इस्पेक्टर नें आम लड़की समझ कर DM मैडम को थप्पड़ मारा आगे जों हुआ…
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सुबह की हल्की धूप बाजार की गलियों में फैल रही थी। सड़क के किनारे एक छोटी सी टोकरी लिए शारदा देवी बैठी थीं, जो दिवाली के लिए अपने हाथों से बनाए हुए मिट्टी के दिए सजा रही थीं। उनके दिये न केवल साधारण थे, बल्कि उनमें एक खास तरह की कला और मेहनत झलकती थी। कुछ दिये सादे और सरल थे, तो कुछ पर रंग-बिरंगी छोटी-छोटी कलाकारी की गई थी, जो देखने वाले का मन मोह लेने वाली थी। शारदा देवी की उम्र अब काफी हो चुकी थी, लेकिन उनकी आंखों में जीवन की चमक अभी भी बरकरार थी। वह अपने पोते की बीमारी के बावजूद भी हिम्मत नहीं हारती थीं और अपनी छोटी सी टोकरी के जरिए परिवार के लिए गुजारा करती थीं।
बाजार की भीड़ में अचानक एक साधारण सी कार रुकी। कार से उतरी लड़की पीले रंग के सूट में थी, जो आसपास के लोगों से बिल्कुल अलग लग रही थी। वह कोई और नहीं बल्कि जिले की डीएम, काव्या कुमारी थीं। दिवाली की खरीदारी के लिए वह बाजार आई थीं। उनकी नजरें सड़क किनारे बैठी शारदा देवी के रंग-बिरंगे दियों पर पड़ीं। काव्या ने बिना किसी झिझक के उनके पास जाकर जमीन पर बैठते हुए मुस्कुराते हुए पूछा, “अम्मा, ये दिए कैसे बेच रही हैं?” शारदा देवी ने एक पल के लिए काव्या की ओर देखा, उनकी आवाज में अपनापन था, और चेहरे पर हल्की सी मुस्कान आई। उन्होंने कहा, “ले ले बेटी, जो पसंद आए उठा ले। सादे वाले ₹50 के 20 हैं, और रंगीन वाले ₹100 के 20।”
काव्या ने दिये उठाए और कहा, “अम्मा, आप बहुत सुंदर दिए बनाती हैं। ये सारे रंगीन वाले मुझे दे दीजिए।” शारदा देवी का चेहरा खिल उठा। यह दिन की पहली बिक्री होने वाली थी, और वह खुश थीं कि उनकी मेहनत रंग लाई। वह जल्दी-जल्दी दिये एक कागज के थैले में डालने लगीं।
तभी अचानक एक तेज आवाज के साथ एक पुलिस की मोटरसाइकिल उनके सामने आकर रुकी। मोटरसाइकिल से उतरते ही इंस्पेक्टर धनपाल यादव नजर आए। उनका शरीर भारीभरकम था, चेहरे पर घमंड साफ झलक रहा था, और होठों पर पान की पीक के निशान थे। उन्होंने गुस्से में कहा, “ए बुढ़िया, आज क्या-क्या बेच रही है?” उनकी नजर टोकरी में रखे सबसे बड़े और रंगीन दियों पर पड़ी, जो शारदा देवी के लिए सबसे खास थे। शारदा देवी का चेहरा मुरझा गया, उनकी आवाज कांप रही थी। “जी साहब, दिए हैं,” उन्होंने धीरे से कहा।
धनपाल ने अकड़ते हुए जवाब दिया, “हां, वह तो मुझे भी दिख रहा है। ये जो बड़े वाले हैं, सारे पैक कर थाने में दिवाली मनानी है और बड़े साहब लोगों के घरों पर भी भेजने हैं। जल्दी कर, मेरे पास टाइम नहीं है।” शारदा देवी के हाथ रुक गए। ये सबसे खास दिये थे, जिन्हें बनाने में उन्हें दो दिन लगे थे। उन्हें उम्मीद थी कि इन्हें अच्छी कीमत मिलेगी। उन्होंने हिम्मत जुटाकर कहा, “साहब, ये ₹500 के हैं।”
धनपाल जोर से हंसा और बोला, “पैसे? जैसे कोई मजाक हो। पैसे तो तुझे मैं दूंगा। शुक्र मना कि तेरा सामान उठवा रहा हूं, वरना ये टोकरी यहीं से उठवा दूंगा। भूल गई क्या पिछली बार का हाल?” शारदा देवी की आंखें भर आईं। पिछली बार भी धनपाल ने उनकी सब्जियों की टोकरी पलट दी थी, क्योंकि उन्होंने पैसे मांगे थे। पूरा दिन का नुकसान हो गया था। पास में खड़ी काव्या यह सब देख रही थीं, उनका खून खौल रहा था। एक पुलिस वाला गरीब औरत को इस तरह धमका रहा था, यह देखना उसके लिए असहनीय था।

शारदा देवी ने कांपते हाथों से सारे बड़े दिये थैले में भरे और इंस्पेक्टर की तरफ बढ़ा दिए। धनपाल ने थैला छीना और मोटरसाइकिल पर बैठने लगा। तभी शारदा देवी ने रोती हुई आवाज में कहा, “साहब, घर में पोता बीमार है, दवा के पैसे नहीं हैं। आज की बोहनी भी नहीं हुई है, कुछ तो दे दीजिए। भगवान आपका भला करेगा।” यह सुनना था कि इंस्पेक्टर धनपाल आग बबूला हो गया। वह मोटरसाइकिल से उतरा, गुस्से में शारदा देवी की तरफ बढ़ा और बोला, “बहुत जबान चलाने लगी है, पैसे चाहिए तुझे? रुक, मैं देता हूं।” उसने जोर से लात मारी और सारे मिट्टी के दिये सड़क पर बिखर गए। शारदा देवी की दिनभर की मेहनत, उनकी उम्मीदें सब एक पल में चूर-चूर हो गईं। टूटे हुए दिये ऐसे बिखरे थे जैसे उनका दिल टूट गया हो।
इंस्पेक्टर ने गरजते हुए कहा, “यह है तेरे पैसे। अब अगर कल यहां बैठी दिखी, तो सीधा हवालात में डाल दूंगा, समझी?” फिर वह मोटरसाइकिल स्टार्ट करके चला गया। पूरा बाजार एक पल के लिए सन्न रह गया। सबने देखा, लेकिन कोई कुछ कहने की हिम्मत नहीं जुटा पाया। सभी जानते थे कि इंस्पेक्टर धनपाल से उलझना मतलब अपनी शामद बुलाना है।
शारदा देवी बिखरे हुए दियों को देखकर बिलख-बिलख कर रोने लगीं। “मेरा सब बर्बाद हो गया है। भगवान, मेरी पूरी दुनिया उजड़ गई। मेरी छोटी सी टोकरी, जिसमें मैंने अपने पोते के ठीक होने और घर की खुशियों के लिए दिवाली के दिये बेच रही थी, अब सब छीन लिया गया। ऐसा लगता है जैसे हमारी दिवाली ही चली गई।”
काव्या का दिल दर्द से भर गया। वह तुरंत शारदा देवी के पास गई और उनके कंधों पर हाथ रखकर उन्हें उठाया। “शांत हो जाइए, अम्मा। हिम्मत रखिए,” उसने कहा। उसने आसपास के लोगों की तरफ देखा। सबकी नजरों में गुस्सा था, लेकिन साथ ही बेबसी और डर भी था। काव्या ने थोड़ी ऊंची आवाज में पूछा, “आप लोगों ने यह सब देखा?” एक दुकानदार धीरे से बोला, “बेटी, हम रोज देखते हैं। यह इंस्पेक्टर हर छोटे दुकानदार से सामान लेता है और बिना पैसे दिए ऐसे ही चला जाता है। जो नहीं देता, उसके साथ यही होता है। कोई कुछ नहीं कर सकता क्योंकि वह पुलिस वाला है।”
काव्या ने शारदा देवी को पानी पिलाया, फिर अपने पर्स से ₹10,000 निकालकर उनकी हथेली पर रख दिया। “अम्मा, यह रखिए। यह आपके नुकसान की भरपाई तो नहीं कर सकता, लेकिन शायद थोड़ी मदद हो जाए।” शारदा देवी ने पैसे लेने से मना किया, “नहीं बेटी, मैं भीख नहीं ले सकती। तूने मेरे लिए इतना सोचा, यही बहुत है।” काव्या ने जबरदस्ती पैसे उनके हाथ में थमाए। “यह भीख नहीं है, अम्मा। यह आपकी मेहनत का सम्मान है। और मैं आपसे वादा करती हूं, जिसने आपके ये दिये तोड़े हैं, उसका घमंड भी ऐसे ही टूटेगा। उसे सजा जरूर मिलेगी।”
शारदा देवी ने नम आंखों से काव्या को देखा। “तुम नहीं जानती, बेटी, वह बहुत खतरनाक आदमी है। उसके पीछे बड़े-बड़ों का हाथ है। तुम इस चक्कर में मत पड़ो, वह तुम्हारा भी नुकसान कर देगा।” काव्या मुस्कुराई, “आप मेरी चिंता मत कीजिए, अम्मा। बस आप मुझे अपना पता बता दीजिए।” थोड़ी हिचकिचाहट के बाद शारदा देवी ने अपनी झोपड़ी से बने घर का पता बताया। काव्या ने वादा किया कि वह कल उनसे मिलने आएगी।
लेकिन काव्या का दिमाग अब शांत नहीं था। उसके अंदर एक तूफान चल रहा था। एक जालिम इंस्पेक्टर, डरे हुए लोग, और बिखरे हुए दिये उसकी आंखों के सामने घूम रहे थे। अगले दिन सुबह काव्या अपने ऑफिस पहुंची। लेकिन आज वह अपनी डीएम वाली कुर्सी पर नहीं बल्कि एक मिशन पर थी। उसने सबसे पहले शहर की एएसपी आलिया राठौर को फोन किया। आलिया तेजतर्रार और ईमानदार आईपीएस ऑफिसर थीं, और काव्या की अच्छी दोस्त भी।
“आलिया, मैं काव्या बोल रही हूं। एक बहुत जरूरी काम है। क्या तुम 10 मिनट में मेरे ऑफिस आ सकती हो?” काव्या की आवाज में गंभीरता थी। 10 मिनट बाद आलिया काव्या केबिन में थी। “सब ठीक तो है? तुम बहुत टेंशन में लग रही हो।” काव्या ने कल बाजार में हुई पूरी घटना बताई। कैसे इंस्पेक्टर धनपाल यादव ने शारदा देवी के साथ बदतमीजी की, उनके सारे दिये तोड़े। आलिया की आंखों में गुस्सा उतर आया। “धनपाल की शिकायतें पहले भी आई हैं, लेकिन कभी कोई पुख्ता सबूत नहीं मिला। वह बहुत शातिर है। उसके ऊपर एक लोकल नेता, MLA बहादुर रेड्डी का हाथ है। इसलिए सीधे कार्रवाई करना मुश्किल है।”
काव्या ने कहा, “इसलिए मैं उसे पकड़ना चाहती हूं। मेरे पास एक प्लान है, लेकिन इसमें तुम्हारी मदद चाहिए।” काव्या ने अपना प्लान आलिया को समझाया। आलिया की आंखों में चमक आ गई। “जबरदस्त प्लान है। यह काम आज ही होगा। मैं अपनी भरोसेमंद टीम को लगाती हूं। चिंता मत करो, आज धनपाल का कानून से सामना होगा।”
शाम ढल रही थी। बाजार फिर से सज चुका था। शारदा देवी डर के मारे बाजार नहीं आई थीं, लेकिन काव्या के वादे पर उन्हें थोड़ा भरोसा था। बाजार में कल वाली जगह पर आज एक ठेला लगा था, जिसमें रंग-बिरंगे पटाखे सजे थे। ठेले के पीछे एक 45 साल की औरत खड़ी थी, और उसके साथ एक लड़का ग्राहकों को सामान दिखा रहा था। ये कोई और नहीं बल्कि एसपी आलिया की टीम के दो पुलिसकर्मी मंजू और अभिषेक थे, जो भेष बदलकर वहां मौजूद थे।
बाजार में कई पुलिसकर्मी ग्राहक, सब्जी वाले, चाय वाले बनकर फैले हुए थे। हर किसी के पास छिपा हुआ माइक्रो कैमरा और ईयरपीस था। काव्या और आलिया पास ही एक गाड़ी में बैठे थे, जिसमें बाजार का हर कोना साफ दिख रहा था। उनके सामने लैपटॉप था, जिस पर सभी कैमरों की लाइव फीड आ रही थी।
“मैडम, सब अपनी पोजीशन पर हैं,” एक पुलिसकर्मी की आवाज आलिया के ईयरपीस में गूंजी। “गुड, बस इंतजार करो।” आलिया ने जवाब दिया। घड़ी की सुई आगे बढ़ रही थी। सबका दिल जोर-जोर से धड़क रहा था। क्या धनपाल आएगा? क्या प्लान काम करेगा?
दूर से मोटरसाइकिल की आवाज आई। काव्या धीरे से बोली, “वह आ रहा है।” इंस्पेक्टर धनपाल यादव अपनी अकड़ के साथ आया। उसकी नजरें शारदा देवी को ढूंढ रही थीं। जब वह नहीं दिखी तो उसके चेहरे पर कुटिल मुस्कान आई। “लगता है बुढ़िया डर गई। अच्छा है।” उसकी नजर पटाखे वाले ठेले पर पड़ी। वह ठेले के पास गया और पूछा, “कौन हो तुम लोग? और वह बुढ़िया कहां है जो यहां बैठती थी?”
भेष बदले हुए पुलिसकर्मी महिला ने कहा, “साहब, हम नहीं जानते किसी बुढ़िया को। यहां जगह खाली थी तो ठेला लगा लिया। बताएं, साहब, क्या सेवा करें?” धनपाल की नजर ठेले पर रखे महंगे पटाखों पर पड़ी। उसने हुक्म दिया, “यह वाला सेट पैक कर मेरे बच्चों के लिए घर ले जाना है।”
अभिषेक ने कहा, “जी साहब, ₹500 का है।” धनपाल ने घूर कर देखा, “पैसे मुझसे मांगेगा, जानता नहीं? मैं कौन हूं तुम लोग? इस बाजार में धंधा करना है या नहीं?” अभिषेक ने जानबूझकर उसे उकसाना शुरू किया, “साहब, हम तो गरीब लोग हैं। पेट पालना होता है। आप तो बड़े अफसर हैं। आप ही रहम नहीं करेंगे तो कौन करेगा?”
धनपाल का पारा चढ़ गया। उसने अभिषेक का कॉलर पकड़ लिया, “चल, निकाल आज दिन भर की कमाई। तुझे मैं बताऊंगा पुलिस से जुबान लड़ाने का नतीजा।” गाड़ी में बैठी काव्या ने आलिया की तरफ देखा। आलिया ने अपने ईयरपीस पर कमांड दिया, “मूव इन।”
इंस्पेक्टर धनपाल कुछ समझ पाता उससे पहले चारों तरफ से ग्राहक, सब्जी वाले, चाय वाले बने पुलिसकर्मी उसे घेरने लगे। पटाखे बेच रही महिला और अभिषेक असली पहचान में आ गए। उन्होंने धनपाल का हाथ पकड़कर उसे झटक दिया। धनपाल हक्का-बक्का रह गया। “यह सब क्या हो रहा है? तुम लोग कौन हो?” वह चिल्लाया।
तभी गाड़ी का दरवाजा खुला और एसपी आलिया राठौर अपनी वर्दी में बाहर निकलीं। उनके पीछे डीएम काव्या कुमारी भी उतरीं। उन्हें देखते ही धनपाल के पैर तले जमीन खिसक गई। उसका चेहरा सफेद पड़ गया। वह समझ गया कि वह बुरी तरह फंस चुका है।
डीएम ने शांत लेकिन सख्त आवाज में कहा, “हां, इंस्पेक्टर धनपाल यादव, हम यहीं हैं। तुम्हारा खेल देखने, तुम्हारा वह रूप देखने जो तुम इन गरीब और बेबस लोगों को दिखाते हो। तुम्हारी हर धमकी, हर वसूली कैमरे में रिकॉर्ड हो चुकी है।” आलिया ने कहा, “तुम्हें तुम्हारे पद का दुरुपयोग करने और जनता को परेशान करने के जुर्म में गिरफ्तार किया जाता है।”
दो हवलदार आगे बढ़े और धनपाल के हाथों में हथकड़ी पहना दी। कल तक जो आदमी पूरे बाजार में दहशत का दूसरा नाम था, आज वह एक अपराधी की तरह सिर झुकाए खड़ा था। बाजार के लोग जो कल तक डर के मारे चुप थे, आज धीरे-धीरे बाहर निकल रहे थे। उनकी आंखों में डर की जगह उम्मीद की चमक थी।
धनपाल को लगा जैसे उसका सब कुछ छीन गया। उसकी इज्जत, वर्दी, रब। लेकिन वह इतनी आसानी से हार मानने वाला नहीं था। उसके दिमाग में कौंधा उसका आखिरी सहारा — MLA बहादुर रेड्डी सिंह। जैसे ही पुलिस उसे जीप की तरफ ले जाने लगी, उसने जोर से चिल्लाया, “रुक जाओ! तुम लोग बहुत बड़ी गलती कर रहे हो। तुम्हें पता नहीं मेरे पीछे किसका हाथ है। मैं अभी MLA साहब को फोन करता हूं। एक मिनट में तुम्हारी वर्दी उतार दूंगा।”
उसने फोन निकालने की कोशिश की, लेकिन आलिया ने इशारा किया और एक हवलदार ने उसका फोन छीन लिया। धनपाल की धमकी ने माहौल में तनाव घोल दिया था। सब जानते थे कि MLA बहादुर रेड्डी कितना दबंग और पहुंच वाला नेता है। वह अपने आदमी को बचाने के लिए कुछ भी कर सकता है।
तभी काव्या के फोन की घंटी बजी। स्क्रीन पर MLA बहादुर रेड्डी सिंह का नाम चमक रहा था। काव्या और आलिया दोनों एक पल के लिए चौंक गईं। पूरे बाजार में खामोशी छा गई। MLA की आवाज आई, “डीएम साहिबा, मैं विधायक बहादुर रेड्डी बोल रहा हूं। सुना है तुमने मेरे आदमी इंस्पेक्टर धनपाल यादव को पकड़वा लिया है। यह क्या मजाक है? अभी उसे छोड़ दो। वरना तुम्हारा तबादला जिले तक सीमित नहीं रहेगा। मैं तुम्हें तहखाने तक पहुंचा सकता हूं, जहां तुम अपने घर वालों के साथ रहोगी। मेरी शक्ति का अंदाजा तुम्हें है ही नहीं। यह दिवाली का तोहफा है मेरी तरफ से।”
धनपाल की शैतानी मुस्कान गहरी हो गई। बाजार के लोग डर से सहम गए क्योंकि वे जानते थे कि बहादुर रेड्डी की पहुंच कहां तक है। काव्या ने आंखें बंद कीं और अपनी सारी घबराहट को एक पल में इकट्ठा किया। फिर बोली, “MLA बहादुर रेड्डी जी, पहले तो मैं आपको बताना चाहूंगी कि मैं काव्या कुमारी हूं और किसी के तबादले या धमकी से डरने वाली नहीं हूं। दूसरा इंस्पेक्टर धनपाल यादव अब आपका आदमी नहीं बल्कि कानून की हिरासत में एक अपराधी है। उसने एक गरीब, बेबस बूढ़ी औरत के दिये तोड़े हैं, उसकी मेहनत को रौंदा है, और जनता से अवैध वसूली की है। मेरे पास आपके भी सारे सबूत हैं।”
MLA बहादुर रेड्डी का गुस्सा फट पड़ा, “सबूत कौन से? मैं जानता हूं, यह तुम्हारी और एसपी की कोई चाल है। तुम दोनों को देख लूंगा। तुम्हारी नौकरी खा जाऊंगा। मैं अभी मुख्यमंत्री को फोन कर रहा हूं।” काव्या ने एक पल भी नहीं गंवाया, “आप उनसे फोन जरूर कीजिए, लेकिन मेरी एक बात सुन लीजिए। आपको याद है कुछ महीने पहले आपके खिलाफ जमीन घोटाले की फाइल दबी हुई थी। वह फाइल अभी भी मेरे दफ्तर के लॉकर नंबर तीन में सुरक्षित है, और उसकी एक कॉपी एसपी आलिया राठौर के पास भी है। अगर इंस्पेक्टर धनपाल यादव को 24 घंटे के अंदर सस्पेंड नहीं किया गया और उस पर आईपीसी की उचित धाराएं नहीं लगाई गईं, तो वह फाइल कल सुबह मीडिया और विजिलेंस विभाग के पास होगी, और तब आपकी राजनीति ही नहीं, आपकी आजादी भी खतरे में होगी।”

काव्या ने फोन काट दिया और आलिया की तरफ देखा। इंस्पेक्टर धनपाल का मुंह खुला का खुला रह गया। उसकी शैतानी मुस्कान गायब हो चुकी थी। वह समझ गया कि उसका आखिरी सहारा भी टूट गया।
आलिया ने गर्व से काव्या के हाथ को थपथपाया, “वेल डन, काव्या। अब इसे यहां से ले चलो।” पुलिस ने इंस्पेक्टर धनपाल यादव को जीप में बिठाकर थाने ले गई। बाजार के लोग काव्या और आलिया को देखकर तालियां बजाने लगे। डर का माहौल अब आजादी और जीत की खुशी में बदल चुका था।
दिवाली के एक दिन पहले शाम को डीएम काव्या कुमारी और एसपी आलिया राठौर सादे कपड़ों में शारदा देवी के छोटे से झोपड़ी के पास पहुंचीं। शारदा देवी ने उन्हें अंदर आने के लिए कहा। अंदर उनका 20 साल का पोता, जो अब थोड़ा स्वस्थ लग रहा था, अपनी टूटी खाट पर लेटा था। काव्या ने मुस्कुराते हुए कहा, “अम्मा, हम आपके लिए कुछ लाए हैं। यह देखिए।” उन्होंने हाथ में एक बड़ा पैकेज बढ़ाया। उसमें नया सुंदर साड़ी, पोते के लिए कपड़े और दवाइयां थीं।
शारदा देवी ने पैकेज लिया और उनकी आंखें भर आईं। “तुमने मेरी सुनी, बेटी। भगवान तुम्हारा भला करे।” आलिया ने हंसते हुए कहा, “अम्मा, हमने देखा कि आपने दिए बेचने की जगह छोड़ दी है। अब आपको कोई परेशान नहीं करेगा। हमने उस इंस्पेक्टर को सस्पेंड कर थाने में बंद कर दिया है। अब आपको चिंता करने की कोई बात नहीं।”
शारदा देवी की आंखों में खुशी और सम्मान के आंसू थे। फिर काव्या और आलिया ने झोपड़ी के आंगन में रंगोली बनाई। रंगोली में नीले, गुलाबी, पीले और हरे रंग के फूलों और रंग-बिरंगे गुलाल से सुंदर डिजाइन बना। शारदा देवी ने भी दियों की रोशनी सजाई और झोपड़ी के अंदर हल्की-हल्की खुशबू और रोशनी फैल गई।
शारदा देवी ने सिसकते हुए कहा, “आपने सिर्फ मेरे दिये ही नहीं संवारे, आपने मेरी मेहनत का सम्मान बढ़ाया। अब मुझे सचमुच न्याय और खुशियों की दिवाली महसूस हो रही है।” काव्या और आलिया ने उन्हें गले लगाया। बाहर झोपड़ी के द्वार पर दियों की रोशनी और रंगोली ने माहौल को रोशन कर दिया था।
खुशी-खुशी पैकेज लेकर रंगोली और दियों की तारीफ करते हुए दोनों वापस अपने घर की ओर चल पड़े। अगले दिन अपने-अपने परिवार के साथ बैठकर उन्होंने खुशी-खुशी दिवाली मनाई।
यह कहानी हमें सिखाती है कि चाहे कितनी भी बड़ी ताकत हो, अगर हम न्याय और सच्चाई के लिए खड़े हों, तो अन्याय कभी जीत नहीं सकता। हिम्मत, ईमानदारी और एकजुटता से हर मुश्किल को पार किया जा सकता है। सही समय पर सही कदम उठाने से समाज में बदलाव संभव है, और हर गरीब, हर मजबूर को न्याय मिल सकता है।
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