अनाथ लड़की ने सड़क पर घायल बुजुर्ग करोड़पति की जान बचाई… फिर जो हुआ, इंसानियत रो पड़ी

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इंदौर की एक ठंडी रात थी, जब हल्की बारिश ने शहर को तर कर दिया था। उस समय, अवनी शर्मा नाम की एक युवा लड़की, जो कि एक अनाथालय में पली-बढ़ी थी, अपने हाथ में एक पुराना नीला छाता थामे, भीगे हुए कपड़ों में सड़क पर चल रही थी। उसकी उम्र मुश्किल से 22 साल थी, लेकिन उसकी आंखों में दुनिया की जिम्मेदारियों का बोझ था। उसके कंधे पर एक झोला था, जिसमें कुछ बच्चों के खिलौने और बिस्किट के पैकेट थे। वह आज अपने अनाथालय के बच्चों को खिलाने के लिए निकली थी।

अवनी हमेशा यही सोचती थी कि भले ही जिंदगी उसे छोटी-छोटी चीजें दे, लेकिन दूसरों के चेहरे पर मुस्कान देखकर शायद भगवान भी मुस्कुराता है। तभी अचानक, सड़क के मोड़ पर एक तेज आवाज गूंजी – टायरों की चीख और फिर किसी के गिरने की दर्दनाक ध्वनि सुनाई दी। लोग दौड़ पड़े। सड़क पर एक 50 वर्षीय व्यक्ति खून में सना पड़ा था। पास ही उसकी काली कार का दरवाजा खुला था और ड्राइवर भाग चुका था।

लोगों में हड़कंप मच गया। कोई कह रहा था, “अरे छोड़ो, पुलिस को बुलाओ। झंझट में क्यों पड़ना?” कोई मोबाइल निकाल रहा था, लेकिन किसी ने उस घायल इंसान को हाथ नहीं लगाया। अवनी ने चारों ओर देखा। उसने तुरंत कदम बढ़ाए और झुककर उस बूढ़े का सिर अपनी गोद में रख लिया।

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उसके होठ कांप रहे थे और आंखें आधी बंद थीं। उसने कहा, “बाबूजी, डरिए मत। आप अकेले नहीं हैं।” पीछे से किसी ने आवाज लगाई, “लड़की, पागल हो क्या? पुलिस आई तो तू ही फंसेगी।” लेकिन अवनी ने बिना ऊपर देखे जवाब दिया, “अगर इंसानियत से डरने लगे तो फिर इंसान कहलाने का हक ही नहीं रहता।”

उसने अपने दुपट्टे से उनके माथे का खून पोंछते हुए एक ऑटो में बिठाया। ड्राइवर ने झिझकते हुए कहा, “मैडम, यह तो अमीर लगते हैं। मुसीबत ना हो जाए।” अवनी बोली, “अमीर-गरीब बाद में देखेंगे। पहले जान बचा ले।”

अस्पताल पहुंचते ही नर्स दौड़ी। “यह कौन है?” अवनी ने कहा, “मुझे नहीं पता, लेकिन जिंदा रहना जरूरी है।” कुछ देर बाद डॉक्टर बाहर आया और कहा, “क्या तुम जानती हो किसे लाई हो?” अवनी ने सिर हिलाया। डॉक्टर ने धीमे स्वर में कहा, “यह राजेश मेहता है, शहर के सबसे बड़े उद्योगपति।”

अवनी के पैरों तले जमीन खिसक गई। यह वही नाम था जिसे वह बचपन से सुनती आई थी, वही नाम जिसने उसके अनाथालय की जमीन अपने प्रोजेक्ट के लिए खरीद ली थी। दिल में एक झटका लगा, लेकिन अगले ही पल उसने अपने आंसू रोक लिए। उसने मन में कहा, “भूल जाओ अवनी। अगर भगवान ने तुम्हें किसी की जान बचाने भेजा है तो वह इम्तिहान होगा, बदला नहीं।”

डॉक्टर ने कहा, “खून की जरूरत है।” अवनी बोली, “मेरे से मैच कर लो।” और सच में उसका ब्लड ग्रुप वहीं निकला। राजेश मेहता को खून चढ़ाने लगा। रात भर अवनी उनके पास ही बैठी रही, एक बेटी की तरह। सुबह जब सूरज की पहली किरण अस्पताल की खिड़की से आई, राजेश मेहता की आंखें खुली।

उन्होंने धीरे से देखा, एक साधारण लड़की थकी हुई आंखों, हाथों में पट्टियां, कुर्सी पर झुकी हुई। उन्होंने पूछा, “तुम कौन हो?” अवनी मुस्कुराई और कहा, “कोई नहीं। बस राह से गुजरती एक इंसान।” राजेश ने कमजोर आवाज में कहा, “तुम्हें पता है मैं कौन हूं?” अवनी ने हल्की हंसी के साथ जवाब दिया, “दुनिया आपको अमीर आदमी के रूप में जानती है। लेकिन आज पहली बार किसी ने आपको दिल से इंसान माना है।”

राजेश की आंखें भर आईं। उन्होंने कहा, “तुम्हें मुझसे नफरत नहीं?” अवनी ने धीमी आवाज में कहा, “अगर नफरत से कोई बचता, तो दुनिया में आज कोई जिंदा नहीं होता।” इतना कहकर अवनी जाने लगी। राजेश ने उसे पुकारा, “रुको बेटी।” वो ठिठक गई।

राजेश ने कहा, “मैं तुम्हें घर छोड़वा देता हूं।” अवनी हल्के से मुस्कुराई और बोली, “घर? फिर धीरे से बोली, साहब मेरा कोई अपना घर नहीं है। मैं तो वहीं चली जाती हूं जहां किसी को मेरी जरूरत होती है।”

राजेश ने सिर झुका लिया। उस पल उसे महसूस हुआ कि जिन लोगों को वो अब तक गरीब समझता था, वे असल में सबसे अमीर होते हैं। इंसानियत में बाहर बारिश फिर से होने लगी थी। अस्पताल की खिड़की पर गिरती बूंदों के बीच अवनी सड़क पर चल रही थी। कंधे पर वही पुराना झोला लेकिन दिल में एक नई चमक।

वो नहीं जानती थी कि यह मुलाकात उसकी जिंदगी की दिशा बदल देगी और शायद उस बुजुर्ग आदमी के दिल में दबी इंसानियत को फिर से जिंदा कर देगी। अगली सुबह राजेश मेहता अब पूरी तरह होश में आ चुके थे। लेकिन उनके भीतर जो खामोशी थी, वह किसी चोट से बड़ी थी।

वह बार-बार वही सवाल खुद से पूछ रहे थे, “क्यों उसने मेरी मदद की?” जिसे उन्होंने कभी दर्द दिया था, उसने उन्हें जिंदगी दे दी। डॉक्टर ने मुस्कुराते हुए कहा, “मेहता साहब, अब आप बिल्कुल ठीक हैं, लेकिन आपको किसी की देखभाल की जरूरत है।”

राजेश ने धीमे स्वर में कहा, “वो लड़की कहां है?” नर्स ने कहा, “वो तो रात में ही चली गई थी। बस एक नोट छोड़ गई है। ‘ख्याल रखिएगा अपने दिल का।’” राजेश उस नोट को देखते रह गए। हर अक्षर जैसे उनकी आत्मा पर लिखा था।

उन्होंने कार मंगवाई और उसी अनाथालय के पते पर गए जहां से वह लड़की आई थी। लेकिन वहां टूटी दीवारें थीं और बोर्ड पर धूल जमी थी। “जीवन सखा अनाथालय बंद।” पास की औरत बोली, “बेटी अवनी अब शहर के गरीब बच्चों को पढ़ाती है। रोज पुल के नीचे शाम को जाती है।”

राजेश की गाड़ी उस पुल तक पहुंची। सूरज ढल रहा था। बच्चे फटे कपड़ों में हंस रहे थे और बीच में बैठी अवनी उनके साथ पढ़ाई कर रही थी। वह झुककर छोटे लड़के को सिखा रही थी, “अमन और अमन मतलब शांति।”

राजेश ने दूर से देखा और एक हल्की मुस्कान उनके चेहरे पर आ गई। वो कुछ पल खामोश रहे। फिर बोले, “बेटी अवनी।” नेहा ने पलट कर देखा। वह खड़ा था, साफ-सुथरे कपड़ों में पर चेहरा अब भी थका हुआ।

राजेश ने झिझकते हुए कहा, “मुझे तुमसे कुछ कहना है। अगर मना ना करो, तो मेरे घर चलो कुछ दिन के लिए। तुम्हारे जैसे लोगों से मैं बहुत कुछ सीखना चाहता हूं।” अवनी ने कहा, “मैं तो अनाथ हूं साहब। मेरे पास घर नहीं, लेकिन दिल है। जहां अपनापन मिले, वहीं ठहर जाती हूं।”

राजेश ने मुस्कुरा कर कहा, “तो फिर चलो। आज मेरा घर भी शायद किसी दिल की जरूरत महसूस कर रहा है।” कुछ घंटों बाद गाड़ी एक विशाल बंगले के सामने रुकी। बाहर सिक्योरिटी गार्ड, बड़ी सी फव्वारे की झील और अंदर रोशनी से सजा हुआ हॉल।

अवनी के कदम पहली बार इतने आलीशान फर्श पर पड़े। पर उसके चेहरे पर ना कोई लालच, ना कोई डर, बस सादगी और संयम। अंदर से एक महिला निकली। वो थी नेहा मेहता। राजेश की इकलौती बेटी, विदेश से लौटी स्टाइलिश और दुनिया के हिसाब से जीने वाली।

नेहा ने अवनी को देखा। फिर पिता से पूछा, “डैड, यह कौन है?” राजेश बोले, “नेहा, यह वही लड़की है जिसने मुझे मौत से बचाया।” नेहा हंसी और बोली, “और इसलिए आप इसे यहां ले आए?”

“डैड, आप फिर वही करने जा रहे हैं जो हर बार करते हैं। अजनबियों पर भरोसा।” राजेश ने शांत स्वर में कहा, “वो अजनबी नहीं है, वो इंसानियत है।”

नेहा ने ठंडी आवाज में कहा, “आजकल इंसानियत भी स्वार्थ के साथ आती है।” डैड अवनी चुप थी। उसने सिर्फ इतना कहा, “मैडम, स्वार्थ तो वहां होता है जहां उम्मीद हो। मेरे पास तो सिर्फ जरूरत है। किसी के अच्छे होने की।”

कमरे में सन्नाटा छा गया। नेहा मुड़ी और गुस्से में चली गई। राजेश ने हल्के स्वर में कहा, “माफ करना बेटी। वह मेरी गलत परवरिश है। उसका दिल अच्छा है। बस बंद पड़ा है।”

अवनी ने कहा, “कभी-कभी बंद दरवाजे भी खोलने में वक्त लगता है। लेकिन एक बार खुल जाए तो घर बदल जाते हैं।” राजेश ने हां में सिर हिलाया।

अगले कुछ दिन राजेश के घर का माहौल बदल गया। अवनी सुबह शाम राजेश मेहता को वक्त पर दवाई देती। वो ना तो टीवी देखती, ना मोबाइल चलाती। बस उनका ख्याल रखती। घर में जो खामोशी थी, अब वह हल्की-हल्की बातों से भरने लगी थी।

राजेश हर शाम उसके साथ बैठते और कहते, “तुम्हारे जैसी सादगी अब दुनिया में दुर्लभ है।” अवनी वो मुस्कुरा कर कहती, “साहब, सादगी कभी खत्म नहीं होती। लोग जटिल हो जाते हैं बस।”

लेकिन नेहा के भीतर तूफान था। उसे लगता था कि यह लड़की उसके पिता को उसके खिलाफ कर देगी। वह सोचती शायद इसने कोई चाल चली है। यह गरीब लड़कियां भावनाओं से खेलना जानती हैं।

एक दिन उसने अवनी से सीधे कहा, “देखो तुम्हें यहां रहने की जरूरत नहीं है। मेरे डैड को सहानुभूति नहीं आराम चाहिए।” अवनी ने उसकी आंखों में देखकर कहा, “सहानुभूति तो दिखावा होती है। मैंने तो बस फर्ज निभाया। आप चाहे तो आज ही चली जाओ।”

नेहा कुछ पल के लिए रुक गई। शायद उसके लहजे की शांति ने उसे झटका दिया। उसने कहा, “ठीक है तुम रह सकती हो लेकिन मुझसे दूर रहना।” अवनी ने सिर झुका लिया। “ठीक है।”

दिन बीतते गए। राजेश का स्वास्थ्य बेहतर होता गया और उनके चेहरे पर वही चमक लौटने लगी जो बरसों से गायब थी। नेहा अब भी उनसे दूरी बनाए रख दी। लेकिन वह देख रही थी। कैसे उस लड़की ने बिना किसी स्वार्थ के सबका दिल जीत लिया।

एक रात जब घर में सब सो चुके थे, नेहा पानी पीने किचन में आई। अवनी वहां बैठी थी, जख्मी हाथ पर पट्टी बांध रही थी। नेहा ने पूछा, “क्या हुआ तुम्हें?” वो बोली, “रसोई में बर्तन धोते वक्त थोड़ा कट गया। कोई बात नहीं।”

नेहा ने झुंझुला कर कहा, “बर्तन तुम्हें करने की जरूरत नहीं थी।” अवनी हंसी और बोली, “जब तक कोई छोटा काम बड़ा बनकर दिल में जगह ना बना ले तब तक दीवारें पत्थर ही रहती हैं।”

नेहा कुछ नहीं बोली। बस पहली बार उसकी आंखों में अवनी के लिए गुस्से से ज्यादा सवाल थे। आखिर यह लड़की इतनी शांति से कैसे जी सकती है? अगली सुबह नेहा अपने कमरे की खिड़की से नीचे देख रही थी। लॉन में उसके पिता और अवनी बैठकर चाय पी रहे थे।

राजेश मेहता कह रहे थे, “तुम्हारी उपस्थिति ने इस घर को फिर से घर बना दिया है।” और अवनी ने बस जवाब दिया, “कभी किसी के लिए घर बनने का मौका मिले तो इंकार मत करना साहब क्योंकि वही इंसानियत का असली इम्तिहान होता है।”

नेहा ने धीरे से पर्दा गिरा दिया। लेकिन उसके दिल में पहली बार कोई दरार सी पड़ी। शायद उस दरार से अब रोशनी आने वाली थी। उसी दिन रात में वह बारिश फिर से हो रही थी और हवाओं में वही महक थी जो उस रात थी जब अवनी ने राजेश मेहता को उठाया था।

पर फर्क बस इतना था कि उस दिन उसने किसी अजनबी की जान बचाई थी और आज उसने किसी घर की रूह को बचा लिया था। वह नहीं जानती थी कि अगला दिन उस घर के सालों पुराने राज खोल देगा। ऐसा राज जो नेहा की नफरत को पछतावे में बदल देगा और अवनी को अनाथ से अपनाप का दूसरा नाम बना देगा।

अगली सुबह की धूप खिड़की के शीशों से होकर अंदर आई और राजेश के कमरे की दीवारों पर सुनहरी परछाई बिखेर गई। राजेश खिड़की के पास बैठकर अखबार पढ़ रहे थे और उनके चेहरे पर वो सुकून था जो शायद बरसों बाद लौटा था।

वह हल्के से मुस्कुराए जब अवनी ट्रे में चाय लेकर अंदर आई। उसने कहा, “साहब, दवाई के बाद ही चाय पीजिएगा। डॉक्टर ने कहा है।” राजेश ने मजाक में कहा, “डॉक्टर अब घर में दो हो गए हैं। एक बाहर वाला और एक मेरी बेटी जैसी।”

अवनी झेम गई। “बेटी जैसी नहीं। बस कोई जो आपका आदर करती है।” राजेश मेहता ने उसकी तरफ देखा। “अवनी, अगर बेटी जैसी नहीं तो क्या है? तुमने मेरे जीवन में वह रोशनी भरी है जो वर्षों से बुझी हुई थी।”

अवनी मुस्कुराई लेकिन भीतर एक अजीब सी कसक थी। उसने कभी नहीं चाहा था कि किसी की बेटी कहलाए। क्योंकि जब कोई यह शब्द बोलता उसे अपना अनाथपन और ज्यादा महसूस होता। वह चुपचाप कमरे से निकल गई।

उसी दिन दोपहर में नेहा अपने पिता के ऑफिस के पुराने दस्तावेज देख रही थी। कंपनी के ऑडिट की तैयारी चल रही थी। उसे एक पुराना नीला फाइल मिला जिस पर लिखा था “जीवन सखा ट्रस्ट 2022” दिल में कुछ खटका।

उसने फाइल खोली। अंदर जमीन बेचने के कागज, रसीदें और पुराने नोट्स थे। एक नोट पर पिता की लिखावट थी, “यह जमीन अनाथालय की है। केवल भवन निर्माण के लिए ली जा रही है। सभी बच्चों की देखभाल जारी रहेगी।”

पर अगले पन्ने देखकर नेहा सन्न रह गई। पार्टनर के हस्ताक्षर के नीचे लिखा था कि पूरा पैसा एक निजी खाते में ट्रांसफर हुआ और अनाथालय बंद कर दिया गया। मतलब उसके पिता नहीं, उनके बिजनेस पार्टनर विनोद अग्रवाल ने धोखा दिया था।

नेहा का हाथ कांप गया। उसने धीरे से कहा, “तो पापा दोषी नहीं थे। और मैं इनसे नफरत करती रही।” दरअसल नेहा अपने पापा से अनाथालय की जमीन हड़पने के कारण ही नफरत करती थी। लेकिन जब सच मालूम चला तो उसके आंखों से आंसू बह निकले।

वह दौड़ती हुई नीचे आई जहां राजेश मेहता बैठकर अखबार पढ़ रहे थे। “डैड,” उसने पुकारा, आवाज में कंपन था। राजेश मेहता ने चौंक कर देखा। “क्या हुआ?” नेहा ने उनके सामने घुटनों के बल बैठ गई। “डैड, मैं… मैं आपको गलत समझती रही। आपने अनाथालय नहीं तोड़ा। आपने तो उसे बचाने की कोशिश की थी और मैं… मैंने आपसे नफरत की।”

राजेश के हाथ कांप उठे। उन्होंने धीरे से बेटी का चेहरा अपने हाथों में लिया और बोले, “नेहा, तुम्हारे पास जो था वो तुम्हारे नजरिए का सच था। लेकिन आज जो सामने है वह वक्त का सच है और कभी-कभी सच सामने आने में बरसों लग जाते हैं।”

नेहा रो पड़ी। राजेश ने उसे सीने से लगा लिया। अवनी दरवाजे के पास खड़ी यह सब देख रही थी। उसकी आंखों में राहत थी। जैसे भगवान ने आज तो बिछड़े दिलों को फिर मिला दिया हो।

पर खुशी का यह पल ज्यादा देर नहीं टिक सका। अचानक राजेश मेहता को सीने में तेज दर्द महसूस हुआ। वह करहाते हुए गिर पड़े। नेहा ने घबराकर चिल्लाया, “डैड!” अवनी दौड़ी और उनका सिर अपनी गोद में रख लिया। “पापा, सांस लीजिए।”

राजेश मेहता का हाथ कांपते हुए उसके गाल तक पहुंचा। उन्होंने मुश्किल से कहा, “बेटी, अब तुम दोनों को एक-दूसरे की जरूरत है।” राजेश मेहता को तुरंत अस्पताल ले जाया गया। ऑक्सीजन, इंजेक्शन, तेजी से इलाज करते डॉक्टर। सब कुछ जैसे एक धुंध में चल रहा था।

डॉक्टर ने कहा, “हार्ट अटैक है। खून तुरंत चाहिए।” अवनी बिना एक पल गवाए बोली, “मेरा खून इनके खून से मेल खाता है। देर मत कीजिए।” खून चढ़ने लगा और कुछ घंटों बाद राजेश की सांसे स्थिर हो गईं।

नेहा बाहर बैठी थी, हाथ जोड़कर रो रही थी। डॉक्टर बाहर आए। “मरीज अब खतरे से बाहर है। आपकी बहन ने जान बचा ली।” नेहा ने चौंक कर पूछा, “मेरी बहन?” डॉक्टर बोले, “वो लड़की जिसने खून दिया वही।”

नेहा दौड़ती हुई अवनी के पास गई, जो हॉस्पिटल की एक कोने में कुर्सी पर थकी हुई बैठी थी। नेहा ने बिना कुछ कहे उसके सामने घुटनों पर बैठकर कहा, “मुझे माफ कर दो। मैं सोचती थी तुम मेरे घर को तोड़ दोगी, पर तुमने तो मेरे घर को बचा लिया।”

अवनी ने धीरे से उसका हाथ थाम लिया और बोली, “कभी-कभी भगवान उन लोगों को मिलवाता है जो हमें खुद से मिलवा दे। शायद तुम और मैं एक-दूसरे की सजा नहीं, वरदान हैं।” नेहा ने उसे गले लगा लिया। दोनों की आंखों से आंसू गिरते रहे और कमरे में वही शांति भर गई जो बरसों से गायब थी।

कुछ दिन बाद राजेश मेहता को डिस्चार्ज मिल गया। घर लौटते वक्त गाड़ी में सिर्फ खामोशी थी। लेकिन वह खामोशी अब बोझ नहीं थी। वह सुकून थी। राजेश मेहता ने पीछे बैठी दोनों बेटियों की ओर देखा और कहा, “मेरे पास सब कुछ था। पर आज पहली बार मुझे एहसास हुआ कि असली दौलत क्या होती है।”

नेहा मुस्कुराई। “डैड, आप सही कह रहे हैं। इंसानियत सबसे बड़ी पूंजी है।” अवनी ने खिड़की से बाहर देखते हुए धीरे से कहा, “और जब इंसानियत से रिश्ता जुड़ता है तो खून के रिश्तों की भी जरूरत नहीं रहती।”

राजेश मेहता ने उसकी ओर देखा। उनकी आंखें नम थीं। उन्होंने मन ही मन भगवान को धन्यवाद दिया। क्योंकि जिस लड़की को उन्होंने एक ठोकर में पाया था, वही अब उनके जीवन का सहारा बन गई थी।

उस रात जब सब सो गए, राजेश कमरे में अकेले बैठे थे। टेबल पर पड़ी फाइल, चश्मा और सामने वही नोट जो अवनी ने पहली रात अस्पताल में छोड़ा था। “अपने दिल का ख्याल रखिए।”

उन्होंने वो नोट अपने सीने से लगाया और बुदबुदाए, “इसने मेरा दिल नहीं, मेरी जिंदगी बचा ली।” वो उठे और पास रखी नोटबुक में कुछ लिखने लगे। लिखा, “वसीयत: मेरी संपत्ति का आधा हिस्सा अवनी शर्मा के नाम। क्योंकि उसने मेरे परिवार को इंसानियत की भाषा सिखाई।”

उनकी आंखों से आंसू टपक पड़े। लेकिन उन आंसुओं में अब पछतावा नहीं था। बस राहत थी। जैसे किसी ने भीतर के बोझ को हल्का कर दिया हो। अगली सुबह अवनी मंदिर में दिया जला रही थी।

नेहा उसके पास आई और कहा, “मुझे लगता है भगवान ने तुम्हें भेजा ही इसलिए था ताकि मेरे पापा को माफी मिले और मुझे सच्चाई।” अवनी ने मुस्कुराते हुए कहा, “भगवान किसी को देने से पहले किसी को बदलते हैं।”

नेहा बोली, “और तुम्हें?” अवनी ने कहा, “मुझे अपना घर ढूंढने के लिए।” दोनों एक-दूसरे को देखकर मुस्कुरा दीं। सालों बाद उस घर में पहली बार सुबह की आरती की आवाज पूरे दिल से गूंजी थी।

तभी राजेश मेहता आए और धीरे से कहा, “बेटियों, मैंने बहुत देर कर दी। अगर पहले समझ जाता कि इंसानियत ही असली धन है तो शायद जिंदगी यूं अधूरी महसूस नहीं होती।” अवनी ने मुस्कुराते हुए कहा, “साहब, समझ आने में देर हो सकती है। पर जब आती है तो सब कुछ नया लगने लगता है।”

नेहा ने पिता का हाथ थामा। “पापा, आपसे मिली यह सीख मैं कभी नहीं भूलूंगी। अब मुझे गर्व है कि मैं आपकी बेटी हूं।” राजेश की आंखें भर आईं और उन्होंने कहा, “मुझे गर्व है कि भगवान ने मुझे दो बेटियां दी। एक जिसे मैंने जन्म दिया और एक जिसने मुझे जीवन दिया।”

तीनों हंस पड़े, लेकिन उस हंसी में भावनाओं की नमी थी। कुछ महीनों बाद राजेश मेहता ने अपने बंगले के हॉल में एक छोटी सी सभा रखी। मेहमान, मीडिया और अधिकारी मौजूद थे।

स्टेज पर बोर्ड टंगा था: “जीवन सखा ट्रस्ट पुनः उद्घाटन समारोह।” राजेश मेहता ने माइक पकड़कर कहा, “कभी मैंने इसी अनाथालय की जमीन खोदी थी। पर आज उस खोई हुई जगह को फिर से जीवित करने का सौभाग्य मुझे मिला है। लेकिन इस काम की असली हकदार मैं नहीं। वो है अवनी शर्मा।”

सभी ने तालियां बजाईं। अवनी मंच पर आई, लेकिन उसकी आंखों में आंसू थे। राजेश मेहता ने उसका हाथ पकड़कर कहा, “जिस लड़की को समाज ने अनाथ कहा, उसने हमें इंसान बना दिया।”

नेहा पीछे खड़ी थी, गर्व से ताली बजा रही थी। भीड़ के बीच से बच्चों की आवाजें आईं। “दीदी, दीदी!” वो वही बच्चे थे जिन्हें अवनी रोज पुल के नीचे पढ़ाती थी। अवनी झुककर उन्हें गले लगा लेती है।

राजेश ने उसी दिन वसीयत की कॉपी सबके सामने दी। “मेरी संपत्ति नहीं, मेरा नाम अब अवनी के नाम रहेगा।” लोग हैरान रह गए। लेकिन नेहा ने आगे बढ़कर कहा, “पापा का यह फैसला मेरा भी है। क्योंकि अगर यह लड़की हमारे जीवन में नहीं आती, तो शायद हम आज भी अमीरी के नाम पर खालीपन जी रहे होते।”

पूरा हॉल तालियों से गूंज उठा। राजेश की आंखों से आंसू बह निकले और वो बोले, “आज मैं अमीर नहीं, इंसान बन गया हूं।”

जब उस दिन शाम हुई तो ट्रस्ट के बाहर दिए जल रहे थे। बच्चे हंस रहे थे और आसमान में हल्का नीला उजाला फैल रहा था। अवनी बालकनी में खड़ी थी। हवा उसके बालों को छू रही थी।

नेहा उसके पास आई और बोली, “तुम जानती हो अब मुझे लगता है कि खून से नहीं कर्म से रिश्ते बनते हैं।” अवनी ने मुस्कुराते हुए कहा, “हां, क्योंकि खून से तो शरीर चलता है, लेकिन कर्म से आत्मा जिंदा रहती है।”

दोनों आसमान की तरफ देखने लगीं। सूरज डूब रहा था। लेकिन उस डूबती रोशनी में भी उम्मीद की लौ चमक रही थी। राजेश पास आकर बोले, “अब मेरी दुनिया पूरी हो गई। तुम दोनों मेरे जीवन का सबसे बड़ा इनाम हो।”

अवनी ने धीरे से कहा, “नहीं साहब, आपने जो किया है, वह एक पिता ही कर सकता है और आज मैं सच में महसूस कर रही हूं कि मैं अनाथ नहीं हूं।”

तीनों ने साथ मिलकर हाथ जोड़े और मंदिर की घंटी की आवाज हवा में गूंज उठी। कहानी यही खत्म नहीं होती बल्कि एक नई शुरुआत करती है। जहां इंसानियत फिर से जीतती है। जहां प्यार खून से नहीं कर्म से लिखा जाता है। और जहां एक अनाथ लड़की सबको सिखा जाती है कि अपनापन सबसे बड़ी पूजा है।

दोस्तों, कभी किसी की हैसियत से नहीं, उसके दिल से रिश्ता बनाओ। क्योंकि जो इंसान किसी और की जिंदगी में रोशनी लाता है, वो खुद कभी अंधेरे में नहीं रहता। लेकिन अब आप ही बताइए, क्या असली अमीरी पैसों में होती है या उस दिल में जो किसी अनजान को अपनाने की हिम्मत रखता है? कमेंट में जरूर लिखिए।

आपके हिसाब से असली अमीर कौन होता है? मिलते हैं अगले वीडियो में। तब तक इंसानियत निभाइए, नेकी फैलाइए और दिलों में उम्मीद जगाइए। जय हिंद!