करोड़पति बाप की खोई हुई बेटी सड़क पर गाड़ियाँ साफ़ करती मिली… पर बेटी ने बाप को पहचाना नहीं फिर…

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एक करोड़पति पिता जिसने अपनी बेटी को सालों पहले एक हादसे में खो दिया था। वही बेटी सालों बाद सड़कों पर गाड़ियां साफ करती दिखती है। लेकिन अब उसे कुछ भी याद नहीं था। पिता उसे पहचान लेता है, पर बेटी उसे बस एक अजनबी अमीर आदमी समझती है। यह कहानी है मुकेश मल्होत्रा और उसकी खोई हुई बेटी मानसी की, जो किस्मत के खेल में एक दूसरे से बिछड़ गए थे।

शुरुआत

सुबह के 7:00 बज रहे थे। शहर की सड़कों पर गाड़ियों का शोर बढ़ चुका था। उसी भीड़ में एक छोटी सी लड़की, मानसी, थोड़े फटे पुराने कपड़े पहने नंगे पैर, हाथ में एक गीला कपड़ा थामे हर रुकती गाड़ी के शीशे की ओर भागती थी। “साहब, गाड़ी साफ करवा लो, बस ₹5 दे देना,” वह चिल्लाती थी। मानसी की उम्र मुश्किल से 10 या 11 साल थी, लेकिन उसकी आंखों में उम्र से कहीं ज्यादा थकान थी।

उसके चेहरे पर मासूमियत तो थी, लेकिन किस्मत ने उस मासूमियत को जख्मों से ढक रखा था। वह हर दिन उसी सिग्नल पर आती थी, जहां लोगों के पास गाड़ियों के ब्रांड तो होते थे, पर दिल में इंसानियत के लिए जगह नहीं। जब वह गाड़ी की खिड़की पर कपड़ा फेरती, तो कुछ लोग शीशा ऊपर कर लेते, कुछ ताने मारते, और कुछ तो बिना देखे ब्रेक दबा देते, जैसे वह कोई इंसान नहीं, बस एक रुकावट हो।

मानसी की संघर्ष भरी जिंदगी

मानसी हर बार मुस्कुराने की कोशिश करती क्योंकि उसे पता था कि मां नहीं है, घर नहीं है, और पेट भरने के लिए यही एक सहारा है। कभी किसी की गाड़ी साफ कर देती तो पैसे नहीं मिलते। कभी कोई मुस्कुरा कर नोट दिखाता और भाग जाता। कभी कोई बदचलन कहकर धक्का दे देता। पर वह चुप रहती थी। क्योंकि जिंदगी ने उसे सिखा दिया था—बोलना नहीं, बस झेलना है।

उसी दिन सिग्नल पर एक चमचमाती काली गाड़ी रुकी। उसकी सीट पर बैठा था मुकेश मल्होत्रा, शहर का बड़ा बिजनेसमैन। महंगे कपड़े, ब्रांडेड घड़ी, और चेहरे पर वो आत्मविश्वास जो सालों की सफलता से आता है। मानसी उसी गाड़ी की ओर दौड़ी। “साहब, शीशा साफ कर दूं?” मुकेश ने मोबाइल से नजर उठाई और थोड़ा झुंझला कर कहा, “नहीं, हटो इधर से।” पर मानसी फिर भी रुक नहीं। उसने धीरे से शीशा पोंछना शुरू किया और मुस्कुराई। “बस ₹2 दे देना, आज कुछ खाया नहीं।”

पर उसी समय सिग्नल हरा हुआ। गाड़ी आगे बढ़ गई और मुकेश ने पलट कर भी नहीं देखा। उसके लिए वह बस एक सड़क की बच्ची थी। लेकिन किस्मत की कहानी वहीं से लिखी जाने लगी थी, जिस दिन उसने उस बच्ची को नजरअंदाज किया था।

दूसरी मुलाकात

अगले दिन वही सिग्नल, वही भीड़, वही तपती धूप, और मानसी भी वहीं खड़ी थी। वह हर गाड़ी की ओर भागती पर आज सब उसे भगा रहे थे। “चल हट यहां से। कल तेरा कपड़ा गिरा था मेरी गाड़ी पर। इतना गंदा कपड़ा है। पूरी गाड़ी गंदी कर देती है। चली जा यहां से।” एक आदमी ने गाड़ी के शीशे से हाथ निकालकर उसे धक्का दे दिया। वह वहीं सड़क पर गिर गई। कपड़ा कीचड़ में जा गिरा और उसके साथ उसकी उम्मीदें भी।

भीड़ ने देखा पर किसी ने हाथ नहीं बढ़ाया। किसी के मोबाइल से सेल्फी निकल रही थी, किसी की गाड़ी से हॉर्न बज रहा था, पर किसी ने उसे उठाने की कोशिश नहीं की। उसी वक्त वही काली गाड़ी फिर आई। गाड़ी के अंदर बैठा था वही आदमी—मुकेश। उसने अनजाने में खिड़की से बाहर झांका और उसकी नजर उस लड़की पर पड़ी जो कीचड़ में गिर कर उठने की कोशिश कर रही थी।

मुकेश का बदलाव

वो पल जैसे किसी ने उसके दिल पर पत्थर रख दिया हो। उसके मन ने कहा, “क्यों ना उसे उठा लूं?” पर दिमाग बोला, “यह तो हर रोज का दृश्य है। इसे क्या फर्क पड़ता है?” पर इस बार कुछ अलग था। वह लड़की उठी, अपने कपड़े झाड़े और फिर उसी की गाड़ी की तरफ बढ़ी। धीरे-धीरे कदमों से धूल भरे चेहरे के पीछे कुछ चमक थी, कुछ ऐसी जो मुकेश के दिल को झकझोर रही थी।

वह पास आई और बिना कुछ बोले शीशा पोंछने लगी। मुकेश ने गहराई से उसकी ओर देखा। कुछ अजीब सी पहचान, कुछ अनकहा सा अपनापन। पर याद नहीं आ रहा था कि कहां देखा है यह चेहरा। उसने पूछा, “क्या नाम है तुम्हारा?” उसने मुस्कुराकर कहा, “मानसी। मां कहती थी यह नाम भगवान ने दिया है।” मुकेश के हाथ कांप गए। क्योंकि मानसी यही नाम उसने अपनी उस बेटी का रखा था जो 8 साल पहले एक हादसे में खो गई थी।

वह ठिठक गया। दिल जोर-जोर से धड़कने लगा। पर हंठ कुछ नहीं कह पाए। सिग्नल हरा हुआ। लोग हॉर्न बजा रहे थे। पर उसके लिए वक्त थम गया था। गाड़ी धीरे-धीरे आगे बढ़ी पर उसके दिल में तूफान उठ चुका था। वह बार-बार पीछे मुड़कर देखने लगा और मानसी उसी जगह खड़ी थी एक टूटी हुई मुस्कान के साथ जैसे उसे अब भी किसी उम्मीद का इंतजार हो।

रात की बेचैनी

उस रात मुकेश मल्होत्रा ने नींद में भी चैन नहीं लिया। महल जैसा घर था लेकिन दिल एक सड़क की गंदगी में अटका हुआ था। बार-बार वही चेहरा, वही मुस्कान, वही नाम, मानसी जैसे कोई अनदेखी डोर उसकी रूह को खींच रही थी। उसने पलंग पर करवट बदली, टेबल पर रखी बेटी की पुरानी तस्वीर उठाई।

वो तस्वीर जिसमें उसकी छोटी सी मानसी उसके कंधों पर बैठी हंस रही थी। वही नाक का छोटा सा तिल, वही भूरी आंखें, वही मुस्कान, दिल धड़क उठा। नहीं, यह नहीं हो सकता। उसने खुद से कहा, पर अगर वह सच में मेरी मानसी हो, तो यह दुनिया मुझे माफ नहीं करेगी कि मैंने उसे सड़क पर तड़पने दिया।

दूसरी सुबह का सामना

अगली सुबह वही सिग्नल, वही शोर, वही भीड़। पर आज मुकेश की नजर किसी रिपोर्ट पर नहीं, बस उस एक बच्ची पर थी। उसने गाड़ी को साइड में रोका। भीड़ में नजर दौड़ाई पर मानसी नहीं दिखी। उसका दिल कांप उठा। कहीं कुछ हो तो नहीं गया? थोड़ी दूर जाकर उसने देखा। लोगों का झुंड लगा था।

भीड़ के बीच एक छोटी सी देह जमीन पर बैठी थी। हाथ में गीला कपड़ा था और आंखों में आंसू। किसी ने धक्का दे दिया था। गाड़ी साफ करते वक्त वह गिर गई थी और उसका पैर घायल हो गया था। मुकेश भीड़ चीरते हुए पास पहुंचा। “रुको, हटो सब।” मानसी ने डरते हुए उसकी तरफ देखा। उसकी आंखों में मासूम दर्द था। “साहब, मैं गिरी नहीं। बस थोड़ी जल्दी थी। आपको रोकना चाहती थी।”

पिता का प्यार

मुकेश ने कांपती आवाज में पूछा, “कहां दर्द है, बेटा?” वह चौकी। किसी ने उसे बेटा कहकर बरसों बाद बुलाया था। मुकेश ने अपनी जेब से पानी की बोतल निकाली। उसके कपड़े से उसका घुटना साफ किया और अपने ड्राइवर से कहा, “इस बच्ची को अस्पताल ले चलो।” भीड़ में सब हैरान थे। “अरे, इतना बड़ा आदमी सड़क की बच्ची को अस्पताल ले जा रहा है।” पर मुकेश को किसी की परवाह नहीं थी।

अस्पताल पहुंचते ही डॉक्टर ने इलाज किया और मुकेश दूर खड़ा उसे देखता रहा। जैसे आंखों के सामने किसी पुराने घाव का पट्टा खुल रहा हो। थोड़ी देर बाद डॉक्टर बोला, “चोट हल्की है लेकिन बच्ची बहुत कमजोर है। लगता है कई दिनों से ठीक से खाया नहीं।” मुकेश ने धीरे से पूछा, “तेरे घरवाले कहां हैं?” मानसी ने सिर झुका लिया। “घर?” उसने मुस्कुराकर कहा, “सड़क ही मेरा घर है, साहब। जब बारिश आती है तो वह पेड़ मेरा छत बन जाता है और जब ठंड लगती है तो बस का इंजन मेरी आग।”

उसके हर शब्द ने मुकेश के दिल में कील ठोक दी। वह सोचने लगा, जिस बेटी को उसने कभी खोया समझा था, वह शायद किसी कोने में जिंदा रही। पर जिंदगी ने उसे जीने नहीं दिया।

अगले दिन का वादा

शाम को जब वह उसे छोड़ने जा रहा था, मानसी बोली, “साहब, मैं ठीक हूं अब, आप जाइए। लोग हंसते हैं जब कोई बड़ा आदमी मेरे साथ दिखता।” मुकेश ने कांपती आवाज में कहा, “लोग जो चाहे कहें पर तुम अकेली नहीं हो अब।” वह थोड़ा रुकी फिर बोली, “आप अच्छे हो, बिल्कुल मेरे पापा जैसे। मां कहती थी मेरे पापा का दिल बहुत बड़ा था।”

उस एक लाइन ने मुकेश की रूह तक हिला दी। उसकी आंखें नम हो गईं। उसने उसकी ओर देखा और मुस्कुरा कर बोला, “अगर तुम्हारे पापा होते तो वह बहुत खुश होते तुमसे।” मानसी मुस्कुरा दी। “काश वो सच में होते।” वह पल ऐसा था जहां एक बाप अपनी बेटी के सामने था। पर उसे बताने की हिम्मत नहीं थी कि वह सच में उसका पिता है।

मुकेश का संकल्प

वह चाहता था पहले उसकी जिंदगी संवार दे फिर सच बताएं। रात को घर लौटकर मुकेश बालकनी में खड़ा था। हवा में बारिश की हल्की नमी थी। वह सोच रहा था कैसे भगवान ने उसे दोबारा एक मौका दिया है अपनी खोई हुई बेटी को पाने का। पर शायद अब वह इतनी टूटी हुई है कि उसे जोड़ना आसान नहीं होगा।

उसने आसमान की ओर देखा। “भगवान, इस बार गलती नहीं करूंगा। बस उसे वापस मुझे दे दे।”

दूसरी मुलाकात

अगली सुबह उसने किसी से कुछ नहीं कहा। बस अपने ड्राइवर से बोला, “चलो उसी सिग्नल पर।” गाड़ी धीरे-धीरे उस जगह पहुंची जहां उसकी दुनिया का सबसे बड़ा दर्द और सबसे प्यारा रिश्ता था। सड़क पर मानसी खड़ी थी। पर आज वह पहले से थोड़ी कमजोर लग रही थी। पर आंखों में वही चमक थी। जैसे ही मुकेश की गाड़ी रुकी, वह दौड़ी। “साहब, आज जल्दी आए हैं।” मुकेश मुस्कुरा दिया।

“हां, आज तेरी मेहनत की कीमत पहले दूंगा।” वह हंसी। “साहब, पैसे नहीं चाहिए। बस एक बिस्कुट है क्या?” मुकेश ने हाथ बढ़ाया, बिस्किट का पैकेट दिया और उसके बालों पर हाथ रखा। उस पल उसने महसूस किया कि जिंदगी में सब कुछ पाकर भी वह जिस सुकून की तलाश में था, वह उसे सिर्फ इस मासूम के सिर पर हाथ रखकर मिला।

मानसी का संकल्प

दिन बीतते गए। पर मुकेश मल्होत्रा के दिल में वो चेहरा अब भी ठहरा हुआ था। वो मासूम आंखें, वो झिझकती मुस्कान, वो दर्द से भरा चेहरा। हर रोज उसकी यादें उसे उसी सिग्नल तक खींच ले जाती जहां मानसी अपनी जिंदगी की सबसे छोटी-छोटी खुशियों के लिए लड़ रही थी।

वो अब उसकी मदद गुपचुप करने लगा था। कभी दूर से किसी दुकान वाले को पैसे देकर बोल देता, “इस बच्ची को खाना दे देना।” कभी किसी एनजीओ को चुपचाप दान भेज देता ताकि कोई उसकी पढ़ाई शुरू करा सके। लेकिन मानसी को पता नहीं था कि जो उसके लिए दुआएं मांग रहा है, वह उसका अपना खोया हुआ बाप है।

सच्चाई का सामना

एक दिन मुकेश ने ठान लिया। अब उसे मानसी का सच जानना ही होगा। वह अपने पुराने आदमी शर्मा जी को बुलाता है। “उस बच्ची का पता लगाओ। नाम है मानसी। रोज सिग्नल पर होती है।” शर्मा जी ने कई दिन उस इलाके में खोजबीन की। फिर एक दिन फाइल लेकर आया। “सर, जो पता चला है, वह अजीब है। यह बच्ची 8 साल पहले एक सड़क हादसे में घायल हुई थी, जहां उसकी मां की मौत हो गई थी। पुलिस ने केस दर्ज किया था, लेकिन बच्ची की पहचान नहीं मिल पाई। वह कुछ महीनों बाद अस्पताल से गायब हो गई। शायद उसे किसी ने उठाकर काम पर लगा दिया।”

मुकेश के हाथ कांपने लगे। आंखों के सामने वह हादसे की रात घूमने लगी। वही रात जब उसकी गाड़ी नदी में गिर गई थी। वह बच गया था। लेकिन उसकी पत्नी और बेटी दोनों बह गए थे। वो रोया था। सालों तक खुद को दोष देता रहा था। पर आज उसे एहसास हुआ कि किस्मत ने उसे एक और मौका दिया है। “वह मेरी बेटी है,” उसने कांपती आवाज में कहा, “वह मेरी मानसी है।”

सच्चाई का खुलासा

अगले दिन मुकेश ने फैसला किया कि अब वह सच्चाई मानसी को बताएगा। वह उसके लिए नए कपड़े, खिलौने और एक छोटा सा हार लेकर निकला। वही हार जो उसने सालों पहले अपनी बेटी के लिए खरीदा था। जिसे किस्मत ने कभी पहनने नहीं दिया।

सड़क पर वही भीड़ थी। वही सिग्नल, वही धूल। मानसी गाड़ियों के बीच भाग रही थी। हाथ में पुराना कपड़ा था। चेहरे पर मासूम मुस्कान। मुकेश ने गाड़ी रोकी। धीरे से उतरा और उसकी ओर बढ़ा। “मानसी,” उसने पुकारा। वह पलटी। “साहब, आप आ गए।” उसने मुस्कुरा कर कहा। “आज काम नहीं करना है। मेरे साथ चलो।” वह झिझकी। “कहां साहब? मुझे देर हो जाएगी। लोग गाली देते हैं अगर मैं सिग्नल पर ना आऊं।”

“बस कुछ देर,” उसने कहा, “मैं तुम्हें कहीं अच्छी जगह ले चलूंगा।” वह थोड़ा डरी फिर बोली, “आप अच्छे हैं पर मुझे डर लगता है। दुनिया भरोसे लायक नहीं।” मुकेश की आंखें नम हो गईं।

वो बोला, “तुम्हें मुझ पर भरोसा करना होगा मानसी क्योंकि मैं वो हूं जिसने तुम्हें इस दुनिया में सबसे ज्यादा प्यार किया था।” मानसी हैरान थी। “आप क्या कह रहे हैं?” मुकेश ने जेब से वो हार निकाला। धीरे से उसकी हथेली पर रखा। “यह हार तुम्हारा है। तुम्हारी मां ने तुम्हारे जन्मदिन पर तुम्हारे लिए चुना था। जब तुम 5 साल की थी, तुमने कहा था, ‘पापा, मैं यह वाला पहनूंगी।’”

खोई हुई पहचान

मानसी की आंखें फैल गईं। उसके चेहरे पर सन्नाटा छा गया। वो पीछे हटी। “आप कौन हैं?” मुकेश ने रोते हुए कहा, “मैं तुम्हारा पापा हूं। मानसी, जिसे तुमने खो दिया था। जिसने हर दिन तेरी याद में खुद को कोसा है।” मानसी की आंखों में आंसू आ गए। पर उनमें डर भी था, शक भी था। “नहीं, मेरे पापा तो मर गए थे। मां ने कहा था कि वह वापस नहीं आएंगे।”

मुकेश घुटनों पर बैठ गया। “मुझसे गलती हुई बेटा। हादसे में मैं बच गया। पर मैंने सोचा तुम चली गई। मैं हर दिन मरता रहा।” वह बोली, “अगर आप मेरे पापा हैं, तो इतने साल मुझे सड़क पर क्यों छोड़ दिया?” वो सवाल उसके दिल को चीर गया।

“क्योंकि मुझे लगा तुम अब इस दुनिया में नहीं हो,” वह बिखर गया। उस पल बारिश शुरू हो चुकी थी। आसमान जैसे उनके दर्द को समझ गया हो। मुकेश ने उसे सीने से लगा लिया। दोनों रो रहे थे। एक खोया हुआ बाप और उसकी टूटी हुई बेटी।

अचानक हादसा

पर किस्मत अभी भी पूरी कहानी खत्म नहीं करने वाली थी। सड़क के दूसरे छोर से अचानक एक गाड़ी ने तेज हॉर्न मारा। लोग चिल्लाए, “साइड हो जाओ!” मुकेश ने मुड़कर देखा। गाड़ी उनकी ओर आ रही थी। वह पल सिर्फ एक सेकंड का था। मुकेश ने मानसी को धक्का देकर बचाया पर खुद रास्ते में आ गया।

तेज ब्रेक की आवाज, लोगों की चीखें और मानसी का चिल्लाना। “पापा!” मुकेश सड़क पर गिरा था। चेहरे पर खून, पर होठों पर मुस्कान। उसने कांपते हुए कहा, “अब डरना मत। अब कोई तुझे सड़क पर नहीं छोड़ने देगा।” मानसी उसकी गोद में सिर रखकर रो पड़ी। “पापा, मत जाइए।”

पिता की अंतिम सांस

मुकेश की आंखें धीरे-धीरे बंद हो गईं। वह मुस्कुरा कर बोला, “भगवान ने जो नहीं दिया था, वह तू दे गई।” और फिर एक लंबी सांस के साथ उसकी रूह चली गई। कभी-कभी जिंदगी इतनी देर से मिलाती है कि जब दिल पहचानता है तो वक्त छीन लेता है।

मुकेश चला गया पर उसकी आंखों की आखिरी चमक ने दुनिया को दिखा दिया कि रिश्ते खून से नहीं, एहसास से जिंदा रहते हैं। मानसी उसी सिग्नल पर खड़ी थी। पर इस बार वह अकेली नहीं थी। उसके दिल में अपने पिता की आवाज थी। “अब कोई तुझे सड़क पर नहीं छोड़ेगा।”

मानसी की नई जिंदगी

कुछ साल बाद सड़क की धूल, हॉर्न की आवाज और भीड़ की चिल्लाहट अब भी वहीं थी। पर उस भीड़ में अब मानसी अकेली नहीं थी। वो अब बड़ी हो चुकी थी। उसकी आंखों में वही मासूमियत थी। लेकिन चेहरे पर नई जिम्मेदारी और दृढ़ निश्चय की चमक थी।

सालों की भूख, ठोकरें और तानों ने उसे तोड़ने की कोशिश की थी। पर हर चोट ने उसे मजबूत बनाया था। हर ठुकराए गए पैसे ने उसे सिखाया था कि दुनिया में बदलाव की शुरुआत खुद से होती है। मानसी ने अपने पिता मुकेश की याद में एक एनजीओ बनाया था—”सड़क से सपनों तक।”

यहां वह वही बच्चों की मदद करती थी जो सड़क पर भूख, ठंड और तानों के साथ जूझ रहे थे। हर बच्चा, हर लड़की और हर गरीब मुस्कुराहट के लायक था जैसे उसके पिता चाहते थे।

एक नई शुरुआत

आज भी जब वह सड़क पर जाती तो लोग उसे पहचानते थे। “यह वही लड़की है जो कभी सड़क पर काम करती थी।” और मानसी मुस्कुरा कर कहती, “हां, यही मैं थी पर अब मैं उन्हें वह मौका देती हूं जो मुझे कभी नहीं मिला।”

उस दिन भी बारिश हो रही थी पर अब बरसात केवल ठंडक नहीं, एक नई शुरुआत का संदेश थी। मानसी बच्चों को समेटकर एनजीओ के घर ले जा रही थी। हर बच्चे की आंखों में चमक देख वह अपने पिता की आखिरी मुस्कान को महसूस कर रही थी।

“पापा,” उसने फुसफुसाया। “आप नहीं हो पर मैं जानती हूं कि आप हमेशा मेरे साथ हैं। अब मैं वही करूंगी जो आपने कभी सपना देखा था। सड़क के हर बच्चे को एक घर, एक आशा और एक भविष्य दूंगी।”

एनजीओ का पहला कार्यक्रम

एनजीओ का पहला कार्यक्रम शुरू हुआ। सड़क पर रोते बच्चों के चेहरे पर मुस्कान आ रही थी। खिलौने, किताबें और गर्म कपड़े उनके हाथों में थे। मानसी ने देखा हर बच्चा जैसे उसके पिता का स्पर्श महसूस कर रहा था। वह खुद भी याद कर रही थी।

कैसे उसने कभी अपने पिता की गोद को ढूंढा? कैसे उसने हर ठुकराए हुए पैसे और तानों के बावजूद खुद को संभाला। और अब वही शक्ति, वही प्यार दूसरों में फैल रहा था।

सच्चाई और प्यार का जादू

कभी-कभी जिंदगी दर्द देती है। कभी-कभी खुशियां दे देती है। पर अगर आपका दिल सच्चाई और प्यार से भरा हो तो हर खोया हुआ रिश्ता, हर टूटा हुआ सपना आपके जीवन में एक नई सुबह बना सकता है।

मानसी की आंखों में आंसू थे। पर इस बार वह आंसू खुशी और शांति के थे क्योंकि उसने पाया पिता भले नहीं रहे पर उनके सपनों को सच करने की जिम्मेदारी अब उसके हाथ में थी और उसने उसे निभाया।

समापन

आपको यह कहानी कैसी लगी, हमें कमेंट में जरूर बताना और आप हमारे वीडियो को भारत के किस कोने से देख रहे हैं, यह भी जरूर बताना। तो मिलते हैं अगली कहानी के साथ। तब तक के लिए जय हिंद।