अमीर बाप ने बेटे को तीन अमीर औरतों में से माँ चुनने को कहा – बेटे ने गरीब नौकरानी को चुना!
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1. बिजनेस फैमिली की चकाचौंध
शहर के सबसे बड़े बिजनेसमैन अजय मल्होत्रा का घर किसी महल से कम नहीं था। हर दीवार पर महंगे पेंटिंग्स, फर्श पर मुलायम कालीन, छत से लटकता सुनहरा झूमर और हर कोने में अमीरी की गंध। उस शाम घर में खास रौनक थी। अजय ने अपने दोस्तों और कुछ खास मेहमानों को बुलाया था। सबकी नजरें सिर्फ एक ही बात पर थीं—अजय के बेटे आदित्य के लिए नई मां चुनना।
हॉल में ब्रांडेड वाइन के गिलास घूम रहे थे, नकली मुस्कानों के बीच तीन उच्चवर्गीय महिलाएं—रत्ना, नेहा और करिश्मा—अपनी खूबसूरती और अमीरी का प्रदर्शन कर रही थीं। कोई अपने गहनों की चमक दिखा रहा था, कोई अपने सोशल सर्कल की बातें कर रही थी। हर कोई इस घर और दौलत का हिस्सा बनने को तैयार था।
अजय ने बेटे की ओर देखते हुए गहरी आवाज में कहा—
“बेटा, अब तुम्हें अपनी मां चुननी होगी। तीनों में से जिसे चाहे, वही तुम्हारी मां बनेगी। हमारी इज्जत और बिजनेस दोनों इसी पर टिके हैं।”
आदित्य चुपचाप एक कोने में बैठा सब देख रहा था। उसके भीतर कई सवाल, कई भावनाएं एक साथ उमड़ रही थीं। उसे यह सब अजीब लग रहा था—इंसानों के रिश्तों को पैसे और शोहरत से तोला जाना।
2. आदित्य की उलझन
हॉल में हंसी, शोर और झूठी चमक थी। लेकिन आदित्य के दिल में एक गहरा सन्नाटा। वह धीरे-धीरे उस शोरगुल और नकली मुस्कानों वाले हॉल से निकलकर पीछे के हिस्से की ओर चला गया। लंबा गलियारा, दीवारों पर महंगे पेंटिंग्स और फर्श पर नरम कालीन—हर चीज में अमीरी की गंध थी। लेकिन उसके दिल में खालीपन और बेचैनी थी।
जैसे ही वह किचन में पहुंचा, सामने वही परिचित दृश्य था—रीना। साधारण कपड़ों में, बाल बंधे हुए, हाथ में झाग भरा स्पोंज लिए बर्तन साफ कर रही थी। उसकी हथेलियां खुरदुरी थीं, लेकिन हर हरकत में अपनापन था। रीना ने आदित्य को देखते ही हल्की सी मुस्कान दी और बिना कुछ पूछे ठंडा पानी भरकर गिलास में उसे दिया।
आदित्य ने गिलास थामते हुए उसकी आंखों में देखा। वहां कोई दिखावा नहीं, कोई स्वार्थ नहीं। सिर्फ ममता और सादगी। उसी क्षण उसे लगा कि यही औरत है जिसने उसे बचपन में कहानियां सुनाई, बीमार होने पर दवा दी, स्कूल के पहले दिन जूते पॉलिश किए और बिना किसी बदले के उसकी हर छोटी-बड़ी जरूरत पूरी की।
किचन की हल्की सी रोशनी में आदित्य को तीन अमीर औरतों की चमक फीकी लगने लगी। उसके सामने रीना थी—थकी हुई, साधारण। लेकिन उसके दिल में वह ममता थी जो किसी भी दौलत से बड़ी थी।
3. रीना की कहानी
रीना इस घर में पिछले पंद्रह साल से काम कर रही थी। उसकी अपनी कहानी थी—पति की मौत के बाद उसने अपने बेटे को पढ़ाया, खुद मेहनत की और कभी किसी से मदद नहीं मांगी। अजय मल्होत्रा के घर में काम शुरू किया तो बस एक ही मकसद था—अपने बेटे को डॉक्टर बनाना। लेकिन काम करते-करते वह आदित्य के लिए मां जैसी बन गई। उसकी हर जरूरत, हर खुशी, हर डर—रीना ने हमेशा उसे समझा और संभाला।
आदित्य को याद आया—जब उसकी असली मां की मौत हुई थी, तब रीना ही थी जिसने उसे सीने से लगाकर रात-रात भर सुलाया था। जब उसे बुखार आता, रीना ही थी जो उसकी देखभाल करती थी। आदित्य ने कभी रीना को मां नहीं कहा, लेकिन उसके दिल में रीना के लिए वही जगह थी।
4. फैसला लेने का क्षण
आदित्य कुछ देर तक किचन की खिड़की से बाहर देखता रहा। हल्की हवा उसके चेहरे को छू रही थी। लेकिन उसके मन में अब पूरी स्पष्टता आ चुकी थी। वह धीरे-धीरे हॉल की ओर लौटा। हॉल अब और भी भव्य लग रहा था। तीनों औरतें अब भी एक-दूसरे से आगे निकलने की कोशिश में थीं। कोई महंगे गहनों का जिक्र कर रही थी, कोई अपने सोशल सर्कल की।
अजय मल्होत्रा अपने बेटे को देखकर गर्व भरी मुस्कान के साथ बोले—
“आओ आदित्य, हमें बताओ तुम्हारा फैसला क्या है?”
सबकी नजरें आदित्य पर टिक गईं। आदित्य ने गहरी सांस ली और बेहद शांत, लेकिन दृढ़ आवाज में कहा—
“मैंने सोच लिया है पापा। मैं रीना को चुनता हूं।”
यह सुनते ही हॉल में एक पल के लिए सब थम गया। तीनों औरतें चौंक कर उसकी ओर देखने लगीं। उनके चेहरे के भाव एक साथ बदल गए—किसी को गुस्सा आया, किसी को अपमान, किसी को अविश्वास।
अजय ने भौहे चढ़ाते हुए पूछा—
“क्या कहा तुमने?”
आदित्य ने बिना हिचक दोबारा कहा—
“मैंने रीना को चुना है। वही मेरी मां है। वही जिसने मुझे पाला, सिखाया और बिना किसी स्वार्थ के मेरे साथ रही। दौलत से रिश्ता नहीं बनता, पापा। दिल से बनता है।”
उसकी आवाज में इतनी गहराई थी कि पूरा हॉल कुछ पल के लिए बिल्कुल चुप हो गया।
5. विरोध और स्वीकार्यता
हॉल में जैसे समय थम गया था। अजय मल्होत्रा कुछ पलों तक बेटे की ओर देखते रहे। उनके चेहरे पर गुस्सा, हैरानी और एक अजीब सी बेचैनी सब एक साथ थी। तीनों औरतें अपमानित होकर कुर्सियों से उठीं। उनमें से एक ने तो यह तक कह दिया—
“हमने इतना समय बर्बाद किया!”
और भारी कदमों से बाहर निकल गईं।
कमरे की चकाचौंध अब जैसे बेरंग हो गई थी। आदित्य बिना झिझक रीना के पास जाकर खड़ा हो गया। रीना की आंखों में आंसू थे—शायद डर के, शायद खुशी के। क्योंकि उसने कभी नहीं सोचा था कि उसका नाम इस तरह लिया जाएगा।
अजय धीरे-धीरे उठे और कुछ कदम आगे बढ़े। उनका गुस्सा अब पिघल चुका था। चेहरे पर पश्चाताप और नरमी दोनों थे। उन्होंने रीना की तरफ हाथ बढ़ाते हुए कहा—
“सच कहूं? मैंने हमेशा तुम्हारी इज्जत की है। लेकिन आज मेरे बेटे ने मुझे सिखाया कि असली दौलत क्या होती है। तुमने मेरे बेटे को इंसान बनाया और यह मेरे सारे बिजनेस से बड़ा काम है।”
रीना कांपते हाथों से नमस्ते करती रही। अजय ने पहली बार सबके सामने उसे सम्मान से गले लगाया। आदित्य के चेहरे पर संतोष था। उसके लिए यह सिर्फ चुनाव नहीं था, बल्कि अपने दिल की आवाज को मान देने का फैसला था। उस पल तीनों के बीच का रिश्ता पैसे और ओदे से ऊपर उठकर दिल और इंसानियत पर टिक गया।
6. समाज की प्रतिक्रिया
अगले दिन अखबारों में खबर छपी—
“अजय मल्होत्रा के बेटे ने नौकरानी को मां चुना!”
कुछ लोगों ने मजाक उड़ाया, कुछ ने तारीफ की। बिजनेस पार्टनर हैरान थे—
“इतनी दौलत के बीच यह कैसा फैसला?”
लेकिन आदित्य को फर्क नहीं पड़ा। उसने रीना को अपने जीवन में मां का दर्जा दिया। रीना अब घर की सदस्य थी, न कि सिर्फ एक नौकरानी।
धीरे-धीरे लोग समझने लगे कि असली रिश्ता खून या पैसे से नहीं, बल्कि दिल से बनता है। आदित्य ने अपने दोस्तों से भी यही कहा—
“अगर मां चाहिए तो ममता देखो, बैंक बैलेंस नहीं।”
7. पुरानी यादें और नई शुरुआत
एक रात आदित्य अपनी मां की तस्वीर लेकर रीना के पास गया।
“रीना मां, क्या आपको मेरी असली मां याद हैं?”
रीना ने मुस्कुरा कर कहा—
“बहुत याद है बेटा। वो बहुत अच्छी थीं। लेकिन उन्होंने जाते-जाते तुम्हें मेरे हवाले किया था। मैं वादा करती हूं कि मैं तुम्हें कभी अकेला नहीं छोड़ूंगी।”
आदित्य की आंखें भर आईं।
“मां, आपने मुझे हमेशा प्यार दिया। मैं चाहता हूं कि आप अब मेरे साथ बैठें, खाना खाएं और इस घर को अपना समझें।”
रीना की आंखों में खुशी के आंसू आ गए। उसने पहली बार डाइनिंग टेबल पर आदित्य और अजय के साथ बैठकर खाना खाया। उस रात अजय ने भी महसूस किया कि परिवार वही है जिसमें अपनापन हो।
8. रिश्तों की खूबसूरती
समय बीतता गया। रीना अब सिर्फ घर की सदस्य ही नहीं, बल्कि आदित्य की सबसे बड़ी ताकत थी। जब आदित्य बिजनेस में कोई मुश्किल फैसला नहीं ले पाता, वह रीना से सलाह लेता। रीना की सादगी और अनुभव ने उसे हमेशा सही राह दिखाई।
एक बार बिजनेस में बड़ा नुकसान हो गया। अजय परेशान थे। आदित्य भी निराश था। रीना ने दोनों को समझाया—
“पैसा आता-जाता रहता है, लेकिन परिवार हमेशा साथ रहता है। हिम्मत मत हारो।”
उनकी बातों से दोनों को हौसला मिला। कुछ महीनों में बिजनेस फिर से चल पड़ा।
9. समाज का बदलता नजरिया
धीरे-धीरे समाज भी बदलने लगा। अब लोग रीना को आदित्य की मां मानने लगे। स्कूल में जब आदित्य की फीस जमा करवानी होती, वह रीना का नाम लिखता—“मां: रीना।”
कई बार लोग पूछते—
“तुम्हारी असली मां कौन?”
आदित्य मुस्कुरा कर कहता—
“मां वही होती है जो हर दर्द में साथ दे, हर खुशी में मुस्कुराए। मेरे लिए रीना ही मां है।”
रीना ने भी अपने बेटे को डॉक्टर बना दिया था। अब दोनों बेटे एक-दूसरे को भाई मानने लगे थे।
10. अंतिम परीक्षा
एक दिन अजय बीमार पड़ गए। अस्पताल में भर्ती होना पड़ा। आदित्य और रीना दिन-रात उनकी सेवा में लगे रहे। अजय ने बिस्तर पर लेटे-लेटे कहा—
“रीना, तुमने इस घर को जोड़ कर रखा है। अगर तुम ना होती तो हम सब बिखर जाते।”
रीना ने नम आंखों से जवाब दिया—
“मैंने सिर्फ अपना फर्ज निभाया है।”
अजय की तबीयत ठीक हुई तो उन्होंने सबके सामने घोषणा की—
“अब इस घर की मालकिन रीना है। जो भी फैसला होगा, रीना की सलाह से होगा।”
यह सुनकर घर के पुराने नौकरों ने भी ताली बजाई। सबको पता था कि रीना ने इस घर को दिल से संभाला है।
11. एक नई सुबह
कुछ साल बाद आदित्य की शादी हुई। शादी के सारे फैसले रीना ने ही लिए। दुल्हन को उसने अपनी बेटी की तरह अपनाया। आदित्य की पत्नी भी रीना को मां कहती थी।
शादी के बाद एक दिन आदित्य ने रीना के पैरों में सिर रखकर कहा—
“मां, अगर आप ना होती तो मैं आज कुछ भी नहीं होता। आपने मुझे इंसान बनाया, यही असली दौलत है।”
रीना ने बेटे के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा—
“बेटा, दौलत तो आती-जाती रहती है। असली दौलत प्यार, ममता और सम्मान है।”
12. कहानी की सीख
आज अजय मल्होत्रा का घर फिर से खुशियों से भर गया था। हर कोने में हंसी, प्यार और अपनापन था। अब वहां नकली मुस्कानें नहीं थीं, सिर्फ सच्चा रिश्ता था।
समाज में लोग कहते—
“मां वही है जो बिना किसी स्वार्थ के बच्चे को अपनाए। पैसे से मां नहीं खरीदी जा सकती।”
आदित्य अक्सर अपने दोस्तों से कहता—
“अगर आपको मां चाहिए, तो उसकी ममता देखो, उसकी आंखों में प्यार देखो। असली रिश्ता दिल से बनता है, दौलत से नहीं।”
यह कहानी हमें यही सिखाती है कि असली रिश्ते पैसे, शोहरत या ओहदे से नहीं, बल्कि दिल और इंसानियत से बनते हैं। मां का रिश्ता सबसे पवित्र है, उसे कभी किसी दौलत से नहीं तोला जा सकता।
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