जब DM ने सादे कपड़ों में निकलीं | पुलिसवाले की घूसखोरी का सच सामने आया ||
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सुनहरी धूप से भरी एक सुबह थी। जिला मुख्यालय का प्रशासनिक भवन अपनी भव्यता के बावजूद उस दिन कुछ अलग ही सन्नाटा लिए खड़ा था। अंदर, डीएम आरती सिंह अपने कार्यालय में बैठी थीं। उनका चेहरा गंभीर था, लेकिन आंखों में एक जुझारूपन साफ झलक रहा था। आज उनका दिन कुछ खास था क्योंकि कई ऑटो चालक, रिक्शेवाले और छोटे व्यापारी उनसे मिलने आए थे। इन सबकी जुबान पर एक ही शिकायत थी—पुलिस वाले बिना वजह उन्हें रोकते हैं और फिर रिश्वत मांगते हैं।
आरती ने ध्यान से उनकी बात सुनी। उनके चेहरे पर चिंता थी, लेकिन साथ ही उनमें एक सख्ती भी थी जो बताती थी कि वे इस अन्याय को बर्दाश्त नहीं करेंगी। उन्होंने कहा, “बिना वजह कोई कैसे रोक सकता है? हो सकता है आपके पास गाड़ी के पेपर, लाइसेंस या परमिट नहीं हो।” लेकिन लोगों ने बताया कि वे दिन-रात मेहनत करते हैं, दो वक्त की रोटी जुटाने के लिए। फिर भी पुलिस वाले उन्हें बिना वजह रोक लेते हैं, अगर पैसे नहीं देते तो गाड़ी उठा लेते हैं। यह सुनकर आरती का दिल भारी हो गया। उन्होंने मन ही मन ठाना कि वह केवल फाइलों में बैठकर आदेश नहीं देंगी, बल्कि खुद जाकर हालात देखना चाहेंगी।
अगले दिन सुबह आरती ने अपनी छोटी बहन को साथ लिया। सुरक्षा गार्ड और सरकारी गाड़ी को पीछे छोड़कर वे साधारण कपड़ों में घर से निकलीं। उन्होंने एक पुराना ऑटो रिक्शा बुलाया, जिसमें रामस्वूप नाम का एक बूढ़ा ऑटो चालक था। उसके चेहरे पर पसीना था और कपड़ों पर मेहनत की धूल। बहन ने धीरे से पूछा, “दीदी, आप डीएम होकर ऐसे सादे कपड़ों में क्यों निकली हैं? खतरा नहीं है?” आरती मुस्कुराईं और बोलीं, “सच की तलाश हमेशा खतरनाक होती है। जब तक मैं आम आदमी की नजरों से नहीं देखूंगी, असली हालात नहीं समझ पाऊंगी।”
थोड़ी दूर चलने के बाद वे पुलिस बैरिकेड के पास पहुंचीं। इंस्पेक्टर अशोक सिंह और उसकी टीम वहां खड़े थे। कड़क वर्दी, काले चश्मे और हाथ में डंडा लिए वे ऑटो रोकने का इशारा कर रहे थे। जैसे ही रामस्वूप की गाड़ी रुकी, इंस्पेक्टर ने गरजते हुए कहा, “ओए, कागज दिखा!” रामस्वूप कांपते हुए बोला, “साहब, मेरे पास गाड़ी के सब कागज हैं। यह लो—परमिट, लाइसेंस और बीमा।” इंस्पेक्टर ने झटके से कागज खींचे, कुछ पन्ने पलटे और हंसते हुए बोला, “यह सब पुराने हैं। अब तेरी गाड़ी जब्त होगी, चल थाने।”
रामस्वूप गिड़गिड़ाने लगा, “साहब, रहम करो, यही गाड़ी से घर चलता है।” इंस्पेक्टर ने सिगरेट का कश लिया और पास आकर धीरे से बोला, “अगर रहम चाहिए तो माल लगाओ, ₹500 निकाल, फिर छोड़ दूंगा।” रामस्वूप रो पड़ा, “साहब, मेरे पास तो ₹200 भी नहीं हैं।” इंस्पेक्टर ने थप्पड़ जड़ते हुए कहा, “200 में पुलिस को खरीदना चाहता है? पूरे 500 चाहिए, वरना गाड़ी उठेगी।”
आरती और उनकी बहन यह सब देख रही थीं। उनका खून खौल रहा था। आरती ने ऑटो से उतरकर गहरी आवाज में कहा, “बस बहुत हो गया!” इंस्पेक्टर चौंक गया, “कौन है तू? बड़ी बहादुर लग रही है।” आरती ने पर्स से अपना आधिकारिक आईडी कार्ड निकाला और उसके सामने फेंक दिया, “मैं हूं तुम्हारी जिलाधिकारी आरती सिंह।”

पूरा स्टाफ सहम गया। आसपास खड़ी भीड़ तालियां बजाने लगी। रामस्वूप के हाथ कांप रहे थे, उसने कहा, “मैडम, आप तो भगवान बनकर आई हैं, वरना आज मेरी रोजी-रोटी छीन जाती।” आरती ने गुस्से में कहा, “इंस्पेक्टर अशोक, तुम्हें वर्दी इसलिए दी गई है कि जनता की रक्षा करो, न कि उनकी जेबें काटो। आज से तुम निलंबित हो।” उन्होंने तुरंत एंटी करप्शन ब्यूरो को फोन लगाया। कुछ ही देर में टीम आ गई और मौके पर कार्यवाही शुरू हुई। पूरे घटनाक्रम को कैमरे में रिकॉर्ड किया गया।
भीड़ जुट गई थी। हर कोई डीएम मैडम की तारीफ कर रहा था। आरती ने सबको संबोधित किया, “दोस्तों, पुलिस भ्रष्ट होती है क्योंकि जनता चुप रहती है। जब आप डर कर रिश्वत देते हैं, तो आप भी अपराधी को ताकतवर बनाते हैं। आज से ठान लो, कोई रिश्वत नहीं देगा, चाहे जैसा भी दबाव हो।” लोगों की आंखों में उम्मीद की चमक आ गई।
यह घटना आग की तरह फैल गई। अखबारों की सुर्खियां बनीं। महिला डीएम ने घूसखोर पुलिस वालों के कंगन हाथ पकड़ा। पुलिस विभाग में खलबली मच गई। वरिष्ठ अधिकारियों ने तुरंत जांच शुरू कर दी। कई ईमानदार पुलिसकर्मियों ने राहत की सांस ली। अब शायद भ्रष्ट लोगों की मनमानी कम होगी।
जांच में साबित हुआ कि इंस्पेक्टर अशोक सिंह और उसकी टीम पिछले कई महीनों से आम लोगों से वसूली कर रहे थे। उन पर भ्रष्टाचार, लापरवाही और जनता से दुर्व्यवहार के केस दर्ज हुए। अशोक सिंह को हथकड़ी पहनाई गई। मीडिया कैमरों के सामने वह झुककर बोला, “मैडम, मुझसे गलती हो गई। माफ कर दीजिए।” आरती ने दृढ़ स्वर में कहा, “कानून में माफी का प्रावधान नहीं है। इंसाफ का है। जनता के साथ खिलवाड़ करने वाले को सजा मिलेगी।”
बूढ़ा रामस्वूप अपनी ऑटो लेकर चला गया। उसके चेहरे पर मुस्कान थी और आंखों में आंसू। उसने हाथ जोड़कर कहा, “मैडम, अगर हर अवसर आपके जैसा हो जाए तो गरीबों की जिंदगी आसान हो जाएगी।” आरती ने आसमान की तरफ देखा और मन ही मन सोचा, “शायद यही मेरी जिम्मेदारी है—भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ना और जनता का विश्वास वापस दिलाना।”
यह कहानी केवल एक घटना नहीं थी, बल्कि एक संदेश था। अगर एक महिला डीएम अकेले खड़ी होकर भ्रष्टाचार को चुनौती दे सकती है, तो हम सब मिलकर क्यों नहीं? याद रखो, परिवर्तन हमेशा भीतर से शुरू होता है। जब हर इंसान ‘ना’ कहना सीख जाएगा, तो पूरी व्यवस्था बदल सकती है।
समाज में जागरूकता और साहस की जरूरत है। हर व्यक्ति को अपने अधिकारों के लिए आवाज उठानी होगी। भ्रष्टाचार का सफाया तभी संभव है जब हम सब मिलकर इसका विरोध करें। इसलिए, इस कहानी को ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाएं। जागरूकता ही सबसे बड़ा हथियार है।
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