एसपी मैडम की माँ को भिखारी समझकर मॉल से धक्के मारकर निकाल दिया, फिर एसपी मैडम ने जो किया…

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इज्जत की कीमत

सुबह का समय था। सफेद रंग की फटी पुरानी और गंदी साड़ी पहने एक बूढ़ी औरत धीरे-धीरे कदम बढ़ाते हुए एक बहुत बड़े मॉल की ओर जा रही थी। उसकी चाल में थकान और जीवन की कठिनाइयों की परछाई साफ दिखाई दे रही थी। दूसरी तरफ उसकी बेटी, थाने में तैनात एएसपी मैडम नेहा पार्वती, अपने कामकाज में व्यस्त थी। नेहा को जरा भी अंदाजा नहीं था कि आज उनकी मां के साथ कुछ ऐसा होने वाला है, जिसे सोचकर भी दिल कांप उठे।

नेहा को यह भी नहीं पता था कि वही मां जिन्होंने अपना खून-पसीना बहाकर संघर्ष किया, अपनी बेटी को इस ऊंचाई तक पहुंचाया, आज अपने जीवन के सबसे अपमानजनक पल से गुजरने वाली है।

बूढ़ी मां धीरे-धीरे चलते हुए मॉल के अंदर दाखिल होती है। प्रवेश करते ही वहां मौजूद ग्राहक और स्टाफ सबकी निगाहें उसी पर टिक जाती हैं। कोई आपस में फुसफुसा रहा था, कोई मन ही मन सोच रहा था, “यह कौन है? शायद कोई भिखारी है और मॉल में क्या करने आई है? इसे बाहर निकाल देना चाहिए।” हर कोई अपने मन में कुछ ना कुछ सोच रहा था।

बूढ़ी मां यह सब सुन और समझ रही थी, लेकिन नजरअंदाज करते हुए आगे बढ़ती रही। धीरे-धीरे वह एक कपड़ों के काउंटर तक पहुंची, जहां रंग-बिरंगी खूबसूरत साड़ियां सजी हुई थीं। काउंटर पर एक जवान लड़का बैठा था, जिसका नाम था सोहेल।

SP madam ki maa ko bhikhari Samajh Kar Mall Se dhakke maar kar nikal Diya  Fir SP madam Ne Jo Kiya. - YouTube

बूढ़ी मां ने मुस्कुराते हुए कहा, “बेटा, मुझे एक महंगी वाली साड़ी दिखाना।” सोहेल यह सुनते ही तमतमा उठा। “देखो बुढ़िया, यहां तुम्हारे जैसे लोगों के लिए कुछ नहीं है। तुम्हारी औकात नहीं है यह कपड़े खरीदने की। बेहतर होगा यहां से चली जाओ। यह सब बहुत महंगा है और वैसे भी तुम भिखारी जैसी लग रही हो।”

बूढ़ी औरत उसकी बातें चुपचाप सह रही थी। इधर-उधर लोग कानों में फुसफुसा रहे थे, हंस रहे थे, मजाक बना रहे थे। कुछ पल चुप रहने के बाद मां ने फिर कहा, “बेटा, मुझे साड़ी खरीदनी है। मेरे पास इतने पैसे हैं कि मैं साड़ी खरीद सकूं। तभी तो यहां आई हूं। वरना मैं क्यों आती? तुम मुझे वो लाल रंग की साड़ी दिखाओ। मुझे वहीं लेनी है।”

लेकिन सोहेल और चिढ़ गया। “औकात से बाहर की बातें मत करो। तुम यहां से कपड़े खरीद नहीं सकती। वरना अभी सिक्योरिटी बुलाकर धक्के मारकर बाहर निकलवा दूंगा। पता नहीं कहां-कहां से चले आते हैं ऐसे लोग।” इतना कहकर उसने जोर से आवाज लगाई, “सिक्योरिटी!”

दो गार्ड दौड़ कर आए और बूढ़ी औरत को पकड़कर खींचते हुए बाहर निकाल दिया। उसकी आंखों में आंसू थे। अपमान और दर्द साफ झलक रहा था। धीरे-धीरे वह घर की ओर चल पड़ी।

तभी सामने से एक गाड़ी गुजरी। वही गाड़ी जिसमें एसपी नेहा पार्वती बैठी थी। मां को देखते ही नेहा ने तुरंत गाड़ी रोकी और दौड़कर उनके पास पहुंची। “मां, यह आपकी आंखों में आंसू क्यों हैं? क्या हुआ है? आप यहां अकेली कहां जा रही थीं? अगर कुछ चाहिए था तो मुझे बोल देतीं, मैं घर आ जाती आपके लिए।”

बूढ़ी औरत ने आंसू पोंछते हुए कहा, “कुछ नहीं बेटा, बस ऐसे ही टहलने निकली थी।” नेहा ने गंभीर स्वर में कहा, “नहीं मां, यह सच नहीं है। आपकी आंखों में ये आंसू किसी वजह से हैं। आप मुझे बताइए और आपको मुझे बताना ही पड़ेगा।”

इतना सुनने के बाद पार्वती की मां ने अपने दिल का बोझ हल्का करने के लिए पूरी घटना अपनी बेटी को बता दी। हर शब्द, हर वाक्य जैसे नेहा के दिल में तीर की तरह चुभ रहा था। नेहा पार्वती का खून खौल उठा। वह सोच भी नहीं सकती थी कि जिस मां ने अपने पेट की भूख मारकर, हर सुख त्याग कर दिन-रात मेहनत करके अपनी बेटी को इस मुकाम तक पहुंचाया, आज उसी मां को लोगों के सामने अपमानित किया गया है।

उसकी आंखों में गुस्से की आग और दिल में दर्द का तूफान उमड़ पड़ा। उसने मां का हाथ पकड़ते हुए कहा, “मां, आप गाड़ी में बैठिए। मैं आपको घर छोड़ती हूं।” गाड़ी घर के सामने रुकते ही नेहा ने दृढ़ स्वर में कहा, “मां, अब हम उसी मॉल में जाएंगे। वहीं से आपको कपड़े दिलवाऊंगी और वही साड़ी दिलवाऊंगी जो आपको पसंद आएगी।”

उसने जल्दी से अपनी वर्दी उतारी और गांव की साधारण लड़कियों की तरह हरे रंग का सलवार सूट पहन लिया। फिर मां का हाथ मजबूती से थाम कर कहा, “चलो मां, आज सबको बता दूंगी कि इज्जत कपड़ों से नहीं इंसानियत से होती है।”

दोनों मां-बेटी मॉल की तरफ बढ़ीं। मॉल तक पहुंचते ही वे अंदर प्रवेश कर गईं। जैसे ही वे दोनों अंदर आईं, वहां मौजूद स्टाफ और ग्राहक फिर से घूरने लगे। कुछ के होठों पर तिरस्कार भरी मुस्कान थी तो कुछ एक दूसरे के कान में फुसफुसा रहे थे, “देखो ये दोनों गांव की औरतें फिर आ गईं। इनकी औकात है ऐसे महंगे मॉल में आने की?”

नेहा सब सुन रही थी। महसूस कर रही थी कि कैसे लोग केवल पहनावे और रूप रंग देखकर इंसान की कीमत तय कर लेते हैं। मगर उसने चुप रहना चुना और मां का हाथ पकड़े सीधे साड़ियों के काउंटर तक पहुंची।

काउंटर पर बैठा वही लड़का सोहेल दोनों को देखते ही ताना मारते हुए बोला, “अरे ये औरत फिर आ गई। अब अपनी बेटी को भी साथ ले आई है। बताओ क्या चाहिए तुम लोगों को? मैंने कहा था ना, ये मॉल तुम्हारे जैसे लोगों के लिए नहीं है। यहां कपड़े खरीदने की तुम्हारी औकात नहीं है। बार-बार क्यों आ जाती हो? निकल जाओ। वरना गांठ बुलाकर धक्के मारकर बाहर निकाल दूंगा।”

इस बार नेहा पार्वती उसकी हर बात सुनते हुए अपनी आंखों में गुस्सा और चेहरे पर एक हल्की सी मुस्कान लिए खड़ी रही। वह अब पूरी तरह समझ चुकी थी कि यहां के लोग केवल कपड़ों और बाहरी रूप देखकर फैसला करते हैं कि कौन क्या है। उसे यह भी मालूम था कि इस समय सोहेल और मॉल का स्टाफ यह सोच भी नहीं सकता कि उनके सामने खड़ी यह साधारण सी लड़की दरअसल शहर की एसपी मैडम है।

नेहा पार्वती के मन में गुस्सा और अपमान की आग भड़क चुकी थी। वह मन ही मन सोच रही थी, “इन लोगों को सबक तो देना ही पड़ेगा। देखते हैं ये लोग कितनी हद तक गिर सकते हैं।”

उसने संयम रखते हुए धीमे स्वर में कहा, “देखिए भाई, हमें साड़ी चाहिए। चाहे जितना भी दाम लगे हम देंगे। हमारे पास पैसे हैं, तभी तो यहां आए हैं। वरना हम यहां क्यों आते? आप बस साड़ी दिखाइए।”

“ऐसी बातें मत कीजिए।” लेकिन सोहेल ने तमतमाते हुए जवाब दिया, “तुम लोगों को समझ में नहीं आता क्या? कितनी बार कहूं तुम्हारी औकात नहीं है यहां कपड़े खरीदने की। अब तुरंत निकलो वरना धक्के मारकर बाहर कर दूंगा।”

यह सुनकर नेहा के भीतर का गुस्सा लावा बनकर फूटने को तैयार था। बस फर्क इतना था कि वह अपनी सरकारी आईडी उस समय साथ नहीं लाई थी, वरना वहीं उसका असली परिचय देकर इनकी औकात दिखा देती। मगर उसने तय कर लिया कि जवाब ठंडा नहीं होगा।

नेहा ने मां का हाथ पकड़ा और चुपचाप वहां से घर लौट आई।

अगले दिन नेहा पार्वती सीधी थाने पहुंची। उसने अपने सबसे भरोसेमंद और शहर के जाने-माने दो हवलदारों को बुलाया। एक इंस्पेक्टर को साथ लिया और मां को भी साथ लेकर पांचों लोग मॉल की ओर निकल पड़े।

जैसे ही वे मॉल के भीतर दाखिल हुए, वहां मौजूद ग्राहक और स्टाफ की निगाहें तुरंत उनकी तरफ उठी। स्टाफ के ज्यादातर लोग पिछली घटना को याद कर चुके थे और समझ गए थे कि आज यहां कुछ बड़ा होने वाला है। हालांकि मॉल में मौजूद नए ग्राहक यह नहीं समझ पा रहे थे कि पुलिस अचानक यहां क्यों आई है। कुछ लोग डर कर किनारे हट गए तो कुछ तमाशा देखने को तैयार खड़े रहे।

नेहा पार्वती गुस्से से आग बबूला थी। लेकिन मां का हाथ मजबूती से थामे हुए सीधे उस काउंटर की तरफ बढ़ी जहां सोहेल बैठा था। सोहेल के चेहरे का रंग उड़ चुका था। उसकी आंखों में डर साफ झलक रहा था।

जैसे ही नेहा काउंटर के सामने पहुंची, सोहेल हकलाते हुए बोला, “मैडम, आपको जो भी चाहिए बताइए, मैं तुरंत निकाल देता हूं।”

नेहा ने उसकी बात बीच में काट दी, “मुझे अभी कुछ नहीं चाहिए। पहले तुम यह बताओ यहां काम क्या करते हो? लोगों की सेवा या उनकी बेइज्जती? जो लोग स्टाइलिश कपड़े नहीं पहनते, जो साधारण पहनावे में आते हैं, जो गांव की औरतों की तरह रहते हैं। तुम उन्हें गवार और भिखारी समझते हो क्या?”

वह तेज आवाज में आगे बोली, “पहले तुमने मेरी मां को सिक्योरिटी बुलाकर धक्के मारकर बाहर निकाला। फिर जब मैं अपनी मां को लेकर आई तब भी हमें अपमानित किया और बाहर निकालने की धमकी दी। अब मैं तुम्हें इस मॉल से निकलवा कर ही रहूंगी।”

सोहेल का शरीर कांप रहा था। हाथ-पांव सुन्न पड़ गए थे। वह डर के मारे बुदबुदाया, “मैडम, हमें माफ कर दीजिए। हमें नहीं पता था कि यह आपकी मां है। वह ऐसे घुस आई थी जैसे कोई भिखारी। हमने सोचा कि यह गरीब घर की होंगी और कपड़े खरीद नहीं पाएंगी। इसीलिए बाहर निकाल दिया। और जब आप आई तो आप भी गांव की लड़की जैसी लग रही थी। हमें लगा आप भी अमीर नहीं होंगी। इसलिए जो मन में आया कह दिया लेकिन अब समझ में आ गया कि हमसे बहुत बड़ी गलती हो गई है।”

नेहा ने आंखों में तेजी भरते हुए कहा, “तुम्हें कोई हक नहीं है यह तय करने का कि कौन अमीर है और कौन गरीब। तुम्हें कोई हक नहीं है किसी की औकात दिखाने का। इंसान की पहचान उसके कपड़ों से नहीं बल्कि उसके चरित्र से होती है। और तुमने क्या किया? बिना जाने समझे हमें अपमानित किया, धक्के मारकर निकाला। यह सरासर गलत है।”

वह गरजते हुए बोली, “तुम अपने मालिक को बुलाओ। मैं अभी उनसे तुम्हारी शिकायत करूंगी और देखना तुम्हें इस मॉल से निकलवा कर रहूंगी।”

नेहा पार्वती की बातें सुनकर सोहेल के पैरों तले जमीन खिसक गई। वह समझ चुका था कि अब उसके बचने का कोई रास्ता नहीं है क्योंकि उसने बहुत बड़ी गलती कर दी है। डर के मारे उसने वहीं झुककर नेहा पार्वती के पैर पकड़ लिए और कांपते हुए बोला, “मैडम, मुझे माफ कर दीजिए। मुझसे बहुत बड़ी गलती हो गई है। अब मुझे समझ में आ गया है कि कपड़ों से कोई अमीर-गरीब नहीं होता। हर किसी को हक है कि वह अपनी पसंद के कपड़े पहने, चाहे वे साधारण हों या महंगे। हमें किसी को भी उनके पहनावे से जज नहीं करना चाहिए। आगे से मैं कभी ऐसा नहीं करूंगा। कृपया मुझे माफ कर दीजिए।”

नेहा पार्वती ने उसकी आंखों में डर और पछतावा देखा। उसे थोड़ी देर के लिए रहम आया, मगर उसने सख्त स्वर में कहा, “ठीक है, अभी तो मैं तुम्हें छोड़ रही हूं। लेकिन पहले अपने मालिक को बुलाओ। मैं उन्हें बताना चाहती हूं कि उनके मॉल में ग्राहकों के साथ किस तरह का बर्ताव किया जा रहा है।”

सोहेल ने तुरंत अपने मालिक को फोन किया। कुछ देर बाद मॉल का मालिक वहां पहुंचा। मॉल के अंदर पुलिस को खड़ा देखकर वह घबरा गया और सोचने लगा कि आखिर मॉल में हुआ क्या है?

नेहा पार्वती सीधी उसके पास गई और ठंडे लेकिन तीखे लहजे में बोली, “क्या आपको पता है? आपके मॉल में मौजूद स्टाफ ग्राहकों के साथ कैसा व्यवहार करता है? कल जब मैं अपनी मां को लेकर यहां आई थी तो आपके स्टाफ सोहेल ने हमें अपमानित किया। लोगों के सामने हमें भिखारी और गरीब कहकर हमारी औकात बताने की कोशिश की। सिर्फ हमारे कपड़ों को देखकर हमें जज किया और सिक्योरिटी बुलाकर मॉल से बाहर निकलवा दिया। क्या ऐसा व्यवहार सही है?”

मालिक ने सिर झुका लिया और बोला, “नहीं मैडम, बिल्कुल भी सही नहीं है। मुझे इस बात की जानकारी नहीं थी कि मेरे मॉल में ग्राहकों के साथ ऐसा होता है। मैं इस घटना के लिए आपसे माफी मांगता हूं कि आपको और आपकी मां को बेइज्जत किया गया और गरीब समझा गया। मैं वादा करता हूं कि आगे से ऐसा कभी नहीं होगा।”

नेहा ने कहा, “अच्छा है कि आपको गलती समझ में आई। लेकिन आगे से यह ना हो इसके लिए अपने सभी स्टाफ को समझाइए कि ग्राहक चाहे अमीर हो या गरीब, उसे सम्मान और आदर मिलना चाहिए। गरीब होना किसी की गलती नहीं है। यह तो भगवान की मर्जी होती है। इसलिए किसी को भी उसकी औकात दिखाने की कोशिश मत करो।”

मालिक ने तुरंत वहां मौजूद सभी स्टाफ को बुलाया। वह ऊंची आवाज में बोला, “सुन लो, आज से किसी भी ग्राहक के साथ गलत व्यवहार नहीं होगा। यहां आने वाले हर इंसान का आदर करो, चाहे वह किसी भी पहनावे में आए। कपड़े देखकर किसी को जज मत करो। अगर आज के बाद किसी के बारे में भी शिकायत मिली तो मैं उसे तुरंत नौकरी से निकाल दूंगा और फिर वह किसी मॉल में काम नहीं कर पाएगा। सुधर जाओ नहीं तो अंजाम बुरा होगा।”

सभी स्टाफ चुपचाप सिर झुका कर खड़े रहे। इसके बाद नेहा पार्वती मालिक की तरफ देखकर बोली, “अब मुझे अपनी मां के लिए एक साड़ी चाहिए।”

सोहेल तुरंत भागकर वहीं लाल साड़ी ले आया जिसे बूढ़ी मां ने पहली बार पसंद किया था। साड़ी हाथ में लेकर नेहा ने अपनी मां का हाथ थामा और मॉल से बाहर निकल गई।

मॉल में मौजूद सभी ग्राहक अब चुपचाप सोच रहे थे कि कपड़ों से किसी की पहचान तय नहीं होती। हर इंसान का अपना स्वाद, अपनी पसंद होती है और यह तय करने का हक किसी और को नहीं है।

उस दिन के बाद मॉल में माहौल पूरी तरह बदल गया। स्टाफ अब हर ग्राहक के साथ सम्मान से पेश आता था और यह घटना सभी के लिए एक सबक बन गई। इंसान की इज्जत उसके कपड़ों से नहीं बल्कि उसके कर्मों से होती है।

दोस्तों, इस कहानी से हमें सबसे बड़ा सबक मिलता है कि इंसान की पहचान उसके कपड़ों से नहीं, उसके काम और इज्जत से होती है। अगर कोई साधारण कपड़ों में भी आए, तो उसे कम मत आंकिए। हो सकता है वह आपकी सोच से कहीं बड़ा इंसान हो। दूसरों की इज्जत करना हमारी सबसे पहली जिम्मेदारी है, चाहे वह अमीर हो या गरीब। कपड़ों और रूप रंग से किसी की औकात नहीं मापी जा सकती।