जब पुलिस ने गलती से एक साधु को जेल में डाल दिया, फिर जो हुआ सबके पसीने छूट गए, Mahadev Chamatkar

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चंडीगढ़ की सुबह हमेशा की तरह शांत और सुनहरी थी। सड़कों पर रौनक थी, लोग अपने-अपने कामों में मग्न थे, लेकिन शहर के एक छोटे से कोने में एक साधु महाराज रहते थे जिनका नाम था वैभव दास महाराज। उनके चेहरे पर अद्भुत तेज था, माथे पर भस्म लगा रहता था, और हाथ में हमेशा एक छोटा कमंडल। वह बच्चों को आशीर्वाद देते, बीमारों का इलाज करते, और जो भी उनसे मदद मांगता, उसे आश्चर्यजनक रूप से राहत मिलती। लोग मानते थे कि उनके पास कोई अलौकिक शक्ति है। भक्तों का तांता लगा रहता, लेकिन कुछ लोग उन्हें फकीर या पाखंडी भी कहते। पुलिस भी कभी-कभी उन्हें संदिग्ध समझकर पकड़ लेती।

वैभव दास महाराज चंडीगढ़ के एक इलाके में रहते थे, जहां अचानक चोरी की घटनाओं में वृद्धि होने लगी। दुकानों और घरों में चोरी हो रही थी, लेकिन चोरों का कोई सुराग नहीं मिल रहा था। पुलिस ने देखा कि वैभव दास महाराज अक्सर रात के समय इलाके में घूमते रहते हैं। स्थानीय लोगों का कहना था कि वह भूखे गरीबों को खाना खिलाने जाते हैं, लेकिन पुलिस ने इसे संदिग्ध माना और सोचने लगी कि शायद वही चोरी के पीछे हैं।

कई दिनों तक चोरी की घटनाओं का पता नहीं चलने पर पुलिस ने एक दिन वैभव दास महाराज को ही चोर समझकर उनके झोपड़े को घेर लिया। उस समय वे मंत्र जाप कर रहे थे, शांति से बैठे थे, लेकिन पुलिस वालों ने उनकी शांति को घमंड समझ लिया। उन्होंने कहा, “तूने बहुत अपराध कर लिए, अब जेल में चक्की पीसने का वक्त आ गया है।” पुलिस की यह कार्रवाई देखकर आसपास के लोग जमा हो गए। कुछ लोग जो बाबा को पाखंडी समझते थे, पुलिस के साथ खड़े थे, लेकिन उनके भक्त विरोध कर रहे थे और कह रहे थे कि यह गलतफहमी है।

वैभव दास महाराज ने कुछ नहीं कहा, बस आंखें बंद कर मंत्र जाप करते रहे। जब उन्हें हथकड़ी लगाई जा रही थी, तब भी उनके होठों पर मुस्कान थी, मानो उन्हें दुनिया के फैसलों से कोई फर्क नहीं पड़ता। उन्हें भरोसा था कि वे निर्दोष हैं और भगवान उनके साथ हैं। पुलिस वाले खुश थे कि उन्होंने मास्टरमाइंड पकड़ा है, लेकिन आगे जो हुआ, उसने उनकी कल्पना से परे था।

उन्हें जेल की अंधेरी कोठरी में बंद किया गया। चारों ओर अंधेरा और बदबू थी। वैभव दास महाराज ने आंखें बंद कर तपस्या में लीन हो गए। जेलर और पुलिस वाले उनका मजाक उड़ाते, कहते, “अगर तू सच में बड़ा साधु है तो यहां से निकल कर दिखा।” वे शराब की बोतल को पानी में बदलने की चुनौती देते, लेकिन साधु शांत रहते।

वे जानते थे कि यह जेल उनका कर्म नहीं, बल्कि किसी गलतफहमी का परिणाम है। उनका दिल करुणा से भरा था, वे जेलर और पुलिस वालों को भी आशीर्वाद देते, जो उन्हें अपमानित कर रहे थे। कहते हैं, जब कोई सहनशील इंसान चुप रहता है, तो उसका बदला ऊपर वाला लेता है। भगवान के भक्त के अपमान को भगवान बर्दाश्त नहीं करते।

तभी शहर का मौसम अचानक बदल गया। आसमान में काले बादल छा गए, तेज हवाएं चलीं, और गर्मी से तपते लोग ठंडी हवाओं से घिर गए। यह ठंडी हवाएं भयंकर तूफान में बदल गईं। बिजली कड़कने लगी, और बारिश शुरू हो गई। नदियां उफान पर आ गईं, सड़कों पर पानी भर गया। लोग घबराए हुए थे, बच्चे रो रहे थे, महिलाएं चीख रही थीं, पुलिस के सायरन बज रहे थे। चंडीगढ़ जैसी व्यवस्थित जगह पर पहली बार ऐसी तबाही हुई।

पुलिस वाले भी हैरान थे। एक पुलिसकर्मी ने जेलर से कहा, “यह सब इस साधु के कारण हो रहा है। हमने निर्दोष को अपराधी बना दिया। यह भगवान का प्रकोप है।” पुलिस अफसरों ने इसे मौसम की करवट माना, लेकिन जब पानी पुलिस थाने की सीढ़ियों तक पहुंच गया, तो वे डर गए। जेल की दीवारें डगमगा रही थीं, कोठरियों में पानी घुस रहा था, कैदी चीख रहे थे।

एक दिन जेल के गार्ड ने देखा कि साधु के चारों ओर एक अदृश्य घेरा है, जहां पानी नहीं पहुंच रहा। साधु ध्यान मग्न थे, पर उनके आस-पास पानी रुक जाता था। यह देखकर गार्ड के पसीने छूट गए। उसने बाकी पुलिसवालों को बताया, लेकिन वे इसे संयोग मानते रहे। जब जेल के सबसे बड़े अधिकारी ने यह नजारा देखा, तो उनके होश उड़ गए। उन्होंने तुरंत आदेश दिया कि साधु को बाहर निकाला जाए, लेकिन पुलिसकर्मी डर रहे थे कि कहीं साधु उन्हें श्राप न दे दें।

जेलर ने सभी से कहा कि अगर गलती हुई है, तो साधु से माफी मांगनी चाहिए। सभी ने घुटनों के बल जाकर साधु से माफी मांगी। कुछ ने पैर पकड़ लिए, कुछ रो रहे थे। साधु ने शांत स्वर में कहा, “मैं किसी का बुरा नहीं चाहता, लेकिन जब निर्दोष को कैद किया जाता है तो प्रकृति भी रोती है। यह बाढ़ तुम्हारे अन्याय का परिणाम है।”

उसके बाद बिजली गड़गड़ाई, बारिश धीमी हुई, नदियां शांत हो गईं। लोग छतों से यह नजारा देखकर भावुक हो गए। उन्होंने कहा, “यह चमत्कार है, यह साधु भगवान का दूत है।” पूरा शहर साधु के चरणों में गिर पड़ा। जिन्होंने उनका अपमान किया था, वे माफी मांगने लगे। साधु ने कहा, “तुम्हारा अपराध मेरा अपराध नहीं है। मैं तुम्हें माफ कर दूंगा, लेकिन याद रखना जब अन्याय होगा, तब प्रकृति चेतावनी देगी। जब इंसान घमंड छोड़कर सच्चाई स्वीकार करेगा, तभी शांति लौटेगी।”

साधु महाराज जेल से बाहर आए तो लोग उनके लिए फूल बरसाने लगे। पुलिस अधिकारियों ने सार्वजनिक माफी मांगी। साधु ने कहा, “क्षमा ही सबसे बड़ा धर्म है,” और फिर अपनी झोपड़ी लौट गए। यह घटना हमें सिखाती है कि इंसाफ से बड़ा कोई धर्म नहीं, और अहंकार का अंत विनाश होता है। जीवन में शांति के लिए करुणा, न्याय और सत्य अपनाना जरूरी है। साधु महाराज ने अंतिम समय तक अपमान सहा, लेकिन सबको क्षमा और आशीर्वाद दिया। यही उनकी असली शक्ति और चमत्कार था।

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