“अचानक हीरो – बोसीदा मुसाफिर की उड़ान”

 

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Bhikhari Jahaz Mein Betha To Sab Ne Mazaq Uraya | Haqeeqat Jaan Kar Sab  Hairan Reh Gye – Sabaq Amoz - YouTube

“अचानक हीरो – बोसीदा मुसाफिर की उड़ान”

कराची के हवाई अड्डे की सुबह हमेशा की तरह हलचल और शोर से भरी हुई थी। लोग कतारों में खड़े थे, बोर्डिंग पास दिखा रहे थे, सामान की जांच हो रही थी, बच्चे अपने माता-पिता के साथ इधर-उधर भाग रहे थे। फ्लाइट पीके 312 लाहौर के लिए रवाना होने वाली थी। बार-बार ऐलान हो रहा था कि गेट नंबर सात पर बोर्डिंग शुरू हो चुकी है।

भीड़ में एक शख्स धीरे-धीरे चल रहा था। उसकी कद-काठी मध्यम, उम्र लगभग पचास के करीब, लेकिन चेहरे पर थकान और बोझ सा झलक रहा था। उसके बाल बिखरे हुए थे, कपड़े पुराने और झुर्रियों से भरे थे, और जूते भी घिसे हुए थे। उसके हाथ में एक छोटा, पुराना बैग था, जिसका ज़िप आधा टूटा हुआ था। उस शख्स का नाम था आरिफ कुरैशी।

गेट पर खड़े सुरक्षा अधिकारी ने उसका बोर्डिंग पास चेक किया और सख्त लहजे में कहा, “आगे बढ़ें, रास्ता रोकेंगे तो लाइन बन जाएगी।” आरिफ ने हल्की मुस्कुराहट के साथ खामोशी से आगे बढ़ा। जब वह विमान में दाखिल हुआ, तो बाकी मुसाफिरों की नजरें उसकी तरफ गईं। उसके पुराने कपड़े देखकर कुछ लोग नफरत से नजरें फेर गए, कुछ ने सरगोशियां कीं, और कुछ ने अपनी नाक रुमाल से ढक ली।

आरिफ अपनी सीट, नंबर 17ए, जो खिड़की के पास थी, की ओर बढ़ा। वहीं एक युवती, जो आधुनिक कपड़ों में थी, ने तुरंत अपनी नाक पर रुमाल रख लिया और दिल ही दिल में कहा, “काश मुझे कोई और सीट मिल जाती।” आस-पास के मुसाफिरों ने भी उसकी तरह आरिफ को कमतर समझा। कुछ ने कहा, “शायद किसी ने दान के पैसे से उसकी टिकट खरीदी होगी।”

एयर होस्टेस निदा खान, जो विमान के कर्मचारियों में से एक थी, आरिफ की ओर शक की नजरों से देख रही थी। उसने उससे बोर्डिंग पास दोबारा मांगा। आरिफ ने शांति से अपना पास दिखाया। निदा ने उसे देखा, फिर हल्की मुस्कुराहट के साथ पास लौटा दिया, लेकिन उसकी आंखों में अभी भी संदेह था।

फ्लाइट के बाकी मुसाफिर अपनी सीटों पर बैठ गए, लेकिन आरिफ खामोशी से खिड़की के बाहर बादलों को देख रहा था। उसकी आंखों में एक अजीब सा सुकून था, मानो वह किसी बड़े राज को छुपाए हुए हो। इसी बीच, पीछे की सीट से एक युवक खड़ा हुआ और एयर होस्टेस से बोला, “मुझे मेरी सीट बदल दीजिए, इस शख्स से अजीब सी बदबू आ रही है। मैं उसके साथ पूरा सफर नहीं बैठ सकता।”

निदा ने जवाब दिया, “सॉरी सर, आज फ्लाइट पूरी बुक है, कोई खाली सीट नहीं। आपको बर्दाश्त करना होगा।” मुसाफिरों के इस व्यवहार के बावजूद, आरिफ शांत रहा, उसकी आंखें अब भी खिड़की के बाहर जमी थीं।

फ्लाइट ने रनवे पर रफ्तार पकड़ी और आसमान की ओर उड़ान भरने लगी। मुसाफिरों ने राहत की सांस ली। कुछ ने आंखें बंद कर लीं, तो कुछ ने किताबें खोल लीं। लेकिन आरिफ के साथ बैठी युवती बार-बार अपनी नाक पर रुमाल रख रही थी, उससे नफरत झलक रही थी।

इसी बीच, एक पुराना परिचित, बिलाल अहमद, जो महंगे सूट में था, जोर से बोला, “आरिफ कुरैशी? क्या वाकई तुम हो? मैं बिलाल हूं, तुम्हारा कॉलेज का दोस्त।” उसने मुसाफिरों को बताया कि आरिफ कॉलेज का सबसे टॉपर छात्र था, जिसे सब भविष्य का बड़ा आदमी मानते थे। लेकिन आज वह बोसीदा कपड़ों में इकॉनमी क्लास में बैठा था। बिलाल खुद एक मल्टीनेशनल कंपनी का डायरेक्टर था।

आरिफ ने केवल इतना कहा, “कहानी लंबी है, अगर मौका मिला तो बताऊंगा।” बिलाल की तंज भरी बातों के बीच, आरिफ की शांति और सुकून सबको हैरान कर रहा था।

आकाश में उड़ान भरते हुए, अचानक विमान में हल्की सी झटके महसूस होने लगे। बादलों के बीच तूफान छा गया था। मुसाफिरों के चेहरे डर से सन्न हो गए। बच्चे रोने लगे, महिलाएं दुआएं पढ़ने लगीं। बिलाल ने घबराकर कहा, “यह क्या हो रहा है? पायलट संभाल नहीं पा रहा।”

एयर होस्टेस निदा ने मुसाफिरों को शांत रहने की हिदायत दी, लेकिन उसकी आंखों में चिंता साफ दिख रही थी। अचानक कॉकपिट से एक एयर होस्टेस दौड़ती हुई आई और बोली, “क्या जहाज में कोई डॉक्टर है? पायलट को मेडिकल इमरजेंसी है।”

डॉक्टर जाहिद ने तुरंत कॉकपिट की ओर भागा। कुछ देर बाद उसने घोषणा की, “कप्तान फारुख को हार्ट अटैक आया है, वे बेहोश हैं। जहाज नहीं उड़ सकता।”

यह सुनते ही विमान में अफरा-तफरी मच गई। मुसाफिर डर के मारे चीखने लगे। बिलाल ने कहा, “अब कौन जहाज उड़ाएगा? हम सब मरने वाले हैं।” तभी आरिफ ने आवाज उठाई, “मैं कोशिश कर सकता हूं।”

सब उसकी ओर देखने लगे। बिलाल ने तंज किया, “यह भिखारी हमें बचाएगा? यह तो मौत है।” कुछ मुसाफिर भी आरिफ के पक्ष में नहीं थे। निदा कांपते हुए आरिफ के पास आई और पूछा, “क्या आप वाकई जहाज उड़ाना जानते हैं? यह मजाक का वक्त नहीं।”

आरिफ ने दृढ़ता से कहा, “जी हां, मैं जानता हूं। दस साल तक यही मेरा पेशा था। फैसला आपका है।” कॉकपिट से कप्तान फहद की आवाज आई, “अगर यह अनुभवी है तो उसे अंदर भेजो, मैं अकेले तूफान नहीं संभाल सकता।”

निदा ने मुसाफिरों से कहा, “कृपया शांत रहें।” आरिफ कॉकपिट में गया। सबकी निगाहें उस पर टिकी थीं। जो लोग पहले उसकी उपेक्षा करते थे, वे अब आश्चर्य और उम्मीद से भर गए थे।

कॉकपिट में स्थिति गंभीर थी। कप्तान फारुख बेहोश थे, और कप्तान फहद अकेले कंट्रोल संभाल रहे थे। आरिफ ने हेडसेट पहना और रेडियो पर कहा, “लाहौर कंट्रोल, मैं कैप्टन आरिफ कुरैशी हूं। पायलट गंभीर रूप से बीमार है। हम इमरजेंसी लैंडिंग चाहते हैं।”

निदा ने मुसाफिरों से कहा, “कृपया सीट बेल्ट कस लें।” विमान बादलों के बीच तूफान से लड़ रहा था। बिजली चमक रही थी, हवा तेज थी, और विमान हिचकोले खा रहा था। मुसाफिर दुआएं कर रहे थे।

आरिफ ने धैर्य से कंट्रोल संभाला। उसने कप्तान फहद को निर्देश दिए और विमान को स्थिर करने की कोशिश की। उसने क्रॉस विंड को सावधानी से संभाला। मुसाफिरों के दिल धड़क रहे थे, हर कोई उसकी हरकतों पर नजर रखे था।

जब विमान रनवे के करीब पहुंचा, तो तूफान और भी तेज हो गया। विमान को कई बार झटका लगा। बिलाल घबराया और चिल्लाया, “यह सब खत्म हो जाएगा। हम मरने वाले हैं।” लेकिन आरिफ ने संयम बनाए रखा।

आखिरकार, विमान ने रनवे को छुआ। पहिए की आवाज गूंजी। आरिफ ने स्पॉइलर्स और रिवर्स थ्रस्ट का इस्तेमाल किया और विमान को सुरक्षित रूप से रोका। केबिन में खुशी और राहत की लहर दौड़ गई। मुसाफिर तालियां बजाने लगे।

वह युवती, जिसने पहले आरिफ को नफरत से देखा था, अब उसकी ओर बढ़ी और बोली, “मुझे माफ कर दें, मैं आपकी तौहीन करती रही। आपने मेरे बच्चे की जान बचाई।”

बिलाल, जो पहले गर्व से भरा था, अब शर्मिंदा होकर आरिफ के पास आया और कहा, “मैं शर्मिंदा हूं। तुमने साबित कर दिया कि असली सफलता दूसरों की जान बचाने में है।”

एयरपोर्ट पर जब विमान उतरा, तो सुरक्षा अधिकारी सीधे आरिफ के पास जाकर सलामी दी। एयरपोर्ट मैनेजर ने कहा, “हम सबको गर्व है कि आप हमारे बीच हैं। आपने नामुमकिन को मुमकिन कर दिखाया।”

मीडिया ने कैप्टन आरिफ कुरैशी की तारीफ की। लोग उनकी तस्वीरें लेने लगे। एक बच्चा आगे बढ़ा और बोला, “मैं बड़ा होकर आप जैसा बनना चाहता हूं।” आरिफ ने उस बच्चे के सिर पर हाथ रखा और कहा, “बड़े बनने के लिए कैप्टन होना जरूरी नहीं, दिल बड़ा होना जरूरी है।”

एयर होस्टेस निदा ने कहा, “मैंने आपको कमतर समझा, लेकिन आज पता चला कि असली ताकत सुकून और हौसले में होती है।”

आरिफ ने मुस्कुराते हुए कहा, “वक्त ही सब कुछ सिखाता है। असली इज्जत इंसान के हौसले में होती है, कपड़ों में नहीं।”