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कचरा बीनने वाले के पास मिली अरबपति की मां: इंसानियत की सबसे बड़ी कहानी

भूमिका

शहर की दोपहर की धूप, धूल भरी सड़कें, और एक आलीशान काली एसयूवी—यह दृश्य आम नहीं था। इस गाड़ी में बैठा था विक्रम मल्होत्रा, शहर का सबसे बड़ा उद्योगपति। उसका माथा पसीने से तर था, आंखों में छह दिनों की नींद की कमी, और दिल में मां गायत्री देवी को खो देने का डर। गायत्री देवी अचानक गायब हो गई थीं। पुलिस, जासूस, नौकर—सब नाकाम। और फिर, एक दिन, किस्मत ने विक्रम को उसकी मां से मिलवा दिया, लेकिन उस हाल में, जिसकी उसने कल्पना तक नहीं की थी।

1. गायब मां: एक बेटे की बेचैनी

विक्रम अपनी मां को बचपन से पूजता आया था। उसके पिता के जाने के बाद गायत्री देवी ने अकेले ही विक्रम को बड़ा किया, उसे दुनिया की हर खुशी दी, संस्कार दिए, और आज वह अरबपति था। लेकिन मां का अचानक लापता हो जाना, विक्रम के लिए सबसे बड़ा संकट बन गया था। पुलिस की हर कोशिश नाकाम रही। विक्रम ने खुद सड़कों पर मां की तलाश शुरू कर दी थी। हर दिन, हर रात, बस एक ही सवाल—मां कहां हैं?

2. सड़क किनारे ठेला और एक अनजान चेहरा

छठे दिन, विक्रम की एसयूवी एक सुनसान सड़क पर जा रही थी। तभी उसकी नजर एक जंग लगे ठेले पर बैठी एक बूढ़ी महिला पर पड़ी। बाल बिखरे हुए, साड़ी मैली, शरीर कमजोर। ठेले को धक्का दे रहा था एक दुबला-पतला लड़का, फटी टी-शर्ट, घिसी चप्पलें। विक्रम की नजरें ठहर गईं—वह मां थी!

“रोको गाड़ी!” विक्रम चीख पड़ा। गाड़ी रुकते ही वह भागता हुआ ठेले के पास पहुंचा। मां के कंधे पकड़कर बोला, “मां, मैं हूं विक्रम!” गायत्री देवी की आंखें खुलीं, लेकिन पहचान नहीं पाईं। उनके होठ हिले, मगर आवाज नहीं निकली।

3. राजू की इंसानियत

ठेले वाला लड़का डर के मारे पीछे हट गया। विक्रम ने पूछा, “यह सब क्या है? तुमने इन्हें कहां पाया?” लड़के ने सिर झुकाया—“मेरा नाम राजू है साहब। दो दिन पहले सड़क किनारे बेहोश मिली थी। लोग गुजर रहे थे, कोई रुका नहीं। मुझे छोड़ना ठीक नहीं लगा, इसलिए अपने ठेले पर ले आया। मेरे पास जो थोड़ा-बहुत था, वही खिला दिया। आज पुलिस स्टेशन ले जा रहा था।”

विक्रम की आंखों में आंसू थे। मां, जो महलों में रहती थीं, भूखी-प्यासी सड़कों पर थीं, और इस गरीब लड़के ने अपना खाना उन्हें दे दिया। विक्रम ने मां को गोद में उठाया—“हम अस्पताल जा रहे हैं।” फिर राजू से बोला, “तुम भी चलो।” राजू हिचकिचाया—“मेरे कपड़े गंदे हैं साहब, मैं कैसे बैठूं?” लेकिन विक्रम ने दरवाजा खोल दिया—“तुमने मेरी मां का साथ दिया, अब मैं तुम्हें अकेला नहीं छोड़ूंगा।”

4. अस्पताल की दौड़ और मौत की दहलीज

अस्पताल पहुंचते ही डॉक्टरों की टीम दौड़ पड़ी। गायत्री देवी को आईसीयू में ले जाया गया। विक्रम दीवार से टिककर फूट-फूट कर रो रहा था, राजू एक कोने में खड़ा था। राजू ने हिम्मत करके कहा, “साहब, वह बहुत मजबूत हैं। दो दिन भूख-प्यास से लड़ी हैं, हार नहीं मानेंगी।”

कुछ देर बाद आईसीयू से नर्स आई—“डॉक्टर आपको बुला रहे हैं। हालत नाजुक है, ऑक्सीजन लेवल गिर रहा है।” विक्रम का दिल बैठ गया। मशीन की बीप अब सीधी लाइन में बदल गई थी—कोट ब्लू! डॉक्टर दौड़ पड़े। विक्रम सिर घुटनों में छुपाए रो रहा था—“भगवान, मेरी मां को लौटा दो।” राजू दरवाजे के पास घुटनों के बल बैठ गया—“मां जी, आप बहुत बहादुर हैं। हार मत मानिए, आपके बेटे को आपकी जरूरत है… मुझे भी।”

शायद राजू की दुआ ऊपर तक पहुंच गई थी, क्योंकि कुछ पल बाद मॉनिटर पर फिर से बीप की आवाज आई। डॉक्टर ने राहत की सांस ली—“वह अभी हमारे साथ हैं।” विक्रम और राजू ने एक-दूसरे को गले लगा लिया।

5. राजू की कहानी

गायत्री देवी की हालत स्थिर हुई तो विक्रम ने राजू से पूछा—“तुम्हारी उम्र तो कॉलेज की है, ठेला क्यों चलाते हो?” राजू की आंखों में दर्द था—“मैं कभी क्लास का सबसे होनहार छात्र था। साइंस मेरा पसंदीदा विषय था। मेरे प्रिंसिपल कहते थे, एक दिन बड़ा डॉक्टर बनूंगा। लेकिन 16 की उम्र में मां-बाप सड़क हादसे में चले गए। मकान मालिक ने घर से निकाल दिया। पेट भरने के लिए बोझा उठाने लगा। डॉक्टर बनने का सपना गरीबी में दब गया।”

विक्रम सन्न रह गया। सामने सिर्फ एक मजदूर नहीं, हालातों से टूटा एक होनहार लड़का था, जिसने उसकी मां को बचाया था।

6. वादा और नई शुरुआत

विक्रम ने कहा, “राजू, तुमने मेरी मां को बचाया, अब मेरी बारी है। मैं तुम्हारी पढ़ाई का पूरा खर्च उठाऊंगा। आज से तुम हमारे परिवार का हिस्सा हो।” राजू की आंखों में आंसू आ गए। गायत्री देवी ने भी हाथ बढ़ाकर आशीर्वाद दिया—“भगवान तुम्हारा भला करे बेटा।”

7. मौत की दूसरी दस्तक और चमत्कार

अचानक फिर से खतरे की घंटी बजी—नर्स ने बुलाया, “दिमाग के स्कैन में बड़ा ब्लड क्लॉट है, तुरंत ऑपरेशन करना होगा। लेकिन शरीर कमजोर है, सफलता की संभावना कम है।” विक्रम ने डॉक्टर से कहा, “पैसे की चिंता मत कीजिए, बस मां को बचा लीजिए।”

राजू ने विक्रम का हाथ थामा—“साहब, मेरी मां जी तीसरी बार भी लड़ेंगी।” ऑपरेशन शुरू हुआ। विक्रम ने राजू को चेक देना चाहा, लेकिन राजू ने मना कर दिया—“मुझे पैसा नहीं चाहिए साहब, मुझे बस मां जी चाहिए।”

छह घंटे बाद डॉक्टर बाहर आए—“ऑपरेशन सफल रहा। यह चमत्कार है कि उनका शरीर इतना झटका झेल गया।” विक्रम, राजू को गले लगाकर रो पड़ा—“तुम सच में भगवान के दूत हो!”

8. इंसानियत की जीत और राजू का सपना

गायत्री देवी की रिकवरी धीरे-धीरे हुई। वह अब राजू को बेटा कहती थीं। विक्रम ने अपना वादा निभाया—राजू ने पढ़ाई शुरू की, कॉलेज का सबसे मेधावी छात्र बना, मेडिकल में टॉप किया। वह डॉक्टर राजवेंद्र वर्मा बना, देश का मशहूर न्यूरोसर्जन, जिसकी पहचान थी उसकी विनम्रता और करुणा। हर रविवार वह गरीबों के लिए फ्री कैंप लगाता, ऑपरेशन करता।

विक्रम मल्होत्रा गर्व से कहता—“राज मेरा बेटा नहीं, मेरा गुरु है। उसने सिखाया कि पैसे से बड़ी दौलत इंसानियत है।”

9. नियति का चक्र और तीसरी बार जीवनदान

18 साल बाद, गायत्री देवी 88 साल की थीं। एक सुबह बाथरूम में गिर गईं, सिर में चोट लगी, फिर से दिमाग में ब्लड क्लॉट। अस्पताल में अफरातफरी मची। डॉक्टर गुप्ता ने ऑपरेशन की तैयारी की, लेकिन इस बार ऑपरेशन करने वाला था—डॉक्टर राजवेंद्र वर्मा, यानी राजू।

राजू ने अपनी मां जैसी गायत्री देवी की सर्जरी खुद की। उसने अपनी सारी प्रतिभा, ज्ञान और प्यार उस ऑपरेशन में झोंक दिया। कुछ घंटों बाद ऑपरेशन सफल हुआ—तीसरी बार उसने उस महिला की जान बचाई थी, जिसे कभी ठेले पर उठाया था।

10. समापन: इंसानियत की सबसे बड़ी दौलत

आज डॉक्टर राजू हर दिन अनगिनत लोगों की जान बचाता है। विक्रम मल्होत्रा और गायत्री देवी के लिए वह सिर्फ बेटा नहीं, भगवान का भेजा फरिश्ता है। राजू कभी अपनी पुरानी जिंदगी नहीं भूलता—हर गरीब, हर मजबूर में उसे अपना अतीत दिखता है।

यह कहानी सिखाती है कि असली इंसानियत अमीरी या गरीबी नहीं देखती। निस्वार्थ सेवा का फल हमेशा मिलता है। अपनी परिस्थितियों की परवाह किए बिना जरूरतमंदों की मदद करनी चाहिए—क्योंकि करुणा ही जीवन की सबसे बड़ी दौलत है।

आपकी राय क्या है?

क्या आपको लगता है कि आज के समय में भी ऐसी इंसानियत जिंदा है? क्या राजू जैसे लोग हमारे समाज को बदल सकते हैं?
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