गरीब समझकर किया अपमान ! जब खुला राज ? उसके बाद जो हुआ 😱
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साबिर एक साधारण आदमी था, जो दिल्ली की एक पुरानी गली में अपनी पत्नी शिवानी के साथ रहता था। उनकी जिंदगी में बहुत सी मुश्किलें थीं, लेकिन साबिर हमेशा अपनी पत्नी को खुश रखने की कोशिश करता था। वह पढ़ाई में अच्छा था और बच्चों को ट्यूशन पढ़ाकर घर का खर्च चलता था। लेकिन हालात ऐसे थे कि उसकी आमदनी कभी-कभी मुश्किल से ही चल पाती थी।
एक दिन, बारिश के मौसम में, साबिर और शिवानी अपने छोटे से कमरे में बैठे थे। बारिश की बूंदें छत से टपक रही थीं और कमरे में एक पुरानी बाल्टी रखी गई थी ताकि पानी इकट्ठा हो सके। शिवानी गुस्से में थी।
“साबिर, ये छत फिर से टपक रही है! तुम कब तक इसी तरह बैठोगे? कुछ करो!” शिवानी ने चिल्लाते हुए कहा।
साबिर ने ठंडी सांस ली और कहा, “मैंने मकान मालिक से कई बार कहा है, लेकिन वह सुनता ही नहीं।”
“तुम्हारी कमाई इतनी कम है कि हम एक अच्छा घर नहीं ले सकते। मेरे बाप ने मुझे तुम जैसे भिखारी से शादी करने के लिए मजबूर किया,” शिवानी ने ताना मारा।
साबिर के दिल में चुभन हुई। “शिवानी, ऐसी बातें मत करो। मैं मेहनत कर रहा हूं। वक़्त हमेशा एक जैसा नहीं रहता।”
“क्या मेहनत? तुम बच्चों को ट्यूशन पढ़ाकर क्या करोगे? देखो मुझे, मैं सुबह से शाम तक बैंक में काम करती हूं। तब जाकर घर में दो वक्त का राशन आता है। मैं कब तक तुम्हें अपने पैसों पर पालती रहूंगी?” शिवानी ने उसकी बात काटी।
साबिर चुपचाप उठा और बरसाती से जुड़ी छोटी सी बालकनी पर जाकर खड़ा हो गया। बारिश की बूंदें उसके चेहरे पर पड़ रही थीं, लेकिन उसके अंदर की आग बुझ नहीं रही थी। वह सोचने लगा कि कैसे वह अपनी पत्नी की उम्मीदों पर खरा उतर सके।
कुछ हफ्तों बाद, शिवानी का व्यवहार और भी खराब हो गया। वह साबिर को अब इंसान नहीं बल्कि अपनी जिंदगी की सबसे बड़ी गलती समझने लगी। एक रात, जब साबिर थक कर घर लौटा, उसने देखा कि शिवानी किचन में कुछ बना रही थी।
“तुम्हें क्या लगता है, तुम बस खाना खाने के लिए ही आए हो?” शिवानी ने कहा। “तुम्हारे पास पैसे नहीं हैं और तुम फिर भी खा रहे हो?”
साबिर ने नजर उठाई और कहा, “मैंने ट्यूशन से कुछ पैसे कमाए हैं। शायद आज तुम्हारा मूड अच्छा हो।”
“तुम्हारी मेहनत से क्या होगा? तुम जैसे फटीचर को कोई नहीं पूछता। तुम्हारे बाप ने कहा था लड़का हीरा है, लेकिन तुम तो रद्दी निकले,” शिवानी ने ताना मारा।
साबिर ने चुपचाप सब सुना। वह जानता था कि अगर वह कुछ बोलेगा, तो बात और बिगड़ जाएगी। शिवानी ने फिर से कहा, “मुझे तुमसे तलाक चाहिए। तलाक!”

यह सुनकर साबिर का दिल टूट गया। “शिवानी, तुम होश में तो हो? छोटी-छोटी बातों पर तलाक की बात कर रही हो?”
“तुम्हारी बातों का कोई मतलब नहीं है। मैं अब एक पल भी तुम्हारे साथ नहीं रहना चाहती,” शिवानी ने कहा और कागज लाकर उसके सामने फेंक दिए।
साबिर ने कागजों को देखा और समझ गया कि यह कोई पल भर का गुस्सा नहीं है। यह एक सोचा-समझा फैसला था। उसने कांपते हाथों से पेन उठाया और कागज पर साइन कर दिए। शिवानी ने कागज उठाए और खुशी से कहा, “अब मैं अपनी जिंदगी अपने हिसाब से जी सकती हूं।”
शिवानी ने अपना सूटकेस उठाया और दरवाजे की तरफ बढ़ी। साबिर ने उसे रोकने की कोशिश की, लेकिन वह चली गई।
अगले कुछ दिनों में साबिर ने खुद को अकेला और बेबस महसूस किया। वह अब उस कमरे में एक साए की तरह पड़ा रहा। शिवानी के जाने का गम उसे बहुत चुभ रहा था।
फिर एक दिन, साबिर ने फैसला किया कि वह कुछ करेगा। उसने अपने बचपन के दोस्त राशिद से संपर्क किया। राशिद ने उसे हिम्मत दी और कहा, “तू मेहनत कर। मेहनत का फल मीठा होता है।”
साबिर ने कंस्ट्रक्शन साइट पर काम करना शुरू किया। वह दिन में काम करता और रात को ट्रेडिंग सीखता। उसने अपनी सारी मेहनत को एक दिशा में लगा दिया।
धीरे-धीरे, साबिर ने ट्रेडिंग में महारत हासिल कर ली। उसने अपनी मेहनत से पैसे कमाने शुरू किए। उसके पास अब करोड़ों रुपए थे, लेकिन वह फिर भी उसी पुरानी बरसाती में रहता था।
एक दिन, साबिर ने दिल्ली के सबसे महंगे पांच सितारा होटल में जाने का फैसला किया। उसने वही पुराने कपड़े पहने और होटल पहुंचा। गार्ड ने उसे रोकने की कोशिश की, लेकिन एक वेटर ने उसकी मदद की और उसे अंदर जाने दिया।
जब साबिर ने होटल के अंदर देखा, तो उसने शिवानी को वहां काम करते हुए पाया। उसकी आंखों में नफरत थी, लेकिन साबिर ने उसे नजरअंदाज किया।
शिवानी ने उसे देखकर कहा, “क्या कर रहे हो यहां? भीख मांगने आए हो?”
साबिर ने गुस्से में कहा, “तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मुझे ऐसा कहने की?”
फिर उसने शिवानी को थप्पड़ मारा। सब लोग सन्न रह गए। साबिर ने अपनी चेक बुक निकाली और करोड़ों का चेक शिवानी के सामने फेंक दिया।
“मैं यह पूरा होटल खरीद सकता हूं,” उसने कहा।
होटल का मालिक, मिस्टर वर्मा, चेक देखकर दंग रह गया। उसने तुरंत चेक की जांच करने के लिए अपने मैनेजर को भेजा।
जब मैनेजर ने बताया कि चेक असली है, तो सब लोग दंग रह गए। शिवानी घुटनों के बल बैठ गई और साबिर के पैरों में गिर पड़ी।
“मुझे माफ कर दो, साबिर। मैंने बहुत बड़ी गलती की है,” उसने कहा।
साबिर ने उसे दूर धकेलते हुए कहा, “तुम्हारी औकात अब मेरी रिसेप्शनिस्ट की है। तुम मेरे होटल में काम कर रही हो। निकल जाओ यहां से।”
साबिर ने अपनी आंखों में ठंडक और गुस्सा दोनों को महसूस किया। उसने शिवानी को हमेशा के लिए अपनी जिंदगी से निकाल दिया।

इस तरह, साबिर ने अपने जीवन की कठिनाइयों को पार किया और अपनी मेहनत से एक नया मुकाम हासिल किया। उसने साबित कर दिया कि असली ताकत कभी भी गरीबी में नहीं होती, बल्कि अपने आत्मविश्वास और मेहनत में होती है।
अब साबिर एक सफल आदमी था, लेकिन उसकी आंखों में अब भी वही ठंडक थी। उसने शिवानी को अपनी जिंदगी से निकाल दिया और अपने नए जीवन की शुरुआत की।
साबिर की कहानी यह सिखाती है कि कठिनाइयों के बावजूद अगर हम मेहनत करें और अपने सपनों के पीछे भागें, तो सफलता अवश्य मिलेगी।
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