ईंट के भट्टे पर लड़की मज़दूरी करती थी | खूबसूरती देख सेठ का लड़का हुआ फिदा
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मेरठ के एक छोटे से कस्बे में सेठ धनराज सिंह का राज था। उनके पास पांच ईंट के भट्टे थे और करीब 500 मजदूर वहां काम करते थे। इन मजदूरों में एक लड़की थी, रचना, जो अपनी 12वीं की पढ़ाई पूरी करके यहां काम करने आई थी। वह न केवल खूबसूरत थी बल्कि बहुत होशियार और मेहनती भी। गांव के बाकी मजदूरों से अलग, रचना की लगन और मेहनत सभी को भाती थी।
सेठ धनराज सिंह की संपत्ति और प्रतिष्ठा पूरे क्षेत्र में मशहूर थी। उनके पास 400 बीघा खेती भी थी। उनके दो बच्चे थे—एक बेटी जो मेडिकल की पढ़ाई कर रही थी और बेटा यशवीर सिंह, जो इंजीनियरिंग कर रहा था। यशवीर ने जॉब छोड़कर पिता का व्यापार संभालने का फैसला किया था। एक दिन जब वह भट्टे पर आया, तो उसकी नजर रचना पर पड़ी, जो मिट्टी में पानी डालकर ईंट बनाने का काम कर रही थी। उसकी मेहनत और चमकती हुई त्वचा ने यशवीर का ध्यान खींचा।
रचना ने भी यशवीर को देखा और अपने दुपट्टे से सिर ढक लिया। यशवीर ने रोजाना भट्टे पर आना शुरू किया, और दोनों के बीच बातचीत बढ़ने लगी। रचना के माता-पिता भी यशवीर से मिले और उनके प्रति सम्मान दिखाया। उन्होंने बताया कि रचना बचपन से पढ़ी-लिखी है, लेकिन परिवार की मजबूरी के कारण काम पर आ रही है। यशवीर ने उसकी पढ़ाई के विषयों के बारे में पूछताछ की, और जब उसने मैथ में अपनी महारत दिखाई, तो वह बहुत प्रभावित हुआ।
धीरे-धीरे दोनों के बीच प्यार पनपने लगा। यशवीर ने अपनी बहन से मिलने के लिए भट्टे से दूर जाना पड़ा, लेकिन जब वह लौटा तो रचना उदास थी। उसने बताया कि उसे दूसरे भट्ठे पर भेज दिया गया था, इसलिए वह दस दिन तक नहीं आई। यशवीर ने कहा कि वह शादीशुदा नहीं है, लेकिन रचना के मन में एक गहरी चोट लगी। वह रो पड़ी, पर यशवीर ने उसे समझाया कि वह मजाक कर रहा था।
उनका प्यार गहरा होता गया, लेकिन रचना की मां ने उसे चेतावनी दी कि सेठ धनराज सिंह के परिवार से जुड़ना आसान नहीं होगा। उन्होंने कहा कि वे अमीर और ताकतवर हैं, और अगर कुछ गलत हुआ तो वे सबको नुकसान पहुंचा सकते हैं। रचना को अपनी सीमाओं का एहसास हुआ, लेकिन यशवीर का प्यार और बढ़ गया। वह बाजार जाकर उसके लिए उपहार लाने लगा।

रचना उदास थी क्योंकि वह जानती थी कि उनकी दुनिया अलग है। यशवीर ने उससे माफी मांगी और अपने प्यार का इज़हार किया, लेकिन रचना ने कहा कि वह उससे बात नहीं करना चाहती। उसकी मां ने भी यशवीर को खरी-खोटी सुनाई और कहा कि वे गरीब हैं, और बड़े मालिक की नजरों में कुछ नहीं। वे डरते हैं कि सेठ धनराज को कुछ पता चल जाए तो वे सब बर्बाद हो जाएंगे।
यशवीर ने अपने पिता से शादी की बात की। सेठ धनराज ने कहा कि अमीरी-गरीबी से फर्क नहीं पड़ता, बस लड़की अच्छी होनी चाहिए। जब यशवीर ने बताया कि वह लड़की भट्टे पर काम करती है, तो सेठ धनराज चौंक गए। उन्होंने मुंशी को बुलाकर रचना के परिवार को अपने घर बुलाया। वहां भारी तनाव था। रचना की मां ने सेठ जी के पैरों में गिरकर माफी मांगी।
सेठ धनराज ने रचना और यशवीर से पूछा कि वे एक-दूसरे से प्यार करते हैं या नहीं। दोनों ने अपनी गलती स्वीकार की और कहा कि वे एक-दूसरे के लिए निर्दोष हैं। सेठ धनराज ने हंसते हुए कहा कि रचना सुंदर, मेहनती और पढ़ी-लिखी है। उन्हें इस रिश्ते में कोई भेदभाव नहीं है।
रचना और यशवीर की शादी धूमधाम से हुई। रचना ने अपनी पढ़ाई फिर से शुरू की। सेठ धनराज और यशवीर का यह रिश्ता पूरे इलाके में मिसाल बन गया। लोग कहते थे कि प्यार और समझदारी से हर बाधा पार की जा सकती है।
यह कहानी हमें सिखाती है कि समाज की पुरानी सोच और भेदभाव को तोड़कर ही सही मायनों में प्रगति की जा सकती है। जहां प्यार और सम्मान हो, वहां हर रिश्ता मजबूत होता है। रचना और यशवीर की कहानी एक प्रेरणा है उन सभी के लिए जो अपने सपनों और प्यार के लिए लड़ते हैं।
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