आम लड़की समझकर Inspector ने की बदतमीजी, पर वो निकली ज़िले की IPS अफ़सर | फिर जो हुआ सब दंग रह गए!
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वर्दी का असली मतलब
सुबह के करीब 9:00 बजे आईपीएस अफसर फातिमा कुरैशी, जिनकी हाल ही में एक नए जिले प्रयागराज में पोस्टिंग हुई थी, अपनी वर्दी का रुतबा छोड़कर साधारण सूट में आम इंसान की तरह थाने पहुंचीं। वह जानती थीं कि उन्हें यहां आकर केवल एक पुलिस अधिकारी की तरह नहीं, बल्कि एक आम नागरिक की तरह काम करना होगा।
जब वह थाने पहुंचीं, तो वहां उन्हें एक बूढ़ी महिला सलमा बानो और उनकी बेटी सकीना बानो से पता चला कि गांव का जमींदार उन्हें परेशान कर रहा है। जब वे रिपोर्ट लिखाने थाने गईं, तो पुलिस ने उनकी मदद करने के बजाय उन्हें ही अपमानित करके भगा दिया। यह सुनकर आईपीएस मैडम का चेहरा गुस्से से लाल हो गया। उन्होंने खुद मोर्चा संभालने का फैसला किया।
थाने की पहली मुलाकात
फातिमा बिना अपनी पहचान बताए उस बूढ़ी महिला के साथ सादे कपड़ों में थाने पहुंचीं। उन्होंने इंस्पेक्टर से कहा, “एफआईआर लिखने को कहिए। मेरी मां की एफआईआर क्यों नहीं लिखी? अभी दर्ज करो। नहीं तो ऊपर तक शिकायत जाएगी।”
इंस्पेक्टर हंसते हुए बोला, “तू कौन होती है हमें कानून सिखाने वाली?” उसने उन्हें धमकाना और धक्का देना शुरू कर दिया।
फातिमा ने अपनी आवाज में दृढ़ता लाते हुए कहा, “आपको मेरी पहचान नहीं पता, लेकिन मैं आपको बताना चाहती हूं कि मैं इस जिले की नई आईपीएस हूं। मैं यहां आपके द्वारा किए गए अन्याय को बर्दाश्त नहीं करूंगी।”
इंस्पेक्टर ने उन्हें नजरअंदाज करते हुए कहा, “चल निकल यहां से, और दफा हो जा। अगर तुम्हें कोई शिकायत करनी है, तो ऊपर जाओ।”
सलमा बानो की कहानी
फातिमा ने सलमा बानो और सकीना की आंखों में आंसू देखे। सलमा बानो ने कहा, “बिटिया, हम गरीब हैं। हमारी कोई सुनवाई नहीं है। जमींदार शेर सिंह हमें धमका रहा है। हमारी जमीन छीनना चाहता है। जब हम थाने गए, तो इंस्पेक्टर ने हमारी बात नहीं सुनी।”
फातिमा ने गंभीरता से कहा, “आप चिंता मत कीजिए, मैं आपकी मदद करूंगी। हमें इस जमींदार के खिलाफ आवाज उठानी होगी।”
सलमा बानो ने अपनी पूरी कहानी सुनाई। उन्होंने बताया कि कैसे शेर सिंह ने उन्हें धमकाया, कैसे उन्होंने थाने में जाकर अपनी शिकायत दर्ज कराने की कोशिश की, लेकिन पुलिस ने उनकी मदद नहीं की।
फातिमा का निर्णय
फातिमा का चेहरा गुस्से से लाल हो गया। वह जानती थीं कि अगर वह इस मामले में कुछ नहीं करेंगी, तो सलमा बानो और सकीना को और भी परेशानी का सामना करना पड़ेगा। उन्होंने खुद मोर्चा संभालने का फैसला किया।
“आप मुझे बताएं कि मैं कैसे मदद कर सकती हूं। मुझे इस मामले को हल करने का एक तरीका निकालना होगा,” फातिमा ने दृढ़ता से कहा।
सलमा ने कहा, “बिटिया, हम गरीब हैं। हम नहीं लड़ सकते। वह जमींदार बहुत ताकतवर है।”
फातिमा ने कहा, “आपकी ताकत अब मेरी ताकत है। हम मिलकर लड़ेंगे।”

थाने में वापसी
फातिमा ने सलमा और सकीना के साथ थाने जाने का निर्णय लिया। इस बार वह अपनी पहचान छुपाकर जाएंगी। आधे घंटे बाद, आईपीएस फातिमा कुरैशी एक साधारण सलवार सूट में थीं। उन्होंने अपने बाल बांध लिए थे और चेहरे पर कोई मेकअप नहीं था।
जैसे ही वे थाने के बाहर पहुंचीं, फातिमा ने सलमा से कहा, “आप मुझे पहचानेंगी नहीं। मुझे बस आपके साथ चलना है।”
थाने के भीतर कदम रखते ही एक अजीब सी घुटन ने उनका स्वागत किया। फातिमा ने कहा, “साहब, हमें रिपोर्ट लिखवानी है। इंस्पेक्टर साहब कहां हैं?”
कांस्टेबल ने कहा, “इंस्पेक्टर साहब बिजी हैं। कल आना।”
फातिमा ने अपनी आवाज थोड़ी ऊंची की। “हमें आज ही रिपोर्ट लिखवानी है। और अभी बुलाइए अपने इंस्पेक्टर साहब को।”
दीपक शर्मा का अहंकार
इंस्पेक्टर दीपक शर्मा ने बाहर निकलकर फातिमा को देखा। पहले तो उसने फातिमा को नजरअंदाज किया, लेकिन फिर उसकी नजर सलमा बानो पर पड़ी।
“अरे ओ बुढ़िया, तू फिर आ गई। मैंने मना किया था ना कि दोबारा यहां अपनी शक्ल मत दिखाना। दिमाग खराब है क्या तेरा?”
सलमा बानो डर के मारे फातिमा के पीछे छिप गई।
फातिमा ने शांत रहते हुए कहा, “इंस्पेक्टर साहब, आपने इनकी एफआईआर क्यों नहीं लिखी?”
दीपक शर्मा ठठाकर हंसा। “तू कौन होती है मुझसे यह पूछने वाली? इसकी नई वकील बनी है क्या? शक्ल देखी है अपनी। बड़ी आई कानून सिखाने वाली।”
फातिमा का गुस्सा
फातिमा ने कहा, “मैं भी एक नागरिक हूं और आप एक पब्लिक सर्वेंट हैं। आपका फर्ज है हमारी शिकायत सुनना। आप इनकी एफआईआर अभी दर्ज कीजिए। वरना इसकी शिकायत ऊपर तक जाएगी।”
दीपक शर्मा अब गुस्से में आ चुका था। “तू मुझे धमकी देगी। तेरी यह हिम्मत तुझे पता है। मैं कौन हूं? अभी तुझे ऐसी जगह बंद करूंगा कि सारी हेकड़ी निकल जाएगी।”
फातिमा ने कहा, “हिम्मत तो देखो तुम्हारी। इंस्पेक्टर एक औरत पर हाथ उठाते हो।”
उसने अपने पर्स से अपना आईडी कार्ड निकाला और उसे दीपक शर्मा की आंखों के ठीक सामने खोल दिया। कार्ड पर अशोक स्तंभ चमक रहा था और नीचे मोटे अक्षरों में लिखा था “सुपरिटेंडेंट ऑफ पुलिस, जिला प्रयागराज, नाम: फातिमा कुरैशी।”
सच्चाई का सामना
पूरे थाने में मौत सा सन्नाटा छा गया। इंस्पेक्टर दीपक शर्मा के पैरों के नीचे से जैसे जमीन खिसक गई थी। उसका शरीर कांपने लगा। माथे पर पसीने की नदियां बहने लगीं और धड़ाम की आवाज के साथ वह फातिमा के पैरों पर गिर पड़ा।
“मैडम, गलती हो गई। माफ कर दीजिए। मुझे नहीं पता था।” वह गिड़गिड़ा रहा था।
फातिमा ने नफरत से उसकी ओर देखा। “जब मैं एक आम औरत थी, तब तुम्हें कानून याद नहीं आया। तब तुम्हें मेरी इज्जत का ख्याल नहीं आया।”
फातिमा कुरैशी अब पूरी तरह से अपने आईपीएस के अवतार में आ चुकी थी। उसकी आवाज में वह अधिकार था जो सिस्टम को हिला सकता था।
“सस्पेंशन ऑर्डर टाइप करो। इंस्पेक्टर दीपक शर्मा तत्काल प्रभाव से सस्पेंड किए जाते हैं।”
फातिमा ने बाकी पुलिस वालों की तरफ देखा जो दीवार से चिपककर खड़े थे। “और तुम सब जो यहां खड़े तमाशा देख रहे थे। आज से तुम लोगों की ड्यूटी पुलिस लाइन के ग्राउंड में घास छीलने की है। वहीं तुम सीखोगे कि अनुशासन क्या होता है।”
एफआईआर का दर्ज होना
फातिमा ने सलमा बानो का हाथ पकड़ कर कहा, “आपकी रिपोर्ट लिखी जाएगी।” वह खुद दीपक शर्मा की कुर्सी पर जाकर बैठ गई।
फातिमा ने खुद अपने हाथ से उनकी एफआईआर लिखी। एक-एक शब्द, एक-एक डिटेल। उसने सिर्फ जमींदार शेर सिंह पर ही नहीं बल्कि इंस्पेक्टर दीपक शर्मा पर भी ड्यूटी में लापरवाही, एक महिला के साथ बदसलूकी और अपराधी को संरक्षण देने का मामला दर्ज किया।
कार्रवाई का आदेश
एफआईआर लिखने के बाद उसने वायरलेस सेट उठाया। उसकी आवाज पूरे डिस्ट्रिक्ट कंट्रोल रूम में गूंजी। “कंट्रोल, आईपीएस अहमदनगर बोल रही है। एक टीम तुरंत तैयार करो। गांव के जमींदार शेर सिंह को अरेस्ट करना है। मैं चाहती हूं कि अगले 1 घंटे में वह मेरी हिरासत में हो। कोई भी बहाना नहीं चलेगा। ओवर एंड आउट।”
पूरे पुलिस महकमे में हड़कंप मच गया।
शेर सिंह की गिरफ्तारी
उस शाम जब सूरज ढल रहा था, शेर सिंह अपने आलीशान घर में शराब पी रहा था और दीपक शर्मा को फोन लगाकर गालियां दे रहा था। तभी पुलिस की तीन जीपें एक साथ उसके गेट को तोड़ती हुई अंदर घुसीं।
शेर सिंह को लगा कि यह उसका स्वागत करने आए हैं। लेकिन जब एक नए इंस्पेक्टर ने उसे हथकड़ी दिखाई, तो उसकी सारी हेकड़ी हवा हो गई।
“तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई? तुम जानते नहीं मैं कौन हूं। मैं अभी आईपीएस साहब को फोन करता हूं।”
इंस्पेक्टर ने मुस्कुराकर कहा, “यह आर्डर आईपीएस साहिबा का ही है।”
“शेर सिंह, अब चलिए, हवालात आपकी प्रतीक्षा कर रही है।”
फातिमा का सम्मान
शेर सिंह को गिरफ्तार कर लिया गया। अगले दिन आईपीएस फातिमा कुरैशी की कार्यवाही की खबर आग की तरह पूरे राज्य में फैल गई थी। आम जनता के लिए फातिमा एक मसीहा बन गई थी।
राकेश गुप्ता की साजिश
प्रयागराज का अंधेरा सिर्फ जमींदार शेर सिंह या इंस्पेक्टर दीपक शर्मा तक सीमित नहीं था। इस पूरे खेल का असली खिलाड़ी था प्रयागराज का विधायक राकेश गुप्ता। राकेश गुप्ता बाहर से एक सफेदपश नेता था जो मंच पर खड़े होकर गरीबों के हकों की बड़ी-बड़ी बातें करता था। लेकिन पर्दे के पीछे वह एक बहुत बड़ा अपराधी था।
शेर सिंह जैसे लोग उसके लिए जमीनें हड़पते थे। चुनाव में बूथ कैप्चरिंग करते थे और उसके काले धंधों को संभालते थे। शेर और दीपक शर्मा की गिरफ्तारी राकेश गुप्ता के साम्राज्य पर हमला था।
राकेश गुप्ता का निर्णय
राकेश गुप्ता जानता था कि अगर आईपीएस फातिमा कुरैशी कुछ और दिन अहमदनगर में टिक गई, तो उसकी सारी फाइलें खुल जाएंगी। उसने फैसला किया कि इस कांटे को रास्ते से हटाना ही पड़ेगा।
एक रात राकेश गुप्ता ने अपने फार्म हाउस पर एक मीटिंग बुलाई। वहां दीपक शर्मा के कुछ वफादार, सस्पेंड हुए पुलिस वाले और शेर सिंह के गुंडे मौजूद थे।
राकेश गुप्ता ने अपनी महंगी सिगार का कश खींचते हुए कहा, “एक लड़की ने तुम सबकी मर्दानगी पर पानी फेर दिया और तुम लोग कुछ नहीं कर सके। एक हवलदार डरते-डरते बोला, ‘नेताजी, वह आईपीएस है। हम क्या करते?’”
राकेश गुप्ता हंसा, “आईपीएस है भगवान नहीं। उसे हटाने का तरीका भी है। बस दिमाग लगाना पड़ेगा। उसे उसी के खेल में फंसाना होगा।”
साजिश का आगाज़
राकेश गुप्ता ने एक घिनौनी साजिश तैयार की। उसने डीआईजी के साथ मिलकर आईपीएस फातिमा कुरैशी को अपनी शक्तियों का दुरुपयोग करने, अधिकारी के साथ मारपीट करने और अनुशासनहीनता के आरोप में जांच पूरी होने तक तत्काल प्रभाव से सस्पेंड करवा दिया।
फातिमा की हार नहीं
फातिमा जानती थीं कि यह एक साजिश है और वह इसका पर्दाफाश करके रहेंगी। शेर सिंह भी जमानत पर बाहर आ चुका था। लेकिन फातिमा अब आईपीएस नहीं थीं। उनके पास कोई पावर नहीं थी। कोई टीम नहीं थी।
वह अपने छोटे से क्वार्टर में अकेली थीं, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी थी। उनकी सबसे बड़ी ताकत बनकर उभरी सलमा बानो और सकीना बानो। वे दोनों हर रोज उनके लिए खाना लेकर आतीं। वे घंटों उनके पास बैठतीं और उनका हौसला बढ़ातीं।
रवि का सहयोग
एक और इंसान था जो चुपचाप फातिमा के साथ खड़ा रहा था। उनका भरोसेमंद कांस्टेबल मोहम्मद रवि। रवि जानता था कि मैडम बेकसूर हैं। वह ड्यूटी के बाद चोरी छिपे एक महिला पत्रकार नेहा वर्मा के साथ फातिमा से मिलने आता और उन्हें थाने और जिले में चल रही गतिविधियों की जानकारी देता।
वह फातिमा की आंख और कान बन गया था। अब एक नई टीम बन चुकी थी। एक सस्पेंडेड आईपीएस, एक ईमानदार कांस्टेबल और एक निडर पत्रकार और उनका मिशन था राकेश गुप्ता के काले साम्राज्य का पर्दाफाश करना।
खतरनाक योजना
तीनों ने मिलकर काम करना शुरू कर दिया। तभी फातिमा ने एक खतरनाक लेकिन फूल प्रूफ प्लान बनाया। एक रात जब राकेश गुप्ता ने अपनी जीत का जश्न मनाने के लिए फार्म हाउस पर एक बड़ी पार्टी रखी थी, नेहा वर्मा एक कैटरिंग स्टाफ बनकर अंदर घुस गई।
इसी समय फातिमा और रवि ने फार्म हाउस के पीछे के हिस्से में बिजली के तारों में एक छोटा सा शॉर्ट सर्किट कर दिया। फार्म हाउस की बिजली गुल हो गई और अफरातफरी मच गई।
सबूतों का खुलासा
इसी मौके का फायदा उठाकर नेहा स्टोर रूम में घुस गई और उन्होंने वह लाल डायरी निकाल ली। अगले दिन नेहा ने अपने न्यूज़ पोर्टल पर एक लाइव प्रेस कॉन्फ्रेंस की। उन्होंने एक-एक करके सारे सबूत देश के सामने रख दिए।
डॉक्टर सक्सेना का स्टिंग ऑपरेशन, हवलदार का कबूलनामा और आखिर में लाल डायरी। पूरे देश में भूचाल आ गया। मीडिया में राकेश गुप्ता की थू-थू होने लगी। विपक्ष ने विधानसभा में हंगामा खड़ा कर दिया। सरकार पर इतना दबाव पड़ा कि उसे तुरंत एक्शन लेना पड़ा।
न्याय की जीत
एक नई और ईमानदार जांच कमेटी बैठाई गई। राकेश गुप्ता, शेर सिंह, दीपक शर्मा और डॉक्टर सक्सेना सबको गिरफ्तार कर लिया गया और आईपीएस फातिमा कुरैशी को ना सिर्फ बाइज़त बरी किया गया बल्कि उनके सस्पेंशन को रद्द करके उन्हें दोबारा प्रयागराज का आईपीएस नियुक्त किया गया।
निष्कर्ष
तो दोस्तों, यह थी हमारी कहानी वर्दी का असली मतलब। यह कहानी हमें सिखाती है कि रास्ता कितना भी मुश्किल क्यों ना हो, अगर इरादे नेक हों और हिम्मत हो तो सच्चाई की जीत जरूर होती है।
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