गरीब समझकर पत्नी ने शोरूम से भगाया… तलाकशुदा पति ने खड़े खड़े खरीद डाला पूरा शोरूम, फिर…
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भूमिका
लखनऊ के एक आलीशान Mercedes शोरूम के कांच के दरवाजों पर जैसे ही एक फटा हुआ, पुराना कुर्ता-पायजामा पहने आदमी दाखिल हुआ, वहां मौजूद सभी लोगों की नजरें उसकी ओर उठ गईं। किसी को लगा यह कोई मजाक है, किसी को लगा यह गलती से अंदर आ गया है। लेकिन सबसे ज्यादा चौंकी रीना, वही रीना जो कभी उसकी पत्नी थी। अब वह इस शोरूम की मैनेजर थी—ब्रांडेड ड्रेस, ऊँची हील्स और चेहरे पर अहंकार का नकाब।
उसने जैसे ही उस आदमी को देखा, उसकी आंखों में पहचान की चिंगारी भड़की और होठों पर तिरस्कार की हंसी तैर गई।
“हरीश, तुम यहां?” उसकी आवाज पूरे शोरूम में गूंज गई।
“यह Mercedes का शोरूम है, कोई गरीबों का बाजार नहीं। बाहर निकलो।”
दो सेल्समैन तुरंत उसकी तरफ बढ़े। रीना ने हाथ से इशारा किया—”इसे बाहर करो।”
हरीश ने रीना की आंखों में देखा, ना सेल्समैन की तरफ। बस हल्की सी मुस्कान उसके चेहरे पर उभरी। जैसे किसी अंदरूनी आग का धुआं बाहर निकला हो। भीड़ के बीच खुसरपुसर शुरू हो गई।
“लगता है कोई गरीब है, शायद गलत जगह आ गया। मैनेजर मैडम सही कह रही है। यह यहां के लायक नहीं।”
लेकिन हरीश अब भी वही खड़ा था, शांत। उसके चेहरे पर एक ठंडा सन्नाटा था। जैसे सब कुछ सुन रहा हो, लेकिन जवाब सही वक्त का इंतजार कर रहा हो।
अतीत की परछाइयाँ
रीना और भड़क गई। उसने कहा, “हरीश, तुम यहां कार लेने आए हो? यहां खड़े होने की भी तुम्हारी औकात नहीं है। याद है जब मैंने तुम्हें छोड़ा था, तब भी तुम्हारे पास कुछ नहीं था और आज भी तुम्हारे पास कुछ नहीं है।”
हरीश की आंखों में जैसे अतीत की परछाइयाँ उतर आईं। आठ साल पहले की वो कड़वी रात उसके सामने तैरने लगी।
आठ साल पहले की बात है।
हरीश और रीना की शादी को दो ही साल हुए थे। छोटा सा किराए का मकान, पंखा भी मुश्किल से चलता था और बारिश में छत टपकती थी। रीना एक छोटे प्राइवेट बैंक में नौकरी करती थी और हरीश कभी छोटे-मोटे काम करके, कभी ट्यूशन पढ़ाकर घर चलाने की कोशिश करता।
रीना का सपना बड़ा था। उसे गाड़ियां, बड़े घर और ऐशो-आराम चाहिए थे। लेकिन हरीश के पास था सिर्फ उसका संघर्ष और सपनों से भरा दिल।
“हरीश, मैं तुमसे तंग आ चुकी हूं।” रीना अक्सर गुस्से में कहती।
“तुम्हारी यह गरीबी मुझे मार डाल रही है। मेरे सारे दोस्तों के पास कार है। उनके पति बड़े-बड़े बिजनेस संभालते हैं। और तुम तो बस मेहनत करते-करते अपनी जिंदगी बर्बाद कर रहे हो।”
हरीश चुप रहता। वह जानता था कि उसके हालात उसे तोड़ रहे हैं। लेकिन वह भीतर से हारना नहीं चाहता था। कई रातें वह अंधेरे में बैठकर सोचता—क्या सचमुच मैं नाकाम हूं? क्या मेरी पत्नी सही कहती है? क्या मैं कभी बड़ा आदमी नहीं बन पाऊंगा?
लेकिन उसके दिल में एक आग थी। वह समझ चुका था कि मजदूरी करके या छोटे-मोटे काम करके जिंदगी नहीं बदलेगी। उसे कुछ अलग करना होगा, कुछ बड़ा।
इसी दौरान हरीश की मुलाकात एक पुराने दोस्त निखिल से हुई। वह दोस्त स्टॉक मार्केट की बातें करता था—ग्राफ्स, चार्ट्स, सेंसेक्स, एनएसई।
हरीश को यह सब किसी अजनबी भाषा जैसा लगता था। लेकिन जब उसने सुना कि शेयर बाजार से पैसे कमाए जा सकते हैं, तो उसके दिल में एक नया सपना जगा।
उसने रातों को इंटरनेट कैफे में बैठकर आर्टिकल पढ़ना शुरू किया। YouTube पर वीडियो देखता, फ्री वेबिनार में शामिल होता। उसे समझ आया कि पैसा सिर्फ मेहनत से नहीं, समझ से भी बनता है। लेकिन यह खेल आसान नहीं था।
रीना को जब पता चला कि हरीश शेयर बाजार सीख रहा है, तो वह हंसी उड़ा देती।
“तुम शेयर मार्केट? हरीश, तुम्हें तो मोबाइल तक ढंग से चलाना नहीं आता और तुम करोड़पति बनने का सपना देख रहे हो। मैं तुम्हारे सपनों में अब और नहीं जी सकती।”
वो रोज लड़ाई करने लगी। आखिरकार एक दिन उसने साफ कह दिया, “मुझे तलाक चाहिए। मैं अपनी जिंदगी इस गरीबी में बर्बाद नहीं करना चाहती।”
हरीश टूट गया। लेकिन उसने रीना को रोका नहीं। उसने चुपचाप तलाक के कागज पर साइन कर दिए। उस रात उसने छत पर बैठकर आसमान की तरफ देखा और अपने आप से वादा किया—”मैं लौटूंगा। आज तुमने मुझे गरीब समझकर छोड़ दिया, लेकिन एक दिन यही दुनिया देखेगी कि गरीब समझा जाने वाला हरीश कितना ऊंचा उठ सकता है।”
संघर्ष और सफलता
उसके बाद हरीश ने अपने जीवन को पूरी तरह बदल दिया।
दिन में मजदूरी करता, रात को शेयर मार्केट पढ़ता। दोस्तों से थोड़े-थोड़े पैसे उधार लेकर डेमो ट्रेडिंग करता। कई बार हारता, कई बार जीतता। लेकिन हर बार एक नया सबक सीखता।
धीरे-धीरे उसने समझ लिया कि बाजार लालच से नहीं, धैर्य से जीतने का खेल है। उसने छोटे-छोटे निवेश से शुरुआत की और हर मुनाफा वापस बाजार में लगाया। कई बार भूखा रहना पड़ा, कई बार किराया चुकाने के लिए दोस्तों से मदद लेनी पड़ी। लेकिन उसने हिम्मत नहीं हारी।
चार साल बाद उसकी मेहनत रंग लाने लगी। छोटे निवेश बड़े बन गए। उसके पास अब लाखों का पोर्टफोलियो था और देखते-देखते आठ साल में करोड़ों का मालिक बन गया। इसके पीछे सबसे बड़ा हाथ था पावर ऑफ शेयर मार्केट का।
लेकिन उसने अपने राज को छुपा कर रखा। ना किसी रिश्तेदार को बताया, ना गांव वालों को। यहां तक कि रीना को भी कभी नहीं बताया कि उसकी जिंदगी बदल चुकी है। उसके लिए यह सफर अभी अधूरा था। वह जानता था कि उसे एक दिन उस जगह वापस जाना है, जहां से उसे गरीब समझकर उसकी पत्नी तलाक देकर चली गई थी।
वर्तमान का पलटाव
आज शोरूम के अंदर खड़े हरीश की आंखों में वही पुराना संकल्प चमक रहा था। वह जानता था कि आज का दिन सिर्फ गाड़ी खरीदने का नहीं, अपनी इज्जत लौटाने का दिन है।
रीना अब भी गुस्से में खड़ी थी। उसे अभी तक यकीन नहीं था कि हरीश यहां कुछ खरीदने आया है। वह सोच भी नहीं सकती थी कि आठ साल पहले जिसे उसने कंगाल कहकर छोड़ दिया था, वही आदमी अब करोड़ों का मालिक बन चुका है।
भीड़ की आंखों में जिज्ञासा बढ़ने लगी थी। सब सोच रहे थे—यह आदमी आखिर कर क्या रहा है? यह यहां खड़ा क्यों है?
हरीश ने धीरे-धीरे अपना सिर उठाया और पहली बार रीना की आंखों में सीधा देखा। उसकी नजरें ठंडी थीं, पर भीतर आग दहक रही थी।
“रीना,” उसकी आवाज शांत थी, पर उसमें एक अजीब दृढ़ता थी।
“तुम्हें लगता है मैं यहां मजाक करने आया हूं?”
रीना ठहाका मारकर हंस पड़ी।
“हाँ हरीश, और क्या? तुम्हारे पास तो किराए का घर तक नहीं था। और आज तुम करोड़ों की गाड़ियां खरीदने आए हो? यह सपना देखना छोड़ दो। दुनिया हंस रही है तुम पर।”
हरीश ने एक पल उसकी बात सुनी। फिर अपनी जेब से वही पुरानी घिसी हुई चेक बुक निकाली। शोरूम में खुसरपुसर तेज हो गई। किसी ने मोबाइल ऑन करके वीडियो बनाना शुरू कर दिया।
रीना की हंसी और तेज हो गई।
“देखो सब लोग, यह वही चेक बुक है जिससे पहले घर का किराया भी मुश्किल से निकलता था और आज यही चेक बुक लेकर आया है Mercedes खरीदने।”
लेकिन हरीश ने किसी की ओर ध्यान नहीं दिया। उसने शांति से एक खाली टेबल पर चेक बुक खोली और पन्ना पलटा। उसकी उंगलियां बिल्कुल स्थिर थीं, जैसे उसे पूरा भरोसा हो कि अब वक्त उसके पक्ष में है।
पास खड़ा सेल्समैन झुककर चेक पर लिखी रकम पढ़ने लगा और अगले ही पल उसके चेहरे का रंग उड़ गया।
“मैडम, इस चेक में तो करोड़ों की रकम लिखी है।”
रीना को लगा उसने गलत सुना।
“क्या बोल रहे हो तुम? इतना बड़ा अमाउंट?”
वह हक्की-बक्की रह गई।
अब शोरूम में सन्नाटा छा गया। जो लोग अब तक हंस रहे थे, सबकी हंसी थम गई और सबकी नजरें सीधे हरीश पर टिक गईं।
हरीश ने गहरी सांस ली और कहा—
“आज मैं कार नहीं, पूरा शोरूम खरीदने आया हूं।”
यह शब्द सुनते ही रीना जैसे पत्थर की मूर्ति बन गई। उसकी सांसें थम गईं, होंठ कांपने लगे। आठ साल पहले का वह फैसला उसकी आंखों के सामने घूम गया। जब उसने तलाक के कागज पर साइन करके सोचा था कि उसने अपनी जिंदगी बचा ली। लेकिन आज वही आदमी उसके सामने करोड़पति बनकर खड़ा था।
ग्राहकों की भीड़ अब फुसफुसा रही थी—
“यह वही है जिसे अभी तक गरीब कह रही थी मैनेजर मैडम। जिंदगी सच में पलट जाती है। किसी को कम मत समझो। किस्मत किसी की भी बदल सकती है।”
रीना ने घबराकर कहा, “यह… यह सब झूठ है। मैं नहीं मानती।”
हरीश ने हल्की मुस्कान के साथ पास खड़े वकील को इशारा किया। वकील ने फाइल आगे बढ़ाई और बोला, “मैडम, सारे दस्तावेज तैयार हैं। डील फाइनल करनी है।”
रीना के पैरों तले जमीन खिसक गई। उसका गला सूख गया। अब उसे समझ आ गया था कि वह हरीश को पहचान नहीं पाई थी। यह वही हरीश था लेकिन अब पहले वाला नहीं रहा।
उसकी आंखों में पछतावे का सैलाब उमड़ आया। उसने धीमी आवाज में कहा, “हरीश, तुम सचमुच…”
हरीश ने उसे रोक दिया। उसकी आवाज बेहद ठंडी थी।
“रीना, मजाक उस दिन हुआ था जब तुमने मुझे गरीब समझकर छोड़ दिया था। मजाक उस दिन हुआ था जब मैंने तुम्हारे लिए सब सहा और तुमने मुझे दुनिया के सामने छोटा कर दिया। लेकिन आज मजाक खत्म हो गया है।”
शोरूम का हर इंसान खड़ा होकर उस पल को देख रहा था। मानो कोई फिल्म उनके सामने चल रही हो। रीना की आंखों से आंसू निकलने को थे, लेकिन उसने उन्हें रोक लिया। उसका अहंकार अब भी उसे झुकने नहीं दे रहा था। लेकिन भीतर से वह टूट चुकी थी।
हरीश ने कर्मचारियों की तरफ देखा और कहा—
“याद रखना, किसी को उसके कपड़ों से मत आकना। आज मैं सिंपल कुर्ते-पायजामे में हूं। कल कोई और किसी और हाल में हो सकता है। वक्त सबको पलट कर रख देता है।”
पछतावे की रात
उधर रात को जब रीना घर लौटी तो उसका मन बेचैन था। उसने अपने कमरे की सारी लाइट बंद कर दी और अकेले अंधेरे में बैठ गई।
उसे याद आया कैसे उसने हरीश से तलाक लेते वक्त कहा था—”तुम जिंदगी में कभी कुछ नहीं कर पाओगे।”
आज वही शब्द उसके गले में फंसी हड्डी की तरह चुभ रहे थे। उसने धीरे-धीरे आंखें बंद की और आंसू निकल पड़े।
“काश, मैंने उस वक्त थोड़ा सब्र किया होता। काश, मैंने हरीश का हाथ छोड़ा ना होता।”
लेकिन अब कुछ बदलने वाला नहीं था। हरीश अपनी बालकनी से शहर की रोशनी देख रहा था। हवा में सन्नाटा था लेकिन उसके दिल में शांति थी। उसने खुद से कहा—”यह सिर्फ मेरी जीत नहीं, हर उस आदमी की जीत है जिसे कभी गरीब समझकर ठुकरा दिया गया। मैंने अपनी इज्जत लौटा ली।”
उसने आसमान की तरफ देखा, शायद भगवान से एक ही बात कहना चाहता था—”धन्यवाद, तूने मुझे टूटने नहीं दिया।”
अंतिम संवाद
अगले दिन रीना हरीश से मिलने ऑफिस पहुंची।
“हरीश, मैं तुमसे माफी मांगने आई हूं। मैंने तुम्हें उस वक्त छोड़ दिया जब तुम्हें मेरी सबसे ज्यादा जरूरत थी।”
हरीश ने शांत स्वर में कहा—
“वक्त एक बार जाता है तो लौट कर नहीं आता। तुमने मेरा साथ उस वक्त छोड़ा जब मैं टूटा हुआ था। जब मुझे किसी के कंधे की जरूरत थी। तुमने मेरी गरीबी देखी लेकिन मेरे हौसले को कभी नहीं देखा। और आज जब मैं ऊपर हूं तब तुम मेरे पास लौटी हो। लेकिन अब तुम्हारे लिए मेरी जिंदगी में कोई जगह नहीं है।”
रीना सुबकते हुए बोली—”हरीश, मैं सच में पछता रही हूं। मैंने बहुत बड़ी गलती की।”
हरीश ने उसकी ओर देखा, लेकिन उसकी आंखों में सिर्फ करुणा थी।
“जिंदगी गलती का मौका देती है, लेकिन हर गलती की सजा भी देती है। तुम्हारे लिए यह सजा है कि आज तुम देख रही हो, जिसे तुमने ठुकराया था, वही आदमी आज शोरूम का मालिक है। और मैं चाहकर भी तुम्हें अपने पास वापस नहीं ला सकता। क्योंकि अब मेरे दिल में तुम्हारे लिए कुछ भी नहीं बचा।”
ऑफिस का माहौल सन्नाटे में डूब गया। वहां खड़े कर्मचारी भी उस दृश्य को देखकर हैरान थे।
हरीश ने सबके सामने एक आखिरी बात कही—
“कभी किसी इंसान को उसके कपड़ों या हालात से मत आकना। वक्त सबसे बड़ा खिलाड़ी है। वह किसी को भी नीचे से ऊपर और ऊपर से नीचे कर सकता है। औरत हो या मर्द, अगर रिश्ता सिर्फ दौलत पर टिका हो तो वह रिश्ता कभी टिक नहीं सकता। प्यार हमेशा साथ और भरोसे से बनता है, पैसों से नहीं।”
निष्कर्ष
रीना की सिसकियां अब भी गूंज रही थीं। हरीश ने मुड़कर दरवाजे की तरफ कदम बढ़ाए। बाहर सूरज की रोशनी उसके चेहरे पर पड़ रही थी। उसका सफर पूरा हो चुका था।
उस रात हरीश फिर अपनी बालकनी में खड़ा था। हवा ठंडी थी, लेकिन उसके दिल में शांति थी। उसने आसमान की तरफ देखा और धीरे से कहा—”धन्यवाद भगवान, तूने मुझे टूटने नहीं दिया। आज मैं सिर्फ अपनी जीत का नहीं, बल्कि उन सबका प्रतीक हूं जिन्हें कभी गरीब समझकर ठुकरा दिया गया।”
उसकी आंखों में चमक थी। यह चमक सिर्फ पैसों की नहीं, बल्कि आत्मसम्मान की थी।
रीना अकेले अपने कमरे में बैठी थी। उसके पास था सिर्फ पछतावा। उसने आईने में खुद को देखा और बुदबुदाई—
“प्यार कभी पैसों से नहीं मापा जाता। काश, मैंने यह बात पहले समझ ली होती। लेकिन अब बहुत देर हो चुकी थी।”
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