अस्पताल में लोगों को लूटा जा रहा था, फिर डीएम ने सबक सिखाया।

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जिले की सबसे बड़ी अधिकारी, डीएम संगीता सिंह, एक दिन अपने कार्यालय में बैठी थीं, तभी उन्हें एक गुप्त पत्र मिला। उस पत्र में लिखा था कि जिले के कुछ प्राइवेट अस्पतालों में मरीजों को इलाज के नाम पर लूटा जा रहा है। डॉक्टर छोटी-छोटी बीमारियों को गंभीर बनाकर पेश करते हैं और मरीजों के परिवारों से भारी रकम वसूलते हैं। कई मामलों में तो ऐसा हुआ कि मरीज को मामूली बुखार था, लेकिन डॉक्टरों ने उसे कैंसर, हार्ट अटैक या कोई गंभीर बीमारी बताकर लाखों रुपए ऐंठ लिए। यह पढ़ते ही संगीता सिंह का माथा ठनक गया। उन्हें लगा कि अगर यह सच है तो यह जनता की जिंदगी के साथ बड़ा खिलवाड़ है। उन्होंने तय किया कि वे खुद इस मामले की तहकीकात करेंगी।

संगीता ने खुद को पहचानने से बचाने के लिए साधारण कपड़े पहने, एक साधारण सा सलवार सूट ताकि कोई उन्हें पहचान न पाए। उन्होंने अपनी पड़ोस की एक बूढ़ी महिला को, जिसे हल्का बुखार था, अस्पताल ले जाने का नाटक किया। उनका उद्देश्य था कि डॉक्टरों का असली चेहरा सामने आए। अस्पताल पहुंचते ही संगीता सीधे डॉक्टर राकेश के पास गईं और घबराए हुए अंदाज में बोलीं, “डॉक्टर साहब, मेरी मां की हालत अचानक खराब हो गई है, कृपया इन्हें बचा लीजिए। मैं आपसे हाथ जोड़कर विनती करती हूं।”

डॉक्टर राकेश ने गंभीरता का नाटक करते हुए तुरंत महिला को इमरजेंसी रूम में ले लिया। जांच के बाद उन्होंने पाया कि मरीज को सिर्फ टाइफाइड फीवर है, जो एक सामान्य बीमारी है। लेकिन उन्होंने अपने स्टाफ से कहा कि बाहर रिश्तेदारों को मत बताना कि यह टाइफाइड है, हम कहेंगे कि कैंसर है और जितना हो सके पैसे ऐंठो। संगीता यह सब सुन रही थीं। उनके पैरों तले जमीन खिसक गई, लेकिन उन्होंने बाहर डर और चिंता का नाटक किया ताकि डॉक्टरों को शक न हो।

Hospital me Logo ko Lut Raha tha fir DM ne Sikhaya sabak - YouTube

कुछ देर बाद डॉक्टर राकेश बाहर आए और बोले, “मैडम, आपकी मां को कैंसर है।” संगीता ने आंसुओं के साथ कहा, “अब हम क्या कर सकते हैं? मेरी मां को बचाइए।” डॉक्टर ने कहा कि इलाज के लिए बाहर से विशेषज्ञ डॉक्टर बुलाने होंगे, जिसके लिए ₹5 लाख जमा करने होंगे। यह सुनकर संगीता का दिल धधक उठा, लेकिन उन्होंने खुद को काबू में रखा और कहा, “₹5 लाख हम गरीब लोग कहां से लाएं? क्या कोई और रास्ता नहीं है?” डॉक्टर ने गुस्से में कहा कि अगर पैसे नहीं दे सकते तो इलाज क्यों कराना आए हो।

संगीता ने रोने का नाटक करते हुए कहा, “मैं पूरे ₹5 लाख तो नहीं जुटा सकती, लेकिन थोड़ा कम कर दीजिए।” डॉक्टर ने कहा कि अभी ₹1 लाख जमा कर दीजिए, बाकी बाद में। संगीता ने डर और बेचैनी का नाटक करते हुए ₹1 लाख निकालकर डॉक्टर को दे दिया। डॉक्टर ने मुस्कुराते हुए कहा, “चिंता मत कीजिए, आपकी मां ठीक हो जाएगी।” अंदर जाकर डॉक्टर ने अपने साथियों से कहा कि मरीज को टाइफाइड की दवा बिल्कुल न दें, इसे बेहाल रहने दो ताकि पैसा आता रहे। यह सब बातें संगीता ने छुपकर सुनीं।

संगीता अस्पताल से बाहर आईं और अपने कार्यालय पहुंचकर सोचने लगीं कि अब क्या किया जाए। उन्हें समझ आ गया था कि यह डॉक्टर कितने बड़े धोखेबाज हैं जो गरीबों का खून चूस रहे हैं। उन्होंने सोचा कि अकेले इस खेल का पर्दाफाश नहीं कर सकतीं, उन्हें आईपीएस अंजलि शर्मा की मदद लेनी होगी। उन्होंने तुरंत अंजलि को फोन किया और उन्हें बुलाया।

आईपीएस अंजलि शर्मा डीएम ऑफिस पहुंची, जहां संगीता ने सारी घटना विस्तार से बताई। दोनों ने मिलकर योजना बनाई कि अस्पताल के एक कमरे में छुपा हुआ सीसीटीवी कैमरा लगाकर सबूत इकट्ठे किए जाएंगे। दोनों ने फिर साधारण सलवार सूट पहनकर अस्पताल पहुंचकर बहनों का नाटक किया। डॉक्टर राकेश ने उनसे पैसे की मांग की, लेकिन संगीता ने कहा कि पहले इलाज शुरू करें, फिर पैसे देंगे। डॉक्टर जिद पर अड़ गया कि पैसे पहले चाहिए।

संगीता ने तय किया कि पैसे इकट्ठे किए जाएंगे और वहीं कमरे में कैमरा लगवाया जाएगा। डॉक्टर राकेश ने कहा कि आपकी मां की तबीयत गंभीर है, अभी उनसे मिलना ठीक नहीं होगा। आईपीएस अंजलि शर्मा ने सब कुछ रिकॉर्ड कर लिया। डॉक्टर ने ₹4 लाख लिए और ऑपरेशन थिएटर में चला गया। अंजलि ने नर्स का कपड़ा पहनकर ऑपरेशन थिएटर में छुपा कैमरा लेकर घुस गईं। उन्होंने सारी हरकतें रिकॉर्ड कर लीं।

कुछ समय बाद डॉक्टर राकेश ने कहा कि आपकी मां ठीक हो गई हैं, लेकिन इलाज के लिए एक हफ्ता यहां रहना पड़ेगा। संगीता ने कहा कि वह अपनी मां को घर ले जाना चाहती हैं और घर से इलाज करेंगी। डॉक्टर ने विरोध किया, लेकिन संगीता ने अपनी बात पर अडिग रहीं। वे अपनी मां को लेकर घर लौट गईं और इलाज शुरू किया।

इसके बाद संगीता और अंजलि ने अस्पताल के खिलाफ रिपोर्ट तैयार की और थाने में जाकर सबूत पेश किए। पुलिस के साथ वे अस्पताल पहुंचीं, जहां डॉक्टर और नर्सों को गिरफ्तार किया गया। डॉक्टर राकेश ने स्वीकार किया कि वह अस्पताल का मालिक है और वह ही इसे चला रहा था। संगीता ने उससे कहा कि जितना पैसा गरीबों से वसूला गया है, वह वापस करे। राकेश ने ₹22 लाख वापस किए।

सभी दोषियों को जेल भेज दिया गया। डीएम संगीता सिंह ने वह पैसे गरीबों में बांट दिए और इस तरह पूरे अस्पताल में फैली बुराई का अंत हुआ। इस घटना ने जिले में एक मिसाल कायम की कि भ्रष्टाचार और बेईमानी के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी। संगीता और अंजलि की बहादुरी और ईमानदारी ने लोगों के दिलों में विश्वास जगाया और न्याय की जीत हुई।

यह कहानी हमें सिखाती है कि चाहे कितनी भी बड़ी समस्या हो, सही इरादे और साहस से उसे हराया जा सकता है। जब अधिकारी जनता के प्रति जिम्मेदार और ईमानदार होते हैं, तो समाज में सुधार आता है। संगीता सिंह और अंजलि शर्मा की यह कहानी प्रेरणा देती है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई में कभी हार नहीं माननी चाहिए।