करोड़पति लड़की ने गरीब लड़के को दी मदद, लेकिन जब उसे सच्चाई पता चली तो उसके पैरों तले की ज़मीन खिसक

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दिल, इरादे और मोहब्बत

1. दो दुनिया, दो जिंदगियां

दिल्ली—एक शहर, दो चेहरे। एक तरफ लुटियंस की चौड़ी, हरी-भरी सड़कें, बंगले, आलीशान गाड़ियां, दूसरी तरफ यमुना के किनारे बसी तंग, बदबूदार झुग्गी बस्तियां। इन्हीं दो चेहरों के बीच पलती हैं दो जिंदगियां—आन्या और रोहन।

आन्या मेहरा

शहर के सबसे बड़े बिल्डर सिद्धार्थ मेहरा की इकलौती बेटी। जोरबाग के महलनुमा बंगले में रहने वाली, विदेशी परिंदों की चहचहाहट में जागने वाली, जिनकी सुबह महंगे ब्रेकफास्ट और शाम ग्लैमरस पार्टियों में गुजरती थी। दौलत उसके कदमों में थी, लेकिन दिल मोम सा था—नरम, दयालु, और दूसरों के दुख को महसूस करने वाला।

रोहन

झुग्गी बस्ती का लड़का, टीन और त्रिपाल की झोपड़ी में रहने वाला, फैक्ट्री के सायरन और बीमार मां की खांसी से सुबह शुरू करने वाला। कॉलेज का टॉपर, लेकिन गरीबी का शिकंजा कसता जा रहा था। मां शारदा के दिल में छेद, ऑपरेशन के लिए पैसे नहीं। रोहन मजदूरी करता, पढ़ाई करता, सपने देखता—एक दिन बड़ा इंजीनियर बनने का, मां को अच्छे घर में रखने का।

2. पहली मुलाकात—बारिश की रात

एक दिन दिल्ली की बारिश ने दोनों दुनियाओं को मिला दिया। आन्या अपनी स्पोर्ट्स कार में दोस्त की पार्टी से लौट रही थी, ड्राइवर छुट्टी पर था। कार सुनसान सड़क पर खराब हो गई। फोन नेटवर्क से बाहर, बारिश तेज होती गई। डर के बावजूद, आन्या मदद की तलाश में झुग्गी बस्ती की तरफ बढ़ी।

वह कीचड़ और गंदगी से बचती-बचाती एक छोटी गली में पहुँची, जहाँ एक लड़का अपनी किताबों को बारिश से बचाने की कोशिश कर रहा था—वह रोहन था। उसके हाथ में इंजीनियरिंग की मोटी किताब थी।

आन्या ने झिझकते हुए आवाज दी, “एक्सक्यूज मी, क्या आप मेरी मदद कर सकते हैं? मेरी कार खराब हो गई है।”
रोहन ने देखा—भीगती लड़की, डिजाइनर कपड़े, मासूम चेहरा। वह अपनी किताबें संभालकर बाहर आया, कार का बोनट खोला, कुछ तारों को जोड़ा और कहा, “अब स्टार्ट करो।”
कार एक बार में स्टार्ट हो गई। आन्या मुस्कुरा उठी—”थैंक यू सो मच! तुम तो बहुत जीनियस हो। मैं तुम्हें क्या दे सकती हूं?”
उसने 2000 रुपये का नोट बढ़ाया।
रोहन ने नोट देखा, फिर उसकी आंखों में स्वाभिमान की चमक थी। “माफ कीजिएगा मैडम, मुझे पैसे नहीं चाहिए। मैंने बस एक इंसान के नाते आपकी मदद की।”

आन्या हैरान थी। आज तक किसी ने उसके पैसे लेने से मना नहीं किया था। “तुम करते क्या हो?”
“इंजीनियरिंग फाइनल ईयर में हूं, मां बीमार है।”
आन्या का दिल पसीज गया। उसने कहा, “तुम चिंता मत करो। तुम्हारी मां का ऑपरेशन देश के सबसे अच्छे अस्पताल में होगा, सारा खर्च मैं दूंगी। तुम्हारी पढ़ाई का भी।”

रोहन को यकीन नहीं हुआ। “नहीं मैडम, इतना बड़ा एहसान नहीं ले सकता।”
“यह एहसान नहीं, तुम्हारे टैलेंट की फीस है। अगर तुम मना करोगे, तो मुझे लगेगा तुमने मेरी मदद को ठुकरा दिया।”

रोहन ने नम आंखों से कहा, “मैं आपका उपकार जिंदगी भर नहीं भूलूंगा।”

3. दोस्ती, मोहब्बत और बदलाव

उस दिन के बाद आन्या की जिंदगी बदल गई। उसने शारदा जी को बड़े अस्पताल में भर्ती करवाया, देश के नामी डॉक्टर ने ऑपरेशन किया। आन्या रोज अस्पताल जाती, शारदा जी से बातें करती। वह उसे अपनी बेटी की तरह मानने लगीं।

रोहन और आन्या की दोस्ती गहरी हो गई। आन्या अक्सर उसकी बस्ती में जाती, देखती—कैसे रोहन छोटे कमरे में बिना सुविधा के पढ़ाई करता, मां का ख्याल रखता, सपने देखता। उसे एहसास हुआ—असल जिंदगी संघर्ष में है, न कि बंगले में।

धीरे-धीरे आन्या को रोहन से प्यार हो गया—एक ऐसा प्यार जो दौलत, शोहरत की सीमाओं से परे था।

4. समाज की दीवारें

आन्या के पिता सिद्धार्थ मेहरा को जब पता चला, वे नाराज हुए। “एक झुग्गी में रहने वाले लड़के से तुम्हारा कोई मेल नहीं है, आन्या! लोग क्या कहेंगे?”
आन्या ने साफ कह दिया, “पापा, मुझे दुनिया की परवाह नहीं। मैं रोहन से प्यार करती हूं, उसी से शादी करूंगी।”

सिद्धार्थ मेहरा ने हार मान ली, सोचा—कुछ दिनों में बचपना खत्म हो जाएगा। लेकिन वे गलत थे।

5. सात साल बाद—किस्मत का खेल

समय बीता, सात साल गुजर गए। रोहन ने इंजीनियरिंग टॉप की, आन्या की मदद से सॉफ्टवेयर स्टार्टअप शुरू किया। मेहनत से कंपनी देश की सबसे तेजी से बढ़ने वाली टेक कंपनियों में शामिल हो गई। रोहन अब झुग्गी में नहीं, पौश इलाके के पेंटहाउस में रहता था। मां स्वस्थ थी। रोहन सेल्फ मेड करोड़पति बन गया।

दूसरी तरफ, सिद्धार्थ मेहरा का साम्राज्य ढह चुका था। शेयर बाजार में घोटाले, कंपनी दिवालिया, बंगला नीलाम, दिल का दौरा—पैरालाइज्ड हो गए। आन्या अपने बीमार पिता को लेकर छोटे किराए के मकान में रहने लगी। नौकरी की तलाश, लेकिन डिग्री-एक्सपीरियंस नहीं।

उसने रोहन से संपर्क करने की कोशिश की, नंबर बदल चुका था, कोई खबर नहीं। दोनों का संपर्क टूट गया।

6. फिर से टकराव—नियति का चक्र

एक दिन अखबार में “आर्टिक सलूशंस” नामक कंपनी में वैकेंसी का विज्ञापन देखा। सैलरी अच्छी थी, उम्मीद की किरण जागी। कई राउंड के बाद फाइनल इंटरव्यू के लिए बुलाया गया। उसे बताया गया—सीईओ खुद इंटरव्यू लेंगे।

आन्या घबराई हुई, आत्मविश्वास से भरी हुई सीईओ के कैबिन में दाखिल हुई।
केबिन में बैठा शख्स पीठ किए था।
“आई कम इन, सर?”
कुर्सी घूमी—वो रोहन था। वही रोहन जिसे उसने कभी दया का पात्र समझा था, आज बिजनेस टायकून बनकर सामने था।

“रोहन…!”
“बैठो आन्या,” आवाज शांत, भारी थी।

7. सच्चाई का पर्दाफाश

आन्या मूर्ति सी खड़ी रही। रोहन ने कहा, “मुझे पता था, तुम एक दिन यहाँ जरूर आओगी। मैं तुम्हारा ही इंतजार कर रहा था।”

“क्या मतलब?”

“मैं सब जानता था—तुम्हारे पिता बर्बाद हो चुके हैं, तुम्हें नौकरी की जरूरत है, तुम मुझसे प्यार करती हो।”
आन्या की आंखों से आंसू बहने लगे। उसे लगा—शायद रोहन आज भी प्यार करता है।

वह आगे बढ़ी, लेकिन रोहन ने हाथ के इशारे से रोक दिया।
“शायद तुम एक बात नहीं जानती, एक सच्चाई जो तुम्हारे पिता ने तुमसे हमेशा छिपाई।”

“कैसी सच्चाई?”
रोहन तस्वीर के पास गया—”यह मेरे पिता रमेश चंद्रा हैं। 20 साल पहले दिल्ली के ईमानदार बिल्डर थे। तुम्हारे पिता उनके पार्टनर थे। दोनों ने बड़ा हाउसिंग प्रोजेक्ट शुरू किया। मेरे पिता ने सारी जमा-पूंजी, जमीन लगा दी। तुम्हारे पिता ने जाली कागजात बनवाकर सब हड़प लिया, कंपनी से बाहर निकाल दिया। उस सदमे से मेरे पिता को हार्ट अटैक आया, वे चल बसे। हम सड़क पर आ गए। मां ने बर्तन मांजे, मैं जिस झुग्गी में तुमसे मिला—वह तुम्हारे पिता की ही देन थी।”

आन्या अविश्वास में थी—”नहीं, मेरे पापा ऐसा नहीं कर सकते।”
“यही सच है। तुम्हारे पिता ने मेरे पिता को धोखा दिया। मेरी मां की बीमारी, मेरा संघर्ष—सबके जिम्मेदार तुम्हारे पिता हैं।”

8. मोहब्बत या बदला?

“तो क्या तुम्हारा मुझसे मिलना, मेरी मदद लेना सब एक नाटक था? बदला था?”
“नहीं। तुमसे मिलना इत्तेफाक था। जब तुमने नाम बताया, मुझे एहसास हुआ—नियति ने मुझे बदला लेने का मौका दिया है। तुम्हारी मदद इसलिए स्वीकार की क्योंकि वह मेरा हक था—पैसा तुम्हारे पिता ने मेरे पिता से लूटा था। मैं बस अपना हक वापस ले रहा था।”

“लेकिन मैंने तो तुमसे प्यार किया था…”
“मैं भी तुमसे प्यार करने लगा था, तुम्हारी अच्छाई, मासूमियत ने मेरे दिल में नफरत की जगह मोहब्बत पैदा कर दी थी। कई बार सच बताना चाहा, लेकिन डर था—सच जानने के बाद तुम मुझसे नफरत करने लगोगी। इसलिए दूर हो गया। सोचा, पहले खुद को साबित करूं, तुम्हारे पिता से भी बड़ा बनूं, फिर सच बताऊं।”

आन्या जमीन पर बैठ गई—जिस प्यार को वह सबसे बड़ी सच्चाई समझती थी, उसकी बुनियाद ही धोखे पर थी। जिस इंसान को उसने सब कुछ माना, वह उसके परिवार के दुश्मन का बेटा था।

9. माफी और नई शुरुआत

रोहन उसके पास आया, सहारा देकर उठाया।
“मुझे माफ कर दो आन्या। मैंने तुम्हें दुख पहुंचाया, लेकिन मैं आज भी तुमसे उतना ही प्यार करता हूं। मैं तुम्हारे पिता से बदला नहीं लेना चाहता, बस उन्हें एहसास दिलाना चाहता था कि उन्होंने क्या किया है।”

उसने आन्या के हाथ में फाइल थमाई—”यह जोरबाग वाले बंगले के कागजात हैं, मैंने नीलामी में खरीद लिया था। यह आज से तुम्हारा है। यह ब्लैंक चेक है, जितनी रकम चाहो भर लो, अपने पिता का इलाज करवाओ।”

आन्या की आंखों से आंसू नहीं रुक रहे थे। “मैं यह सब नहीं ले सकती रोहन।”
“यह भीख नहीं, तुम्हारा हक है—और मेरे प्यार की निशानी है। तुम्हारे पिता ने जो किया, उसकी सजा मैं तुम्हें नहीं दे सकता।”

10. सब कुछ ठीक हुआ

उस दिन के बाद आन्या ने अपने पिता को अस्पताल में भर्ती करवाया। जब सिद्धार्थ मेहरा को होश आया, उन्हें पूरी सच्चाई पता चली—वह शर्मिंदगी, पछतावे की आग में जलने लगे। उन्होंने रोहन से माफी मांगी, रोहन ने माफ कर दिया।

धीरे-धीरे सब ठीक होने लगा। सिद्धार्थ मेहरा ठीक होकर घर आ गए, अपना जीवन समाज सेवा में लगा दिया। आन्या ने रोहन की कंपनी ज्वाइन की, मेहनत से अपनी पहचान बनाई। रोहन और आन्या का प्यार हर परीक्षा में खरा उतरा, उन्होंने शादी कर ली।

उनकी नई जिंदगी की बुनियाद नफरत या बदले पर नहीं, माफी और सच्ची मोहब्बत पर थी।