गरीब लड़की समझकर दोस्तों ने होटल में उड़ाया मजाक…… लड़की निकली DM फिर जो हुआ ….
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प्रिया शर्मा — संघर्ष से सफलता तक का सफर
शहर के दिल में स्थित रॉयल पैलेस होटल की भव्यता देखते ही बनती थी। यह केवल एक होटल नहीं था, बल्कि शहर के अमीर और प्रभावशाली लोगों का मिलन स्थल था। इस शाम भी होटल में चहल-पहल थी। सुनहरे झूमर की रोशनी में नहाया हुआ पूरा माहौल किसी राजमहल से कम नहीं लग रहा था। होटल के मुख्य हॉल में संगमरमर के फर्श पर कालीन बिछे हुए थे। दीवारों पर कलाकृतियां सजी थीं और हवा में हल्की गुलाब की खुशबू तैर रही थी। यहाँ के हर कोने से अमीरी की गंध आती थी। महंगे इत्र, ब्रांडेड कपड़े और सोने-चांदी के आभूषण।
इसी भव्य माहौल में होटल के मुख्य द्वार से एक छोटा सा परिवार अंदर आया। सबसे आगे चल रहे थे पिताजी, करीब 55 साल के सफेद कुर्ता-पजामा पहने, चेहरे पर संतुष्टि की मुस्कान। उनके साथ थीं मां, साधारण साड़ी में, मगर चेहरे पर गर्व की चमक। इनके बीच में चल रही थी एक युवा लड़की, प्रिया। करीब 28 साल की, सादा सलवार-कमीज पहने, बालों में एक साधारण सी क्लिप। कोई भारी-भरकम ज्वेलरी नहीं। प्रिया के चेहरे पर एक अलग ही तेज था, जो किताबों से आती है, संघर्ष से मिलती है और सफलता से चमकती है।
होटल के रिसेप्शन पर खड़े मैनेजर ने उन्हें देखा तो थोड़ा सा हैरान हुआ। यह परिवार यहाँ के आम ग्राहकों से बिल्कुल अलग लग रहा था। फिर भी उसने मुस्कुराते हुए स्वागत किया, “नमस्कार, कैसे मदद कर सकता हूँ?” प्रिया के पिताजी ने जवाब दिया, “हमने यहाँ डिनर के लिए टेबल बुक कराई है, नाम है शर्मा।” मैनेजर ने अपनी लिस्ट चेक की और बोला, “जी हाँ, मिल गई। आप लोग इधर आइए।”
वे एक कॉर्नर की टेबल पर बैठे। प्रिया के पिताजी ने गर्व से कहा, “बेटी, आज तेरी सफलता का जश्न मनाने के लिए हमने इस शहर के सबसे अच्छे होटल को चुना है।” प्रिया मुस्कुराई, “पापा, इतना खर्च करने की जरूरत नहीं थी।” मां ने प्यार से कहा, “तूने इतनी मेहनत की है, इतना संघर्ष किया है, आज तो हमें जश्न मनाना ही चाहिए।”
उसी समय होटल के दूसरे कोने में बैठे पांच लोगों की नजर उन पर पड़ी। ये वे लोग थे जो कभी प्रिया के कॉलेज के दोस्त हुआ करते थे। आज वे सभी महंगे कपड़े पहने हुए थे। ब्रांडेड शर्ट, डिजाइनर ड्रेसेस और भारी-भरकम घड़ियां। उनमें से एक लड़का राज ने प्रिया को पहचाना। “अरे यार, वो देखो प्रिया,” दूसरा लड़का अमित हैरानी से बोला, “हाँ यार, वही तो है, मगर यहाँ कैसे? इसके पास तो इतने पैसे नहीं थे कि यहाँ आ सके।” तीसरी लड़की नेहा हंसते हुए बोली, “शायद किसी के साथ आई है या फिर कहीं से पैसे जुगाड़ किए हैं।” चौथा लड़का विकास ने कहा, “यार, याद है कॉलेज में कितनी गरीब थी? हमेशा पुराने कपड़े पहनती थी।” पांचवी लड़की पूजा ने जोड़ा, “हाँ यार, और हमेशा स्कॉलरशिप के लिए दौड़ती रहती थी।”
वे सब आपस में फुसफुसाने लगे, प्रिया की तरफ इशारा करके हंसने लगे। मगर प्रिया को इसका एहसास नहीं था। वह अपने माता-पिता के साथ खुशी से बात कर रही थी।
“बेटी, बता तो कैसा लग रहा है अब?” पिताजी ने पूछा।
“बहुत अच्छा पापा, मगर सच कहूँ तो मुझे अभी भी विश्वास नहीं हो रहा कि मैं यहाँ तक पहुंच गई हूँ।” मां ने उसका हाथ पकड़ा, “तूने जो मेहनत की है बेटी, वो रंग लाई है, हमें तुझ पर बहुत गर्व है।”
इसी बीच वेटर आया और उन्होंने अपना ऑर्डर दिया। साधारण खाना — दाल, चावल, रोटी और कुछ सब्जी। होटल के महंगे मेन्यू में से उन्होंने सबसे सादा खाना मंगाया। दूसरी तरफ प्रिया के पुराने दोस्त इस बात पर और भी हंसने लगे।
राज ने कहा, “देखो यार, यहाँ भी दाल चावल मंगा रही है, गरीबी छूटती ही नहीं।” अमित हंसा, “लगता है किसी ने इसे यहाँ ट्रीट किया है, खुद तो कभी नहीं आ सकती थी।” नेहा ने व्यंग से कहा, “या फिर कोई बॉयफ्रेंड मिल गया होगा, वैसे भी इसके पास और कोई तरीका नहीं था यहाँ आने का।” विकास बोला, “चलो मिलते हैं इससे, देखते हैं क्या कहती है।” पूजा ने रोका, “अरे यार, बेचारी के सामने शर्मिंदा हो जाएगी, फिर कभी मिलेंगे।” मगर राज उठ गया, “नहीं यार, मिलना तो चाहिए, कॉलेज की दोस्त जो है।”
वे धीरे-धीरे प्रिया की टेबल की तरफ बढ़े। प्रिया ने उन्हें आते देखा तो पहले खुशी हुई, “अरे प्रिया, तू यहाँ?” राज ने झूठी खुशी दिखाते हुए कहा। प्रिया मुस्कुराई, “हाय राज।” अमित ने व्यंग से पूछा, “वाह यार, अब तो बहुत अमीर हो गई लगती है, यहाँ आने लायक हो गई।” प्रिया को अजीब लगा, मगर उसने सोचा कि शायद मजाक कर रहे हैं।
नेहा ने कहा, “अरे हाँ, बता तो, क्या काम कर रही है आजकल? कहीं जॉब मिल गई क्या?” “हाँ, जॉब तो मिल गई है,” प्रिया ने सादगी से जवाब दिया। विकास हंसा, “अच्छी बात है, कहाँ? किसी कंपनी में सरकारी नौकरी है?” प्रिया ने कहा, “हाँ, सरकारी नौकरी है।” पूजा ने ताना मारा, “ओ क्लर्क बन गई क्या या फिर टीचर?” प्रिया के माता-पिता को यह सब बातें अच्छी नहीं लग रही थीं। उन्हें समझ आ रहा था कि यह लोग उनकी बेटी का मजाक उड़ा रहे हैं।
प्रिया के पिताजी ने कहा, “बेटा, ये तुम्हारे दोस्त हैं।” “हाँ पापा, कॉलेज के दोस्त हैं।” राज ने प्रिया के पिताजी को देखा, “अंकल, आप क्या करते हैं?” “मैं रिटायर्ड टीचर हूँ,” पिताजी ने विनम्रता से जवाब दिया। अमित और नेहा ने आंखों ही आंखों में मुस्कुराहट का आदान-प्रदान किया। उन्हें लग रहा था कि उनका अनुमान सही था, प्रिया अभी भी वहीं गरीब लड़की है।
“अच्छा अंकल, तो प्रिया कहां काम करती है?” विकास ने पूछा। प्रिया की मां ने गर्व से कहा, “हमारी बेटी आईएएस ऑफिसर है।” यह सुनकर सब थोड़ा चौक गए। मगर फिर राज ने हंसते हुए कहा, “वाह आंटी, आईएएस मतलब अभी ट्रेनिंग में है।” प्रिया ने धीरे से कहा, “नहीं, ट्रेनिंग पूरी हो गई है।” “तो कहां पोस्टिंग है?” पूजा ने पूछा। “यहीं इसी जिले में,” प्रिया ने जवाब दिया।
नेहा ने व्यंग से कहा, “अरे वाह तो फिर तो सब कुछ सेट है, अब तो जिंदगी बन गई।” अमित बोला, “यार प्रिया, तू तो हमेशा कहती थी कि बड़ी ऑफिसर बनेगी, अब बन भी गई।” विकास ने जोड़ा, “हाँ यार, मगर फिर भी यहाँ दाल चावल ही मंगा रही है। आदत तो नहीं बदली।” सब हंसने लगे। प्रिया को बुरा लगा, मगर उसने कुछ नहीं कहा।
राज ने कहा, “अच्छा यार, हम चलते हैं, मिलना होता रहेगा।” जब वे अपनी टेबल पर वापस गए तो और जोर से हंसने लगे, “यार आईएएस का झांसा दे रही थी।” राज बोला, “अमित ने कहा, ‘अरे भाई, हो भी सकती है, मगर कोई छोटा सा ऑफिसर होगा, असिस्टेंट या कुछ।’” नेहा हंसी, “देखा ना, अभी भी वही गरीबी वाली आदतें, यहाँ आकर भी दाल चावल।” विकास बोला, “और देखो कैसे कपड़े पहने हैं, कोई ब्रांड नहीं, कोई स्टाइल नहीं।” पूजा ने कहा, “चलो छोड़ो यार, बेचारी कम से कम कुछ तो बन गई, हमारे टाइम में तो बिल्कुल बेकार थी।”
दूसरी तरफ प्रिया अपने माता-पिता के साथ चुपचाप खा रही थी। उसे अपने दोस्तों की बातें सुनाई दे रही थीं, मगर वह कुछ नहीं बोल रही थी। प्रिया की मां ने पूछा, “बेटी, तेरे दोस्त अजीब लग रहे थे? कुछ गलत तो नहीं कह रहे थे?” प्रिया ने मुस्कुराते हुए कहा, “नहीं मां, बस मजाक कर रहे थे, पुराने दोस्त हैं।” मगर अंदर ही अंदर उसे बुरा लग रहा था। वह जानती थी कि उसके दोस्त उसका मजाक उड़ा रहे थे, मगर उसने तय किया था कि वह अपनी असलियत तब तक नहीं बताएगी, जब तक जरूरत ना हो।
खाना खत्म होने के बाद जब वे बिल का इंतजार कर रहे थे, तभी होटल में कुछ हलचल हुई। प्रिया अपनी कुर्सी पर बैठी-बैठे अतीत में खो गई। उसे याद आने लगे वे दिन जब वह इन्हीं लोगों के साथ कॉलेज में पढ़ती थी। कितना अलग था तब का समय।
कॉलेज के पहले दिन की याद अभी भी ताजा थी। सेंट जेवियर कॉलेज, शहर का सबसे महंगा और प्रतिष्ठित कॉलेज। प्रिया वहाँ स्कॉलरशिप पर दाखिला लेकर आई थी। जब वह पहली बार कॉलेज गेट से अंदर गई थी, तो उसकी आंखें चौंधिया गई थीं। चारों तरफ महंगी गाड़ियां खड़ी थीं। लड़के-लड़कियां ब्रांडेड कपड़े पहने हुए थे। हर किसी के पास iPhone था, महंगे बैग थे और स्टाइलिश जूते थे। प्रिया के पास बस एक पुराना बैग था जो उसकी मां ने बाजार से खरीदा था और पैरों में साधारण चप्पल। क्लास में जब वह अंदर गई तो सब उसे देखने लगे। उसके कपड़े, उसका बैग, उसकी चप्पल सब कुछ बाकी सबसे अलग था। मगर प्रिया ने हिम्मत नहीं हारी। वह एक कोने में जाकर बैठ गई।
धीरे-धीरे दिन बीतते गए। प्रिया की मेधा सबको दिखने लगी। हर सब्जेक्ट में वह टॉप करती। प्रोफेसर उसकी तारीफ करते, मगर दोस्त बनाना आसान नहीं था। राज, अमित, नेहा, विकास और पूजा ये सब अमीर घरों के बच्चे थे। इनके पिता बड़े बिजनेसमैन, डॉक्टर और इंजीनियर थे। ये सब अपना ग्रुप बनाकर रखते थे। कभी-कभी प्रिया से बात करते मगर हमेशा एक दूरी बनाकर रखते। प्रिया को याद आया एक दिन का वाकया।
कॉलेज में एनुअल फेस्टीवल था। सब लड़कियां नए कपड़े पहनकर आई थीं। प्रिया भी अपनी मां की पुरानी साड़ी पहनकर आई थी, जिसे उसने खुद सिलाई करके फिट किया था। “अरे प्रिया, यह क्या पहना है?” नेहा ने हंसते हुए कहा था। “साड़ी?” प्रिया ने सीधा जवाब दिया था, “पता है यार, मगर यह तो बहुत पुरानी लग रही है। कहां से लाई?” पूजा ने पूछा था। “मम्मी की है,” प्रिया ने बिना शर्माए कहा था। सब हंसने लगे थे। “यार, फेस्ट में मम्मी की साड़ी पहन कर आना, कम से कम नहीं तो खरीद सकती थी,” प्रिया ने शांति से कहा था, “घर में इतने पैसे नहीं हैं।” यह सुनकर सब और भी हंसने लगे थे। उस दिन प्रिया को बहुत बुरा लगा था, मगर उसने कुछ नहीं कहा था।
एक और वाकया था। कॉलेज की कैंटीन में सब दोस्त महंगा खाना खाते थे — पिज़्ज़ा, बर्गर, कोल्ड ड्रिंक। प्रिया हमेशा घर से रोटी-सब्जी लेकर आती थी। एक डिब्बे में बंद, साधारण खाना। “यार प्रिया, रोज घर का खाना? कभी यहाँ से कुछ खा क्यों नहीं लेती?” राज ने एक दिन पूछा था। “यहाँ का खाना महंगा है?” प्रिया ने सच कह दिया था। “अरे यार, कितना महंगा? ₹50 से ₹100 तो होगा ही।” अमित बोला था, “मेरे लिए ₹50 भी बहुत हैं, मैं घर से पैसे नहीं मांग सकती।” प्रिया ने कहा था। विकास हंसा था, “₹50 भी नहीं है, फिर तो यहाँ कैसे पढ़ रही है?” “स्कॉलरशिप पर,” प्रिया ने गर्व से कहा था। “ओह, तो फ्री में पढ़ाई हो रही है,” नेहा ने व्यंग से कहा था। उस दिन भी प्रिया को बुरा लगा था, मगर उसने सोचा था कि एक दिन वो इन सबको दिखाएगी कि गरीबी कोई कमजोरी नहीं है।
कॉलेज के दिनों में प्रिया हमेशा अकेली रहती थी। जब सब दोस्त मॉल जाते, सिनेमा देखते या पार्टी करते, तो प्रिया लाइब्रेरी में बैठकर पढ़ाई करती। वह जानती थी कि उसके पास केवल एक ही रास्ता है — पढ़ाई। उसे याद आया कि कैसे वह रात-रात भर जागकर पढ़ती थी। घर में बिजली नहीं होती तो मोमबत्ती जलाकर पढ़ती। कभी-कभी तो खाना भी नहीं मिलता था, मगर वह पढ़ाई नहीं छोड़ती थी।
प्रिया के पिताजी एक सरकारी स्कूल में टीचर थे। उनकी सैलरी बहुत कम थी। मां घर पर ही दर्जी का काम करती थीं। फिर भी पैसे हमेशा कम पड़ते थे। प्रिया ने कई बार देखा था कि उसके माता-पिता उसकी पढ़ाई के लिए कैसे-कैसे जुगाड़ करते थे। एक बार तो उसकी मां ने अपने सोने के कंगन बेच दिए थे ताकि प्रिया की परीक्षा की फीस भर सकें। उस दिन प्रिया रो दी थी और कहा था, “मम्मी, मैं पढ़ाई छोड़ देती हूँ।” मगर मां ने कहा था, “बेटी, तू पढ़ाई नहीं छोड़ेगी। हम चाहे भूखे रह जाएं मगर तेरी पढ़ाई नहीं रुकने देंगे।” उसी दिन प्रिया ने तय किया था कि वह आईएएस बनेगी ताकि उसके माता-पिता का सारा संघर्ष सार्थक हो जाए।
कॉलेज के आखिरी साल में जब यूपीएसएससी की तैयारी शुरू की तो प्रिया के दोस्तों ने और भी मजाक उड़ाया था। “यार प्रिया, आईएएस बनना है, पता है कितना मुश्किल है?” राज ने कहा था। “हाँ यार, हमारे जैसे अमीर घर के बच्चे भी नहीं कर पाते, तू कैसे करेगी?” अमित बोला था। नेहा ने जोड़ा था, “कोचिंग कहां से करेगी? दिल्ली जाएगी, वहाँ रहने का खर्च कैसे उठाएगी?” प्रिया ने कहा था, “मैं यहीं से तैयारी करूंगी, जो किताबें खरीद सकती हूं, वह खरीदूंगी, बाकी लाइब्रेरी से पढ़ूंगी।” सब हंसे थे। “यार, आजकल बिना कोचिंग के कुछ नहीं होता, तू सपने में जी रही है।” मगर प्रिया ने हार नहीं मानी थी।
वह रोज 12 से 14 घंटे पढ़ती थी। कभी-कभी तो 18 घंटे भी उसका पूरा दिन किताबों में बीतता था। अखबार से लेकर मैगजीन तक सब कुछ पढ़ती थी। पहली बार में वह क्लियर नहीं कर पाई थी। दोस्तों ने और भी मजाक उड़ाया था। “देखा, कहां था ना? इतना आसान नहीं है,” विकास बोला था। मगर प्रिया ने हिम्मत नहीं हारी। दूसरी बार की तैयारी में वह और भी जुट गई। इस बार उसने एक छोटी सी जॉब भी कर ली थी ताकि कुछ पैसे आ सकें। दूसरी बार भी वह सिर्फ प्री परीक्षा तक पहुंच पाई। मगर तीसरी बार उसने कर दिखाया। न सिर्फ क्लियर किया बल्कि अच्छी रैंक भी लाई।
जब रिजल्ट आया और पता चला कि प्रिया आईएएस बन गई है तो उसके कॉलेज के दोस्त चौंक गए थे। मगर तब तक प्रिया का उनसे संपर्क टूट चुका था। आज यहाँ बैठे-बैठे प्रिया को सब याद आ रहा था कि कैसे इन्हीं लोगों ने उसका मजाक उड़ाया था, कैसे उसे हमेशा नीचा दिखाने की कोशिश की थी, और आज भी यही लोग उसका मजाक उड़ा रहे थे।
प्रिया ने सोचा कि इन लोगों की मानसिकता नहीं बदली है। अभी भी यह सोचते हैं कि गरीब आदमी कुछ नहीं कर सकता। वह अपने माता-पिता को देखकर मुस्कुराई। आज उसके मां-बाप उसकी सफलता का जश्न मना रहे थे। यही तो असली खुशी थी।
प्रिया के मन में यादों का सिलसिला जारी था। कॉलेज खत्म होने के बाद के दिन, जब असली संघर्ष शुरू हुआ था। ग्रेजुएशन के बाद जब उसके सारे दोस्त अच्छी जॉब्स में लग गए या फिर अपने पारिवारिक बिजनेस में शामिल हो गए, तो प्रिया के सामने सिर्फ एक ही रास्ता था — यूपीएसएससी की तैयारी।
राज को उसके पिता ने अपनी कंपनी में मैनेजर बना दिया था, ₹50,000 महीना। अमित का बाप डॉक्टर था, उसने भी एमबीबीएस करने के लिए प्राइवेट कॉलेज में दाखिला दिला दिया था। नेहा के पिता का बिजनेस था, वह भी घर बैठकर मजे कर रही थी। विकास और पूजा भी अपने-अपने घरों के बिजनेस में लग गए थे। सबकी जिंदगी सेट हो रही थी और प्रिया अभी भी संघर्ष में थी।
उसे याद आया यूपीएससी की तैयारी के पहले दिन। वह एक छोटी सी दुकान से किताबें खरीदने गई थी। दुकानदार ने कहा था, “बेटी, यूपीएससी की किताबें बहुत महंगी होती हैं। पूरा सेट ₹25,000 का होगा।” प्रिया के पास इतने पैसे नहीं थे। उसने कुछ पुरानी किताबें खरीदीं और बाकी लाइब्रेरी से इशू करने का सोचा।
शहर की सेंट्रल लाइब्रेरी में वह रोज जाने लगी। सुबह 6 बजे से रात 10 बजे तक पूरे 16 घंटे वह वहीं बिताती थी। घर से खाना बांधकर ले जाती और लाइब्रेरी में ही खाती। पहले महीने में ही उसे एहसास हो गया कि यह आसान नहीं है। सिलेबस बहुत बड़ा था — इतिहास, भूगोल, राजनीति विज्ञान, अर्थशास्त्र, सामान्य विज्ञान, करंट अफेयर्स सब कुछ पढ़ना था।
एक दिन लाइब्रेरी में उसकी मुलाकात एक लड़के से हुई, आर्यन। वह भी यूपीएससी की तैयारी कर रहा था, मगर उसके पास सारी सुविधाएं थीं। महंगी किताबें, ऑनलाइन कोर्स और सबसे बड़ी बात कोई आर्थिक चिंता नहीं। “तुम भी यूपीएससी की तैयारी कर रही हो?” आर्यन ने एक दिन पूछा था। “हाँ,” प्रिया ने जवाब दिया था। “कोचिंग कहां से कर रही हो?” “कोई कोचिंग नहीं, सेल्फ स्टडी।” आर्यन हैरान हो गया था, “सेल्फ स्टडी यार, आजकल बिना कोचिंग के इंपॉसिबल है। मैं दिल्ली से ऑनलाइन कोचिंग ले रहा हूं, ₹1 लाख का कोर्स है।” प्रिया के लिए ₹1 लाख किसी सपने से कम नहीं था। उसके घर की साल भर की आमदनी भी इतनी नहीं थी। “पैसे नहीं हैं,” प्रिया ने सच कह दिया था। आर्यन को अजीब लगा था, मगर उसने कुछ और नहीं कहा था।
महीनों बीतते गए। प्रिया की दिनचर्या एक जैसी थी। सुबह 4 बजे उठना, नहाना-धोना, फिर लाइब्रेरी। रात को घर आकर फिर से पढ़ाई। बस खाना-पीना और थोड़ी सी नींद। पहली बार की प्री परीक्षा में वह फेल हो गई। उस दिन रोते-रोते घर आई थी। मां ने पूछा था, “क्या हुआ बेटी?” “मम्मी, मैं पास नहीं हो पाई।” मां ने उसे गले लगाया था, “कोई बात नहीं बेटी, अगली बार हो जाएगी।” पिताजी ने कहा था, “बेटी हार मत मान, मैं कोई नहीं निकालता।” मगर प्रिया को लगा था जैसे उसकी दुनिया ही खत्म हो गई हो। इतनी मेहनत के बाद भी फेल होना।
उसी रात उसे अपने कॉलेज के दोस्तों का फोन आया था। किसी ने बताया होगा कि प्रिया फेल हो गई है। राज का फोन आया था, “यार प्रिया, सुना है फेल हो गई।” “चलो कोई बात नहीं, अब तो समझ गई होगी कि आईएएस इतना आसान नहीं है, कोई और काम देख।” अमित ने कहा था, “यार मैंने पहले ही कहा था, हमारे जैसे अमीर घर के बच्चे भी मुश्किल से निकालते हैं।” प्रिया ने बात अधूरी छोड़कर फोन काट दिया था। नेहा का मैसेज आया था, “डोंट वरी प्रिया, आईएएस सबके बस की बात नहीं, तू कुछ आसान सा काम कर, शादी-विवाह का भी सोच।” इन सब बातों से प्रिया को और भी बुरा लगा था, मगर उसने तय किया था कि वह हार नहीं मानेगी।
दूसरी बार की तैयारी में वह और भी जुट गई। इस बार उसने एक स्ट्रेटजी बनाई। पहले जो कमियां रह गई थीं, उन पर काम किया। मगर घर की आर्थिक स्थिति और भी खराब हो रही थी। पिताजी की सैलरी से घर चलाना मुश्किल हो रहा था। प्रिया ने सोचा कि कुछ काम करना चाहिए। उसने ट्यूशन पढ़ाना शुरू किया। छह से सात बच्चों को घर पर पढ़ाती थी। हर बच्चे से ₹500 महीना मिलता था। कुल मिलाकर ₹3500 महीना। अब उसकी दिनचर्या और भी कठिन हो गई। सुबह 4 बजे उठना, 5 से 8 बजे तक पढ़ाई, फिर 9 से 12 बजे तक ट्यूशन, दोपहर 2 से 8 बजे तक लाइब्रेरी और रात 9 से 12 बजे तक फिर घर पर पढ़ाई। कभी-कभी तो वह इतनी थक जाती कि किताब पर ही सो जाती।
मां उसे देखकर चिंता करती, मगर कुछ कह नहीं सकती थी। दूसरी बार की प्री में वह क्लियर हो गई, मगर मेंस में फेल हो गई। फिर से वही दुख, फिर से वही ताने-बाजी। इस बार विकास का फोन आया था, “यार प्रिया, अब तो 2 साल हो गए, कब तक यही करती रहेगी? देख मेरे पापा कह रहे हैं अगर तू चाहे तो हमारे ऑफिस में रिसेप्शनिस्ट की जॉब दिला सकते हैं, ₹15,000 महीना मिलेगा।” प्रिया को गुस्सा आया था, “नहीं चाहिए तुम्हारी जॉब।” “अरे यार, गुस्सा क्यों हो रही है? हम तो तेरी भलाई सोच रहे हैं।” प्रिया ने फोन काट दिया था। पूजा ने WhatsApp पर मैसेज किया था, “प्रिया, अब तो समय आ गया है कि तू रियलिटी फेस करे, आईएएस नहीं होने वाला, कोई अच्छा लड़का देखकर शादी कर ले। मैं मेरी आंटी से बात कर सकती हूं।” प्रिया ने उसे ब्लॉक कर दिया था।
तीसरी बार की तैयारी में प्रिया ने अपना पूरा फोकस लगाया। इस बार वह जानती थी कि यह उसका लास्ट चांस है। उम्र भी बढ़ रही थी और घर वाले भी चिंता करने लगे थे। उसने ट्यूशन के घंटे बढ़ा दिए। अब 10 से 12 बच्चों को पढ़ाती थी। ₹6000 से ₹7000 महीना आने लगा था। इन पैसों से उसने कुछ ऑनलाइन कोर्स भी खरीदे। इस बार की तैयारी में उसे लगा कि वह पहले से बेहतर कर रही है। प्री और मेंस दोनों अच्छे गए। इंटरव्यू भी ठीक-ठाक रहा।
रिजल्ट का दिन आया। प्रिया ने कंप्यूटर स्क्रीन पर अपना रोल नंबर देखा। वहाँ था। वह पास हो गई थी। न सिर्फ पास बल्कि अच्छी रैंक भी आई थी। उस दिन उसकी खुशी का ठिकाना नहीं था। मां-बाप रो पड़े थे खुशी से। पूरे घर में जश्न का माहौल था। अगले दिन अखबार में उसकी फोटो छपी तो पूरे शहर में बात फैल गई। वही प्रिया जिसका सब मजाक उड़ाते थे, आईएएस बन गई थी। उसके कॉलेज के दोस्तों को भी पता चला मगर अब किसी का फोन नहीं आया, कोई मैसेज नहीं आया। शायद उन्हें शर्म आ रही थी।
ट्रेनिंग के दिन भी आसान नहीं थे। लाल बहादुर शास्त्री नेशनल एकेडमी ऑफ एडमिनिस्ट्रेशन में 2 साल की ट्रेनिंग। वहाँ भी उसे कई तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ा। बाकी ट्रेनीज़ अमीर घरों से थे। उनके पास महंगे कपड़े, गैजेट्स और सारी सुविधाएं थीं। प्रिया अभी भी साधारण कपड़े पहनती थी, मगर अब उसमें एक आत्मविश्वास था। ट्रेनिंग के दौरान भी कुछ लोगों ने उसे नीचा दिखाने की कोशिश की, मगर प्रिया ने अपनी मेहनत और काबिलियत से सबको चुप करा दिया।
आज वह यहाँ बैठी थी, एक सफल आईएएस ऑफिसर बनकर जिले की डीएम बनकर। और वही लोग जो कभी उसका मजाक उड़ाते थे, आज भी उसका मजाक उड़ा रहे थे। प्रिया ने सोचा कुछ लोग कभी नहीं बदलते। उनकी सोच हमेशा छोटी ही रहती है।
प्रिया अभी भी अतीत की यादों में खोई हुई थी कि अचानक होटल में कुछ हलचल हुई। मुख्य दरवाजे पर कुछ लोग खड़े हो गए थे और होटल के स्टाफ में थोड़ी बेचैनी दिखाई दे रही थी। होटल मैनेजर तेजी से मुख्य दरवाजे की तरफ गया। वहाँ दो सुरक्षा गार्ड खड़े थे। पुलिस की वर्दी में। उनके साथ होटल का एक सीनियर स्टाफ मेंबर भी था।
“क्या बात है?” मैनेजर ने पूछा।
“सर, डीएम मैडम आने वाली हैं। उनकी सिक्योरिटी चेक करनी है,” एक गार्ड ने कहा।
मैनेजर की आंखें चमक गईं। “अरे वाह! डीएम मैडम आ रही हैं। कौन से टेबल पर बैठना है उन्हें? अभी तक तो कोई बुकिंग नहीं है सर, शायद अचानक आ रही हैं।” दूसरे गार्ड ने जवाब दिया।
मैनेजर ने तुरंत स्टाफ को आवाज लगाई, “जल्दी से वीआईपी एरिया को साफ करो, बेस्ट टेबल तैयार करो। डीएम मैडम आने वाली हैं।” यह सुनकर पूरे होटल में एक अजीब सी हलचल मच गई। सब कस्टमर्स आपस में बात करने लगे। कोई कह रहा था, “अरे हमारी डीएम मैडम कितनी यंग है।” कोई बोल रहा था, “सुना है बहुत स्ट्रिक्ट हैं।”
प्रिया के दोस्तों के ग्रुप में भी यह बात पहुंची। राज ने कहा, “यार, डीएम आ रही है, चलो मिलते हैं, फोटोस भी लेंगे।” अमित बोला, “हाँ यार, सोशल मीडिया पर पोस्ट करेंगे।” डीएम के साथ डिनर नेहा एक्साइटेड हो गई, “ओ एम जी, मैं तो डीएम से मिलने का सपना देखती थी, आज मौका मिल गया।” विकास ने कहा, “यार, मेरे पापा कह रहे थे कि यहाँ की डीएम बहुत इंटेलिजेंट है, बहुत यंग एज में आईएस बन गई।” पूजा बोली, “हाँ, और सुना है कि बहुत हम्बल भी हैं, गरीब घर से आई हैं इसलिए सबकी प्रॉब्लम समझती हैं।”
इधर प्रिया के टेबल पर उसके पिताजी ने कहा, “बेटी, लगता है कोई बड़ा ऑफिसर आने वाला है। काफी तैयारी हो रही है।” प्रिया मुस्कुराई, “हाँ पापा, लग रहा है।” मां ने पूछा, “कौन आ रहा होगा बेटी?” “पता नहीं मम्मी, कोई वीआईपी होगा,” प्रिया ने सीधा जवाब दिया। वह नहीं चाहती थी कि अभी सच बताए।
तभी होटल मैनेजर प्रिया की टेबल पर आया। वह थोड़ा नर्वस लग रहा था। “एक्चुअली हमारे यहाँ एक वीआईपी गेस्ट आने वाला है, क्या आप लोग कोई और टेबल ले सकते हैं? या फिर अगर आप चाहें तो हम आपका बिल कैंसिल कर देते हैं।” प्रिया के पिताजी को अजीब लगा, “क्यों भाई? हमने तो बुकिंग कराई थी।” “जी सर, मैं समझ रहा हूँ, मगर बात यह है कि डीएम मैडम आने वाली हैं, हमें उनके लिए जगह चाहिए।” प्रिया की मां को बुरा लगा, “अरे हम भी तो कस्टमर हैं, हमारा भी बुकिंग है।”
मैनेजर को लगा कि यह लोग मिडिल क्लास हैं इसलिए जल्दी मान जाएंगे। उसने कहा, “मैडम, आप समझिए ना, डीएम मैडम है, बहुत इंपॉर्टेंट है, आप लोग कोई और दिन आ सकते हैं।” प्रिया चुपचाप सब सुन रही थी। उसे गुस्सा आ रहा था, मगर वह कुछ नहीं बोल रही थी।
इसी बीच प्रिया के दोस्तों का ग्रुप भी वहाँ आ गया। उन्होंने सुना कि मैनेजर प्रिया के परिवार को टेबल छोड़ने को कह रहा है। राज ने हंसते हुए कहा, “अरे यार, ये लोग वीआईपी टेबल पर बैठे हैं क्या?” अमित बोला, “लगता है इन्हें पता नहीं कि डीएम आने वाली है, मिडिल क्लास लोग हैं, समझ नहीं रहे।” नेहा ने व्यंग्य से कहा, “प्रिया, तू अपने मम्मी-पापा को समझा ना, डीएम से बड़ा कोई नहीं होता।” विकास हंसा, “हाँ यार, डीएम के सामने हम सब छोटे हैं। दी पीपल शुड अंडरस्टैंड।” पूजा ने जोड़ा, “एक्चुअली इन लोगों को इतने हाई क्लास होटल में आना ही नहीं चाहिए था, डीएम जैसे लोगों के लिए यह जगह है।”
प्रिया के माता-पिता को इन बातों से बहुत बुरा लग रहा था। उन्हें लग रहा था जैसे उनकी इज्जत पर आंच आ रही हो। प्रिया के पिताजी ने कहा, “ठीक है, हम चलते हैं।” वे उठने लगे। मगर प्रिया ने उन्हें रोका, “पापा, बैठिए, हम कहीं नहीं जा रहे।” मैनेजर ने कहा, “मैडम, प्लीज कोऑपरेट करिए, डीएम मैडम का मामला है।” प्रिया शांति से बोली, “डीएम को कौन सी टेबल चाहिए? यही टेबल मैडम, यह भी आईपी सेक्शन है।” “ठीक है,” प्रिया ने कहा, “तो डीएम को बोल दीजिए कि उनकी टेबल रेडी है।”
मैनेजर को लगा कि यह लड़की शायद समझ नहीं रही। “मैडम, आप समझ नहीं रही, आपको टेबल छोड़नी होगी।” प्रिया मुस्कुराई, “मैं अच्छी तरह समझ रही हूँ। आप डीएम को बता दीजिए कि उनकी टेबल रेडी है।” राज ने व्यंग से कहा, “यार प्रिया, अब तो एटीट्यूड दिखाने लगी, डीएम के सामने कोई नहीं टिकता।” अमित बोला, “एग्जैक्टली, डीएम माने डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट, सबसे पावरफुल ऑफिसर।” नेहा हंसी, “प्रिया को लगता है आईएएस ऑफिसर बनने से वह भी कुछ बन गई, मगर डीएम के सामने तो सब छोटे हैं।” विकास ने कहा, “यार, इसे पता भी नहीं कि डीएम क्या होता है, स्मॉल टाउन की लड़की है।” पूजा बोली, “एक्चुअली मुझे लगता है इसे लगता है कि वह भी कोई बड़ी ऑफिसर है, मगर डीएम के सामने सब जूनियर हैं।”
इतने में होटल के मुख्य दरवाजे से एक और आदमी अंदर आया। वह प्रिया का ड्राइवर था, सरकारी गाड़ी का ड्राइवर। उसने होटल में चारों तरफ देखा और फिर प्रिया को ढूंढा। जब उसकी नजर प्रिया पर पड़ी तो वह सीधा उसकी तरफ आया। “मैडम,” उसने प्रिया से कहा, “गाड़ी बाहर रेडी है? आपका सिक्योरिटी क्लियरेंस भी हो गया है।”
यह सुनकर मैनेजर कंफ्यूज हो गया। यह क्या बात है? ड्राइवर ने मैनेजर को देखा, “आप होटल के मैनेजर हैं, मैं डीएम मैडम का ड्राइवर हूँ।” मैनेजर की आंखें फटी रह गईं। “डीएम मैडम का ड्राइवर मतलब?” ड्राइवर ने प्रिया की तरफ इशारा किया, “यह हैं डीएम मैडम।”
पूरे होटल में सन्नाटा छा गया। सब लोग प्रिया को देखने लगे। प्रिया के दोस्तों के मुंह खुले रह गए। मैनेजर को विश्वास नहीं हो रहा था, “यह डीएम है?” “जी हाँ,” ड्राइवर ने कहा, “जिला मजिस्ट्रेट प्रिया शर्मा मैडम।” अब मैनेजर की सांस फूलने लगी।
उसने प्रिया से टेबल छोड़ने को कहा था डीएम से। वह तुरंत प्रिया के पास आया और हाथ जोड़कर बोला, “मैडम, सॉरी मैडम, मुझे पता नहीं था, मैं माफी चाहता हूँ।” प्रिया शांति से मुस्कुराई, “कोई बात नहीं, आपको कैसे पता होता?”
राज, अमित, नेहा, विकास और पूजा सब के सब शौक में थे। वहीं प्रिया, जिसका वे मजाक उड़ा रहे थे, वह डीएम थी। राज की आवाज कांप रही थी, “प्रिया, तू डीएम है।” प्रिया ने उन सबको देखा, “हाँ राज, वही प्रिया जो कभी तुम्हारे साथ कॉलेज में पढ़ती थी। बस फर्क इतना है कि तुमने हमेशा मुझे सिर्फ गरीबी के नजरिए से देखा।” अमित का गला सूख गया था, “मतलब तू जिला मजिस्ट्रेट है?” “हाँ अमित, डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट प्रिया शर्मा।” नेहा को अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हो रहा था। वे सब इतनी देर तक डीएम का मजाक उड़ा रहे थे।
विकास ने घिगियाते हुए कहा, “यार, हमें पता नहीं था।” पूजा की तो बोलती ही बंद हो गई थी। होटल के बाकी कस्टमर्स भी इस ड्रामा को देख रहे थे। सब समझ गए थे कि कुछ लोगों ने डीएम को पहचाने बिना उनका मजाक उड़ाया था।
मैनेजर अब प्रिया के सामने हाथ जोड़कर खड़ा था, “मैडम, बहुत माफी, मुझसे गलती हुई है।” प्रिया ने कहा, “कोई बात नहीं, आप अपना काम करिए।” फिर उसने अपने दोस्तों को देखा, “तुम लोगों को याद है कॉलेज में तुम हमेशा कहते थे कि गरीब लड़की कुछ नहीं कर सकती। आज भी तुमने वही किया।” सब लोगों के सिर शर्म से झुक गए थे।
होटल में अब एक अजीब सा माहौल था। प्रिया के सामने उसके पुराने दोस्त शर्मिंदगी से खड़े थे। होटल मैनेजर माफी मांग रहा था और बाकी कस्टमर्स इस पूरे ड्रामा को देख रहे थे। प्रिया शांति से अपनी कुर्सी पर बैठी रही। उसके चेहरे पर कोई गुस्सा नहीं था, ना ही कोई अकड़। बस एक शांत मुस्कान थी।
राज ने हिम्मत करके कहा, “प्रिया, हमें माफ कर दे, हमें पता नहीं था।” प्रिया ने उसकी तरफ देखा, “राज, तुम्हें पता होना भी चाहिए था क्या? मैं वही प्रिया हूं जो कॉलेज में तुम्हारे साथ पढ़ती थी। बस फर्क इतना है कि तुमने हमेशा मुझे सिर्फ गरीबी के नजरिए से देखा।”
अमित ने कहा, “यार, हम तो मजाक कर रहे थे।” “मजाक?” प्रिया ने पूछा। “अमित, यह मजाक कॉलेज के टाइम से चल रहा है। तब भी तुम मेरी गरीबी का मजाक उड़ाते थे, आज भी वही कर रहे
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