जुन ने अपनी माँ से जानना चाहा कि वह क्यों चली गई थी। उसकी माँ ने बताया कि कैसे उसने अपनी पढ़ाई के लिए पैसे जुटाने के लिए संघर्ष किया और अंततः मजबूरी में घर छोड़ने का फैसला किया। उसने सोचा कि शायद अर्जुन को किसी और के सहारे बड़ा करने से उसे कम तकलीफ होगी।
इस मुलाकात ने अर्जुन को झकझोर दिया। वह सोचने लगा कि समाज ने उसकी माँ को किस तरह से भिखारिन बना दिया। उसने तय किया कि वह अपनी माँ को केवल अपने घर नहीं ले जाएगा, बल्कि उन सभी माताओं के लिए एक मुहिम शुरू करेगा, जो समाज की बेरुखी का शिकार हैं।
अर्जुन ने एक कार्यक्रम का आयोजन किया, जिसका नाम रखा “माँ सम्मान और सहारा।” इस कार्यक्रम में उसने अपनी माँ को मंच पर बुलाया और कहा, “यह सिर्फ मेरी माँ के लिए नहीं, बल्कि उन सभी माताओं के लिए है जो भूख और बेबसी की वजह से सम्मान खो चुकी हैं।”
इस कार्यक्रम ने शहर में हलचल मचा दी। मीडिया ने इसे प्रमुखता से कवर किया और लोगों ने अर्जुन की सराहना की। लेकिन कुछ लोगों ने इसे सिर्फ पब्लिसिटी स्टंट कहा। अर्जुन ने इस पर ध्यान नहीं दिया और अपनी माँ के साथ मिलकर उन महिलाओं के लिए काम करना शुरू किया, जो सड़क पर भीख मांगने को मजबूर थीं।
समाज में बदलाव लाने के लिए अर्जुन ने एक नया आश्रय गृह खोला, जिसका नाम रखा “मान केंद्र।” यह आश्रय गृह उन माताओं के लिए था, जो भूख और मजबूरी के कारण अपने बच्चों से दूर हो गई थीं।
अर्जुन की माँ ने कहा, “आज मैं गरीब नहीं, अमीर हूं क्योंकि मेरे पास एक ऐसा बेटा है जिसने मेरी गलती को भी इज्जत में बदल दिया।”
अर्जुन ने साबित कर दिया कि बदलाव केवल सिस्टम से नहीं, बल्कि इंसानियत से आता है। उसने अपनी माँ के संघर्ष को एक आंदोलन में बदल दिया, जो न केवल उसके शहर में, बल्कि पूरे देश में फैल गया।
यह कहानी हमें यह सिखाती है कि रिश्ते खून से नहीं, बल्कि निभाने से बनते हैं। क्या आप भी अपने आसपास किसी ऐसी माँ की मदद कर सकते हैं, जो एक थाली खाने का इंतजार कर रही है?
News
20 एक्सपर्ट्स हार गए, सफाई कर्मचारी ने चौंकाया, CEO का रिएक्शन देख सब हैरान!
जब 20 एक्सपर्ट्स हार गए, एक सफाई कर्मचारी ने बदल दी कंपनी की किस्मत! रविटेक सिस्टम्स के चमकदार मुख्यालय में…
तलाक के 10 साल बाद पति उसी अस्पताल में पहुँचा, डॉक्टर पत्नी ने जो किया सब हैरान!
तलाक के 10 साल बाद अस्पताल में हुआ ऐसा मिलन, जिसने सबको रुला दिया कभी-कभी किस्मत इंसान को ऐसी जगह…
करोड़पति बेटे ने देखे माँ-बाप भीख मांगते, आगे जो हुआ सब हैरान रह गए!
करोड़पति बेटे ने देखा माँ-बाप को सड़क पर भीख मांगते, आगे जो हुआ सबके लिए सबक बन गया कभी-कभी किस्मत…
होटल मालिक को भिखारी समझकर निकाला बाहर, जो हुआ उसने सबको हैरान कर दिया!
होटल मालिक को भिखारी समझकर निकाला, फिर जो हुआ वो सबके लिए सबक बन गया कभी-कभी हमारी नजरें किसी की…
बेटे ने माँ से पूछा दूध की कीमत, जवाब सुनकर उसकी जिंदगी हमेशा के लिए बदल गई!
माँ का कर्ज: बेटे सूरज की कहानी जिसने सबको सबक सिखा दिया क्या आपने कभी सोचा है कि जिस माँ…
बुजुर्ग माँ को घर से निकाला, करोड़ों की मालकिन बन गई, फिर बेटे की किस्मत पलटी
एक मां, एक अचार और बदलती किस्मत उत्तर प्रदेश के प्रयागराज शहर की तंग गलियों में एक पुराना, जर्जर मकान…
End of content
No more pages to load