जब इंस्पेक्टर अंडे बेच रही महिला पर हाथ उठाया | फिर इंस्पेक्टर के साथ जो हुआ

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 न्याय की मिसाल

भूमिका

सुबह की हल्की धूप में पीली सलवार सूट पहने एक साधारण सी महिला बाजार की ओर बढ़ रही थी। कोई नहीं जानता था कि यह आम दिखने वाली महिला दरअसल जिले की डीएम, ज्योति मौर्या है। उन्होंने जानबूझकर ऐसा रूप लिया था ताकि कोई उन्हें पहचान न सके। वह अपनी पुरानी यादों में खोई हुई थीं और अचानक सोचा कि क्यों न आज पुराने दिनों की तरह सड़क किनारे वाले ठेले से अंडे खाए जाएं।

पुरानी यादें

ज्योति मौर्या का बचपन बहुत साधारण था। उनके माता-पिता ने उन्हें हमेशा सिखाया था कि मेहनत और ईमानदारी से जीना सबसे बड़ा धन है। वह हमेशा अपने बचपन के दिनों को याद करती थीं जब वह अपने दोस्तों के साथ मिलकर सड़क किनारे अंडे खाने जाती थीं। आज, जब वह उसी ठेले पर गईं, तो उन्हें अपनी पुरानी यादें ताजा हो गईं।

ठेले पर अंडे

ज्योति आगे बढ़ते ही सड़क के किनारे एक छोटे से ठेले पर पहुंची, जहां करीब 50 साल की दुबली-पतली बुजुर्ग महिला अंडे बेच रही थी। ज्योति मुस्कुराते हुए बोली, “दादी, तीन ऑमलेट बना दीजिए।” बुजुर्ग महिला ने तुरंत मुस्कुराते हुए तवे पर तेल डाला, अंडा तोड़ा और झटपट फूला-फूला गरमा-गरम ऑमलेट बनाकर प्लेट में परोसा। जैसे ही ज्योति ने पहला कौर लिया, उनके चेहरे पर सुकून और खुशी झलक उठी।

दुर्भाग्य का आगमन

लेकिन तभी एक इंस्पेक्टर, अपने सिपाहियों के साथ वहां आया और वह ठेले के पास रुककर जोर से चिल्लाया, “अरे ओ बूढ़ी औरत, जल्दी से पैसे निकाल!” अचानक आवाज सुनकर अंडे बेच रही बुजुर्ग महिला घबरा गई। उसके हाथ कांपने लगे। वह घबराई हुई बोली, “साहब, अभी तो दिन की शुरुआत है। अभी तक मैंने कुछ कमाया भी नहीं। ग्राहक भी बस अभी आए हैं। शाम को आ जाइए, तब दे दूंगी। अभी सच में पैसे नहीं हैं।”

इंस्पेक्टर का अत्याचार

यह सुनते ही इंस्पेक्टर आग बबूला हो गया। उसने बिना कुछ सोचे समझे उस महिला के गाल पर जोरदार थप्पड़ जड़ दिया। यह नजारा देखकर डीएम ज्योति मौर्या का खून खौल उठा। उन्होंने तुरंत आगे बढ़कर सख्त आवाज में कहा, “रुकिए इंस्पेक्टर साहब। आप इनसे किस बात के पैसे मांग रहे हैं? और क्यों? किस हक से आपने इन्हें थप्पड़ मारा? आपको कोई अधिकार नहीं है किसी गरीब मेहनतकश महिला के साथ ऐसा व्यवहार करने का।”

इंस्पेक्टर का घमंड

इंस्पेक्टर मोहित ने घूरते हुए ज्योति से कहा, “तुम कौन होती हो बीच में बोलने वाली? तुम चुपचाप खड़ी रहो।” ज्योति ने गुस्से में आंखें तरेड़ते हुए जवाब दिया, “आप जो कर रहे हैं वह बिल्कुल गलत है। कहीं भी कानून में नहीं लिखा है कि आप गरीबों से वसूली करें। आप इस महिला पर जुल्म कर रहे हैं और इसका अंजाम आपको भुगतना पड़ेगा। सुधर जाइए।”

ज्योति का साहस

इंस्पेक्टर मोहित आग बबूला हो गया। उसने बुरी तरह अपना आपा खो दिया और ज्योति के गाल पर एक जोरदार थप्पड़ जड़ दिया। थप्पड़ इतना तेज था कि ज्योति थोड़ा लड़खड़ा गई। लेकिन तुरंत खुद को संभाल लिया। उनकी आंखों में अब गुस्से की ज्वाला थी। उन्होंने चिल्लाते हुए बोला, “आपने मुझ पर हाथ उठाया है। अब मैं आप पर एफआईआर दर्ज करवाऊंगी।”

इंस्पेक्टर की धमकी

इंस्पेक्टर मोहित सिंह हंस पड़ा और धमकी भरे लहजे में बोला, “एफआईआर तुझे समझ नहीं आया। अगर ज्यादा बोली तो इतना मारूंगा कि घर तक नहीं जा पाएगी। निकल यहां से वरना धक्के मारकर भगा दूंगा।” इतना कहकर वह फिर से अंडे बेचने वाली बुजुर्ग महिला की ओर मुड़ा। उसने उसका कॉलर पकड़ लिया और चीखते हुए बोला, “अबे औरत, ज्यादा होशियारी मत कर। जल्दी से पैसे निकाल वरना तेरा ठेला यहीं सड़क पर तोड़ दूंगा।”

महिला का दर्द

यह कहते ही इंस्पेक्टर ने गुस्से में ठेले पर एक जोरदार लात मार दी। ठेला उलट गया और सारे अंडे सड़क पर बिखर गए। बेचारी महिला डर के मारे कांप उठी। उसकी आंखों से आंसू छलक पड़े। वह घुटनों के बल बैठकर बिखरे हुए अंडे समेटने लगी और रोते हुए बुदबुदाने लगी, “हे भगवान, यह क्या हो गया?” तभी इंस्पेक्टर मोहित सिंह गुस्से में अपना डंडा उठाया और बुजुर्ग महिला की पीठ पर जोर से दे मारा। महिला दर्द से चीख उठी और हाथ जोड़कर गिड़गिड़ाने लगी, “साहब, मैं सच कह रही हूं। अभी तक कुछ कमाया ही नहीं। शाम को आइएगा, जो भी कमाऊंगी दे दूंगी, प्लीज। मुझे मत मारिए।”

ज्योति का आक्रोश

यह दृश्य देखकर ज्योति मौर्या का खून खौल उठा। वह और सहन नहीं कर सकी। गुस्से से आगे बढ़कर बोली, “मां जी, आपको किसी से माफी मांगने की जरूरत नहीं है। यह लोग गरीबों पर जुल्म ढे हैं और इन्हें जरा भी शर्म नहीं आती। बड़ी मुश्किल से आप जैसे लोग ठेला लगाकर अपना और अपने परिवार का पेट पालते हैं और यह पुलिस वाले आपकी मेहनत की कमाई लूटते हैं। इंस्पेक्टर साहब, अब मैं आपको आपकी औकात दिखाकर ही रहूंगी।”

इंस्पेक्टर का उपहास

इंस्पेक्टर ठहाका मारते हुए बोला, “अरे तेरी इतनी हिम्मत, तू मुझे औकात दिखाएगी। तेरी औकात ही क्या है?” “मेरे सामने जा अपना काम कर, ज्यादा बकवास करेगी तो इतना मारूंगा कि चलने लायक नहीं बचेगी।” इतना कहकर इंस्पेक्टर और उसके साथ खड़े हवलदार हंसते हुए वहां से लौटने लगे। जाते-जाते इंस्पेक्टर ने मुड़कर बुजुर्ग महिला को घूरते हुए धमकी दी, “शाम को फिर आउंगा। अगर पैसे नहीं मिले तो ना तू बचेगी और ना तेरा ठेला, समझ गई?”

ज्योति का संकल्प

ज्योति तुरंत बुजुर्ग महिला के पास गई और झुककर प्यार से बोली, “मां जी, आप ठीक हैं ना? टेंशन मत लीजिए। आप घर जाइए। इन पुलिस वालों को सबक सिखाना अब मेरा काम है।” बुजुर्ग महिला की आंखों से आंसू बह निकले। कांपते हुए स्वर में बोली, “बेटा, तूने मेरे लिए इतना क्यों किया? मेरे ही चक्कर में तुझे मार पड़ी। तू क्या कर लेगी? वो पुलिस वाले हैं, सालों से हम गरीबों पर जुल्म करते आ रहे हैं। हम कुछ नहीं कर पाए, तू भी कुछ नहीं कर पाएगी। छोड़ दे यह सब।”

ज्योति की दृढ़ता

ज्योति ने गहरी सांस ली। उसकी आंखों में आग और चेहरे पर दृढ़ संकल्प साफ झलक रहा था। “नहीं, मां जी, अब बहुत हो गया। आप नहीं जानती, मैं क्या कर सकती हूं। इन लोगों को उनके गुनाहों की सजा दिलवा कर ही रहूंगी। आप फिक्र मत कीजिए। बस घर जाइए और आराम कीजिए।” यह कहकर ज्योति मौर्या वहां से निकली और सीधा घर पहुंची।

न्याय की तैयारी

घर पहुंचकर सड़क पर हुई सारी बातें उनके दिमाग में घूमने लगीं। उन्हें महसूस हो रहा था कि पानी सिर से ऊपर जा चुका है। यह पुलिस वाले वर्दी की आड़ में भेड़िए बन चुके हैं। अब उन्होंने मन ही मन ठान लिया। अब इन्हें छोड़ना नहीं है। सबसे पहले इस इंस्पेक्टर पर रिपोर्ट दर्ज कराऊंगी और इसे सस्पेंड करवा कर रहूंगी।

साधारण रूप में थाने की ओर

अगली सुबह ज्योति मौर्या ने खुद को बिल्कुल साधारण महिला के रूप में तैयार किया। लाल रंग की सलवार सूट पहनी और बिना किसी पहचान के थाने पहुंच गई। जैसे ही अंदर दाखिल हुईं, तो देखा सामने लकड़ी के काउंटर के पीछे हेड कांस्टेबल मोहित सिंह ऊंघ रहा था। उसकी तोंद मेज पर टिकी हुई थी और मुंह से खर्राटों की हल्की आवाज आ रही थी। एक कोने में दो और सिपाही बैठे थे, चाय की चुस्कियां लेते हुए जोर-जोर से हंस रहे थे। माहौल देखकर ज्योति के मन में गुस्सा और दुख दोनों उमड़ पड़ा।

ज्योति का सामना

ज्योति ने सख्त आवाज में कहा, “सुनिए मोहित!” मोहित सिंह की नींद टूटी। उसने चिढ़कर आंखें खोली और ज्योति को ऊपर से नीचे तक घूरा। उसकी आंखों में मदद का भाव नहीं बल्कि वही पुरानी घृणा और अहंकार था। इंस्पेक्टर मोहित सिंह गुर्राया, “क्या है इस वक्त? क्या करने आई है यहां?” ज्योति ने शांत लेकिन दृढ़ स्वर में जवाब दिया, “मैं यहां रिपोर्ट लिखवाने आई हूं।”

रिपोर्ट की मांग

इंस्पेक्टर मोहित ने ऊंची आवाज में पूछा, “रिपोर्ट किसके खिलाफ और किसके लिए?” ज्योति ने कहा, “तुम्हारे खिलाफ, क्योंकि उस गरीब औरत के लिए जिसे तुम लोगों ने सड़क पर अंडे बेचते समय सताया था। और उस मेहनत की कमाई के लिए जिसे तुम लोगों ने लात मारकर सड़क पर बिखेर दिया था। और मैं जब रोकने गई तो मुझे भी मारा।”

इंस्पेक्टर का उपहास

यह सुनते ही मोहित सिंह जोर से हंस पड़ा। उसकी हंसी में क्रूरता थी। वह बोला, “रिपोर्ट तू लिखवाएगी मेरे खिलाफ रिपोर्ट? अरे पगली, यहां इंसाफ नहीं चलता। यहां चलता है मोहित सिंह का डंडा चल। भाग यहां से नहीं तो थाने के अंदर कर दूंगा।” तभी अंदर के कमरे का दरवाजा जोर से खुला और एक विक्रम सिंह नाम का एएसपी थाने के अंदर आया, जो लंबा चौड़ा रबदार चेहरा लेकर खड़ा था। लेकिन उसकी आंखों में इंसानियत की जगह सिर्फ अहंकार और क्रूरता झलक रही थी।

एएसपी का अपमान

उसने ज्योति को देखा और अपनी मूछों पर ताव देते हुए गुर्राया, “क्या हो रहा है मोहित? यह कौन लड़की है?” मोहित ने लापरवाही से जवाब दिया, “कुछ नहीं साहब। यह वही है जो उस अंडे बेचने वाली औरत के मामले को लेकर आई है। भगा रहा हूं इसे।” विक्रम सिंह धीरे-धीरे ज्योति के पास आया। उसने उसे ऐसे देखा जैसे वह कोई कीड़ा मकोड़ा हो। उससे पूछा, “क्या नाम है तेरा?” ज्योति ने दृढ़ स्वर में कहा, “ज्योति मौर्या और मैं यहां रिपोर्ट लिखवाने आई हूं।”

विक्रम का अपमान

विक्रम सिंह तुर्शी से हंस पड़ा और बोला, “देख, हमारे पास फालतू कामों के लिए वक्त नहीं है। सुबह से आकर ड्रामा करने चली आई। चल निकल यहां से वरना इसी हवालात में बंद कर दूंगा।” ज्योति अपनी जगह से हिली नहीं। उसकी आंखों में वही आक्रोश और संकल्प झलक रहा था। यह देखकर विक्रम सिंह का पारा चढ़ गया। उसने गुस्से में कहा, “सुना नहीं तुमने?” इतना कहकर उसने हाथ उठाया और पूरी ताकत से ज्योति को धक्का दे दिया।

ज्योति का अपमान

ज्योति सीधे जमीन पर गिर पड़ी। उसके सिर में मेज के कोने से हल्की चोट लगी। एक पल के लिए उसकी आंखों के सामने अंधेरा छा गया। लेकिन दर्द से भी बड़ा था अपमान का घाव। दोस्तों, एक डीएम ऑफिसर जिसके सामने खड़े होने की किसी की हिम्मत नहीं होती, आज एक मामूली एएसपी के अहंकार ने उसे जमीन पर गिरा दिया था। ज्योति के अंदर का गुस्सा अब लावा बनकर उबल रहा था।

ज्योति का प्रतिशोध

उसे साफ दिख चुका था। यह लोग वर्दी के लायक नहीं हैं। यह वर्दी सिर्फ गरीबों को रौंदने के लिए इस्तेमाल करते हैं। ज्योति जमीन पर से उठी और गुस्से में बोली, “तुम दोनों का हाल ऐसा करूंगा कि तुम दोनों पानी पीने लायक भी नहीं रहोगे।” इतना सुनते ही एसपी विक्रम ने ज्योति को धक्का देकर थाने से बाहर निकाल दिया। यह सब देखकर अंदर खड़े सिपाही ठहाके लगाने लगे। उनमें से एक बोला, “देखो देखो, बड़ी आई थी गरीबों की हमदर्द। देखो कैसे सर झुका कर जा रही है।”

ज्योति का संकल्प

ज्योति मौर्या ने अपमान और गुस्से को भीतर समेट लिया। उसकी आंखों में आंसू तो थे लेकिन उनमें आग भी थी। उसने मन ही मन कठोर संकल्प लिया। अब इन्हें मैं छोड़ूंगी नहीं। इन सबको उनके किए की सजा ऐसी दूंगी कि वह सपने में भी नहीं सोच सकते। फिर अगली सुबह का नजारा पूरे शहर के लिए हैरान कर देने वाला था।

न्याय की शुरुआत

सूरज की पहली किरणों के साथ ही सड़क पर सायरनों की गूंज फैल गई। दो पुलिस जीपें सबसे आगे रास्ता साफ करती हुई चल रही थीं। उनके पीछे काले शीशों वाली डीएम ज्योति मौर्या की डीएम वाली गाड़ी थी और उसके ठीक पीछे दो और पुलिस वाहन सुरक्षा घेरे में थे। पूरा इलाका सन्नाटे में डूब गया। लोग घरों की खिड़कियों और दुकानों से झांक कर देखने लगे कि आखिर शहर में इतना बड़ा काफिला क्यों निकला है।

डीएम का आगमन

जैसे ही काफिला थाने के मुख्य दरवाजे पर आकर रुका, गाड़ियों के दरवाजे एक साथ खुले। डीएम ज्योति पूरी गरिमा के साथ चमकदार बेज रंग की आधिकारिक वर्दी पहने, टोपी सिर पर सटी हुई गाड़ी से उतरीं। उनके साथ बड़े-बड़े पुलिस अधिकारी दोनों ओर खड़े हो गए। थाने के बरामदे में खड़े वही सिपाही जो कल तक उस पर हंस रहे थे, अब इस नजारे को देखकर मानो पत्थर के बुत बन गए।

विक्रम और मोहित का डर

उनके पैरों तले जमीन खिसक गई। आंखें फटी की फटी रह गई और होंठ सूख कर एकदम चुप हो गए। एसपी विक्रम सिंह अपने डेस्क पर बैठा कुछ फाइलें देख रहा था और मोहित सिंह उसके बगल में खड़ा था। दोनों को जरा भी अंदाजा नहीं था कि आज उनका सबसे बुरा दिन आने वाला है।

ज्योति का प्रतिशोध

ज्योति ने बिना किसी को देखे सीधी नापतल वाली चाल में थाने के अंदर कदम रखा। उनकी वर्दी की चमक और चारों तरफ गूंजता सन्नाटा सब कुछ बयां कर रहा था। ज्योति की आंखें सीधी विक्रम पर जाकर ठहरीं। विक्रम ठिठक कर खड़ा हो गया। चेहरे की रंगत उड़ चुकी थी। उसके दिमाग में वही कल का मंजर घूम गया। वही लड़की जिसे उसने इस थाने से धक्के देकर बाहर निकाला था, अपमानित किया था। अब वही लड़की आज इस थाने में डीएम बनकर खड़ी थी।

ज्योति का सामना

विक्रम के बगल में खड़ा मोहित सिंह भी हक्का-बक्का रह गया। उसके चेहरे पर भी डर साफ झलक रहा था। ज्योति ने ठंडी लेकिन बेहद सख्त आवाज में कहा, “क्या हुआ? चेहरे का रंग क्यों उतर गया? याद है ना जब मैं अंडे बेच रही महिला के साथ किए गए कुकर्म को देखकर जब मैं रिपोर्ट लिखवाने आई थी, तो यहीं से धक्के मारकर निकाला था मुझे। आज उसी दरवाजे से वापस आई हूं। फर्क बस इतना है कि कल मैं साधारण कपड़ों में आम लोगों की तरह बनकर आई थी और आज डीएम की वर्दी में हूं।”

न्याय का समय

विक्रम और मोहित के पास कोई जवाब नहीं था। दोनों के चेहरे झुके हुए थे। ज्योति ने सख्त स्वर में कहा, “तुम दोनों ने गरीबों पर जुल्म ढाया है। कानून की मर्यादा तोड़ी है। अब तुम्हें जनता के सामने शर्मिंदा होकर अपनी औकात याद करनी होगी।” उन्होंने पीछे खड़े हुए आईपीएस अधिकारी को तुरंत आदेश दिया, “दोनों की वर्दी उतारो और सर्विस रिवॉल्वर ज्त करो।”

सजा का ऐलान

वर्दी उतरवाने के बाद ज्योति मौर्या ने और भी सख्त आदेश दिया। “अब इन दोनों को वहीं बाजार ले जाओ जहां वह बुजुर्ग महिला अंडे बेच रही थी और जनता के सामने इनसे माफी मंगवाई जाए।” पूरा थाना और सुरक्षा काफिला बाजार की ओर बढ़ा। बाजार में लोगों की भारी भीड़ इकट्ठा हो गई थी। वहीं बुजुर्ग महिला अपने अंडे बेच रही थी। ज्योति ने भीड़ के सामने कहा, “याद रखो, जो गरीबों का हक मारता है, उसका यही हश्र होता है।”

माफी का समय

फिर उन्होंने एसपी विक्रम सिंह और मोहित सिंह को कहा, “अब झुको और इस बुजुर्ग महिला से माफी मांगो।” भीड़ सन्नाटे में खड़ी देख रही थी। दोनों अपराधियों ने कांपते हाथ जोड़कर करीना देवी से माफी मांगी। लेकिन सजा यहीं खत्म नहीं हुई। ज्योति मौर्या ने अगले ही पल आदेश दिया, “अब इन्हें सफेद गंजी और हाफ पेंट में पूरे बाजार में दौड़ाया जाए। आगे-आगे यह दोनों भागेंगे और पीछे-पीछे मेरा काफिला चलेगा। ताकि लोग देखें कि सत्ता का दुरुपयोग करने वालों का अंजाम क्या होता है।”

न्याय की विजय

कुछ ही देर बाद पूरा शहर यह नजारा देख रहा था। आगे-आगे विक्रम सिंह और मोहित सिंह पसीने-पसीने होकर अपमानित दौड़ रहे थे और पीछे-पीछे डीएम ज्योति मौर्या की शाही गाड़ी और पुलिस अफसरों का काफिला चल रहा था। लोग तालियां बजाकर इस न्याय की मिसाल का स्वागत कर रहे थे। हर कोई यही कह रहा था, “सच्चा न्याय हुआ है। गरीबों पर जुल्म करने वालों को उनकी असली औकात दिखाई गई है।”

समापन

इस घटना ने न केवल ज्योति मौर्या को बल्कि पूरे जिले को एक नई दिशा दी। उन्होंने साबित कर दिया कि सच्चाई और न्याय के लिए खड़ा होना हमेशा आवश्यक है। जब भी कोई गरीब या कमजोर व्यक्ति अन्याय का शिकार होता है, तो हमें उनकी मदद करनी चाहिए। ज्योति की इस बहादुरी ने समाज को यह सिखाया कि हमें अपने अधिकारों के लिए लड़ना चाहिए और दूसरों के अधिकारों का सम्मान करना चाहिए।