जब डीएम को थप्पड़ पड़ा… और फिर क्या हुआ?
स्याह साड़ी: डीएम कोमल शर्मा की कहानी
सुबह की नरम धूप में जब परिंदों की चहचहाट ताजा थी, जिले की सबसे ताकतवर और ईमानदार महिला डीएम कोमल शर्मा अपनी स्कूटी पर ऑफिस की तरफ रवाना हुईं। उनकी स्याह साड़ी हवा में लहरा रही थी। यह साड़ी उनकी मजबूत और निडर शख्सियत का प्रतीक बन चुकी थी। लंबा कद, आत्मविश्वास से भरी आंखें, और चेहरे पर सादगी, कोमल शर्मा किसी आम महिला की तरह दिखती थीं, लेकिन उनकी मौजूदगी में एक अजीब सा जादू था।
आज का दिन उनके लिए बेहद व्यस्त था। जिले में कई विकास योजनाओं और समस्याओं को लेकर मीटिंग्स होनी थीं। लेकिन उन्हें यह अंदाजा नहीं था कि यह दिन उनकी जिंदगी का सबसे चुनौतीपूर्ण और यादगार दिन बनने वाला है।
स्कूटी का पंचर और राम सिंह की दुकान
बाजार के करीब पहुंचते ही अचानक उनकी स्कूटी का टायर पंचर हो गया। कोमल की भौहें हल्की सी सिकुड़ गईं। ऑफिस के लिए पहले ही देरी हो रही थी, और अब यह समस्या। उन्होंने आसपास नजर दौड़ाई तो एक बूढ़ा आदमी दिखा जो सड़क के किनारे खड़ा चाय की चुस्की ले रहा था।
“भाई, यहां कहीं पंचर की दुकान है?” कोमल ने उससे पूछा।
बूढ़े आदमी ने मुस्कुराते हुए इशारा किया, “जी मैडम, बस 50 मीटर आगे राम सिंह की दुकान है। वह अच्छा काम करता है।”
कोमल ने शुक्रिया कहा और स्कूटी को धकेलते हुए राम सिंह की दुकान तक पहुंचीं।
दुकान एक छोटी सी जगह थी। वहां टायर और औजार बिखरे पड़े थे। हवा में रबर और तेल की महक थी। राम सिंह, जो करीब 45 साल का एक पतला-दुबला आदमी था, अपने काम में व्यस्त था। उसके हाथों पर तेल और ग्रीस के निशान थे, और चेहरा मेहनत की लकीरों से भरा हुआ था।
“भाई, जल्दी ठीक कर दीजिए। मुझे ऑफिस के लिए देर हो रही है,” कोमल ने कहा। उनकी आवाज में नरमी थी, लेकिन एक दृढ़ता भी थी।
राम सिंह ने तुरंत उनकी स्कूटी को उठाया और पंचर ठीक करने में जुट गया। “कोई बात नहीं, मैडम। बस 10 मिनट लगेंगे,” उसने तसल्ली दी।
कोमल पास की बेंच पर बैठ गईं। वो फोन पर ऑफिस के काम देख रही थीं, लेकिन उनका दिमाग मीटिंग्स और योजनाओं की फिक्र में उलझा हुआ था।
पुलिस इंस्पेक्टर अरविंद की एंट्री
अभी राम सिंह ने काम शुरू ही किया था कि सड़क पर एक जीप की आवाज गूंजी। जीप रुकते ही उसमें से एक पुलिस इंस्पेक्टर उतरा। उसकी वर्दी पर नाम लिखा था अरविंद कुमार। अरविंद का चेहरा गुस्से और जल्दबाजी से भरा हुआ था।
“राम! मेरा पंचर पहले ठीक कर। मुझे थाने जाना है। बहुत जरूरी काम है,” अरविंद ने तेज आवाज में कहा।
राम सिंह ने हाथ जोड़ते हुए कहा, “साहब, यह मैडम पहले आई हैं। इनका काम खत्म करके आपका बना दूंगा। बस 10 मिनट लगेंगे।”
अरविंद का चेहरा गुस्से से लाल हो गया। उसकी आंखों में गुस्से की आग थी। “10 मिनट? मैं 10 सेकंड भी इंतजार नहीं कर सकता। पहले मेरा काम कर वरना देख लूंगा तुझे। मैं पुलिस हूं, समझा?”
उसकी आवाज इतनी तेज थी कि आसपास के लोग रुक गए। कुछ लोग हंसने लगे, तो कुछ सिर हिलाते हुए आगे बढ़ गए।
कोमल ने धीरे से कहा, “सर, मुझे भी ऑफिस जाना है। कृपया थोड़ा इंतजार करें। आपका भी काम हो जाएगा। सबका काम बराबर है।”
उनकी स्याह साड़ी में छुपा आत्मविश्वास अब नजर आने लगा था।
यह सुनकर अरविंद और भड़क गया। “तुम मुझसे बहस करोगी? देख नहीं रही कि मैं कौन हूं? थाने का इंस्पेक्टर हूं।”
गुस्से में उसने कोमल के गाल पर एक जोरदार थप्पड़ मार दिया। थप्पड़ की आवाज सड़क पर गूंज गई।
अपमान और खामोशी
कोमल का सिर हल्का सा झुक गया। उनके गाल पर लाली फैल गई थी। आसपास लोग देख रहे थे, लेकिन कोई कुछ बोलने की हिम्मत नहीं कर रहा था। पुलिस का खौफ सबके चेहरे पर साफ नजर आ रहा था।
कोमल की आंखों में आंसू थे, लेकिन उन्होंने उन्हें गिरने नहीं दिया। उनके चेहरे पर एक अजीब सा सन्नाटा था। उनकी स्याह साड़ी अब उनकी ताकत की अलामत लग रही थी।
राम सिंह भी सहम गया था। उसने सोचा कि अगर उसने अरविंद की बात नहीं मानी, तो उसकी दुकान पर छापा पड़ सकता है। उसने डरते-डरते अरविंद की जीप का पंचर ठीक करना शुरू कर दिया।
कोमल की आवाज और इंसाफ की शुरुआत
जब पंचर ठीक हो गया, तो अरविंद बिना कुछ बोले जीप स्टार्ट करने लगा। राम सिंह ने हिम्मत जुटाकर कहा, “साहब, पैसे तो दें। ₹200 बने हैं।”
अरविंद हंसते हुए पलटा और बोला, “पैसे मुझसे मांगेगा? मैं पुलिस हूं। समझा? चल, निकल यहां से।”
जीप आगे बढ़ने लगी।
तभी कोमल ने अपनी आवाज बुलंद की। उनकी आवाज में अब सख्ती थी। “साहब, रुक जाइए। यह उनकी मेहनत की कमाई है। आपने काम करवाया है, तो पैसे देना आपका फर्ज है। यह गरीब हैं। उनके घर का चूल्हा इसी से जलता है।”
अरविंद ने गुस्से में जीप रोक दी। वो पलटा और चिल्लाया, “चुप रहो वरना और थप्पड़ पड़ेगा।”
फिर उसने राम सिंह को भी एक जोरदार थप्पड़ मार दिया। राम सिंह गिर पड़ा। उसके होंठ से खून निकलने लगा।
डीएम कोमल का फैसला
कोमल ने खुद को संभाला। उन्होंने अपने पर्स से ₹400 निकाले और राम सिंह को दिए। “यह लो, तुम्हारी मेहनत के पैसे। यह तुम्हारा हक है।”
राम सिंह ने पैसे लेने से मना किया। लेकिन कोमल ने कहा, “यह तुम्हारी मेहनत का हक है। इसे लो।”
राम सिंह की आंखों में आंसू आ गए।
कोमल ऑफिस पहुंचीं। वहां बैठकर उन्होंने तुरंत जिले की आईपीएस अफसर करण दास मुखर्जी को फोन किया। करण कोमल की करीबी दोस्त और जिले की सबसे ईमानदार अफसर थीं।
कोमल ने सारी घटना बताई। करण ने तुरंत कहा, “यह बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। मैं आज ही इस पर कार्रवाई करूंगी।”
अरविंद का सामना और इंसाफ
करण ने थाने जाकर अरविंद को सस्पेंड कर दिया। अगले दिन जिले के सबसे बड़े मीटिंग हॉल में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलाई गई।
हॉल में मीडिया, आम जनता, और पुलिस के अधिकारी मौजूद थे। कोमल ने माइक उठाया और कहा, “कानून सबके लिए बराबर है। चाहे वह गरीब हो या अफसर। अगर कोई वर्दी का गलत इस्तेमाल करता है, तो उसे सजा मिलेगी।”
राम सिंह ने गवाही दी। वीडियो सबूत पेश किए गए। करण ने ऐलान किया कि अरविंद को नौकरी से बर्खास्त किया जाएगा और उसके खिलाफ मुकदमा चलेगा।
हॉल तालियों और “इंसाफ, इंसाफ” के नारों से गूंज उठा।
निष्कर्ष
इस घटना के बाद कोमल शर्मा और उनकी स्याह साड़ी पूरे जिले में इंसाफ और ताकत की मिसाल बन गई। उनकी कहानी ने यह साबित किया कि कानून और इंसाफ से बड़ा कोई नहीं है।
स्याह साड़ी अब सिर्फ कपड़ा नहीं, बल्कि इंसाफ का प्रतीक बन गई।
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