अमीर बाप ने बेटे को तीन अमीर औरतों में से माँ चुनने को कहा — लेकिन बेटे ने चुनी गरीब नौकरानी! 😭❤️
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दिल्ली के एक पुराने और पौश इलाके में फैली हुई रॉय हवेली की कहानी बेहद दिलचस्प और मन को छू लेने वाली है। यह हवेली न केवल अपनी भव्यता और ऐतिहासिक विरासत के लिए जानी जाती थी, बल्कि यहाँ रहने वाले रॉय परिवार की कहानियाँ भी लोगों के बीच चर्चित थीं। इस हवेली की दीवारों में कई राज़ छुपे थे, जो समय के साथ खुलते गए और एक नए अध्याय की शुरुआत की ओर इशारा करते थे।
रॉय हवेली की चमक-दमक से हर कोई प्रभावित होता था। बड़े-बड़े झूमर, महंगे कालीन, सोने की किनारी वाले भारी-भरकम पर्दे, हर चीज़ इस बात का प्रमाण थी कि यह घर किसी साधारण परिवार का नहीं था। यह अमीरी और शाही ठाठ-बाट का प्रतीक था, जिसे विक्रम रॉय ने नहीं बल्कि उनके पूर्वजों ने बनाया था। विक्रम रॉय, जो इस हवेली के वर्तमान मालिक थे, एक ऐसे परिवार से थे जिनकी विरासत सदियों पुरानी थी। हालांकि विक्रम की मेहनत ने भी इस विरासत को बनाए रखने में मदद की थी, लेकिन असली संपत्ति और सम्मान उनके बाप-दादा की देन थी।
विक्रम रॉय का एक इकलौता बेटा था, आदित्य। वह विदेश में अपनी पढ़ाई पूरी कर चुका था और दो साल बाद पहली बार घर लौटा था। आदित्य की वापसी से पूरे घर में एक अलग ही उत्साह था। नौकरों से लेकर पूरे परिवार के लोग उसे देखकर खुश थे। जैसे ही आदित्य हवेली के मुख्य दरवाजे से अंदर आया, नौकरों ने सम्मानपूर्वक सिर झुकाया। विक्रम ने शाही अंदाज में उसे बुलाया, “आदित्य, आ जाओ। तुम्हारा इंतजार था।”
आदित्य ने मुस्कुराते हुए कहा, “पापा, इतने इंतजाम क्यों? मैं तो बस घर आया हूं।” विक्रम ने अपनी सोने की घड़ी की ओर देखते हुए कहा, “आज सिर्फ घर आने का दिन नहीं है। आज वह दिन है जब तू अपने परिवार का अगला फैसला करेगा।” आदित्य थोड़ा हैरान हुआ। विक्रम ने धीरे-धीरे उठकर कमरे के बीचोंबीच जाकर कहा, “तेरी मां के गुजर जाने के बाद यह घर अधूरा है। अब वक्त आ गया है कि कोई इस घर की रानी बने। लेकिन यह हक मैं किसी को नहीं दूंगा। तू चुनेगा अपने लिए और मेरे लिए मां।”
कमरे का माहौल अचानक भारी हो गया। आदित्य के चेहरे पर उलझन साफ दिख रही थी। तभी दरवाजा खुला और अंदर तीन औरतें आईं। पहली थी रिया कपूर, जो एक ऊंचे बिजनेस घराने की बेटी थी। उसने हीरों से जड़ी साड़ी पहनी हुई थी और उसके हर हावभाव में अकड़ झलक रही थी। दूसरी थी सोनिया मल्होत्रा, बॉलीवुड की मशहूर अभिनेत्री, जिसका हर कदम कैमरे के लायक लगता था। तीसरी थी नेहा बजाज, जो एक सोशलाइट होने के साथ-साथ करोड़पति की अकेली वारिस थी। विक्रम ने गर्व से कहा, “इन तीनों में से जो चाहे चुन ले। यह तीनों रॉय खानदान का हिस्सा बनने को तैयार हैं।”
आदित्य ने तीनों को देखा। हर चेहरा सुंदर था, हर मुस्कान बनावटी। रिया बार-बार अपना फोन देख रही थी, सोनिया अपने बाल ठीक कर रही थी, और नेहा सिर्फ विक्रम को खुश करने की कोशिश कर रही थी। आदित्य की आंखों में सवाल थे। उसने कहा, “पापा, आप चाह रहे हैं कि मैं इनमें से किसी को मां कहूं?” विक्रम ने कहा, “हाँ, क्यों नहीं? अमीर, समझदार और क्लास में बेस्ट हैं। हमारे दर्जे की हैं।”
तभी दरवाजे के पास से एक हल्की आवाज आई। झाड़ू की सरसराहट की। सबकी नजर वहां गई। वह सीमा थी, घर की नौकरानी। साधारण सी साड़ी पहने, थकी हुई आंखों में एक सुकून था। उसने झिझकते हुए कहा, “साहब, माफ़ करना। मैं बस सफाई कर रही थी।” विक्रम ने झुंझलाकर कहा, “बाद में करना, अभी बाहर जा।” सीमा झटके से मुड़ी, लेकिन उसकी नजर आदित्य से मिली। आदित्य ने कुछ पल उसे देखा। उसमें वह सच्चाई थी जो उन तीनों औरतों में कहीं नहीं थी।
विक्रम हंसते हुए बोला, “तो बेटा, पसंद आई कोई?” आदित्य ने बिना झिझक कहा, “हाँ पापा, पसंद आई है।” आदित्य ने शांत स्वर में कहा, “वो सीमा।” कमरे में सन्नाटा छा गया। रिया ने आंखें दरेरी, सोनिया हंसी दबाने लगी, नेहा ने कहा, “क्या मजाक है यह?” विक्रम का चेहरा गुस्से से लाल हो गया। “क्या पागलपन है यह? वो एक नौकरानी है।” आदित्य ने दृढ़ता से कहा, “पापा, आपने कहा था मां चुनो, आपने यह नहीं कहा था कि वह अमीर होनी चाहिए। मैंने चुना उसे क्योंकि वह सच्ची है और मां जैसी लगती है।”
सीमा के हाथ कांपने लगे, उसकी आंखें भर आईं। विक्रम वहीं खड़ा रह गया, हैरान, आहत और शायद अंदर से हिला हुआ। उसने पहली बार महसूस किया कि शायद उसके बेटे को अमीरी से ज्यादा इंसानियत की समझ है। वह रात विक्रम रॉय सो नहीं सका। उसके दिमाग में बस एक ही बात घूम रही थी कि उसके बेटे ने नौकरानी को मां कहने की सोची है। वह बिस्तर पर करवटें बदलता रहा, पर नींद नहीं आई।
सुबह होते ही उसने पूरे घर को बुला लिया। उसकी आवाज में गुस्सा और अहंकार दोनों थे। “आज से इस घर में कोई गलती नहीं होनी चाहिए।” और फिर उसने सीमा की तरफ उंगली उठाई, “तुम तो ज्यादा होशियार बन गई हो। लगता है मालिक का बेटा तुझे मां कहेगा, है ना?” सीमा घबरा गई, सिर झुका कर बोली, “साहब, मैंने तो कुछ नहीं कहा।” विक्रम ने उसकी बात काटते हुए कहा, “चुप! मैं देखना चाहता हूं कि तेरे जैसे लोग इस घर की मालकिन बनने लायक हैं भी या नहीं। आज का पूरा दिन तेरे जिम्मे है। हवेली की देखभाल, खाना, स्टाफ का प्रबंधन, सब कुछ। अगर एक गलती हुई तो तुझे और तेरे उस समर्थक बेटे दोनों को मैं इस घर से निकाल दूंगा।”
आदित्य बीच में बोला, “पापा, यह सजा क्यों?” विक्रम ने सख्त लहजे में कहा, “क्योंकि मुझे साबित करना है कि तेरी पसंद कितनी नीची है।” सीमा ने कांपते हुए सिर झुका दिया। “ठीक है मालिक, मैं कोशिश करूंगी।”
दिन शुरू हुआ। हवेली में काम का बोझ बढ़ा दिया गया। नौकर इधर-उधर भाग रहे थे। कोई बर्तन धो रहा था, कोई लॉन साफ कर रहा था। लेकिन सीमा शांत रही। उसने सभी से विनम्रता से कहा, “डरने की जरूरत नहीं है। धीरे-धीरे करो।” वह खुद झाड़ू उठाकर सफाई करने लगी। नौकरों ने उसे रोकना चाहा, “मैडम, यह काम हम कर लेंगे।” वह मुस्कुराई, “अगर मैं मां बनूंगी तो सबसे पहले यह समझना होगा कि मां काम से नहीं डरती बल्कि काम को सम्मान देती है।” उसकी बात सुनकर नौकरों के चेहरों पर मुस्कान आ गई। वे भी पहली बार पूरे दिल से काम करने लगे।
दोपहर तक हवेली चमक उठी। रसोई में खुशबू फैली हुई थी। सीमा ने खुद सबके लिए खाना बनाया। वह हाथ से आदित्य को खाना परोसने लगी। आदित्य ने कहा, “सीमा, आपको ऐसा करने की जरूरत नहीं है।” वह हंसकर बोली, “बेटा, जब तू छोटा था तेरी मां तुझे ऐसे ही खिलाती थी। अगर मैं तेरी मां बननी हूं तो यह फर्ज भी मेरा है।”
आदित्य की आंखें नम हो गईं। वह याद करने लगा बचपन के वो दिन जब उसकी मां गुजर गई थी और सीमा ही थी जिसने उसे हर रात सुलाया, हर सुबह स्कूल के लिए तैयार किया। असल में वह हमेशा से मां जैसी थी, बस नाम नहीं मिला था।
उसी वक्त विक्रम कमरे में दाखिल हुआ। उसने देखा हर कोना साफ, हर नौकर व्यवस्थित और खाने की मेज पर सब साथ बैठे हैं। यहां तक कि सीमा भी। विक्रम ने चीखा, “यह क्या बदतमीजी है? नौकर मेरे खाने की मेज पर सीमा खड़ी हो गई।” सीमा ने जवाब दिया, “साहब, आज आपने मुझे इस घर की जिम्मेदारी दी थी। अगर मैं सबकी मुखिया हूं तो मैं सबको बराबर मानती हूं।”
विक्रम ने गुस्से से कहा, “बराबर नौकर और मालिक बराबर?” सीमा शांत स्वर में बोली, “अगर ईमानदारी और मेहनत बराबर नहीं तो मालिक की अमीरी भी अधूरी है, साहब।” कमरे में सन्नाटा छा गया। विक्रम कुछ पल के लिए उसे घूरता रहा। पहली बार किसी ने उससे इस लहजे में मगर सम्मान से बात की थी।
आदित्य आगे बढ़ा और बोला, “पापा, आपने देखा इस औरत ने घर नहीं माहौल बदल दिया। जहां पहले डर था, अब इज्जत है। जहां आदेश थे, अब दुआएं हैं।” विक्रम ने कुछ नहीं कहा। वह बस सीमा के काम को देखता रहा। उसकी विनम्रता, सादगी, सच्चाई ने हवेली में एक नई शांति ला दी थी। जैसे किसी मां की मौजूदगी ने घर को घर बना दिया हो।
विक्रम ने धीरे से अपने कमरे में जाकर पुराने एल्बम निकाले। एक तस्वीर थी, जिसमें छोटी उम्र के आदित्य को गोद में उठाए सीमा मुस्कुरा रही थी। वह तस्वीर देखकर विक्रम की आंखें भर आईं। वह समझ चुका था कि शायद बेटे ने गलत नहीं चुना। उसने असली मां को पहचान लिया था।
शाम ढल चुकी थी। रॉय हवेली की बत्तियां जगमगाने लगी थीं। लेकिन आज घर का माहौल कुछ अलग था। शांत, गर्मजोशी भरा और किसी अजीब सी सुकून भरी खामोशी से भरा हुआ। विक्रम रॉय भारी कदमों से ड्राइंग रूम में आया। सामने सीमा खड़ी थी। उसके हाथ अब भी काम से मैले थे, लेकिन चेहरे पर वही सच्ची मुस्कान थी जो अमीरी से नहीं, इंसानियत से आती है।
विक्रम कुछ पल उसे देखता रहा। फिर बोला, “सीमा, आज पूरे दिन मैंने बस तुम्हें परखना चाहा था और तुमने जो कर दिखाया वो मेरे सारे दिखावे, मेरे सारे अहंकार से कहीं बड़ा है।” सीमा ने झुक कर कहा, “मैंने तो बस अपना काम किया।”
मालिक विक्रम की आवाज भारी हो गई, “अब मुझे मालिक मत कहो। आज से तुम इस घर की रानी हो। वह जगह जो सालों से खाली थी, आज पूरी हो गई।” आदित्य पास खड़ा था। उसकी आंखें चमक रही थीं। वह बोला, “पापा, अब आप मानते हैं ना, असली मां वही होती है जो दिल से अपनाए, ना कि बैंक बैलेंस से।”
विक्रम ने आदित्य के कंधे पर हाथ रखा, “हाँ बेटा, आज तूने मुझे सिखाया है कि दौलत सिर्फ दीवारें बनाती है, लेकिन प्यार वो घर बनाता है।” सीमा की आंखों से आंसू बह निकले। वह आगे बढ़ी और बोली, “मुझे किसी रानी का ताज नहीं चाहिए, बस यह घर एक परिवार बना रहे, यही काफी है।”
विक्रम मुस्कुराया, “तो फिर परिवार में तुम्हारा स्वागत है, मां।” आदित्य ने झुककर उसके पैर छुए और पूरे घर में सिर्फ एक आवाज गूंजी, “असली अमीरी दिल की होती है, दौलत की नहीं।”
उस दिन से रॉय हवेली सच में घर बन गई। जहां अब ना नौकर थे, ना मालिक। बस एक परिवार था जो प्यार से जुड़ा हुआ था।
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