एक बाप ने अपनी बेटी को जवान होने के इंजेक्शन लगाए | बाप-बेटी का वाक़िया
जल्दी सयाना बनाने की दवा: एक बाप की हैवानियत, एक बेटी की जंग
सर्दियों की वह रात बहुत लंबी थी, जैसे हर दुख, हर दर्द उसी में सिमट आया हो। अस्पताल के बरामदे में एक आदमी, सादिक, बेचैन घूम रहा था। अंदर उसकी पत्नी जिंदगी और मौत की लड़ाई लड़ रही थी। सादिक की आंखों में चिंता और डर साफ झलक रहा था, जैसे वह किसी अनहोनी की आहट महसूस कर रहा हो। अचानक दरवाजा खुला, नर्स बाहर आई, और उसकी आवाज में अफसोस था—”हम आपकी बीवी को नहीं बचा सके।” नर्स की गोद में एक नन्ही सी बच्ची थी, जो दुनिया से बेखबर, मासूमियत से सो रही थी। सादिक ने उसे सीने से लगा लिया, उसकी आंखों से आंसू बहने लगे। “यह मासूम बच्ची कैसे पलेगी? खुदा, यह कैसा पहाड़ मेरे ऊपर टूट पड़ा!”
बीवी की तदफीन कर दी गई। सादिक ने बेटी को अपनी बहन रजिया के हवाले करना चाहा, लेकिन रजिया ने गुस्से से मुंह फेर लिया, “यह कितनी मनहूस है, पैदा होते ही मां को खा गई।” सादिक रोता हुआ अपनी बेटी को गोद में लिए घर लौट आया। उसने बेटी का नाम आरजू रखा, मगर कभी उसे प्यार से नहीं बुला सका। अपनी बहन के रवैये से दिल टूट गया, और उसने आरजू को नानी के पास छोड़ दिया। खुद तन्हा रहने लगा।
दिनभर मेडिकल स्टोर पर काम करता, शाम को घर आता तो तन्हाई उसे खा जाती। धीरे-धीरे वह शराब का आदी हो गया। अक्सर बिस्तर पर पड़ा रहता और सोचता, “अगर यह बेटी पैदा न होती तो मेरी बीवी जिंदा होती। यह मेरी बर्बादी की वजह है।” वक्त गुजरता गया, नफरत उसके दिल में घर करती गई।
आरजू नानी के साए में बड़ी हो रही थी, बेखबर कि उसका बाप उसे कसूरवार समझता है। जब वह 13 साल की हुई, नानी का भी साया उसके सिर से उठ गया। मजबूर होकर वह अपने बाप के पास लौट आई। इन 13 सालों में उसने बाप को हमेशा खुद से दूर ही देखा था। एक दिन उसने हिम्मत करके पूछा, “बाबा, आप मुझसे इतने रूठे क्यों रहते हैं? मैंने क्या गलती की है?” सादिक ने कोई जवाब नहीं दिया, बस खाली नजरों से उसे देखा और मुंह फेर लिया। वह उस वक्त भी शराब के नशे में डूबा था।
आरजू रोजाना कहती, “अगर आप काम पर नहीं जाएंगे तो हम खाएंगे क्या?” मगर सादिक को जैसे कोई परवाह ही नहीं थी। एक दिन आरजू की तबीयत अचानक बिगड़ गई। उसका चेहरा लाल हो रहा था, आंखों में जलन थी, उसे तेज बुखार था। वह कांपती हुई अपने बाप के पास आई और रोते हुए बोली, “बाबा, मुझे बहुत ज्यादा बुखार है, मेरी तबीयत बहुत खराब हो रही है।” सादिक ने नशे में धुंधलाई आंखों से बेटी की तरफ देखा और फिर एक पल के लिए गहरी सोच में डूब गया। उसके दिमाग में कोई खतरनाक ख्याल चलने लगा।
कुछ देर बाद वह आहिस्ता से बोला, “बेटी, तुम फिक्र मत करो।” सादिक ने बेटी की बिगड़ती हालत देखकर फैसला किया कि उसे दवाई लेकर आनी होगी। वह उसी मेडिकल स्टोर पर पहुंचा, जहां पहले काम करता था, और वहां से एक खास किस्म का इंजेक्शन खरीदकर घर वापस आया। आरजू बुखार से तप रही थी, उसकी आंखें बंद हो रही थीं, वह मुश्किल से खड़ी थी। सादिक ने आते ही बिना किसी हिचकिचाहट के इंजेक्शन निकाला और आरजू के बाजू में लगा दिया। इंजेक्शन लगते ही आरजू बेहोश होकर बिस्तर पर गिर गई। उसका जिस्म ढेला पड़ गया और वह धीरे-धीरे सांसें ले रही थी।
सादिक एक तरफ बैठा उसे देख रहा था, फिर आहिस्ता-आहिस्ता मुस्कुराने लगा। वह कोने में जाकर खुलकर हंसने लगा और बार-बार इंजेक्शन की शीशी को देख रहा था। जैसे-जैसे वक्त गुजरा, उसके दिमाग में अजीबोगरीब ख्यालात जन्म लेने लगे। रात गुजरी और जब सुबह आरजू की आंख खुली तो वह शदीद कमजोरी महसूस कर रही थी, उसके जिस्म में सनसनाहट हो रही थी। बुखार इतना तेज था कि वह मुश्किल से उठ पाई। मगर सादिक ने यहीं पर बस नहीं की। यह एक मामूल बन गया।
पहले वह आरजू को कोई खास दवा खाने में मिला देता, जिससे उसे बुखार होता, फिर वही इंजेक्शन लगाता। हर बार कहता, “फिक्र ना करो बेटी, तुम जल्द ठीक हो जाओगी।” मगर वह ठीक नहीं हो रही थी, बल्कि कुछ और ही होने लगा था।
आज भी ऐसा ही दिन था। सादिक ने आरजू को आवाज दी, “बेटी, आज खाने में कुछ अच्छा सा बना लेना। मेरा एक खास दोस्त हमारे घर आ रहा है।” आरजू ने हैरान होकर पूछा, “कौन सा दोस्त बाबा?” सादिक मुस्कुरा कर बोला, “तुमने उसे बचपन में देखा था, वह तुम्हें बहुत खिलाता था, बहुत प्यार करता था। आज वह इस्लामाबाद से सैदा हमारी तरफ आ रहा है। इसलिए कह रहा हूं कि खाने का अच्छा सा इंतजाम कर लो।”
वह सिर झुकाकर किचन में चली गई और खाने की तैयारी करने लगी। बाहर मौसम की शिद्दत बढ़ रही थी। रात का वक्त था, सख्त सर्दी का आलम था। दरवाजे पर दस्तक हुई। सादिक ने जल्दी से जाकर दरवाजा खोला। सामने एक आदमी खड़ा था, जो तकरीबन उसके हम उम्र था। दोनों की उम्रें पचास साल के करीब थीं।
सादिक ने उसे देखा, गर्मजोशी से गले मिला। वह कमरे में दाखिल हुए और सादिक ने फौरन आरजू को आवाज दी, “बेटी, जल्दी से खाना ले आओ, मेरे दोस्त को भूख लगी होगी।” चंद लम्हों बाद कमरे का दरवाजा खुला, आरजू खाने की ट्रे लेकर अंदर दाखिल हुई। जैसे ही सादिक के दोस्त की नजर उस पर पड़ी, वह पलक झपकना भूल गया। उसकी आंखों में हवस थी। वह खाने को नहीं बल्कि आरजू को देख रहा था। उसकी नजरें जैसे आरजू के चेहरे पर जम गई थीं।
सादिक जानता था कि उसके दोस्त की नजरें आरजू पर हैं। उसने फौरन खाने की तरफ ध्यान मोड़ने की कोशिश की, “खाना ठंडा हो रहा है, चलो जल्दी खा लो।” लेकिन दोस्त की नजरें अब भी आरजू पर ही थीं। फिर वह बोला, “आज रात में यही रखूंगा।” सादिक के माथे पर बल पड़ गए, मगर वह जाहिर नहीं करना चाहता था कि वह दोस्त की नियत को समझ चुका है। उसने मुस्कुरा कर कहा, “आज रात मुझे एक जरूरी काम है, मैं घर पर नहीं रहूंगा। मेरी बेटी अकेली होगी, इसलिए तुम जा सकते हो।”
दोस्त ने एक बार फिर आरजू की तरफ ललचाई नजरों से देखा, मगर खामोशी से खड़ा हो गया। सादिक ने उसे गाड़ी में बैठाया और घर से बाहर ले गया। जब वह वापस आया, तो आरजू का चेहरा लाल हो रहा था, वह कमजोरी से कांप रही थी, आंखें बोझल थीं। “बाबा, मैंने आपसे कहा था न कि मुझे बहुत ज्यादा बुखार हो रहा है, क्या आप मेरी दवाई लेकर आए हैं?”
सादिक ने एक मक्कारी भरी मुस्कुराहट के साथ कहा, “हां हां बेटी, तुम्हें तो मालूम है, मैं तुम्हारी दवा लाने में देर नहीं करता। मैं तुम्हारे लिए इंजेक्शन ले आया हूं, चलो लगवा लो, सुबह तक तुम बिल्कुल ठीक हो जाओगी।” उसके चेहरे पर वही पुरानी मुस्कुराहट थी, जिसमें अजीब सी चालाकी छिपी थी।
आरजू खामोशी से अंदर जाकर बिस्तर पर बैठ गई। सादिक ने उसके बाजू की कमीज ऊपर की और महारत से इंजेक्शन लगा दिया। आरजू ने कुछ देर तक बाजू को मलते हुए तकलीफ को बर्दाश्त किया, लेकिन फिर धीरे-धीरे उस पर गुनूदगी तारी होने लगी। वह पहले ही बुखार से कमजोर थी और इंजेक्शन ने जैसे उसकी रही सही ताकत भी खींच ली थी।
आरजू बिस्तर पर गिरी, उसका जिस्म बेजान सा हो गया और वह धीरे-धीरे नीम बेहोशी में चली गई। सादिक बेचैनी से कमरे के बाहर टहल रहा था। जैसे ही आरजू के सांसों की मध्यम आवाजें सुनाई देने लगीं, वह लपक कर अंदर आया। उसकी नजरें आरजू पर जा पड़ी, जो बेसुध लेटी हुई थी। वह करीब आया, गौर से उसे देखा और फिर मुस्कुरा दिया। “पिछले दो सालों से जो मैं कर रहा हूं, वो बेकार नहीं गया। मेरा काम हो गया।”
यह कोई आम इंजेक्शन नहीं था। कई साल पहले जब सादिक एक फार्मेसी में हेल्पर के तौर पर काम करता था, तो उसे मालूम हुआ था कि दुनिया में ऐसी अजीबोगरीब दवाएं मौजूद हैं, जो इंसानी जिस्म पर हैरतअंगेज असर डाल सकती हैं। कुछ इंजेक्शंस ऐसे थे, जो किसी लड़की के जिस्म में लगाए जाएं तो वह वक्त से पहले जवान और खूबसूरत हो जाती है।
दो साल पहले सादिक ने इसी इंजेक्शन को आरजू पर आजमाना शुरू कर दिया था। हर हफ्ते वह छिपकर उसे कोई खास दवा खिला देता, जिससे उसे तेज बुखार हो जाता। वह बेचारी दर्द और बुखार की शिद्दत से पूरा दिन तड़पती रहती, और जब वह अपने बाप से दवा लाने की इल्तजा करती, सादिक मुस्कुराते हुए वही इंजेक्शन खरीदकर लाता और उसे लगा देता। “सुबह तक तुम ठीक हो जाओगी बेटी।” वह हमेशा यही कहता और आरजू बेचारी उस पर यकीन कर लेती।
मगर हकीकत में वह दवा नहीं थी। यह सिलसिला दो साल तक चलता रहा, और आरजू हैरान थी कि आखिर उसके जिस्म में इतनी तेजी से तब्दीलियां क्यों आ रही हैं। वह अपने चेहरे, त्वचा और जिस्मानी बदलावों को समझने से कासिर थी।
एक दिन पड़ोस की खाला बलकीस आई। “आरजू, तू तो दिन-ब-दिन खूबसूरत होती जा रही है। तेरी हमउम्र मलीहा अब भी बच्ची लगती है, तू कैसे जवान हो गई?” आरजू खुद भी हैरान थी, लेकिन असल राज उसके बाप की मक्कारी थी।
घर का राशन खत्म हो रहा था, पैसे नहीं थे। आरजू ने बाप से कहा, “बाबा, ऐसे ही घर में सोते रहे तो पैसे कहां से आएंगे?” सादिक ने मजदूरी छोड़ दी थी, जुए और शराब में डूबा रहता। मोहल्ले के बिगड़े लोगों के साथ जुआ खेलने लगा, सब हार गया।
शमशीर खान, जो नशे में था, कहकहा लगाकर बोला, “अब तो मैं तेरी बेटी को अपने घर ले जा सकता हूं।” सादिक ने हार मान ली। रात को शमशीर खान आया, आरजू को बेहोश पाकर उठा लिया, गाड़ी में डालकर ले गया। सादिक के चेहरे पर मुस्कान थी, उसने बैंक से पैसे निकाल लिए।
दूसरी तरफ, आरजू की आंख खुली तो वह शानदार बेडरूम में थी। याद आया, बेहोश होने से पहले क्या हुआ था—बाप का इंजेक्शन, शमशीर का उसे उठाना। “नहीं, बाबा तो मेरा सहारा था, उसने ही मेरे साथ यह सब क्यों किया?”
शमशीर खान कमरे में आया, दरवाजा बंद किया, भूखी नजरों से देखने लगा, “तेरा बाप तुझे मेरे हाथ बेच चुका है, लाखों के एवज।” आरजू का दिल चाहा जमीन फट जाए। शमशीर आगे बढ़ा, तभी दरवाजे पर दस्तक हुई, मुलाजिम ने बुलाया, शमशीर बाहर गया।
अचानक खिड़की पर हल्की दस्तक हुई। आवाज आई, “आरजू, दरवाजा खोलो, मैं हूं तुम्हारा बाबा।” आरजू डर के बावजूद बाप के साथ बाहर निकल आई। गाड़ी में बैठकर पूछा, “बाबा, कहां ले जा रहे हैं?” सादिक बोला, “शमशीर मेरा दोस्त है, मुझे उससे कुछ नुकसान हुआ था, इसलिए तुम्हें उसके पास छोड़ना पड़ा, लेकिन अब छुड़ाने आया हूं।”
गाड़ी सुनसान जगह पर रुकी। सामने कई इमारतें थीं, जिनमें औरतें, लड़कियां खड़ी थीं, बेहयाई से हंस रही थीं। आरजू बोली, “बाबा, यहां से चलें।” मगर सादिक ने सर्द निगाह डाली, “बरसों से तुझ पर जो खर्च किया है, अब उसे वसूल करने का वक्त आ गया है।”
सादिक ने आरजू को घसीटकर एक कोठे पर ले गया। मोटी सी औरत तख्त पर बैठी थी, सादिक ने आरजू को उसके कदमों में धकेल दिया। औरत ने लालची नजरों से देखा, “कमाल की चीज लाए हो, कहां से मिली यह हसीन परी?”
सादिक बोला, “सिर्फ 14 साल की है, लेकिन मेरी मेहनत का नतीजा है। अब यह तुम्हारे कोठे की शान बढ़ाएगी, बस मेरा हिस्सा दे दो।”
खानमबाई बोली, “ऐसे माल के लिए हम तुम्हें कितने भी पैसे देंगे।” आरजू दरवाजे की तरफ भागी, बाहर गुंडे खड़े थे, उसे घसीटकर वापस लाया गया। वह बुरी तरह रो रही थी, “बाबा, मुझे यहां मत छोड़ो, मैं आपकी बेटी हूं।” मगर सादिक ने मुंह फेर लिया।
खानमबाई बोली, “14 साल की है, लेकिन 20 साल की जवान लगती है, ऐसी हसीन शक्ल मेरे कोठे की शान बढ़ा देगी।”
सादिक बोला, “जब यह पैदा होने वाली थी, इसकी मां बेवा थी, मैंने सिर्फ उसका इस्तेमाल किया। एक दिन किसी ने बताया कि बेटी पर मेहनत करो, मैंने इंजेक्शन लगाने शुरू किए, अब यही मेरी कमाई का जरिया है।”
सादिक नोट गिनता रहा, खानमबाई मुस्कुराती रही। आरजू पत्थर की मूर्ति बन गई, “अब्बा, आपने यह सब क्यों किया?” वह फूट-फूटकर रोने लगी। सादिक ने बेपरवाही से नोट जेब में डाले और चला गया।
सादिक का इरादा था मुल्क छोड़कर बाहर ऐश करने का, लेकिन तकदीर को कुछ और मंजूर था। सड़क पार करते वक्त तेज रफ्तार ट्रक ने उसे टक्कर मार दी। लोग दौड़े, उसकी गर्दन टूट चुकी थी, आंखें नीम बंद थीं। उसने आखिरी बार आसमान की तरफ देखा, फिर दम तोड़ दिया। जेब से नोटों की गड्डियां निकलीं, लोग लूट ले गए।
उधर आरजू कोठे में कैद थी। उसने तय किया, अब खुद ही अपनी जान बचानी है। रात के अंधेरे में सबने समझा वह बेहोश है, उसे कोठे के पिछले हिस्से में डाल दिया। वह अदाकारी कर रही थी। जैसे ही सब हटे, उसने शमशीर के कमरे से छुपाया खंजर निकाला, दरवाजे का ताला तोड़ा, बाहर निकल आई।
वह अंधेरी रात में भागती रही, खाला के घर पहुंच गई। खाला ने उसे गले लगा लिया। खाला का जवान बेटा भी अफसोस और हमदर्दी से देख रहा था। कुछ दिनों बाद खाला ने आरजू और अपने बेटे की शादी कर दी।
अब आरजू की जिंदगी बदल गई। उसका शौहर उसे इज्जत और मोहब्बत देता था। वह सुकून में थी। खाला ने दुआ दी, “ऐ अल्लाह, किसी की मां ना मरे, वरना औलाद दर-दर की ठोकरें खाने पर मजबूर हो जाती है।”
आरजू ने अपने बाप को सब कुछ समझा था, लेकिन उसने ही उसे जिल्लत में धकेल दिया। आखिरकार कुदरत ने इंसाफ किया—जालिम बाप लालच के साथ दुनिया से रुखसत हुआ, और मासूम बेटी को एक नया सहारा मिल गया।
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