जब पुलिसवालों ने डीएम की बूढ़ी मां को आम औरत समझकर बर्तनों के पैसे नहीं दिए तो क्या हुआ?

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अगली सुबह सूर्य की किरणें धीरे-धीरे सरोज देवी के झोपड़े पर पड़ रही थीं जब अनुष्का वर्मा और आरणीमा सिंह की गाड़ी बमुश्किल पहुंचे कच्चे आंगन में ठहरी। धूल-धुएँ से जर्जर उस झोपड़े के सामने तीन पीले दिये जले हुए थे, जिनकी रोशनी में सरोज देवी चुपचाप बैठी थी। उसे बदलते मौसम की ठंड ने तो दर्द दिया, पर जो अंतरिक आनन्द आँखों में छलक रहा था, वह अमूल्य था। अनुष्का ने इधर-उधर झांकते हुए देख लिया कि बाजार के ठीक उस कोने में जहाँ कल इंस्पेक्टर रंजीत ने तानाशाही दिखाई थी, आज सब कुछ शांत और सुरक्षित था। आरणीमा ने मुस्कुरा कर सरोज देवी का हाथ पकड़ा, बोली, “दौलत नहीं, हमें आपका भरोसा चाहिए था और वह हमने जीता।” सरोज देवी ने नम आँखों से दोनों को देखा, धीमे से कहा, “बेटियों, आपने मेरा विश्वास ही नहीं बहाल किया, मेरी आत्मा को नया सम्मान दिया।”

इसी बीच थाने से अधिकारी दस्तावेज लेकर आए। आरणीमा ने कानूनी फाइल थामी, बतलाया कि रंजीत यादव पर चोरी-छिपे वसूली, सरकारी रिकॉर्ड में गड़बड़ी और महिला के साथ दुर्व्यवहार के सैंकड़ों सबूत जुट गए हैं। कोर्ट में पेश किए जाने वाले आरोपपत्र में अनेकों गवाह दिए गए थे, जिनमें दुकानदार, ग्राहक और उसी दिन बाजार में सक्रिय पुलिसकर्मी शामिल थे। आरणीमा ने विनम्रता से कहा, “आज शाम को प्रथम सुनवाई है, और हम चाहते हैं कि आप गवाह के रूप में आइएं।” सरोज देवी ने थरथराते हाथों से कागज़ों पर दस्तखत किए, जैसे अपने जीवन की लड़ाई में एक और जीत दर्ज कर रही हो।

कुछ ही घंटों में जिला जज के कक्ष में सुनवाई आरंभ हुई। जज महोदय ने दारू की गंध लिए थके हुशाम के आरोपित रंजीत यादव को कठोर निगाहों से घूरा। जब आरणीमा ने खुलकर सबूत पेश किए—विस्फोटक ऑडियो क्लिप, बाजार के सीसीटीवी फुटेज और माइक्रो कैमरे की वीडियो रिकॉर्डिंग—तो रंजीत का चेहरा मुँडझुकता चला गया। एक-एक करके गवाह गवाही देते गए, बाजार वालों ने बताया कि कैसे उन्होंने भी रंजीत की तानाशाही झेली थी लेकिन सहम कर चुप रहे थे। अंत में सरोज देवी ने गवाह के रूप में खड़े होकर हल्की सी आवाज में कहा, “इंसाफ़ दिलाने की मेरी सच्ची उम्मीद आज पूरी हुई है।” अदालत में एक क्षण के लिए चुप्पी छा गई।

मुकदमे की गहराई देख जज ने तुरंत अग्रिम जमानत की अर्जी रिजेक्ट कर दी और रंजीत को सात दिन की न्यायिक हिरासत में भेजने का आदेश दिया। न्याय की थाती में जब धाराएँ टंगी गईं—धारा ३४५ (चोरी-छिपे वसूली), धारा ३७६ (दुर्व्यवहार का प्रयास), धारा २१० (सरकारी रिकॉर्ड में छेड़छाड़)—तो एमएलए विजय तिवारी का चेहरा अतृप्त क्रोध से लाल हो उठा। लेकिन अब वह अकेले रह गया था। उसके रसूख से विचलित न हुआ ना आरणीमा, ना अनुष्का—बल्कि पूरे जिला बल ने न्याय के पक्ष में कदम बढ़ाया था।

मुकदमे के अगले सप्ताह जिला जेल में आयोजित फास्ट ट्रैक कोर्ट में, चार्जशीटों और गवाहों की बेजोड़ गवाही ने अदालत का मन मोह लिया। विजय तिवारी ने हाई-प्रोफाइल वकीलों की जमात बुलाई, पर सब तब खामोश हो गए जब अनुष्का ने स्पीकर में उस ऑडियो को बजाया, जिसमें रंजीत यादव शहर के मुख्य चौक पर बिना इजाज़त वसूली का फरमान सुना रहा था। भीड़ में ताली की गड़गड़ाहट गूंज उठी और कोर्ट ने रंजीत को दोषी करार देकर सजा सुनाने का फैसला किया। उसे तीन साल कैद और भारी जुर्माने की सजा मिली।

इसी बीच विजय तिवारी की राजनीति की नींव हिलने लगी। विपक्षी दलों ने इसका फायदा उठाया और जनसभा में तिरस्कार जताया। उसकी सियासत पर सवाल उठे, और उसे विधानसभा चुनाव में टिकिट मिलने की संभावनाएँ धूमिल पड़ीं। जेल की सलाखों के भीतर तेज़ हवा चल रही थी—वह महसूस कर रहा था कि भ्रष्टाचार की दक्षिणा अब सूख चुकी है।

उस दिन सुनवाई के बाद जब अनुष्का झूमती-PCR बाहर आईं, तो बाजार के लोग खड़े थे—कुछ ने फूल चढ़ाए, कुछ ने गले मिलकर आशीर्वाद दिया। एक युवा ने उनसे कहा, “मैम, आपने हमारी क़ानून व्यवस्था को वापस हमारा कर दिखाया।” अनुष्का ने सहज मुस्कान में कहा, “सच की ताज़गी छोड़ने वाला कोई भी किस्मतवाला नहीं भटकता।” आरणीमा ने पानी देकर कहा, “अब अगले पड़ाव की ओर बढ़ें।”

अगले ही सप्ताह जिला पुलिस मुख्यालय में एक विशेष कार्यशाला आयोजित की गई, जिसका शीर्षक रखा गया—“जनता की आवाज़ पर सक्रिय थाने।” आरणीमा ने पहले मॉड्यूल को संबोधित करते हुए कहा, “हमारे भीतर आत्मविश्वास तो बहुत है, पर लोकतंत्र के प्रति संवेदनशीलता को जगाना ज़रूरी है।” प्लेन में हर सब-इंस्पेक्टर, कांस्टेबल और सहायक स्टाफ ने हिस्सा लिया। एक-एक कर सरोज देवी की कहानी सुनाई गई, वीडियो दिखाए गए और प्रतिभागियों से सवाल-जवाब करवाए गए। तब एक कांस्टेबल की आंखें नम हुईं और उसने प्रण लिया, “मैं अब किसी गरीब आदमी की लाचारी का फ़ायदा नहीं उठाऊँगा।”

इसी बीच पंचायती राज भवन में अनुष्का ने सामाजिक न्याय की एक समिति गठित की, जिसमें स्थानीय शिक्षित युवा, महिला स्वयं सहायता समूह की अगुआई और एनजीओ प्रतिनिधियों को सदस्य बनाया गया। समिति ने हर महीने एक दिन “भीड़-दारोगा संवाद” आयोजित किया, जहाँ आम लोग खुल कर अपनी शिकायतें दर्ज करवा सकते थे। ऑनलाइन पोर्टल के माध्यम से दर्ज हर शिकायत का प्रोग्रेस रियल–टाइम पर दिखाया जाता। समता और पारदर्शिता की यह पहल पूरे राज्य में चर्चा का विषय बन गई।

एक महीने बाद जब अनुष्का पुनः सरोज देवी के झोपड़े पहुँची, तब वह मुस्कुराई, हाथ में नए रंग-बिरंगे दीयों की टोकरी लिए। रोशनी में झिलमिलाते उन दीयों को देख कर अनुष्का को उतनी ही प्रिय लगता था जितना बुलन्द फतह का अहसास। सरोज देवी ने नए आर्डर की तमाम तैयारी दिखाई—अब वह बाजार प्राधिकरण से पंजीकरण करवा चुकी थी, और पंचायत की मदद से मिट्टी, रंग और डिजाइन मुहैया कराने वाली कोऑपरेटिव सोसायटी का सदस्य बन गई थी। उसकी जिंदगी में आत्मनिर्भरता का सूरज फिर से उगा था।

दूसरे जिलों से अफसरों के दल आनन्दपुर दौरे पर आ रहे थे। वे प्रशिक्षण, मॉनिटरिंग पोर्टल और सामाजिक न्याय समिति के मॉडल को अपने-अपने जिलों में लागू करने की मांग कर रहे थे। मुख्यमंत्री ने आनन्दपुर के नवाचार पर एक डाक्यूमेंट्री जारी की, और राज्य भर में “पंचायती जन-निगरानी” अभियान की शुरुआत की।

उसी दिवाली की रात, आनन्दपुर की गली-नुक्कड़ों में दीये जगमगा रहे थे—न उज्जवलता केवल मिट्टी के दीयों में, बल्कि दिलों में भी। सरकारी इमारतों पर भी कलात्मक रौशनी सजा थी, जहाँ मुख्यमंत्री ने सामूहिक ट्वीटर लाइव से लोगों को दिवाली की बधाई दी और कहा, “यह रोशनी केवल दीयों की नहीं, हमारी नीतियों और जनता के विश्वास की चमक है।”

पर अनुष्का जानती थी कि लड़ाई अभी पूरी नहीं हुई। सिस्टम की जड़ों में अभी और बल चाहिए। उसने अपने रिकॉर्डर में रिकॉर्ड रख लिया कि हर तीन महीने बाद थानों में “सेंसिटिविटी ऑडिट” और “जन संवाद” की व्यवस्था रहेगी। साथ ही विधान परिषद में एक प्रस्ताव रखा गया कि भ्रष्टाचार में लिप्त अधिकारी को निलंबित नहीं, स्थायी रूप से तबादला और सेवा समाप्ति की धारा लागू हो।

एक वर्ष के भीतर आनन्दपुर का सामाजिक सूचकांक ऊपर गया, अपराध दर में गिरावट आई, न्याय पद्धति पर जनता का भरोसा बढ़ा और आर्थिक गतिविधियाँ भी सशक्त हुईं। सरोज देवी ने अपनी छोटी दीयों की कारख़ाना खोल लिया, जहाँ अब तीस कर्मचारी मिट्टी सौते हैं, रंग बनाते हैं और दीयों की ढलाई करते हैं। हर दिवाली से पहले हजारों आर्डर आते हैं, और आनन्दपुर की मिट्टी के दीयों की मांग दूर-दूर तक फैल चुकी है।