एक छोटे बच्चे ने घायल बिजनेसमैन की मदद की, फिर जो हुआ उसने सबको रुला दिया
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एक बच्चे ने घायल बिज़नेसमैन की मदद की, फिर जो हुआ उसने सबको रुला दिया
“भ्रष्ट पुलिस, भागा हुआ बिज़नेसमैन और वो बच्चा जिसने सब कुछ बदल दिया”
जयपुर के बाहरी इलाके में, जहाँ दोपहर की तपती धूप मिट्टी को तवे सा गरम कर देती है, वहीं एक छोटा सा गाँव है। इसी गाँव की तंग गलियों में, 11 साल का आरव अपने नन्हे हाथों में एक बोरी लिए कबाड़ बीनता था — उसकी दुनिया बस इतनी सी थी, कि शाम तक दो रोटी मिल जाएं।
लेकिन उस दिन, किस्मत ने उसकी जिंदगी बदलने की ठान ली थी।
पुराने मिल के पीछे, सूखे पत्तों के ढेर में, एक आदमी पड़ा था — खून से लथपथ, सफेद कमीज़ पर गहरे लाल धब्बे, और कलाई पर टूटी हुई महंगी घड़ी। आरव की आंखों में डर और हैरानी थी, लेकिन इंसानियत उसके दिल में गहरी थी। उसने हिम्मत जुटाई, पास गया, और दौड़कर पानी ले आया।
वो नहीं जानता था कि ये आदमी कोई आम इंसान नहीं, बल्कि राजस्थान के मशहूर उद्योगपति राजीव वर्मा हैं — जिनके बारे में टीवी पर हर चैनल चिल्ला रहा था, “भ्रष्ट व्यापारी फरार, पुलिस की पकड़ से बाहर!”
लेकिन सच्चाई इससे कहीं ज्यादा गहरी थी।
राजीव वर्मा किसी अदालत या कानून से नहीं, अपने ही लोगों से भाग रहे थे। उन्होंने अपने पार्टनर आदित्य शर्मा के खिलाफ जमीन घोटाले, काले धन, और नेताओं की गुप्त डील्स के सबूत इकट्ठे किए थे। जब वर्मा ने धमकी दी कि वो सब उजागर कर देंगे, तो आदित्य शर्मा और उसके पुलिस के साथी उनकी जान के पीछे पड़ गए। एक रात गोलियों की बरसात हुई — वर्मा किसी तरह बच गए, लेकिन उनकी पत्नी और ड्राइवर मारे गए।
दो दिन तक आरव ने उन्हें अपनी झोपड़ी में छिपाकर रखा। घाव धोए, मंदिर से दवा चुराकर लाया, और भूखा रहकर भी उन्हें रोटी दी। बाहर पुलिस की गाड़ियां गश्त कर रही थीं, और जिनसे वर्मा छिप रहे थे, वही असल दुश्मन थे।

तीसरे दिन, जब आरव बाहर गया तो उसने पुलिसवालों को कहते सुना, “अगर वो जिंदा मिला, तो आज रात उसका काम तमाम कर देंगे।”
आरव भागा, साँसें फूलती हुई, और वर्मा को चेताया, “साहब, यहाँ से भागिए, वो आपको मार देंगे!”
राजीव वर्मा ने उसकी आंखों में देखा — डर नहीं, सिर्फ मासूम हिम्मत थी।
वर्मा बोले, “बेटा, अगर मैं बच गया तो तेरी पढ़ाई की जिम्मेदारी मेरी।” आरव मुस्कराया, “बस आप ज़िंदा रहिए।”
उस रात, दोनों खेतों के रास्ते गाँव से बाहर निकल गए। सुबह होते ही मीडिया में ब्रेकिंग न्यूज़ आई —
“राजीव वर्मा ज़िंदा मिले! पुलिस पर गंभीर सवाल, नए सबूत सामने।”
छह महीने बाद, आदित्य शर्मा गिरफ्तार हुआ। जांच में साबित हुआ कि सारे फर्जी दस्तावेज़ उसी ने बनवाए थे।
और उस छोटे गाँव में एक नई खबर फैली — “वो बच्चा अब स्कूल जाता है — राजीव वर्मा उसकी पढ़ाई का खर्च उठा रहे हैं।”
लोग कहते हैं, जब भी कोई पत्रकार उस गाँव में आता है, बच्चे की झोपड़ी के बाहर एक पुरानी घड़ी टंगी दिखती है — टूटी हुई, खून से दागी, लेकिन चमकती हुई। जैसे याद दिलाती हो कि इंसानियत कभी हारती नहीं।
कहानी का संदेश:
शायद दुनिया में भ्रष्टाचार, डर और हिंसा हो, लेकिन एक छोटे बच्चे की मासूमियत और इंसानियत सबसे बड़ा बदलाव ला सकती है।
वो टूटी घड़ी आज भी गवाही देती है — कि जब तक दिल में हिम्मत है, तब तक उम्मीद जिंदा है।
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