जब बेटा विदेश से घर लौटा तो उसने जब पिता और पत्नी को देखा उससे उसका दिल दहल गया बाप-बेटे की कहानी है

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एक असली रिश्ते की पहचान

भूमिका:

यह कहानी है हरिराम शर्मा की, एक ऐसे व्यक्ति की जिसने जीवन में धन और सफलता तो पाई, लेकिन सच्चे रिश्तों की अहमियत को समझने में देर कर दी। यह कहानी हमें सिखाती है कि जीवन में सबसे महत्वपूर्ण क्या है और कैसे हम कभी-कभी अपने प्रियजनों को अनजाने में खो देते हैं।

भाग 1: हरिराम का जीवन

हरिराम शर्मा, 62 वर्ष का एक साधारण व्यक्ति, अपने छोटे से घर में अकेला रहता था। उसकी पत्नी कई साल पहले इस दुनिया को छोड़ चुकी थी। उसका एक ही बेटा था, आर्यन, जो विदेश में काम करता था। आर्यन की शादी पूजा से हुई थी, और दोनों ने शादी के बाद कुछ समय अपनी ज़िंदगी को संवारने में बिताया। आर्यन अक्सर विदेश में काम करने के लिए चला जाता था और साल में केवल एक बार घर आता था। इस कारण हरिराम और पूजा का जीवन धीरे-धीरे एकरसता में बदल गया।

हरिराम का जीवन अब अकेलेपन से भरा हुआ था। वह अक्सर सोचा करता था कि शायद उसे दोबारा विवाह कर लेना चाहिए, लेकिन यह विचार उसके मन में आता तो पूजा उसे समझाती, “पिताजी, आप अकेले नहीं हैं। मैं आपके साथ हूं।” फिर भी हरिराम के दिल में एक खालीपन था, जो बढ़ता ही जा रहा था।

भाग 2: आर्यन की वापसी

एक दिन, जब हरिराम आंगन में बैठा था, पूजा ने कहा, “बाबा जी, क्या हुआ? आप कुछ सोच में डूबे हैं।” हरिराम ने कहा, “बेटी, अकेलापन बसनीय हो गया है।” पूजा ने उसे कुछ खास लाने का वादा किया और दूध का गिलास लेकर आई। उसने कहा, “पिताजी, इसे पी लीजिए। इससे आपको ताकत मिलेगी।” हरिराम ने मुस्कुराते हुए कहा, “क्या यह फिर से मुझे जवान बना देगी?” पूजा ने कहा, “शायद हां, इसमें एक विशेष औषधि है जो मन को प्रसन्न करती है।”

तभी दरवाजे पर घंटी बजी। पूजा ने दरवाजा खोला और सामने आर्यन था। हरिराम की आंखों में खुशी आ गई। आर्यन ने कहा, “मैं अचानक लौट आया हूँ।” घर में खुशी की लहर दौड़ गई। हरिराम ने सोचा, “शायद अब सब कुछ ठीक हो जाएगा।”

अगले दिन, आर्यन ने कहा, “पिताजी, चलिए कुछ दिन दिल्ली चलते हैं।” हरिराम ने सोचा, “यह एक अच्छा विचार है।” तीनों दिल्ली पहुंचे और आर्यन ने एक बड़ा सा किराए का मकान लिया। कुछ दिन बाद आर्यन ने कहा, “पिताजी, मैं और पूजा बाहर घूमने जा रहे हैं। आपकी देखभाल के लिए मैंने एक नौकरानी रख दी है, जिसका नाम है शीला।”

भाग 3: नई शुरुआत

अब हरिराम और शीला ही घर में रह गए। हरिराम ने किताबें पढ़ना शुरू किया और नया मोबाइल चलाना सीखा। एक दिन, उसने Instagram खोला और उसमें एक सुंदर युवती का वीडियो देखा। युवती मुस्कुराते हुए बोली, “मुझसे दोस्ती करनी हो तो नंबर याद रखिए।” हरिराम ने अनजाने में उसका नंबर सेव कर लिया और कॉल कर दिया। युवती ने कहा, “हैलो, आप कौन?” हरिराम ने कहा, “तुम्हारी मुस्कान बहुत सुंदर है।”

धीरे-धीरे उनकी बातचीत दोस्ती में बदल गई। एक दिन युवती ने कहा, “अगर आप चाहें तो मुझसे मिलने आ जाएं।” हरिराम ने सोचा, “इसमें हर्ज क्या है?” अगले ही दिन वह युवती रिया उसके घर आई। रिया की मुस्कान और बातों ने हरिराम को आकर्षित कर लिया।

भाग 4: मोह का जाल

रिया के आने-जाने का सिलसिला बढ़ गया। हरिराम ने आर्यन की बातों को अनसुना कर दिया। आर्यन ने कहा, “पिताजी, यह युवती अच्छी नहीं है।” लेकिन हरिराम ने गुस्से में कहा, “यह मेरी जिंदगी है। मैं जो चाहूं कर सकता हूं।”

कुछ ही घंटों में हरिराम ने रिया से विवाह कर लिया। आर्यन और पूजा एक-दूसरे को देख रहे थे, जैसे किसी भयावह स्वप्न में फंसे हों। हरिराम ने कहा, “आओ, तुम दोनों को अपनी नई अर्धांगिनी से मिलवाऊं।” आर्यन के चेहरे पर अविश्वास और अपमान के भाव थे।

भाग 5: परिवार का बिखराव

हरिराम ने रिया के साथ मिलकर मदिरा पीना शुरू कर दिया। आर्यन ने कहा, “पिताजी, यह युवती आपको बर्बाद कर देगी।” हरिराम ने गुस्से में कहा, “यह मेरी पत्नी है, तुम मुझे रोकने वाले कौन होते हो?”

रिया ने कहा, “मैं इस घर की स्वामिनी हूं।” वातावरण और भी तनावपूर्ण हो गया। आर्यन ने कहा, “मैं शीघ्र ही परदेश लौट जाऊंगा।” पूजा ने कहा, “अगर मां आज होती तो यह दिन कभी ना आते।”

भाग 6: धोखे का एहसास

एक शाम, रिया ने हरिराम से कहा, “आज मैं चाय बनाऊंगी।” उसने चाय में बेहोशी का रस मिला दिया। हरिराम ने चाय पी और सो गया। जब उसकी नींद टूटी, तो उसने देखा कि रिया और उसका सारा सामान गायब था। हरिराम घबराकर पुलिस स्टेशन गया, लेकिन अधिकारी ने कहा, “आपकी उम्र के व्यक्ति को यह समझना चाहिए था कि यह छल है।”

हरिराम अपने घर लौट आया, टूटा हुआ और अकेला। उसने आर्यन को फोन किया और कहा, “बेटा, मैंने गलती की है। उस युवती ने मुझे ठगा है।” आर्यन ने सख्त स्वर में कहा, “आपने हमें अपमानित करके घर से निकाला था। अब कोई रिश्ता बाकी नहीं।”

भाग 7: आत्ममंथन

हरिराम टूट गया। उसकी आंखों से आंसू बह निकले। उसने पूजा से कहा, “तुम ही उसे समझाओ।” पूजा ने कहा, “मैं प्रयास करूंगी, पर जो घाव आपने दिए हैं, वे गहरे हैं।” हरिराम अब अकेला था। उसके पास धन नहीं, प्रतिष्ठा नहीं, बस एक गहरी सीख थी।

भाग 8: सच्चा सुख

हरिराम ने समझा कि यौवन का मोह क्षणिक है, पर परिवार का स्नेह शाश्वत होता है। जिसने अपने अपनों से मुंह मोड़ लिया, उसके पास अंततः कुछ नहीं बचता। हरिराम अब अकेला था, लेकिन उसके पास एक सच्चाई थी कि सच्चा सुख अपने परिवार और रिश्तों के प्रेम में है।

समापन:

यह कहानी हरिराम की नहीं, बल्कि हर उस व्यक्ति की है जो मोह के जाल में फंसकर अपने संबंध खो देता है। हमें यह समझना चाहिए कि जीवन में सबसे महत्वपूर्ण क्या है। रिश्तों का महत्व समझकर ही हम सच्चे सुख की ओर बढ़ सकते हैं।

कहानी समाप्त।