इंस्पेक्टर ने जब खुले आम टैक्सी वाले से रिश्वत मांगी तो IPS मैडम ने वर्दी उतरवादी
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एसपी अंजलि वर्मा, जो अपने जिले की एक तेजतर्रार और ईमानदार पुलिस अधीक्षक थीं, आज अपने आधिकारिक वर्दी के बजाय एक साधारण सूती नीले सलवार-सूट में थीं। उनके चेहरे पर कोई मेकअप नहीं था, बस एक हल्की सी मुस्कान जो उनकी बहन अनन्या के साथ मॉल जाने की खुशी को दर्शा रही थी। अनन्या, जो अभी कॉलेज में ही थी, अपनी बड़ी बहन के साथ बाहर निकलने पर हमेशा उत्साहित रहती थी। दोनों एक पुरानी सी टैक्सी में बैठकर शहर के सबसे बड़े मॉल की ओर जा रही थीं, जहां अनन्या को अपनी पसंद के कुछ नए कपड़े खरीदने थे। अंजलि ने सोचा था कि यह एक सामान्य, आरामदेह दिन होगा, शहर की हलचल से दूर, बस अपनी बहन के साथ कुछ पल बिताने का मौका।
लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था। जैसे ही उनकी टैक्सी शहर के बाहरी इलाके में एक चेक पोस्ट के पास पहुंची, एक पुलिसकर्मी ने हाथ दिखाकर उसे रुकने का इशारा किया। अंजलि ने अपनी भौंहें हल्की सी उठाईं, क्योंकि यह चेक पोस्ट अक्सर अनावश्यक रूप से गाड़ियों को रोककर परेशान करता था। सब-इंस्पेक्टर अजय कुमार, जिसकी वर्दी पर कुछ दाग लगे थे और चेहरे पर एक अजीब सी अकड़ थी, टैक्सी के पास आया। उसने ड्राइवर से रूखे स्वर में गाड़ी के कागजात मांगे।
टैक्सी ड्राइवर, एक अधेड़ उम्र का आदमी जिसके चेहरे पर थकान और चिंता की लकीरें थीं, तुरंत कागजात निकालने लगा। लेकिन कुछ देर ढूंढने के बाद उसके चेहरे पर घबराहट छा गई। उसने हाथ जोड़कर कहा, “साहब, गलती हो गई। कागजात घर पर छूट गए हैं। मैं कल आकर दिखा दूंगा, माफ कर दीजिए।”
अजय कुमार ने एक तिरछी मुस्कान के साथ कहा, “क्या? कागजात घर पर छूट गए हैं? और इंश्योरेंस भी नहीं है, पोल्यूशन सर्टिफिकेट भी नहीं है। यह सब क्या है? चालान तो कटेगा ही।” उसकी आवाज में धमकी और लालच दोनों साफ झलक रहे थे। फिर उसने अपनी आवाज धीमी करते हुए कहा, “अगर चालान नहीं कटवाना चाहते तो तीन हजार रुपये दो, बात यहीं खत्म।”

अंजलि, जो टैक्सी की पिछली सीट पर बैठी थी, खामोशी से यह सब देख रही थी। उसके चेहरे पर कोई भाव नहीं था, लेकिन उसकी आंखें हर हरकत को बारीकी से नोट कर रही थीं। टैक्सी ड्राइवर फिर से हाथ जोड़कर गिड़गिड़ाया, “साहब, अभी तो मैं घर से निकला हूं। दिन की शुरुआत ही हुई है। मेरे पास एक भी रुपया नहीं है। मैंने अभी तक कुछ कमाया भी नहीं है। कहां से दूं आपको पैसे?”
अजय कुमार ने व्यंग्य करते हुए कहा, “कल तो कमाए होंगे? वह पैसे कहां गए? उन्हीं में से दे दो।”
ड्राइवर ने मायूस होकर कहा, “साहब, वह तो कल ही खर्च हो गए। घर का राशन आया था। सच में मेरे पास अभी पैसे नहीं हैं। आप मुझे माफ कर दीजिए। आगे से ऐसी गलती कभी नहीं करूंगा। हमेशा अपने कागजात साथ रखूंगा।”
अंजलि के अंदर गुस्सा उबलने लगा था, लेकिन उसने खुद को संभाले रखा। वह देखना चाहती थी कि यह सब-इंस्पेक्टर कितनी हद तक जा सकता है। तभी अजय कुमार ने अपनी आवाज और ऊंची कर दी, “बे गरीब भिखारी, तेरे पास तीन हजार रुपये नहीं हैं? किसी भी तरह से मुझे तीन हजार रुपये दे, नहीं तो तेरी टैक्सी जब्त कर ली जाएगी।”
ड्राइवर की आंखें फटी रह गईं। उसने कांपती आवाज में पूछा, “सर, मैंने क्या किया है जो मेरी टैक्सी जब्त करेंगे? क्या मैंने कोई बड़ा अपराध किया है?”
यह सुनते ही अजय कुमार आग बबूला हो गया। उसने बिना सोचे-समझे टैक्सी ड्राइवर को एक जोरदार थप्पड़ जड़ दिया। “मुझसे जबान लड़ाता है? तेरी इतनी औकात?”
वह थप्पड़ सिर्फ ड्राइवर के गाल पर नहीं, बल्कि अंजलि के दिल पर भी लगा। उसका संयम टूट गया। वह तुरंत टैक्सी से उतरी और अजय कुमार के सामने खड़ी हो गई। उसकी आवाज में एक अजीब सी गंभीरता थी, जो उसकी साधारण वेशभूषा से बिल्कुल विपरीत थी।
“आपको इस ड्राइवर को थप्पड़ मारने का अधिकार किसने दिया?” अंजलि ने पूछा। “यह कोई तरीका है? यह भाई रोज मेहनत करके गाड़ी चलाता है। इसी कमाई से इसके घर का चूल्हा जलता है। अगर इससे कोई गलती हुई है तो आप इसे रिश्वत और थप्पड़ मारोगे और इसकी टैक्सी को जब्त करोगे? यह कैसा कानून है? यह गरीब आदमी आपका पेट भरने नहीं आया, बल्कि अपने घर का पेट पालने निकला है।”
अजय कुमार ने अंजलि को ऊपर से नीचे तक देखा। एक साधारण सी लड़की, हरे रंग का सलवार-सूट और चप्पल पहने हुए, जो उससे सवाल कर रही थी। उसे लगा कि यह कोई आम लड़की है जो बीच में बोलकर उसे परेशान कर रही है। उसकी बात सुनकर अजय कुमार और भड़क गया।
“तू मुझे सिखाएगी कि मुझे क्या करना चाहिए?” उसने तीखे स्वर में कहा। “बीच में बोलने किसने कहा? ज्यादा बकवास मत कर वरना तुझे भी हवालात दिखा दूंगा। मैं पुलिस हूं, चाहूं तो अभी गिरफ्तार कर लूं। ज्यादा अकड़ मत दिखा। समझी?”
अजय कुमार को बिल्कुल अंदाजा नहीं था कि जिससे वह इस लहजे में बात कर रहा है, वह दरअसल जिले की एसपी अधिकारी है। अंजलि ने अपनी आवाज शांत रखी, लेकिन उसकी आंखों में एक दृढ़ता थी। “सर, आप पुलिस वाले हैं तो क्या लोगों को लूटेंगे? गरीबों से जबरन रिश्वत लेंगे? यह जो आप कर रहे हैं, यह न सिर्फ गलत है बल्कि कानून के खिलाफ भी है।”
अंजलि की बात सुनकर अजय कुमार आपा खो बैठा। उसने गुस्से में अंजलि को भी एक जोरदार थप्पड़ जड़ दिया। “तू मुझे कानून सिखाएगी? तुझे उसी वक्त से देख रहा हूं, बहुत ज्यादा बड़बड़ा रही है। तुझे लगता है कि तुझे मुझसे ज्यादा कानून आता है? ज्यादा गुस्सा मत दिला, वरना तुझे और तेरी बहन अनन्या दोनों को जेल में सड़ा दूंगा। जल्दी टैक्सी लेकर भागो यहां से।”
टैक्सी ड्राइवर यह सब देखकर डर के मारे चुप था। अनन्या, जो टैक्सी में बैठी थी, सहम गई थी। लेकिन अंजलि ने अपने गुस्से को काबू में रखा। वह जानबूझकर अपनी पहचान उजागर नहीं कर रही थी, क्योंकि वह देखना चाहती थी कि सब-इंस्पेक्टर अजय कुमार कितनी हद तक गिर सकता है। उसके गाल पर पड़ा थप्पड़ उसे अंदर तक झकझोर गया था, लेकिन उसने इसे अपनी पहचान उजागर करने का बहाना नहीं बनाया। वह टैक्सी में वापस बैठी और ड्राइवर को मॉल चलने को कहा।
कुछ देर बाद टैक्सी वाले ने उन्हें कपड़ों के मॉल पर उतार दिया। अंजलि ने अपनी बहन अनन्या को अंदर ले जाकर उसके लिए सुंदर-सुंदर कपड़े खरीदे। बाहर से भले ही अंजलि शांत दिखाई दे रही थी, लेकिन मन ही मन उसने ठान लिया था कि इस सब-इंस्पेक्टर अजय कुमार को सबक सिखाना ही होगा। कानून का मजाक उड़ाने वाले ऐसे अफसर थाने में रहने के लायक नहीं हैं।
मॉल से लौटने के बाद अंजलि ने सोचा कि क्यों न थाने जाकर यह पता लगाया जाए कि वहां का माहौल कैसा है। आखिर अजय कुमार वहीं काम करता है और अगर पूरा थाना ही भ्रष्टाचार में डूबा हुआ है तो सिस्टम को अंदर से साफ करना जरूरी है।
अगले दिन सुबह अंजलि ने अपनी असली पहचान छिपाते हुए एक आम लड़की का रूप धारण किया। उसने फिर से हरे रंग का सलवार-सूट पहना और सीधे थाने पहुंच गई। थाने में प्रवेश करते ही उसकी नजर सामने की कुर्सी पर बैठे इंस्पेक्टर राज शर्मा पर पड़ी। वह आराम से पंखा झलते हुए मोबाइल पर बात कर रहा था, उसके चेहरे पर एक अजीब सी बेफिक्री थी। अंजलि सीधी उसके पास गई और बोली, “सर, मुझे एक रिपोर्ट लिखवानी है।”
अंजलि कुछ और कहती, इससे पहले ही राज शर्मा ने उसे बीच में टोक दिया। “किसकी रिपोर्ट लिखवानी है? तुझे पता नहीं यहां रिपोर्ट लिखवाने की फीस पांच हजार रुपये लगती है? पैसे लाई है क्या? अगर पैसे हैं तो बोल वरना फौरन दफा हो जा।”
यह सुनकर अंजलि की आंखें गुस्से से लाल हो गईं। वह हैरान थी कि इस थाने में खुलेआम भ्रष्टाचार हो रहा है और जिले की एसपी अधिकारी होने के बावजूद उसे अब तक इसकी भनक तक नहीं लगी थी। उसने गहरी सांस ली और सख्त स्वर में कहा, “सर, आप मुझसे रिश्वत क्यों मांग रहे हैं? रिपोर्ट लिखवाने के लिए कोई शुल्क नहीं लगता। यह जो आप कर रहे हैं, न सिर्फ गलत है बल्कि कानून के खिलाफ भी है।”
यह सुनकर राज शर्मा भड़क उठा और बोला, “क्या कहा तूने? मैं गलत कर रहा हूं? तुझे मुझसे ज्यादा कानून आता है क्या? ज्यादा बकवास मत कर वरना अभी तुझे अंदर डाल दूंगा।”
अंजलि समझ चुकी थी कि यह इंस्पेक्टर भी उसी रास्ते पर है जिस रास्ते पर अजय कुमार था। उसने शांत रहते हुए पूछा, “आपके थाने का सब-इंस्पेक्टर अजय कुमार कहां है?”
राज शर्मा झल्ला कर बोला, “क्यों, तुझे उससे क्या काम है? मुझसे सवाल मत कर। खुद जाकर बात कर ले।”
अंजलि ने फिर कहा, “सर, रिपोर्ट लिखिए वरना मैं आपके खिलाफ एक्शन लूंगी। आप मुझे नहीं जानते कि मैं कौन हूं।”
यह सुनकर राज जोर से हंसा और बोला, “तू मुझे धमका रही है? तुझे देखकर तो लगता है या तो तू भिखारी है या कूड़ा-कचरा उठाने वाली या फिर किसी घर में झाड़ू-पोछा करने वाली होगी। यहां रिपोर्ट नहीं लिखी जाएगी। अब निकल जा वरना धक्के मारकर बाहर फेंकवा दूंगा।”
अंजलि ने खुद को कंट्रोल किया। वह समझ गई थी कि यह सब के सब उसी पानी से नहलाए हुए हैं जिस पानी से सब-इंस्पेक्टर अजय कुमार नहलाया है। उसने मन ही मन ठान लिया कि इन्हें मजा चखाना ही पड़ेगा, लेकिन पहले उसे इनकी पूरी करतूतों को देखना चाहिए। फिर वह थाने से बाहर निकलकर थोड़ी देर सोचती रही।
फिर उसने अपना मोबाइल निकाला और अपने अधिकारी, डीएसपी और एसीपी को फोन कर दिया कि “मैं इस थाने में मौजूद हूं। आप लोग मेरी गाड़ी लेकर आओ।” इतना कहकर वह दोबारा थाने में प्रवेश कर गई।

जैसे ही राज ने उसे देखा, वह गरजते हुए बोला, “यह लड़की फिर से आ गई! तुझे समझ में नहीं आता? चल, तुझे सबक सिखाता हूं। अब तो लगता है तुझे जेल में डालना ही पड़ेगा।” राज शर्मा ने गुस्से से कहा।
अंजलि ने बिना घबराए धीमी मगर स्पष्ट आवाज में जवाब दिया, “सर, मुझे सिर्फ रिपोर्ट लिखवानी है। आप रिपोर्ट दर्ज कीजिए। अगर आप ही जनता के साथ ऐसा बर्ताव करेंगे, तो हम न्याय की उम्मीद किससे करेंगे?”
मगर शर्मा फिर वही रट दोहराने लगा, “मैंने कहा ना, रिपोर्ट लिखवानी है तो पांच हजार रुपये निकालो। बिना पैसे यहां कुछ नहीं होगा। बार-बार परेशान मत कर वरना धक्के मारकर बाहर फेंक दूंगा।”
अंजलि मन ही मन सोच रही थी, ‘कितने नीचे गिर चुके हैं ये लोग। इन्हें इतना भी नहीं मालूम कि किसी महिला से कैसे बात की जाती है।’ वह हल्की मुस्कान के साथ बोली, “देखिए सर, आप रिश्वत क्यों मांग रहे हैं? कानून में कहीं नहीं लिखा कि रिपोर्ट दर्ज करने के लिए जनता से पैसे लिए जाएं। आप साफ-साफ कानून तोड़ रहे हैं। अगर आपने रिपोर्ट दर्ज नहीं की, तो मैं आपके खिलाफ सख्त कार्रवाई करूंगी। आप खुद को बड़ा अधिकारी समझते हैं, लेकिन आपको अंदाजा भी नहीं कि आपके साथ आगे क्या होने वाला है।”
यह सुनकर राज शर्मा बुरी तरह तिलमिला गया। उसने दो सिपाहियों को इशारा करते हुए आदेश दिया, “इस लड़की को बाहर निकालो और सबक सिखाओ। यह ऐसे नहीं जाएगी।”
दोनों सिपाही अंजलि की ओर बढ़े ही थे, हाथ पकड़ने को कि तभी थाने के दरवाजे से एक कड़क आवाज गूंजी, “रुको!”
सबकी नजरें दरवाजे की तरफ घूम गईं और वहां खड़े लोगों को देखकर सभी दंग रह गए। अंदर आ चुके थे एसीपी और डीएसपी अफसरों का दल, जो एसपी अंजलि को बुलाने आया था। उनके पीछे कुछ और वरिष्ठ पुलिस अधिकारी भी थे।
उनमें से एक ने गुस्से में राज शर्मा पर नजर डालते हुए कहा, “बेहूदे इंस्पेक्टर! यह क्या कर रहे हो? तुम्हारी अभी इसी वक्त वर्दी उतर जाएगी और जिंदगी भर जेल में सड़ोगे।”
यह सुनते ही राज शर्मा के हाथ-पांव कांपने लगे। माथे से पसीना टपकने लगा। हकलाते हुए उसने सफाई देनी चाही, “साहब, यह लड़की…” लेकिन इससे पहले कि वह बात पूरी करता, अंजलि आगे बढ़ी। उसका चेहरा अब और भी तेज और दृढ़ लग रहा था। वह गूंजती आवाज में बोली, “चुप रहो शर्मा! मैं सिर्फ लड़की नहीं, मैं जिले की एसपी हूं! और मैंने अपनी आंखों से देख लिया है कि यहां आम जनता के साथ कैसा व्यवहार किया जाता है। तुम्हें लगता है कि यह थाना तुम्हारी निजी जागीर है? अब समझ आएगा असली कानून क्या होता है!”
थाने का माहौल बदल चुका था। सिपाही एक दूसरे का मुंह देखने लगे। जिन दो सिपाहियों ने अभी-अभी अंजलि को पकड़ने की कोशिश की थी, वे डर के मारे पीछे हट गए। एसीपी अधिकारी ने गुस्से में टेबल पर जोर से हाथ मारा और आदेश दिया, “कांस्टेबल! तुरंत इंस्पेक्टर शर्मा को हिरासत में लो। अभी इसी वक्त! एक क्षण की भी देरी बर्दाश्त नहीं होगी, वरना अंजाम तुम जानते हो।”
पूरा थाना सन्नाटे में डूब गया। जो राज शर्मा कुछ देर पहले शेर की तरह दहाड़ रहा था, वही अब हाथ जोड़कर गिड़गिड़ा रहा था। वह अंजलि की तरफ देखकर रोते हुए बोला, “मैडम, मुझसे गलती हो गई। एक मौका दीजिए, मेरी नौकरी चली जाएगी।”
लेकिन अंजलि की आंखों में जरा भी नरमी नहीं थी। उसने ठंडे और कठोर स्वर में कहा, “गलती तब गलती होती है जब वह एक बार हो। तुम्हारा अपराध गलती नहीं, आदत है। और इसकी सजा तुम्हें मिलकर ही रहेगी। जनता की आवाज दबाना, कानून का मजाक उड़ाना और महिला का अपमान करना अपराध होता है, गलती नहीं।”
एसपी अंजलि ने कठोर शब्दों में अपने अधिकारी डीएसपी को कहा, “इन्हें तुरंत के तुरंत सस्पेंड करो और इनके हाथों में हथकड़ियां लगाओ।” यह सुनकर डीएसपी अधिकारी ने इशारा किया और दो सिपाही आगे बढ़कर इंस्पेक्टर राज शर्मा को हथकड़ी पहनाने लगे। थाना परिसर में मौजूद बाकी पुलिसकर्मी सर झुका कर खड़े थे।
जैसे ही शर्मा को ले जाया गया, तभी थाने के मेन गेट से अचानक सब-इंस्पेक्टर अजय अंदर आया। उसके चेहरे पर घबराहट थी, लेकिन वह कुछ समझे बिना ही अंदर चला आया। जैसे ही उसने अंजलि को सामने खड़ा देखा, उसके होश उड़ गए। उसके चेहरे पर वही सीन घूम गया जब सड़क पर उसने टैक्सी वाले का चालान काटते वक्त अंजलि को आम लड़की समझकर थप्पड़ जड़ दिया था। उस दिन उसे लगा था कि बस एक मामूली वाक्या है। लेकिन आज वह समझ गया कि उसके सामने वही लड़की और उसके पीछे एसीपी, डीएसपी, बड़े-बड़े अधिकारी क्यों खड़े हैं। उसके मन में चलने लगा कि मैंने जिसे थप्पड़ मारा था, उसने डीएसपी ऑफिस में कंप्लेंट की होगी, इसलिए अधिकारी यहां जांच-पड़ताल करने के लिए आए हुए हैं।
तभी सब-इंस्पेक्टर अजय बुदबुदाते हुए, कांपती आवाज में उन बड़े अधिकारियों से बोला, “सर, यह लड़की एक नंबर की लफंगी है। जब मैं एक टैक्सी वाले का चालान काट रहा था, तो यह मुझसे भिड़ गई और मुझे थप्पड़ मारने लगी। तो मैंने इसे कुछ भला-बुरा कहा, तो इसने डीएसपी ऑफिस में जाकर कंप्लेंट कर दी, जिससे आप लोगों ने यहां आकर राज शर्मा को गिरफ्तार कर लिया। बल्कि आप लोगों को इस लड़की को गिरफ्तार करना चाहिए था।”
यह बात सुनकर पूरा थाना सन्नाटे में डूब गया। मानो कुछ बड़ा होने वाला है। तभी डीएसपी ने गुस्से में एक थप्पड़ अजय के गाल पर लगा दिया और कड़क आवाज में बोले, “सब-इंस्पेक्टर अजय, तुम हद में रहो! तुम जिनके बारे में बोल रहे हो, तुम नहीं जानते कि यह महिला कौन है?”
यह बात सुनते ही सब-इंस्पेक्टर अजय को मानो दिल का दौरा पड़ गया हो। उसने कांपते और एकदम डरते हुए आवाज में कहा, “सर, आप क्या बोल रहे हैं? आखिर यह मैडम है कौन?”
इससे पहले डीएसपी अधिकारी कुछ बोलना चाहते, तभी एसपी अंजलि ने उसकी तरफ सीधी नजरें डाल दीं। उनकी आंखों में वह आग थी जो उस दिन सड़क पर थप्पड़ खाते वक्त दबी हुई थी। एसपी अंजलि तेज और गंभीर स्वर में बोलीं, “याद है वही थप्पड़? आज तुम्हें अपनी पूरी जिंदगी पर भारी पड़ने वाला है, सब-इंस्पेक्टर अजय। उस दिन तुमने सोचा होगा कि एक आम लड़की को नीचा दिखाकर तुम जीत गए। लेकिन असलियत यह है कि उस थप्पड़ ने मेरी आत्मा को नहीं, बल्कि तुम्हारे पूरे सिस्टम की गंदगी को उजागर कर दिया। तुमने सिर्फ मुझे नहीं मारा था, बल्कि उस जनता की आवाज को मारा था जो तुमसे न्याय की उम्मीद करती है।”
थाने के भीतर ऐसा सन्नाटा पसर गया मानो किसी ने सबकी आवाज छीन ली हो। अजय का चेहरा पल भर में फीका पड़ गया था। होंठ कांप रहे थे पर आवाज जैसे गले में ही अटक गई। तभी अंजलि ने गंभीर स्वर में कहा, “आज मैं सिर्फ एसपी बनकर नहीं आई हूं, बल्कि उन तमाम लोगों की तरफ से खड़ी हूं जिन्हें तुम्हारे जैसे अफसर हर जगह बेइज्जत करते हैं। चाहे सड़क पर हो, थाने में या दफ्तर में। तुझे लगा था कि वर्दी पहन ली तो खुद को भगवान समझ सकता है? लेकिन आज तुझे पता चलेगा कि कानून सबके लिए बराबर है, पुलिस वालों के लिए भी।”
बस इतना कहकर अंजलि ने टेबल पर एक तगड़ा थप्पड़ मारा। डर के मारे सब चौंक गए और वह चिल्लाई, “कांस्टेबल! सब-इंस्पेक्टर अजय को गिरफ्तार करो! वर्दी उतारो और सस्पेंशन की रिपोर्ट अभी बनाओ!”
डीएसपी ने बिना एक सेकंड गंवाए इशारा किया। दो सिपाही आगे बढ़े। अजय के हाथ में हथकड़ी डाल दी गई। बेचारा बुरी तरह कांप रहा था। गिड़गिड़ाते हुए बोला, “मैडम, प्लीज माफ कर दीजिए। गलती हो गई। मैं पहचान नहीं पाया था।”
लेकिन अंजलि ने उसकी बात बीच में काट दी। “कानून किसी की पहचान नहीं पूछता, सब-इंस्पेक्टर। कानून सबके लिए बराबर है। तेरी माफी से जनता का दर्द कम नहीं होगा। अब अदालत तय करेगी।”
पूरा थाना सुन रहा था। पहली बार सबके दिमाग में यह बात घर कर गई कि अब इस जिले में जो भी जनता पर जुल्म करेगा, उसकी जगह सिर्फ सलाखों के पीछे है। राज शर्मा और अजय को हथकड़ी पहनाकर बाहर लाया गया तो बाहर खड़ी भीड़ में हलचल मच गई। लोग एक दूसरे से फुसफुसा रहे थे, यकीन ही नहीं हो रहा था कि जिले के दो बड़े अफसर आज कानून में फंसे बैठे हैं।
डीएसपी ने मीडिया को साफ-साफ बोल दिया, “अब से इस जिले में दादागिरी नहीं, कानून चलेगा। चाहे पुलिस वाला हो, नेता हो या आम आदमी, गलती करेगा तो सजा मिलेगी।” भीड़ ने ताली बजाई। कुछ लोग मोबाइल से वीडियो बना रहे थे जैसे कोई ऐतिहासिक पल हो। सिपाही दोनों को जीप में बैठाकर सीधा जेल ले गए।
जेल के गेट पर गाड़ी रुकी तो खुद जेलर बाहर आ गया। अंजलि और डीएसपी अफसर ने आदेश दिया, “इनको कैदी बना दो। आज से यह अफसर नहीं, अपराधी हैं।” फिर दोनों की वर्दी उतरवा दी गई और सफेद कैदी वाली ड्रेस पहना दी गई। चेहरों पर शर्म, गुस्सा, पछतावा सब एक साथ दिख रहा था। जब उन्हें लोहे की सलाखों के पीछे धकेला गया तो राज शर्मा रोने लगे। अजय बुदबुदाया, “अगर उस दिन थप्पड़ न मारा होता तो शायद आज यह दिन नहीं देखना पड़ता।”
एसपी अंजलि वर्मा ने अपने एक ही दिन के अनुभव से पूरे जिले में एक नई मिसाल कायम कर दी थी। उन्होंने दिखाया कि न्याय सिर्फ किताबों में नहीं, बल्कि जमीनी हकीकत में भी मौजूद है, और कोई कितना भी बड़ा क्यों न हो, कानून से ऊपर नहीं हो सकता।
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