करोड़पति आदमी से गरीब बच्चों ने कहा… सर खाना नहीं खाइए। इस खाने में आपकी बीवी जहर मिलाई हुई है ।

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बारिश आसमान से मानो टूट कर गिर रही थी। सड़कों पर पानी बह रहा था और उसी भीगी हुई रात में एक छोटी सी परछाई भाग रही थी। वो कोई रईस की बेटी नहीं थी। उसके पैर नंगे थे। कपड़े फटे हुए थे। बाल भीगे हुए और चेहरे से चिपके थे। पर उसकी आंखों में ऐसा डर था जो किसी और के लिए था। अपने लिए नहीं। वो बार-बार खुद से कह रही थी, “मां कहती थी अगर सच पता चल जाए तो चुप मत रहना।” और उसी एक वाक्य ने उसकी रगों में हिम्मत भर दी थी।

वह बच्ची थी काव्या, उम्र मुश्किल से 11 साल, जिसने आज तय कर लिया था कि चाहे कुछ भी हो जाए, वो सच बोलकर रहेगी जो उसने तीन दिन पहले सुना था। बरसात से भीगती गलियों से गुजरते हुए वो सड़क पार करती गई। गाड़ियों के हॉर्न, टायरों से उछलते पानी, लोग छाते लेकर भाग रहे थे। पर उसे किसी की परवाह नहीं थी। उसकी आंखों के सामने बस एक ही जगह थी—नवाब कोर्ट रेस्टोरेंट, जहां शहर के सबसे अमीर लोग डिनर करने आते थे और आज वहां कोई जहर खाने वाला था।

रेस्टोरेंट के बाहर बड़े-बड़े लैंप जल रहे थे। गार्ड्स छाते पकड़े खड़े थे। हवा में इत्र और बारिश की मिलीजुली खुशबू थी। काव्या वहां पहुंची। उसकी सांसे तेज थीं। वो पूरी तरह भीग चुकी थी। कपड़े उसके शरीर से चिपक गए थे। लेकिन चेहरे पर डर नहीं। बस हिम्मत थी। उसने अपने दिल को संभाला और गेट की तरफ बढ़ी।

गार्ड ने रोका। “अरे रुको, अंदर नहीं जा सकती।” पर वो किसी की नहीं सुन रही थी। एक झटके से उसने गार्ड का हाथ छुड़ाया और भीड़ के बीच से निकलती हुई तेजी से अंदर भागी। अंदर रोशनी थी। संगीत था। महंगी हंसी थी। और उसी हंसी के बीच एक मासूम चीख गूंजी। “खाना मत खाइए। उस खाने में जहर है।”

पूरा हॉल ठहर गया। हर चेहरा उस गीली बच्ची की तरफ मुड़ गया। किसी ने कहा, “अरे यह कौन है?” किसी ने कहा, “पागल लगती है।” लेकिन उसकी आंखों में जो डर था, उसने सबको खामोश कर दिया। टेबल नंबर नौ पर नीले सूट में बैठे थे समर प्रताप सिंह। शहर के बड़े बिजनेसमैन, चेहरे पर ठहराव, हाथ में चाकू और सामने प्लेट में गरम खाना। काव्या उनके पास पहुंची। हाफती हुई बोली, “खाना मत खाइए। उस खाने में जहर है।”

करोड़पति आदमी से गरीब बच्चों ने कहा... सर खाना नहीं खाइए। इस खाने में आपकी  बीवी जहर मिलाई हुई है । - YouTube

समर की उंगलियां हवा में थम गईं। सबकी सांसें रुक गईं। “क्या कहा तुमने?” समर की आवाज धीमी लेकिन कांपती हुई थी। काव्या ने हिम्मत जुटाकर कहा, “तीन दिन पहले मैं आपके विला के बाहर बारिश से बचने के लिए झाड़ियों में छुपी थी। आपकी बीवी वहां किसी आदमी से कह रही थी कि समर को कल तक मर जाना चाहिए। और उसने कहा था कि खाने में डिजिटलिस्ट मिला दूंगी। किसी को पता नहीं चलेगा।”

पूरा रेस्टोरेंट एक पल को जड़ हो गया। वाशरूम का दरवाजा खुला। सफेद गाउन में एक महिला बाहर आई। वही थी इशिता सिन्हा। उसके चेहरे पर एक बनावटी हैरानी थी। पर आंखों में घबराहट की झलक थी। वो बोली, “यह बच्ची किसी आश्रम से भागी लगती है। मैनेजर, इसे बाहर निकालो।” लेकिन अब समर का चेहरा पीला पड़ चुका था। उसने हाथ उठाया। “कोई इसे नहीं छुएगा।”

वो धीरे से उठा। उसकी नजरें बच्ची पर टिकी थीं। “तुम्हारा नाम क्या है?” काव्या और तुम्हारी मां रश्मि। यह सुनते ही समर का चेहरा जैसे जम गया। उसके होंठ कांपे। उसने धीमे से पूछा, “क्या तुम्हारे कंधे पर चांद जैसा निशान है?”

काव्या ने दुपट्टा सरकाया। कंधे पर पुराना जला हुआ निशान था। समर की आंखों में आंसू तैर गए। रश्मि ने बताया था बचपन में गर्म पानी गिर गया था। उसकी आवाज टूट गई। “रश्मि मेरी जिंदगी थी।” रेस्टोरेंट में सब लोग अब फुसफुसा रहे थे। किसी ने वीडियो बनाना शुरू किया। पर समर ने सबको रोक दिया। “सब बाहर जाओ।”

उसने कहा, “यह पुलिस का मामला है।” गार्ड्स ने रेस्टोरेंट खाली कराया। अंदर बस दो लोग बचे—समर और वो बच्ची। बाहर बिजली गरज रही थी। लेकिन अंदर एक अलग सन्नाटा था। काव्या कुर्सी पर बैठी थी। भीगी हुई ठंडी सांसें। समर उसके पास आया। उसकी आंखों में देखकर बोला, “तुमने जो कहा वो बहुत बड़ा इल्जाम है। क्या तुम जानती हो इसका मतलब क्या है?”

काव्या बोली, “हां, मुझे पता है। पर मैंने जो देखा और सुना वो सच है। मेरी मां कहती थी अगर किसी की जान बचाने के लिए बोलना पड़े तो डरो मत।”

समर के सीने में जैसे कुछ टूट गया। उसने धीरे से कहा, “अगर तुम रश्मि की बेटी हो तो तुम मेरी जिंदगी की सबसे बड़ी सच्चाई हो।” वो कुछ पल चुप रहा। फिर मैनेजर को बुलाया। “यह प्लेट सील करो। पुलिस को बुलाओ।”

बाहर सायरन की आवाज गूंजी। पुलिस पहुंच चुकी थी। समर ने काव्या को देखा। “अब डरना मत। अब कोई तुम्हें हाथ नहीं लगाएगा।” काव्या ने खिड़की से बाहर देखा। बारिश थम चुकी थी। सड़क पर पानी बहता जा रहा था जैसे सारी गंदगी अपने साथ ले जा रहा हो। उसकी आंखों में अब डर नहीं, सुकून था क्योंकि उसने सच बोलकर किसी की जान बचा ली थी।

और एक आदमी जिसने शायद सब कुछ खो दिया था। उसे अपनी बेटी मिल चुकी थी। रेस्टोरेंट के बाहर पुलिस की गाड़ियां खड़ी थीं। कैमरे चमक रहे थे। मीडिया के माइक हवा में उठे थे और लोगों की भीड़ बस एक सवाल पूछ रही थी। “कौन है यह छोटी सी लड़की जिसने शहर के सबसे अमीर आदमी की जान बचा ली?”

अंदर ताज विला का कमरा अब सन्नाटे में डूबा था। समर प्रताप सिंह खिड़की के पास खड़ा था। हाथ में रिपोर्ट की कॉपी थी और उसके सामने बैठी थी वही बच्ची काव्या। उसकी आंखों में थकान थी। लेकिन डर नहीं। समर ने उसकी तरफ देखा और कहा, “काव्या, जो तुमने आज किया उसके लिए तुम्हारा धन्यवाद भी छोटा शब्द है। अगर तुम नहीं आती तो आज मेरी कहानी यही खत्म हो जाती।”

काव्या ने धीरे से कहा, “मैं तो बस वही कर रही थी जो मां ने कहा था। सच छिपाना सबसे बड़ा पाप होता है।” समर की आंखें भर आईं। उसने कुर्सी खींची और बैठ गया। “तुम्हारी मां रश्मि…” उसने धीरे से कहा। फिर कुछ देर चुप रहा।

काव्या बोली, “क्या आप मेरी मां को जानते थे?” समर की आंखें दूर देख रही थीं जैसे अतीत का कोई पर्दा हट रहा हो। कभी बहुत करीब से उसने कहा, “वो बहुत ईमानदार थी। बहुत सच्ची और बहुत प्यारी, पर जिंदगी ने हमें अलग कर दिया।”

काव्या ने धीमे स्वर में पूछा और फिर समर ने सिर झुका लिया। उसकी उंगलियां कांप रही थीं। “मैंने उसे खोजने की बहुत कोशिश की पर वह कभी नहीं मिली। आज जब तुम्हें देखा तो लगा जैसे जिंदगी ने मुझे फिर वही मौका दिया है जो मैंने सालों पहले खो दिया था।”

पुलिस इंस्पेक्टर अंदर आया। रिपोर्ट हाथ में थी। “सर, हमने खाने का टेस्ट कराया है। उसमें डिजिटलिस्ट पाया गया है। एक दुर्लभ जहर। अगर आपने वो खाना खा लिया होता तो आपकी जान जा सकती थी।”

कमरे में सन्नाटा छा गया। समर की आंखों में दर्द था। पर होठों पर एक हल्की मुस्कान आई। उसने कहा, “तो यह सच था। मेरी पत्नी इशिता मुझे मारना चाहती थी।”

काव्या ने डरते हुए कहा, “क्या अब वो आपको नुकसान पहुंचाएगी?”

समर ने कहा, “नहीं बेटा, अब नहीं। अब उसके झूठ का पर्दा गिर चुका है।” उसने इंस्पेक्टर से कहा, “इशिता को हिरासत में ले लो।”

बाहर सायरन की आवाज गूंजी और एक वक्त में जिस औरत के नाम से पूरा शहर कांपता था, वह अब पुलिस की गाड़ी में बैठी थी। काव्या खिड़की से देख रही थी। जिस दुनिया को वह कभी दूर से देखती थी, आज वह उसी के अंदर खड़ी थी। पर अपनी सच्चाई के साथ।

रात का वक्त था। हवाएं ठंडी थीं। समर ने कहा, “अब तुम मेरे साथ मेरे घर चलो।”

काव्या चौकी, “आपके घर?”

“हां,” समर ने कहा, “अब तुम अकेली नहीं हो। अब तुम मेरी जिम्मेदारी हो।”

वो मुस्कुरा दी। एक मासूम मुस्कान जो शायद कई सालों बाद आई थी। गाड़ी में बैठते हुए उसने खिड़की से बाहर देखा। बारिश अब थम चुकी थी। लेकिन उसके भीतर जो डर था वो भी कहीं दूर चला गया था।

विला सिंह हाउस पहुंचते ही नौकरानी ने दरवाजा खोला। अंदर हर चीज चमक रही थी। संगमरमर का फर्श, बड़े-बड़े शीशे। काव्या के लिए यह सब किसी सपने जैसा था। पर दिल में एक डर था कि कहीं सुबह यह सपना टूट ना जाए।

समर ने उसकी तरफ देखकर कहा, “डरो मत। अब यह घर तुम्हारा भी है।” उसने नौकर से कहा, “इस बच्ची के लिए गर्म दूध और नए कपड़े लाओ।” और फिर धीरे से बोला, “अब तुम सो जाओ।”

रात के सन्नाटे में जब काव्या कमरे में अकेली थी। उसने तकिए में चेहरा छिपाया और आंखों से आंसू बह निकले। वो आंसू दुख के नहीं राहत के थे। शायद पहली बार किसी ने उसे नाम से पुकारा था। पहली बार किसी ने कहा था, “तुम अब अकेली नहीं हो।”

वो धीरे से फुसफुसाई, “मां, मैंने आज सच कहा। अब शायद तुम गर्व करोगी ना।”

अगली सुबह अखबारों की सुर्खियां बस एक ही थी। “गरीब बच्ची ने बचाई अरबपति की जान।” भिखारिन या भगवान के दूत हर चैनल, हर रिपोर्टर उस बच्ची का नाम पूछ रहा था—काव्या सिंह। पर समर के लिए वह सिर्फ एक नाम नहीं थी, वो उसकी दुनिया का अधूरा हिस्सा थी जो अब पूरा हुआ था।

दोपहर को मीडिया ने सवाल पूछे। “सर, क्या आप इस बच्ची को गोद ले रहे हैं?”

समर ने मुस्कुरा कर कहा, “मैं उसे बेटी बना रहा हूं। क्योंकि उसने मुझे जिंदगी दी है।”

उस दिन विला के दरवाजे पर लोगों की भीड़ थी। लेकिन अंदर बस एक रिश्ता जन्म ले चुका था। एक पिता जिसने अपनी बेटी खो दी थी। और एक बेटी जिसने कभी पिता देखा नहीं था।

रात को समर बालकनी में बैठा था। उसने चांद की ओर देखा और कहा, “रश्मि, अगर तुम सुन रही हो। तो जान लो, तुम्हारी बेटी अब अकेली नहीं है। वह सच की बेटी है और सच अब मेरे घर में बस चुका है।”

काव्या ने कमरे की खिड़की से बाहर झांका। आसमान में वही चांद था जो उसकी मां की कहानियों में होता था। उसने मुस्कुरा कर कहा, “मां, अब मुझे डर नहीं लगता क्योंकि अब मेरे पास कोई है जो मुझे बेटी कहता है।”

सुबह की हल्की धूप खिड़कियों से झांक रही थी। काव्या अब सिंह विला के उस कमरे में थी जहां कभी समर की बेटी खेला करती थी। दीवारों पर खिलौने, बिस्तर पर टेडी बीयर और खिड़की पर वही गुलाबी पर्दा जो हवा के साथ झूल रहा था।

काव्या ने धीरे से टेडी को उठाया। उसे सीने से लगाया। शायद उसे लगा जैसे मां की गोद फिर मिल गई हो। नीचे हॉल में समर पुलिस इंस्पेक्टर और वकील के साथ बैठा था। टेबल पर रिपोर्ट रखी थी। मीडिया अब इस केस को सदी का रहस्य कह रही थी क्योंकि किसी को यकीन नहीं हो रहा था कि एक 11 साल की बच्ची ने शहर के सबसे बड़े व्यापारी की जान बचाई और अब वही बच्ची उसकी जिंदगी का सबसे बड़ा सच बन चुकी थी।

इंस्पेक्टर ने कहा, “सर, हमने कुछ सबूत जुटाए हैं। वह बच्ची जो खुद को रश्मि की बेटी बताती है। उसका नाम तो काव्या है पर उसका कोई आधिकारिक रिकॉर्ड नहीं है। हमने डीएनए टेस्ट के लिए सैंपल भेज दिया है। कल तक रिपोर्ट आ जाएगी।”

समर ने सिर झुका लिया। उसकी आंखों में चिंता थी। वह सोच रहा था, अगर यह बच्ची सच में रश्मि की बेटी निकली तो किस्मत ने उसे वापस लौटा दिया है और अगर नहीं निकली तो क्या वो उसे फिर खो देगा।

वो खिड़की से बाहर देख रहा था। बारिश के बाद की मिट्टी की खुशबू हवा में घुली थी और उसे लगा जैसे रश्मि की कोई अधूरी बात हवा में तैर रही हो। उसी वक्त काव्या नीचे आई। वो सफेद फ्रॉक में थी। बाल खुले और आंखों में वही मासूम चमक। उसने धीरे से पूछा, “आप मुझे स्कूल भेजेंगे ना?”

समर मुस्कुरा दिया। “हां, अब तुम सब सीखोगी, पढ़ोगी और जो बनना चाहो वो बनोगी।”

काव्या ने सिर झुका लिया। बोली, “मां कहती थी। अगर पढ़ लोगी तो दुनिया तुम्हें झुका नहीं पाएगी।”

समर की आंखों से आंसू गिर पड़े। उसने कहा, “तुम्हारी मां बिल्कुल सही कहती थी।”

दोपहर तक न्यूज़ चैनल्स पर बस यही खबर थी। “समर सिंह ने उस बच्ची को बेटी मान लिया है जिसने उसकी जान बचाई।” कुछ लोग तारीफ कर रहे थे तो कुछ कह रहे थे यह सब पब्लिसिटी है। समर ने टीवी बंद किया। उसे पता था कि दुनिया सिर्फ देखती है, समझती नहीं।

शाम होते-होते इंस्पेक्टर फिर आया। हाथ में एक सील बंद लिफाफा था। “रिपोर्ट आ चुकी थी।” कमरे अचानक भारी हो गया। काव्या दरवाजे पर खड़ी थी। उसकी आंखों में सवाल थे। समर के हाथ कांप रहे थे। जब उसने लिफाफा खोला। अंदर एक लाइन लिखी थी: “डीएनए मैच पॉजिटिव। काव्या रश्मि और समर की ही बेटी है।”

उस पल जो चुप्पी छाई। उसमें सिर्फ दिल की धड़कनें सुनी जा सकती थीं। समर ने धीरे से नजर उठाई। उसकी आंखें काव्या से मिलीं। वो कुछ कह नहीं पाया। बस आगे बढ़ा और उसे सीने से लगा लिया। काव्या ने अपने छोटे हाथों से उसे कसकर पकड़ा। उसकी आंखों से आंसू बहे पर होठों पर मुस्कान थी।

वो बोली, “अब मां खुश होंगी ना।”

समर ने कहा, “बहुत क्योंकि अब उन्होंने तुम्हें मुझे लौटा दिया है।”

अगले दिन मीडिया विला के बाहर जुटी थी। हर कैमरा उस पल को कैद करना चाहता था जब समर ने अपनी बेटी को आधिकारिक रूप से अपनाया। वह बालकनी में आया। काव्या उसके बगल में थी। उसने कहा, “मैं बस एक बात कहना चाहता हूं। यह बच्ची मेरी बेटी ही नहीं बल्कि मेरा जमीर है। जिसने मुझे याद दिलाया कि सच्चाई सिर्फ अदालत में नहीं, दिल में भी होती है। जो खून का रिश्ता होता है वह शरीर से बनता है। पर जो सच्चाई से जुड़ता है वो आत्मा से बनता है।”

लोग ताली बजाने लगे। काव्या के चेहरे पर वही मुस्कान थी जो किसी टूटे इंसान को जोड़ देती है।

उस रात जब सब सो चुके थे। समर बालकनी में बैठा आसमान की तरफ देख रहा था। चांद के आसपास बादल थे। उसने धीरे से कहा, “रश्मि, अब मैं वादा करता हूं। तुम्हारी बेटी को वही जिंदगी दूंगा जो तुमने उसके लिए मांगी थी। अब कोई उसे भूखा या बेबस नहीं देखेगा।”

अंदर कमरे में काव्या ने तकिए में सिर छिपाया। धीरे से बोली, “मां, अब मैं सच की बेटी हूं।” और सच हमेशा जीतता है। वो सो गई। लेकिन उसकी मुस्कान में एक पूरी कहानी थी जो अब दुनिया सुनने वाली थी।

सुबह की हल्की धूप विला के शीशों पर गिर रही थी। बाहर मीडिया अब भी डेरा डाले थी। हर कैमरा इस कहानी का अंत जानना चाहता था। क्योंकि अब यह सिर्फ एक खबर नहीं बल्कि इंसानियत की मिसाल बन चुकी थी।

अंदर समर अपने ऑफिस रूम में बैठा था। टेबल पर रश्मि की पुरानी तस्वीर रखी थी। उस तस्वीर को देखते हुए उसने कहा, “रश्मि, आज तुम्हारा सपना पूरा हो गया। तुम्हारी बेटी अब सुरक्षित है और मैं उसे कभी अकेला नहीं छोड़ूंगा।”

उसी वक्त दरवाजे पर दस्तक हुई। वकील अंदर आया। उसके हाथ में एक नया केस फाइल थी। उसने कहा, “सर, इशिता की बेल एप्लीकेशन दाखिल हो चुकी है। वह जेल से बाहर आना चाहती है। वह मीडिया में यह कह रही है कि काव्या ने झूठ बोला है और यह सब सिर्फ प्रॉपर्टी हथियाने की साजिश थी।”

समर ने सिर झुका लिया। वह जानता था कि सच के रास्ते में झूठ का तूफान हमेशा आता है। उसने शांत स्वर में कहा, “अब समय आ गया है कि मैं इस शहर को बताऊं कि सच्चाई कैसी दिखती है।”

अगले दिन प्रेस कॉन्फ्रेंस रखी गई। हॉल कैमरों और माइक से भरा था। समर मंच पर आया। उसके साथ काव्या भी थी। वह अब किसी गरीब बच्ची जैसी नहीं दिख रही थी। सफेद सूट में सादगी और आत्मविश्वास से भरी हुई।

समर ने कहा, “मैं उस औरत से प्यार करता था जिसने मेरे साथ धोखा किया और उस बच्ची को अपनाया जिसने मुझे फिर से इंसान बना दिया। इस बच्ची ने ना सिर्फ मेरी जान बचाई बल्कि मेरे अंदर का इंसान भी।”

काव्या ने धीरे से माइक पकड़ा। उसकी आवाज मासूम थी पर हर शब्द में सच्चाई थी। उसने कहा, “जब मैं छोटी थी तो मां कहती थी, अगर कोई तुम्हें झूठे रास्ते पर धकेलना चाहे तो सच्चाई को अपनी ढाल बना लेना। मैं वही कर रही हूं। मैंने झूठ नहीं बोला। मैं बस चुप नहीं रही। और अगर सच बोलना अपराध है तो मैं हर जन्म में वही अपराध करूंगी।”

पूरा हॉल तालियों से गूंज उठा। इशिता की वकील की अपील उसी शाम कोर्ट ने खारिज कर दी और फैसला सुनाते हुए जज ने कहा, “यह मामला सिर्फ एक मर्डर अटेम्पट का नहीं। यह सच्चाई बनाम झूठ की लड़ाई थी। जहां जीत उसी की हुई जिसने बिना ताकत, बिना डर और बिना लालच के सच बोला।”

बाहर बारिश फिर शुरू हो गई थी। लेकिन इस बार वह डर के नहीं राहत की बारिश थी। काव्या ने बालकनी में खड़े होकर आसमान की ओर देखा। बारिश की हर बूंद उसे उसकी मां की आवाज सी लग रही थी। वो मुस्कुरा दी क्योंकि अब उसके भीतर कोई डर नहीं था। अब उसे पता था कि सच की आवाज कभी डूबती नहीं।

समर उसके पीछे आया। उसने कंधे पर हाथ रखा और कहा, “अब यह घर सिर्फ मेरा नहीं, हमारा है और इस घर का नाम अब रश्मि विला होगा।”

काव्या ने उसकी तरफ देखा। आंखों में चमक थी। बोली, “मां का नाम फिर से जिंदा हो गया।”

अगले दिन जब अखबार निकले, हर पन्ने पर सिर्फ एक हेडलाइन थी। “सच की बेटी काव्या सिंह” और नीचे लिखा था “जिस बच्ची ने अमीरी के बीच इंसानियत की याद दिलाई। उसने साबित किया कि खून नहीं, सच्चाई ही सबसे बड़ा रिश्ता है।”

शाम को सिंह विला के बाहर गरीब बच्चों का एक छोटा सा स्कूल खुला। उसका नाम रखा गया “रश्मि आशा केंद्र।” जहां कोई बच्चा भूखा या अनपढ़ नहीं रहेगा।

काव्या बच्चों के बीच खड़ी थी। उसने वही बात दोहराई जो उसकी मां ने कही थी। “अगर सच बोलना मुश्किल लगे तो डर से मत भागना। बस खुद से झूठ मत बोलना।”

समर दूर खड़ा सब देख रहा था। उसकी आंखें भर आईं। वह जानता था कि अब उसकी दुनिया पूरी हो चुकी है। क्योंकि उसकी बेटी ने सिर्फ उसका नाम नहीं, उसकी सोच भी अमर कर दी थी।

रात को जब काव्या ने आसमान की तरफ देखा तो चांद के चारों ओर हल्की रोशनी थी। उसने आंखें बंद की और कहा, “मां, अब मुझे डर नहीं लगता क्योंकि मैंने देख लिया है कि सच के रास्ते पर दर्द तो होता है पर मंजिल हमेशा खूबसूरत होती है।”

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