उसे गरीब समझकर उसे मॉल से भगा दिया गया, और उसने एक ही बार में पूरा मॉल खरीद लिया।

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सांचीसी ड्रेस – “औकात से बाहर”

रिया की पुरानी अलमारी के सामने खड़ी रिया ने दुपट्टा कंधे पर टिकाया और आईने में खुद को देखा। उसके बोलने में एक सपना, एक चाहत थी:
“भैया, कॉलेज का ओरिएंटेशन अगले हफ्ते है। एक ढंग का ड्रेस चाहिए बस।”

भाई रोहित, जो पंखे की हल्की खनक में थक गया था और पुराने नोटों की गिनती कर रहा था, ने मुस्कुराते हुए कहा, “चल, आज मॉल चलते हैं।”
सिटी स्क्वायर मॉल के कांच की दीवारों पर धूप चिपकी थी। मॉल के अंदर ठंडी हवा, परफ्यूम और चमक का मिश्रण था — एक ऐसा दुनिया जो रिया के सपनों को नई रोशनी दे गया।

लेकिन मॉल ने रोहित पर पहला वार अक्षरशः किया — एक सेल्समैन ने ऊंची आवाज़ में कहा, “तुम्हारी औकात वहाँ कपड़े खरीदने की नहीं है।”
उस शब्द “औकात” ने पूरे मॉल के कांचों में इतनों गुंजायमान कर दिया कि रोहित की कनपटी गर्म हो उठी। रिया की आंखों पर सपने सवार थे, पर वो गुस्से में दब गए।

जब “औकात” ने एक सीमा पार कर दी, तब रोहित ने फैसला किया — “आज जो सुना, यह आखिरी बार था… एक दिन इसी मॉल में तू जो चाहेगी चुनेगी… और जो ताना दिया है ना, उसी मॉल का आदमी हमें देखते ही नजरें झुका लेगा।”
उस रात उसने दिल्ली के होलसेल मार्केट की खोज शुरू कर दी — “एक्ज़पोर्ट सरप्लस”, “ड्रेस दिल्ली क्लियरेंस स्टॉक” — जानकारी उसके लिए पतली सी रौशनी थी।

और अगली सुबह
वह आजाद मार्केट में पहुंच गया — वहां फैब्रिक के पहाड़, टेलर की चाकू, और एक्सपोर्ट सरप्लस की बोली। “कॉलेज गर्ल्स के लिए सिंपल क्लासी ड्रेस, क्वालिटी अच्छी, बजट टाइट।”
20 पीस उसने ले लिए टेस्ट के लिए — थोड़े डिफेक्ट भी हो सकते थे, लेकिन ट्रेंडियों को सस्ती कीमत में मिले शॉर्टकट वहीं थे।

उस शाम
रीया ने पहला ड्रेस कैरीते हुए फोटो क्लिक किया — मेकअप बिल्कुल नहीं, पर कपड़े में चमक थी। इंस्टाग्राम पेज बनाया: “सांची सी ड्रेस” — बायो: क्वालिटी जो दिखाने की जरूरत नहीं, पहनते ही समझ आ जाए।
घंटे बीत गए, बस एक डीएम आया: “भैया यह ब्लू साइज एम है?” अगले दिन डिलीवरी, ट्रायल, और मनी बैक गारंटी — सब कुछ औकात के खिलाफ।
राहत की तसल्ली, सफ़लता की पहली एक छोटी सी चमक।

फिर…
रेकॉर्डिंग बेचते हुए पहला स्टॉल लाइब्रेरी के बाहर लगा — बिकें 5 पीस। फिर बारिश, फिर परमिट की दिक्कतें, फिर रिटर्न्स — ज़िप या सिलाई में खामी।
शरीफ़ बेच, मुनाफ़ा कम — घाटे में बदलता व्यापार — कर्ज़ बढ़ता गया।

लेकिन हार नहीं मानी — 30 दिन की गारंटी की पेशकश की — “अगर खराब निकली तो अगली मुफ्त।”
यह अंततः उसके ब्रांड की सबसे बड़ी ताकत बन गई। सांचीसी ड्रेस कॉलेजों में फैल गया। रिया सहारा बन गई, मॉडल भी और प्रेरणा भी।

फिर एक दिन…
“मेरीडियन फैशन” ने कॉल किया — वही मॉल, वही सेल्समैन, नए संदर्भ में।
पॉप‑अप काउंटर, बैठक, और जब मैनेजर्स बोली, “पार्टनरशिप?” — उसने जवाब दिया, “नहीं, मैं पूरा स्टोर खरीदना चाहता हूँ।”
कागज़ पर साइन हुए। कुछ हफ़्ते बाद वही मॉल — “सांचीसी ड्रेस फ्लैगशिप स्टोर” — उद्घाटन, मीडिया, तालियाँ, फ्लैश, भीड़।
वह सेल्समैन, जो पहले “औकात” पढ़ता था, अब रोहित की सफल कहानी का साक्षी बन गया।
स्टेज पर उसने रिया को बुलाया और कहा,
“औकात इंसान की जेब से नहीं, उसकी मेहनत से बनती है।”
कांच की दीवारों में वही आवाज गूंज रही थी — पर यह ताना नहीं, इज्ज़त की गूंज थी।