कोर्ट में एक भिखारी आया, और जज खड़ा हो गया|

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न्याय का सफर

भाग 1: एक भिखारी की कहानी

वाराणसी के कचहरी के बाहर एक बूढ़ा भिखारी हर दिन अपनी पुरानी चादर में लिपटा बैठा रहता था। उसका नाम कोई नहीं जानता था। कुछ लोग उसे प्यार से “बाबा” कहते थे, जबकि कई उसे हिकारत भरी नजरों से “पगला” कहकर आगे बढ़ जाते थे। लेकिन बाबा की आंखों में एक गहरी कहानी छिपी थी, जैसे वह किसी को पहचानते हों और कुछ कहना चाहते हों।

हर सुबह ठीक 5:00 बजे बाबा उसी मंदिर के पास आकर बैठ जाते। उनकी कमर झुकी हुई थी, फिर भी वह पूरी शान से सीधे बैठते, जैसे कोई पुराना सैनिक अपनी आखिरी सलामी दे रहा हो। उनकी नजरें सड़क पर टिकी रहती थीं, लेकिन अक्सर कोर्ट के गेट पर ठहर जाती थीं। कभी-कभी कुछ वकील उनकी तरफ देखकर हंसते, मानो यह भी कोई केस लड़ने आया है। लेकिन बाबा चुप रहते, ना गुस्सा, ना हंसी, बस एक गहरी शांति।

भाग 2: कोर्ट का माहौल

उस दिन वाराणसी की कचहरी में कुछ खास था। शहर का सबसे चर्चित रियल एस्टेट घोटाला जिसकी सुनवाई होनी थी, जिसमें कई बड़े-बड़े लोग फंसे थे। कोर्ट रूम नंबर पांच में जज साहब, जस्टिस अयान शंकर अपनी कुर्सी पर बैठे थे। वे अपने सख्त और निष्पक्ष फैसलों के लिए मशहूर थे। उनकी नैतिकता और न्याय के प्रति समर्पण की मिसाल दी जाती थी।

सुबह 10:63 बजे कोर्ट की कार्यवाही शुरू हुई। वकील अपनी-अपनी दलीलें देने में जुटे थे। तीखी बहस और कोर्ट रूम में एक तनाव भरा माहौल था। तभी जज साहब ने अचानक सामने देखा। उनकी नजर खिड़की से बाहर चली गई, जैसे कोई पुरानी याद उनके दिल को छू गई हो। उन्होंने अपने क्लर्क की तरफ देखा और धीरे से कहा, “क्या कोर्ट परिसर के मंदिर के बाहर जो बूढ़ा भिखारी बैठा है, उसे अंदर बुलाया जा सकता है?”

कोर्ट में एक भिखारी आया, और जज खड़ा हो गया| Heart touching Story |

पूरा कोर्ट रूम सन्न रह गया। वकील एक-दूसरे की तरफ देखने लगे। एक पत्रकार ने अपने कैमरे की ओर झुककर फुसफुसाया, “यह क्या हो रहा है?” हर कोई हैरान था। आखिर जज साहब ने ऐसा क्यों कहा? एक भिखारी को कोर्ट में बुलाने की क्या जरूरत थी?

भाग 3: बाबा का कोर्ट में प्रवेश

बाबा मंदिर के बाहर अपनी पुरानी चादर में लिपटे बैठे थे। उनके कटोरे में कुछ सिक्के पड़े थे और पास में दो-तीन चिड़िया अनाज के दाने चुग रही थीं। तभी दो कांस्टेबल उनके पास आए। “बाबा, जज साहब ने आपको बुलाया है।” बाबा की आंखें चमक उठीं। उन्होंने धीरे से सिर उठाया, कांपते हाथों से अपनी छड़ी उठाई और खड़े हुए। चार कदम चलने में उन्हें जैसे पूरी उम्र लग गई, मगर वह चले बिना सवाल किए, बिना कुछ बोले।

जब बाबा कोर्ट रूम में दाखिल हुए, तो वहां सन्नाटा छा गया। फटी हुई धोती, थकी हुई आंखें और कांपते पैर, लेकिन उनमें एक अजीब सा आत्मविश्वास था। जज साहब ने एक पल के लिए सिर झुकाया, जैसे किसी को सम्मान दे रहे हों।

फिर उन्होंने पूछा, “आपका नाम?” बाबा की आवाज में हल्का सा कंपन था, लेकिन शब्दों में गहराई थी। “नाम अब नाम नहीं रहा, साहब।” जज साहब कुछ पल चुप रहे। फिर वह अपनी कुर्सी से उठे। कोर्ट में मौजूद हर शख्स की सांसे जैसे थम गईं। जज साहब ने एक बेंच की ओर इशारा किया और कहा, “आइए, आप यहां बैठिए।”

भाग 4: बाबा की कहानी

बाबा कांपते हुए उस बेंच पर बैठे। उनके चेहरे पर ना गर्व था, ना डर, बस एक गहरी शांति। जैसे कोई तूफान उनके सीने में दबा हो। जज साहब ने पूछा, “आप रोज यहां आते हैं। मंदिर के बाहर बैठते हैं। क्या आप कुछ कहना चाहते हैं?”

बाबा ने धीरे से सिर उठाया। उनकी आंखें गीली थीं, लेकिन आवाज में एक अजीब सी ताकत थी। “कहना तो बहुत कुछ था, साहब, मगर सुनने वाला कोई नहीं था। इसलिए चुप हो गया।”

जज साहब ने फिर पूछा, “आप रोज इस कोर्ट को देखते हैं। कोई खास वजह?” बाबा ने एक पल के लिए आंखें बंद की। फिर बोले, “यह वही जगह है, साहब। जहां मैंने कभी न्याय के लिए आवाज उठाई थी। जहां मैं कभी वकील हुआ करता था।”

यह सुनते ही कोर्ट में सन्नाटा छा गया। हर कोई स्तब्ध था। एक भिखारी जो सड़क किनारे बैठा रहता था, वह वकील था। बाबा ने अपने पुराने झोले से एक पीला फटा हुआ लिफाफा निकाला। उसमें कुछ पुराने कागज थे। एक वकालतनामा, एक पुराना अधिवक्ता पहचान पत्र और एक अधूरी याचिका।

जज साहब ने वो कागजात पढ़े। जैसे-जैसे वो पढ़ते गए, उनके माथे की लकीरें गहरी होती गईं। “आप वकील थे?” उन्होंने पूछा। “हाँ, साहब,” बाबा ने जवाब दिया, “मगर बेटे की गलती का इल्जाम मुझ पर आया। मैंने चुप रहा, सोचा बेटा बच जाए। अदालत ने मुझे दोषी ठहराया। मेरी सारी संपत्ति जब्त हो गई। जेल गया। जब बाहर आया तो बेटा सब बेच चुका था।”

भाग 5: कोर्ट में भावनाओं का तूफान

कोर्ट में मौजूद हर शख्स की आंखें नम थीं। जो वकील पहले बाबा का मजाक उड़ाते थे, वे अब शर्मिंदगी से सिर झुकाए खड़े थे। जज साहब उठे, बाबा के पास आए और उनका हाथ थाम लिया। “हमने न्याय को सिर्फ कानून की किताबों में बांध दिया,” उन्होंने कहा, “मगर आपने इसे अपनी जिंदगी में जिया।”

बाबा की आंखों में आंसू थे, लेकिन वह मुस्कुरा रहे थे। जैसे उनकी सालों की तपस्या आज पूरी हो गई हो। अखबारों की सुर्खियां और शहर की हलचल। अगले दिन वाराणसी के अखबारों में एक ही हेडलाइन थी: “भिखारी नहीं पूर्व वकील। जज ने छोड़ी अपनी कुर्सी, किया स्वागत।”

खबर थी कि सिस्टम की चूक ने एक जिंदगी को सड़कों पर ला दिया। कोर्ट में जो हुआ, वो कोई साधारण सुनवाई नहीं थी। वो एक ऐतिहासिक पल था। लक्ष्मण नारायण त्रिपाठी, यह था बाबा का नाम। एक समय में वाराणसी की कचहरी में उनका नाम हर वकील की जुबान पर होता था। वह गरीबों के केस मुफ्त में लड़ते थे। कभी घूस नहीं ली। सरकारी अधिकारियों से आंखें मिलाकर सवाल करते थे। उनकी खासियत थी।

भाग 6: बेटे का धोखा

लेकिन एक दिन उनके अपने बेटे राघव ने उन्हें धोखा दिया। राघव एक रियल एस्टेट घोटाले में फंस गया। सारे दस्तावेज लक्ष्मण नारायण जी के नाम पर थे क्योंकि राघव ने अपनी खराब क्रेडिट हिस्ट्री की वजह से सारी संपत्ति पिता के नाम कर रखी थी। बाबा को कुछ पता नहीं था। उन्हें सीधे जेल भेज दिया गया।

जज साहब ने उस दिन कोर्ट में पूछा था, “आपने अपने बेटे के खिलाफ कुछ क्यों नहीं कहा?” बाबा ने सिर झुकाकर जवाब दिया, “मैंने जिंदगी भर कानून के लिए लड़ा। मगर जब मेरा बेटा सामने आया तो पिता हार गया। सोचा सजा तो खत्म होगी। बेटा गले लगाएगा। लेकिन जब जेल से निकला तो गेट पर कोई नहीं था। बेटा शहर छोड़ चुका था। मेरा घर, मेरी दुकान सब बिक चुका था।”

कोर्ट में उस दिन मौजूद वकील सुधांशु मिश्रा जो पहले बाबा को पगला कहकर हंसते थे, अपनी कुर्सी से उठे। “माय लॉर्ड,” उन्होंने कहा, “यह केस सिर्फ एक व्यक्ति की त्रासदी नहीं है। यह सिस्टम की चूक की मिसाल है। मैं याचिका दायर करता हूं कि इस मामले की दोबारा सुनवाई हो।”

जज साहब ने सहमति में सिर हिलाया। कोर्ट स्थगित हुआ, मगर माहौल बदल चुका था। उस दिन जब बाबा कोर्ट से बाहर निकले तो कोई उनका मजाक नहीं उड़ा रहा था। लोग उन्हें सम्मान की नजरों से देख रहे थे। किसी ने उन्हें पानी की बोतल दी, किसी ने खाने के लिए बुलाया।

भाग 7: न्याय की नई किरण

एक पत्रकार दौड़ कर आया। “बाबा, क्या आप कैमरे के सामने कुछ कहना चाहेंगे?” बाबा मुस्कुराए। “मैंने आज फिर से न्याय पर भरोसा किया है और खुद पर भी।” अगले दिन जब अखबार छपे और टीवी चैनलों पर खबर चली तो वाराणसी के लोहता मोहल्ले में हलचल मच गई। वहां कभी लक्ष्मण नारायण जी का पुश्तैनी घर था, जो अब एक बिल्डर के दफ्तर में बदल चुका था।

उनकी बचपन की पड़ोसन कमला देवी फूट-फूट कर रो पड़ी। “हमें लगा वह मर चुके हैं।” उन्होंने कहा, “मगर अब जब वह जिंदा लौटे हैं तो शहर ने उन्हें भुला दिया।” कमला देवी ने अपने बेटों को बुलाया और कहा, “आज से हर रविवार हम बाबा को खाना देने जाएंगे। वह हमारे लिए बाप समान हैं। वह कभी इस शहर के सबसे बड़े वकील थे।”

भाग 8: नई सुनवाई का आगाज

सात दिन बाद कोर्ट में नई सुनवाई शुरू हुई। मुद्दा था 2003 का वो केस जिसमें लक्ष्मण नारायण जी को दोषी ठहराया गया था। नया वकील था प्रोफेसर त्रिवेदी। जज वही थे, जस्टिस अयान शंकर। गवाह थे पुराने कागजात, बिल्डर की गवाही और एक रहस्यमय बेटा राघव जो अब कहीं नहीं था। जज साहब ने आदेश दिया राघव को कोर्ट में पेश किया जाए। अगर वह हाजिर नहीं होता तो गिरफ्तारी वारंट जारी होगा।

उसी दिन शाम को बाबा कोर्ट की दीवार के पास चुपचाप बैठे थे। प्रोफेसर त्रिवेदी ने पूछा, “बाबा, आपको डर नहीं लगता कि आपका बेटा अब बदला ले सकता है?” बाबा ने हंसकर कहा, “अब जो होगा न्याय ही करेगा। मैं अब सिर्फ एक इंसान हूं जो अपना नाम वापस चाहता है।”

भाग 9: जज का संकल्प

जस्टिस अयान शंकर कोई साधारण जज नहीं थे। 20 साल पहले इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में वह लक्ष्मण नारायण जी से मिले थे। बाबा उनके लिए प्रेरणा थे। उनकी एक बात आज भी अयान की डायरी में लिखी थी, “अगर वकालत को सिर्फ धंधा समझोगे तो यह दुकान बन जाएगी। मगर अगर इसे इंसान की आवाज समझोगे तो यह इबादत बन जाएगी।” अयान उस दिन भावुक थे। उन्होंने कहा, “मैं यह केस व्यक्तिगत रूप से सुनूंगा।”

भाग 10: राघव की सच्चाई

आखिरकार राघव कोर्ट में पेश हुआ। महंगी गाड़ी, ब्रांडेड सूट, मगर आंखें झुकी हुई। जब जज ने पूछा, “संपत्ति अपने पिता के नाम क्यों ली?” तो उसने कबूल किया, “मेरी क्रेडिट हिस्ट्री खराब थी। मैंने उनके दस्तखत नकली किए।” पूरा कोर्ट सन्न रह गया। बाबा चुप रहे। उन्होंने बस आंखें बंद कर लीं।

जज साहब ने आदेश दिया, “लक्ष्मण नारायण त्रिपाठी निर्दोष हैं। उन्हें दोबारा वकालत का लाइसेंस दिया जाए। ₹10 लाख की मानहानि राशि दी जाए। और सरकार सार्वजनिक रूप से माफी मांगे।”

भाग 11: सम्मान की वापसी

अगले दिन बाबा फिर कोर्ट के बाहर बैठे थे। मगर अब लोग उनके सामने झुक रहे थे। कोई उनके पैर छू रहा था, कोई खाना ला रहा था। जज अयान शंकर चुपके से उनके पास आए और बैठ गए। “आज मैंने न्याय नहीं किया,” उन्होंने कहा, “आज मैंने सिर्फ एक कर्ज चुकाया है।”

बाबा मुस्कुराए। “बेटा, आज तू सिर्फ जज नहीं, इंसान भी बना है।” यह कहानी सिर्फ लक्ष्मण नारायण बाबू की नहीं बल्कि हर उस इंसान की है जो सिस्टम की चूक का शिकार हुआ। यह कहानी है विश्वास की, न्याय की और उस हौसले की जो सालों की तकलीफों के बाद भी टूटता नहीं।

भाग 12: न्याय का संदेश

वाराणसी के कचहरी के बाहर बाबा की कहानी आज भी गूंजती है। लोग कहते हैं, “वह भिखारी नहीं, एक योद्धा था जिसने सच के लिए अपनी पूरी जिंदगी दांव पर लगा दी।” बाबा की कहानी ने न केवल वाराणसी बल्कि पूरे देश को यह सिखाया कि न्याय कभी भी देर से आ सकता है, लेकिन जब वह आता है, तो वह सच्चाई के साथ आता है।

भाग 13: एक नई शुरुआत

बाबा ने अपने जीवन में जो भी संघर्ष किया, वह अब एक नई शुरुआत की ओर बढ़ रहा था। उन्होंने अपने पुराने जीवन को पीछे छोड़ने का फैसला किया और एक नई पहचान बनाने की कोशिश की। उन्होंने अपने अनुभवों को साझा करने के लिए एक छोटी सी सभा का आयोजन किया।

बाबा ने कहा, “मेरे प्यारे दोस्तों, मैं आज यहां आप सभी के सामने खड़ा हूं। मैंने अपने जीवन में बहुत दर्द सहा है, लेकिन मैंने कभी हार नहीं मानी। हमें कभी भी अपने सपनों को छोड़ना नहीं चाहिए। न्याय और सच्चाई के लिए लड़ते रहना चाहिए।”

भाग 14: समाज का समर्थन

बाबा की बातों ने लोगों को प्रेरित किया। धीरे-धीरे, वाराणसी के लोग उनके साथ जुड़ने लगे। कई युवा वकील उनके पास आने लगे, उन्हें सलाह देने और उनके अनुभवों से सीखने के लिए। बाबा ने उन्हें बताया कि कैसे उन्होंने अपने जीवन में कठिनाइयों का सामना किया और कैसे उन्होंने कभी भी सच्चाई का साथ नहीं छोड़ा।

भाग 15: एक नई पहचान

बाबा ने अपनी कहानी को एक किताब में लिखा, जिसका नाम रखा “न्याय की आवाज”। इस किताब में उन्होंने अपने जीवन के अनुभव, संघर्ष और न्याय के लिए उनकी लड़ाई का विवरण दिया। किताब ने बहुत सफलता हासिल की और लोगों ने इसे हाथों-हाथ लिया।

बाबा की कहानी ने न केवल उन्हें एक नई पहचान दी, बल्कि समाज में न्याय और सच्चाई के प्रति जागरूकता भी बढ़ाई। लोग अब उन्हें एक भिखारी नहीं, बल्कि एक सच्चे योद्धा के रूप में देखने लगे।

भाग 16: न्याय का संदेश फैलाना

बाबा ने अपने अनुभवों को साझा करने के लिए स्कूलों और कॉलेजों में जाकर व्याख्यान देने का काम शुरू किया। उन्होंने युवाओं को बताया कि कैसे वे अपने अधिकारों के लिए लड़ सकते हैं और कैसे उन्हें समाज में बदलाव लाने के लिए सक्रिय होना चाहिए।

भाग 17: अंत में

बाबा की कहानी ने साबित किया कि जीवन में कठिनाइयाँ आती हैं, लेकिन अगर हम सच्चाई और न्याय के लिए लड़ते रहें, तो अंततः हमें सफलता मिलेगी। उन्होंने यह भी सिखाया कि कभी-कभी हमें अपने अतीत को स्वीकार करना होता है, लेकिन हमें अपने भविष्य के लिए लड़ना नहीं छोड़ना चाहिए।

इस प्रकार, लक्ष्मण नारायण त्रिपाठी की कहानी ने न केवल उनके जीवन को बदल दिया, बल्कि समाज में न्याय और सच्चाई के प्रति एक नई जागरूकता भी पैदा की। उनकी कहानी आज भी लोगों के दिलों में जीवित है और प्रेरणा का स्रोत बनी हुई है।

भाग 18: निष्कर्ष

दोस्तों, यह कहानी हमें यह सिखाती है कि हमें कभी भी अपने सपनों को छोड़ना नहीं चाहिए। न्याय और सच्चाई के लिए लड़ते रहना चाहिए। अगर आप इस कहानी से प्रेरित हुए हैं, तो इसे अपने दोस्तों के साथ साझा करें और हमें सपोर्ट करें ताकि हम ऐसी प्रेरणादायक कहानियां आपके लिए लाते रहें।

जय हिंद, जय भारत!