अमीर औरत ने कुचली ग़रीब की इज़्ज़त — लेकिन ग़रीब औरत का अगला कदम पूरे गाँव को हिला गया!

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अमीर औरत ने कुचली ग़रीब की इज़्ज़त — लेकिन ग़रीब औरत का अगला कदम पूरे गाँव को हिला गया!

बहुत समय पहले की बात है। एक छोटे से कस्बे में दो भाई रहते थे—एक बेहद अमीर, दूसरा बेहद गरीब। दोनों के अपने-अपने परिवार थे, लेकिन उनकी ज़िंदगी की राहें बिल्कुल अलग थीं। अमीर भाई के पास खेत, जानवर, बड़ा घर था। गरीब भाई के पास बस ईमानदारी और मेहनत थी। उसका घर टूटी दीवारों वाला, छत से पानी टपकता था, और रोज़ की रोटी जुटाना भी मुश्किल था।

गरीब भाई की पत्नी बहुत सुंदर और नेक दिल थी। लेकिन गरीबी ने उसके जीवन को संघर्ष बना दिया था। हर सुबह वह अमीर भाई के घर जाती, झाड़ू-पोछा, बर्तन, खाना बनाना—हर काम करती। बदले में उसे मजदूरी मिलनी चाहिए थी, लेकिन अमीर भाई की पत्नी के दिल में जलन और ईर्ष्या थी। वह रोज़ ताना देती, कभी मजदूरी नहीं देती, बल्कि कहती, “जो गेहूं के दाने ज़मीन पर गिरते हैं, उन्हें बटोर लेना, वही तुम्हारी मजदूरी है।” गरीब औरत मिट्टी में सने दानों को चुनती, उसकी इज़्ज़त रोज़ कुचली जाती। अमीर औरत उसकी सुंदरता देखकर जलती थी, और उसकी बेइज्जती कर उसे अजीब सा सुख मिलता था।

दिन गुजरते गए। गरीब भाई और उसकी पत्नी बच्चों के लिए यह सब सहते रहे। रात को दोनों अल्लाह से दुआ करते, “ए मालिक, कभी तो हमारी हालत बदलेगी।” लेकिन हालात जस के तस रहे। एक दिन गरीब भाई का सब्र टूट गया। उसने पत्नी से कहा, “अब मुझसे यह जिल्लत और गरीबी बर्दाश्त नहीं होती। मैं यहां और एक दिन भी नहीं रुकूंगा। मैं निकल रहा हूं। अल्लाह की इस धरती पर शायद मेरे लिए भी कोई राह हो।”

वह घर छोड़कर निकल पड़ा। जंगल, पगडंडियों, अनजानी राहों से गुज़रता रहा। जब तक कि वह एक गहरे, रहस्यमय जंगल में गुम नहीं हो गया। अंधेरा छा चुका था। पेड़ों की सरसराहट, डर, अकेलापन—सब उसे घेरने लगे। तभी उसने एक काले लबादे में लिपटी लड़की को जाते देखा। वह हवा की तरह गुजर गई। गरीब भाई उसके पीछे चल पड़ा। लड़की पेड़ों के बीच से ऐसे गुजर रही थी जैसे रात की परछाई हो। कुछ दूर जाने के बाद एक विशाल, पुराना महल सामने आया। महल के चारों ओर काली बेलें लिपटी थीं, खिड़कियों में अंधेरा था।

गरीब भाई डरते-डरते अंदर गया। एक बड़े सुनसान कमरे में अंगीठी जल रही थी, जिस पर बड़े बर्तन में मांस पक रहा था। भूख से उसका पेट मरोड़ने लगा। तभी पीछे से आवाज आई, “लगता है भूख ने आंखों की चमक छीन ली है।” वह लड़की सामने थी—चेहरे पर हल्की मुस्कान। “डरो मत। मेरा नाम नवीरा है। आओ, खाना खाओ और अपनी कहानी मुझे सुनाओ।”

गरीब भाई ने अपनी कहानी बयान की—गरीबी, मेहनत, पत्नी की बेइज्जती, अमीर भाई के ताने और घमंड, फिर घर छोड़ देना। उसकी आंखें नम हो गईं। नवीरा ने ध्यान से सुना और कहा, “तुम्हारा दुख, तुम्हारी सच्चाई तुम्हें खाली हाथ नहीं जाने देगी। उस गलियारे में चार कमरे हैं। तुम सिर्फ चौथा कमरा खोलना और वहां जो चांदी पड़े उतना ले जाना जितना उठा सको। लेकिन पहले तीन कमरों को मत छूना। और कभी लौट कर यहां मत आना।”

गरीब आदमी ने नवीरा की बातें ध्यान से सुनी। उसके मन में कोई लालच नहीं था, बस बच्चों का पेट भरना चाहता था। वह गलियारा पार करता हुआ दरवाज़ों के पास पहुंचा। उसने पहले तीन दरवाजे छूना चाहा, लेकिन नवीरा की बात याद आई। उसने चौथा दरवाजा खोला—अंदर चांदी के ढेर थे। उसने सिर्फ उतना भरा जितना उठा सकता था। बाहर आया, नवीरा ने मुस्कुराकर कहा, “तुम लालची नहीं निकले। इसलिए जो ले जा रहे हो, वह तुम्हारा हक है।”

सुबह की रोशनी में वह गांव लौट आया। अब उसके पास उम्मीद की थैली थी। उसने भेड़ें, बकरियां खरीदीं, बच्चों के लिए अच्छा खाना, घर की मरम्मत, और पत्नी से कहा, “अब तुम किसी के घर काम नहीं करोगी।” दिन बदल गए, भेड़ें बढ़ीं, फसलें उगीं, घर मजबूत बन गया। गरीब भाई अब अमीर हो गया। उसकी पत्नी की इज्जत गांव में बढ़ गई।

अमीर भाई की पत्नी रोज़ उस हवेली को देखती, जिसके मालिक वही लोग थे जिन्हें वह कभी मिट्टी से दाने उठाने को मजबूर करती थी। एक दिन उसने अपने पति से कहा, “तुम्हारा भाई अमीर हो गया है।” अमीर भाई को जलन हुई। उसने भाई को दावत पर बुलाया। गरीब भाई परिवार सहित गया। खाना-पीना हुआ, लेकिन अमीर भाई ने बच्चों को अलग भेज दिया और पूछा, “खजाना कहां मिला?” मजबूरी में गरीब भाई ने जंगल, महल, नवीरा, चांदी का कमरा सब बता दिया।

अमीर भाई रातोंरात तैयारी करके उसी जंगल की ओर निकल पड़ा। लालच उसकी चाल बन चुका था। वह महल पहुंचा। नवीरा ने वही बातें दोहराईं—चौथा कमरा खोलना। लेकिन लालच कभी एक कमरे से नहीं भरता। उसने चौथा कमरा खोला, चांदी भरी। फिर तीसरा खोला—सोना मिला। दूसरा खोला—हीरे मिले। पहले खोला—गेहूं के बोरे। जैसे ही उसने हाथ डाला, पीछे से दहाड़ आई, “मेरे महल में इंसान और वह भी धोखे से!” डर के मारे भागता गया। अंत में जान बचाकर बाहर आ गया, पर हाथ में बस गेहूं की एक मुट्ठी थी।

अब फिर गरीबी लौट आई। उसकी पत्नी भी उसे छोड़ गई। एक दिन टूटा हुआ अमीर भाई गरीब भाई के घर आया। गरीब की पत्नी ने उसे खाना खिलाया और कहा, “हम बदला नहीं लेते। अल्लाह देता है इंसाफ।” गरीब भाई ने कहा, “तुम्हारी ताकत धन नहीं, दिल होना चाहिए थी। अब हमारे साथ काम करो, भलाई बांटने से कम नहीं होती, बल्कि बढ़ती है।”

गांव में यह कहानी फैल गई। सब समझ गए कि लालच का पीछा करने वाला अपनी इज्जत और जिंदगी खो देता है, और जो दिल से देता है, अल्लाह उसे वहीं से लौटा देता है जहां से वह सोच भी नहीं सकता। नेकी का फल देर से मिले, पर बहुत खूबसूरत मिलता है।

समाप्त।