कनाडा जा रही थी दिल्ली पुलिस ने किया एयरपोर्ट पर गिरफ्तार कारण सुन आपके होश उड़ जायँगे
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भाग 1: एक साधारण शुरुआत
गुरलीन कौर एक सामान्य लड़की थी, जो पंजाब के एक छोटे से गांव, मलेरकोटला, में अपने माता-पिता के साथ रहती थी। उसके पिता, करतार सिंह, एक किसान थे और उसकी मां, स्वर्ण कौर, घर संभालती थीं। परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी, लेकिन उनके दिल में एक सपना था — उनकी बेटी विदेश जाकर कुछ बड़ा करे।
गुरलीन बचपन से ही पढ़ाई में होशियार थी। वह हमेशा कहती थी, “एक दिन मैं कनाडा जाऊंगी और मां के लिए सोने की बालियां लाऊंगी।” उसके माता-पिता ने उसकी इस ख्वाहिश को हमेशा समर्थन दिया। उन्होंने उसकी पढ़ाई के लिए हर संभव प्रयास किया। गुरलीन ने प्लस टू के बाद पीटीई (पैसिफिक टेस्टिंग एंटरप्राइजेज) की तैयारी शुरू की। लेकिन हर बार उसका बैंड एक अंक कम रह जाता था।
“कोई बात नहीं, कुड़िए, मेहनत करती रहो। रब सब देखता है,” उसकी मां हमेशा उसे हिम्मत देती थीं। लेकिन गुरलीन के दिल में निराशा घर कर गई थी। वह सोचती थी कि क्या वह कभी अपने सपने को पूरा कर पाएगी?
भाग 2: नया एजेंट
एक दिन, गांव में एक नया एजेंट आया — नवीन अरोड़ा। उसका दफ्तर चमकदार था और बाहर एक बड़ा बोर्ड लगा था, “स्टडी इन कनाडा, गारंटीड वीजा।” नवीन ने गुरलीन के घर आकर कहा, “आपकी लड़की में टैलेंट है, लेकिन बैंड कम होने के कारण वीजा थोड़ा मुश्किल होगा। अगर दस्तावेज ठीक करवा दें तो काम बन सकता है।”
गुरलीन के पिता ने पूछा, “कितना खर्चा आएगा?” नवीन ने कहा, “लगभग 17 लाख रुपये। लेकिन नतीजा पक्का, मेरी गारंटी।” करतार सिंह ने अपनी 2 एकड़ जमीन बेचकर पैसे दे दिए। गुरलीन खुश थी, उसने सोचा कि अब उसका सपना सच होने वाला है।
कुछ दिनों बाद, नवीन ने कॉल की। “गुरलीन, तुम्हारा ऑफर लेटर आ गया है। कॉलेज ओंटारियो का है। वीजा भी लगने वाला है। तुम तैयारी करो।” गुरलीन ने बैग तैयार किया — नया कोट, दस्तावेज, और मां की तस्वीर। उस रात वह बिस्तर पर पड़ी सोचती रही कि कल से उसकी नई जिंदगी शुरू होगी।
भाग 3: एयरपोर्ट पर गिरफ्तारी
सुबह जब वह एयरपोर्ट पहुंची, उसके पिता की आंखें चमक रही थीं। मां ने घर से कॉल करके कहा, “बेटा, अच्छे कर्म करना। रब से डरकर जीवन जीना।” गुरलीन ने मुस्कुराकर कहा, “मां, अब तुम देखना, मैं कनाडा से तुम्हें भी ले जाऊंगी।” चेक-इन हुआ, बोर्डिंग पास मिला और वह खुशी-खुशी इमीग्रेशन काउंटर पर गई।
लेकिन जब अधिकारी ने उसका पासपोर्ट स्कैन किया, तो उसका चेहरा बदल गया। “मैम, एक मिनट रुको,” उसने कहा। दूसरे अधिकारी आए, दस्तावेज देखे और बोले, “मैम, आप हमारे साथ चलिए। यह सिर्फ रूटीन चेक है।” गुरलीन के पैर हल्के हो गए, वह चुपचाप उनके साथ चल दी।
कमरे में जब दरवाजा बंद हुआ, तो गुरलीन के दिल की धड़कन तेज हो गई। अंदर तीन अधिकारी बैठे थे। एक ने पूछा, “आपका नाम?” गुरलीन ने हौले से कहा, “गुरलीन कौर।” उन्होंने पासपोर्ट देखा और फिर कहा, “आपका कॉलेज कहां है?”

गुरलीन ने विश्वास से कहा, “ओंटारियो में है, सर।” दूसरे ने फाइल उठाई और कंप्यूटर पर कुछ टाइप करते हुए बोला, “इस नाम का कोई कॉलेज नहीं है।” गुरलीन के चेहरे का रंग उड़ गया। “पर यह तो मेरे एजेंट ने बताया था,” उसने कहा।
अधिकारी ने कागज घुमाया और दिखाया, “यह रिजल्ट फर्जी है। यह कॉलेज एडमिशन लेटर पर जो कोड है, वह किसी और यूनिवर्सिटी का है।” गुरलीन की आंखों में आंसू आ गए। “मैंने कुछ नहीं किया। मैं तो बस पढ़ाई करना चाहती थी,” वह कहती रही।
भाग 4: पुलिस कार्रवाई
लेकिन मामला पुलिस के हाथ चला गया था। अधिकारी ने फोन किया और कहा, “एक विद्यार्थी फर्जी दस्तावेजों के साथ पकड़ी गई है। केस दर्ज करो।” वह बैठी रोने लगी। “मेरा विश्वास करो, मुझे तो कुछ पता भी नहीं।”
बाहर उसका पिता इंतजार कर रहा था। घंटे बीत गए, लेकिन गुरलीन बाहर नहीं आई। जब एक अधिकारी आकर बोला, “आपकी बेटी से हमें और पूछताछ करनी है। आप घर जाइए।”, तो करतार सिंह की आंखें खुली की खुली रह गईं।
“साहब, कुछ गलत हो गया होगा। वह बच्ची है, उसे छोड़ दो,” पर किसी ने नहीं सुना। उस रात गुरलीन को इमीग्रेशन डिटेंशन सेंटर भेज दिया गया। वह एक छोटे कमरे में बैठी थी, हाथ कांप रहे थे। उसने अपने मन में सोचा, “क्या मेरे सारे सपने खत्म हो गए?”
भाग 5: नवीन अरोड़ा का जाल
उधर, नवीन अरोड़ा का दफ्तर खाली पड़ा था। जिस गांव में वह बड़े-बड़े बोर्ड लगाकर बैठता था, वहां अब ताला लगा था। लोग कहने लगे, “वह तो दो और परिवारों से भी पैसे लेकर गायब हो गया।”
गुरलीन का पिता पुलिस थाने के चक्कर लगाता रहा। “मैंने अपनी बेटी के लिए सब कुछ दिया। वह बेगुनाह है,” वह कहता रहा। लेकिन कानून के अपने रास्ते होते हैं। पुलिस कहती, “जब तक जांच पूरी नहीं होती, कुछ नहीं हो सकता।”
गांव में खबर फैल गई। “गुरलीन पकड़ी गई है। फर्जी वीजा के साथ एजेंट भी भाग गया।” लोग ताने मारते, “अहंकार करती थी, अब देखो हाल।” मां घर में रो-रोकर बेहोश हो गई। पिता की आंखों से आंसू सूख गए थे।
भाग 6: अनजान कॉल
इसी बीच, इमीग्रेशन अधिकारियों को एक अनजान नंबर से कॉल आई। “अगर आप गुरलीन की फाइल खुली रखें, तो आपको असली खेल पता लगेगा। यह सिर्फ एक लड़की का मामला नहीं है।” कॉल कट गई, लेकिन वह एक लाइन जांच अधिकारियों के मन में अटक गई।
गुरलीन को फिर पूछताछ के लिए बुलाया गया। एक अधिकारी ने कहा, “तुम कहती हो, एजेंट ने फाइल बनाई थी। कोई सबूत दे सकती हो?” गुरलीन ने हौले से कहा, “सर, मेरे पास उसके मैसेज हैं। नंबर भी है।”
उन्होंने तुरंत मोबाइल लिया और चैट खोली। नंबर नवीन अरोड़ा के नाम से सेव था। लेकिन जब उन्होंने ट्रेस किया, तो वह नंबर किसी मैपल कंसल्टिंग प्राइवेट लिमिटेड के नाम पर रजिस्टर था, जो कंपनी ही नकली थी।
भाग 7: बड़े नेटवर्क का खुलासा
यह बात मामले को और गहरा कर गई। अब जांच सिर्फ गुरलीन तक नहीं थी। सीधे पंजाब के कुछ एजेंसी दफ्तरों तक पहुंच गई थी। वहीं, दिल्ली के एक और केस की फाइल खुली। एक लड़का ठीक उसी तरह का ऑफर लेटर, वही कोड जैसे सबके पीछे एक ही हाथ हो।
गुरलीन की मां अस्पताल में थी। रो-रो कर बीमार हो गई। गांव में लोगों ने बोलना छोड़ दिया था। कोई तसल्ली देने नहीं आता था। करतार सिंह थाने और एजेंसी दफ्तरों के चक्कर लगाता था। हर जगह एक ही जवाब, “जांच चल रही है।”
इसी दौरान, एक औरत आई, आयशा गिरेवाल, जो एक एनजीओ के लिए काम करती थी, जो फ्रॉड के शिकार लोगों की मदद करती थी। उसने करतार सिंह की कहानी सुनी और कहा, “आपकी बेटी को सिर्फ सिस्टम ने नहीं फंसाया। यह जाल है। मैं उसे बचाने की कोशिश करूंगी।”
भाग 8: जाल का पर्दाफाश
आयशा ने नवीन अरोड़ा के दफ्तर का पता लगाया। वह गई, तो शटर बंद था, लेकिन नीचे एक ब्रोशर पड़ा था, जिस पर एक क्यूआर कोड था। उसने स्कैन किया, तो एक टेलीग्राम चैनल खुला — “मेपल फास्ट ट्रैक।”
वहां विदेश जाने वालों की फर्जी फाइलों की तस्वीरें थीं और हर एक पर एक कोड लिखा था — एनए 11। आयशा ने साइबर सेल को सूचना दी। वहां उन्होंने पता लगाया कि यह चैनल कई शहरों में एक्टिव था — अमृतसर, जालंधर, लुधियाना और मुंबई।
हर जगह से डाटा एक ही आईपी एड्रेस पर जा रहा था। इससे यह साबित हो गया कि यह कोई छोटा ग्रुप नहीं, बल्कि एक बड़ा नेटवर्क था, जो स्टडी वीजा के नाम पर फ्रॉड कर रहा था। लेकिन अभी भी उन्हें यह नहीं पता था कि एनए 11 कौन है।
भाग 9: गुरलीन का साहस
उधर, गुरलीन को बेल मिल गई, लेकिन केस जारी रहा। वह घर आ गई, लेकिन उसकी आंखों में पुरानी चमक नहीं थी। मां ने पूछा, “गुड़िए, अब क्या करोगी?” वह हौले से कहती, “अब डर कर नहीं रहना, मां। अब सच ढूंढना पड़ेगा।”
एक रात वह आयशा से मिलने गई। दोनों ने मिलकर एक नई योजना बनाई कि अगर नवीन नहीं मिल रहा, तो वे लोग जो उससे जुड़े हैं, उन्हें ट्रैप करें। उन्होंने एक नकली फाइल तैयार की और मेपल फास्ट ट्रैक पर पोस्ट कर दी।
कुछ घंटों में ही जवाब आ गया। “एडमिशन तैयार है, मिलने आ जाओ।” अगले दिन वे चंडीगढ़ के कैफे में गए, जहां उन्हें एक बंदा मिला — ब्लैक कैप, वाइट शर्ट और गले में चेन। उसने कहा, “आपका काम हो जाएगा, बस पैसे लाओ।”
आयशा ने उसकी बात के बीच कहा, “तुम्हारा नाम क्या है?” वह हंसकर बोला, “मुझे सब एडवाइजर मिडपल कहते हैं।” लेकिन जैसे ही उसने बैग से फाइल निकाली, बाहर से दो पुलिस वाले दौड़ते आए।
बंदे ने भागने की कोशिश की, लेकिन पकड़ा गया। जब उसकी जेब से मोबाइल निकला, तो स्क्रीन पर सिर्फ एक नाम दिखा — एनए 11 कॉलिंग। उस पल सबको समझ आ गया कि खेल कितना बड़ा था।
भाग 10: असली मास्टरमाइंड
पुलिस ने जब उस बंदे को पकड़ा, उसने पहले तो कुछ नहीं कहा। हर सवाल पर एक ही जवाब — “मुझे कुछ नहीं पता।” लेकिन जब अधिकारियों ने उसका फोन खोला और कॉल लिस्ट देखी, तो सब हैरान रह गए।
वहां हर हफ्ते एनए 11 से कई घंटों की कॉल्स थीं और सबसे आखिरी कॉल दिल्ली से आई थी। उन्होंने उसे दबाना शुरू किया। “सच बता नहीं तो तेरा लंबा केस लगेगा।” कुछ मिनटों बाद उसने हौली आवाज में कहा, “मैं सिर्फ कमीशन लेता हूं। असली बंदा दिल्ली में बैठता है। नवदीप अरोड़ा। वही जो गुरलीन की फाइल बनाता था।”
यह सुनकर गुरलीन चुप हो गई। उसने हौले से कहा, “वह तो नवीन था।” पुलिस अफसर ने कहा, “नाम फर्जी था, लेकिन बंदा एक ही है। वही जाल पिछले 3 साल से चल रहा है।”
अगले दिन आयशा और गुरलीन दिल्ली पुलिस के साथ मिलकर नवदीप को ट्रैक करने लगे। उसका पता नोएडा के एक रेंटेड फ्लैट में मिला। पुलिस ने रेड मारी, लेकिन फ्लैट खाली था। सिर्फ एक लैपटॉप और कई फर्जी पासपोर्ट्स मिले।
लैपटॉप खोलकर देखा गया, तो हर डॉक्यूमेंट पर गुरलीन की फोटो जैसी किसी ना किसी लड़की की तस्वीर थी, जो अब किसी और देश में होम थी। गुरलीन के हाथ ठंडे हो गए। “यह सारी लड़कियां भी मेरी जैसी ही थीं।”
भाग 11: सच्चाई का सामना
आयशा ने कहा, “हां और कईयों का पता भी नहीं लगा कि वह अब कहां हैं।” उन्होंने तुरंत यह सबूत एंबेसी और मीडिया के साथ साझा किए। खबर चैनलों पर फ्लैश हुई — “स्टडी वीजा ग्रुप का खुलासा, सैकड़ों नौजवानों के साथ फ्रॉड।”
लेकिन जिस रात खबर चली, उसी रात आयशा के मोबाइल पर एक अनजान कॉल आई। “तू नहीं जानती जिसे तू खोज रही है, वह तेरे बहुत करीब है। सावधान रह।” कॉल कट गई। आयशा ने तुरंत गुरलीन को बताया। दोनों चुप रह गईं।
दूसरे दिन जब वे पुलिस स्टेशन गईं, उन्होंने बताया कि फ्लैट में मिले डाटा से कुछ नए नंबर मिले हैं। एक नंबर पर कॉल की गई। “हैलो, हु इज दिस?” पर जवाब आया, “आपको यह कॉल नहीं करनी चाहिए थी।” फोन कट गया और कुछ सेकंड बाद वह नंबर डिस्कनेक्ट हो गया।
यह सब देखकर गुरलीन का डर और बढ़ गया। “कहीं वह हमें भी नुकसान ना पहुंचा दे।” आयशा ने कहा, “अब डरना नहीं, सच सामने आना ही चाहिए।”
भाग 12: वीडियो का रहस्य
उस रात दोनों ने लैपटॉप में से एक पुरानी वीडियो ढूंढी। उसमें नवदीप किसी दफ्तर में बैठा बोल रहा था, “सिर्फ साइन करवाओ, बाकी काम मेरे बंदे कर लेंगे। डॉक्यूमेंट रेडी करो मेपल कोड के साथ।”
लेकिन सबसे हैरान करने वाली बात वीडियो के आखिर में थी। एक शख्स कुर्सी पर आकर उसके कंधे पर हाथ रखता है और कहता है, “शाबाश गुरप्रीत।”
आयशा ने वीडियो पॉज की। “गुरप्रीत!” उसने हैरान होकर कहा। “यह तो मेरा मामा है!” कमरे में खामोशी छा गई। दोनों एक-दूसरे की ओर देख रही थीं।
गुरलीन की आंखों में सवाल थे। “क्या मेरे अपने ही सब में शामिल थे?” गुरलीन के दिमाग को जैसे झटका लगा हो। “यह कैसे हो सकता है?” वह हौले-हौले आवाज में कहती रही।
आयशा ने उसे शांत किया। “अब हमें पक्का सबूत लाना पड़ेगा ताकि कोई इंकार न कर सके।” दोनों ने तय किया कि वह अगले दिन गुरप्रीत के घर जाएंगी।
भाग 13: मामा का सामना
अगले दिन वे गुरलीन के गांव पहुंचीं। मामा गुरप्रीत बाहर बैठा था, आम दिनों की तरह चाय पी रहा था। गुरलीन अंदर गई, तो उसने हैरान होकर पूछा, “कुड़िए, तू यहां? सुना था तू जेल में पड़ी है।”
गुरलीन ने सीधा पूछा, “मामा, मेरी फाइल किसने बनाई थी?” वह हंस पड़ा। “वह तो मैं ही करवाता था, बेटी। तुझे तो विदेश जाना था।”
आयशा ने जब उसे वीडियो दिखाई, तो उसका चेहरा एक पल के लिए पीला पड़ गया। “मैं सिर्फ कागज साइन करवाता था। असली काम नवदीप करता था।”
आयशा ने तुरंत कहा, “तू तो वीडियो में उसके साथ बैठा है। तेरे बिना यह जाल चल ही नहीं सकता था।”
गुरप्रीत ने एक पल के लिए चुप्पी तोड़ी और हौले से कहा, “पैसे की लालच ने अंधा कर दिया था। हर फाइल पर मुझे हजारों मिलते थे और मैंने सोचा कौन चेक करेगा?”
गुरलीन की आंखें भर आईं। “मामा, तू ही तो मेरे पिता को मनाने गया था पैसे देने के लिए। तूने ही मेरा सपना तोड़ दिया।” वह रो पड़ी।
भाग 14: न्याय की जीत
गुरप्रीत ने सिर झुका लिया। आयशा ने उसकी बात को रिकॉर्ड किया और तुरंत पुलिस को दिया। उसी रात पुलिस ने गुरप्रीत और नवदीप दोनों को गिरफ्तार कर लिया।
खबर चैनलों पर चलने लगी। “पंजाब से कनाडा वीजा फ्रॉड ग्रुप का पर्दाफाश।” गुरलीन को क्लीन चिट मिल गई। वह अब आजाद थी, पर अंदर से टूट चुकी थी।
जब वह घर वापस आई, मां ने गले लगा लिया और कहा, “बेटी, तू सपना नहीं हारी। सिर्फ उसका रास्ता बदला है।” उस दिन के बाद, गुरलीन ने फैसला किया कि अब वह और बच्चों को यह सच बताएगी।
वह आयशा के साथ मिलकर गांव-गांव गई। स्कूलों और कॉलेजों में बातें की। वह कहती, “विदेश जाना गलत नहीं, पर गलत रास्ता चुनना सबसे बड़ी गलती है। एजेंट नहीं, अपने दस्तावेज खुद बनाओ और हर कागज चेक करवाओ।”
भाग 15: एक नई शुरुआत
लोग पहले हंसते थे, पर धीरे-धीरे गांव की लड़कियां और लड़के गंभीर हो गए। उन्होंने सीख लिया कि चमकदार सपने के पीछे कई बार अंधेरा छुपा होता है। कुछ महीनों बाद, गुरलीन ने अपनी एनजीओ बनाई — “सच का राह।”
अब वह उन बच्चों की मदद करती है, जिनके साथ फ्रॉड हुआ था। हर बार जब कोई नया केस आता, वह कहती, “मैं भी एक बार फंसी थी, पर अब मैं नहीं चाहती कोई और फंसे।”
यह कहानी फिक्शनल है, लेकिन हकीकतों से जुड़ी है। अगर आप भी एजेंटों के धोखे का शिकार हुए हैं, तो कमेंट करके अपनी आवाज उठाएं। और अगर आप चाहते हैं ऐसी और सच्ची कहानियां सुनना, तो वीडियो को लाइक करना और चैनल सब्सक्राइब करना ना भूलें।
निष्कर्ष
गुरलीन की कहानी हमें यह सिखाती है कि सपनों की कीमत क्या होती है। कभी-कभी, हम अपने सपनों को पूरा करने के लिए इतने उत्सुक होते हैं कि हम अपने आस-पास की वास्तविकताओं को नजरअंदाज कर देते हैं। यह जरूरी है कि हम सतर्क रहें और किसी भी निर्णय को सोच-समझकर लें।
गुरलीन ने न केवल अपने लिए बल्कि उन सभी के लिए एक उदाहरण पेश किया है, जो अपने सपनों के पीछे भागते हैं। उसकी कहानी यह साबित करती है कि सच्चाई और मेहनत कभी बेकार नहीं जाती।
इसलिए, अगर आप अपने सपनों को पूरा करना चाहते हैं, तो हमेशा सही रास्ता चुनें और अपने साथियों को भी जागरूक करें, ताकि कोई और गुरलीन की तरह धोखे का शिकार न हो।
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