जिस घमंडी लड़की ने बुजुर्ग आदमी को गरीब समझकर होटल से धक्के मारकर निकाला उसके सच सुनकर होश उड़ गए

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रॉयल सवेरा होटल की भव्य इमारत के बाहर लग्जरी कारें खड़ी थीं। शहर के सबसे अमीर लोग यहाँ मीटिंग के लिए जमा हो रहे थे। होटल का माहौल चमक-दमक से भरा था, लेकिन उसी के गेट पर एक साधारण बुजुर्ग व्यक्ति, हरिदत्त बिष्ट, धीरे-धीरे कदम बढ़ा रहा था। सफेद बालों वाला, धोती-कुर्ता पहने, हाथ में एक पुरानी लकड़ी की लाठी और फटा हुआ थैला लिए हरिदत्त की सादगी इस आलीशान माहौल से बिलकुल अलग थी। उनकी आंखों में एक गहरी चमक थी, जो किसी बड़े राज़ की कहानी कह रही थी।

जैसे ही हरिदत्त होटल के मुख्य द्वार तक पहुँचे, सुरक्षा गार्ड ने उन्हें रोक लिया। गार्ड ने कठोर स्वर में कहा, “बाबा, यह होटल आप जैसे लोगों के लिए नहीं है। यहां आज शहर के सबसे अमीर लोगों की मीटिंग हो रही है। बॉस ने साफ कहा है कि आज इस होटल के आसपास कोई भिखारी नहीं दिखना चाहिए। अब यहां से निकल जाओ, वरना मुझे तुम्हें धक्के मारकर बाहर निकालना पड़ेगा।”

हरिदत्त ने शांत मुस्कान के साथ गार्ड को देखा और कहा, “बेटा, मेरी यहां एक बुकिंग है। बस उसी के बारे में पूछना था।” गार्ड हंस पड़ा और बोला, “बुकिंग? तुम जैसे भिखारी को यहां बुकिंग कैसे मिल सकती है? यह होटल अमीरों के लिए है।” पास खड़ी रिसेप्शनिस्ट रिया मेहता ने भी उनकी बात सुनी और तिरस्कार से कहा, “यहां आम लोगों के लिए जगह नहीं है। कृपया बाहर जाइए।”

हरिदत्त ने धैर्य से कहा, “बेटी, एक बार सिस्टम में चेक कर लो, शायद मेरा नाम रजिस्टर्ड हो।” रिया ने कंधे उचकाए और कहा, “ठीक है, लेकिन इसमें थोड़ा समय लगेगा। आप वेटिंग एरिया में बैठिए।” हरिदत्त ने सिर हिलाकर लॉबी की ओर बढ़े।

लॉबी में महंगे झूमर लटक रहे थे, सोफे पर चमकदार कपड़े पहने लोग बैठे थे, लेकिन हरिदत्त की सादगी सबकी नजरों को खींच रही थी। लोग फुसफुसा रहे थे, “यह भिखारी यहां क्या कर रहा है?” एक बच्चे ने अपनी मां से पूछा, “मम्मी, यह दादाजी यहां क्यों बैठे हैं? ये तो अमीर नहीं लगते।” मां ने बच्चे को चुप कराया, “बेटा, कभी-कभी लोग गलत जगह पहुंच जाते हैं।”

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हरिदत्त चुपचाप एक कोने में बैठ गए। कुछ देर बाद उन्होंने रिसेप्शन पर जाकर कहा, “बेटी, अगर मैनेजर व्यस्त हैं तो मुझे उनसे मिलना है।” रिया ने फोन उठाया और मैनेजर विक्रम राणा को कॉल किया। विक्रम ने दूर से हरिदत्त को देखा और तंज कसते हुए कहा, “यह कोई सड़क वाला लग रहा है। इन्हें इंतजार करने दो।”

हरिदत्त ने धैर्य से कुर्सी पर लौटकर बैठ गए। उनके मन में कोई योजना चल रही थी। इसी बीच होटल के बेल बॉय सौरभ चौहान ने उन्हें देखा और पास आकर कहा, “दादा जी, आप कब से यहां बैठे हैं? कोई आपकी मदद नहीं कर रहा?” हरिदत्त ने मुस्कुरा कर कहा, “बेटा, मैं मैनेजर से मिलना चाहता हूं, लेकिन वे व्यस्त हैं।” सौरभ ने दृढ़ता से कहा, “चिंता मत कीजिए, मैं बात करता हूं।”

सौरभ ने मैनेजर विक्रम से बात करने की कोशिश की, लेकिन विक्रम ने उसे डांट दिया, “ऐसे लोगों से दूर रहो, यह कोई गेस्ट नहीं है।” सौरभ निराश होकर वापस आया। हरिदत्त ने उसके कंधे पर हाथ रखा और कहा, “कोई बात नहीं, तुम्हारी कोशिश ही काबिले तारीफ है।”

कुछ देर बाद हरिदत्त ने लाठी लेकर सीधे मैनेजर के केबिन की ओर बढ़ना शुरू किया। उनकी ठक-ठक की आवाज़ पूरे होटल में गूंज रही थी। केबिन का दरवाजा खुला और विक्रम राणा ने तंज भरे लहजे में कहा, “बाबा जी, अब क्या तमाशा करने आए हैं? मेरे पास वक्त नहीं है।”

हरिदत्त ने बिना रुके अपने थैले से एक मोटा लिफाफा निकाला और टेबल पर रख दिया। उनकी आवाज़ में गंभीरता थी, “बेटा, इसे खोलकर देखो, शायद तुम्हारी गलतफहमियां दूर हों।” विक्रम ने लिफाफा बिना खोले टेबल पर धकेल दिया और कहा, “मुझे ड्रामा नहीं चाहिए। तुम इस होटल के गेस्ट नहीं हो, बेहतर होगा कि चुपचाप निकल जाओ, वरना गार्ड को बुलाना पड़ेगा।”

लॉबी में मौजूद लोग हंस पड़े, लेकिन हरिदत्त की आंखों में ठंडक और आत्मविश्वास था। उन्होंने कहा, “ठीक है, मैं जाता हूं, लेकिन याद रखना हर इंसान की एक कहानी होती है, और मेरी कहानी तुम्हारी सोच से बड़ी है।”

हरिदत्त के जाने के बाद बेल बॉय सौरभ ने चुपके से लिफाफा उठाया और अपने कमरे में जाकर खोला। उसमें पुराने दस्तावेज थे, जिनमें होटल के 70% शेयर हरिदत्त बिष्ट के नाम थे। सौरभ ने होटल के सर्वर में लॉग इन किया और पुराने रिकॉर्ड्स देखे। उसे पता चला कि हरिदत्त इस होटल के असली मालिक और संस्थापक सदस्य थे, लेकिन वर्षों पहले उन्होंने प्रबंधन दूसरों को सौंप दिया था और खुद गुमनामी में चले गए थे।

सौरभ ने यह सब विक्रम को दिखाने की कोशिश की, लेकिन विक्रम ने उसे डांट दिया और कहा कि यह सब पुरानी बातें हैं, अब होटल उसकी मैनेजमेंट में है। सौरभ ने हार नहीं मानी और ठाना कि वह सच को सामने लाएगा।

अगली सुबह हरिदत्त फिर से होटल आए, इस बार उनके साथ एक सूट-बूट पहना व्यक्ति था, जिसका नाम विनय अग्रवाल था, जो हरिदत्त का वकील था। वे सीधे रिसेप्शन पर आए और जोरदार आवाज़ में कहा, “मैनेजर को बुलाओ, अब वक्त आ गया है।”

विक्रम की आंखों में घबराहट थी। हरिदत्त ने कहा, “बेटा, आज तुम्हारी सारी गलतफहमियां दूर हो जाएंगी।” विनय ने होटल के मालिकाना हक के दस्तावेज पेश किए, जिनमें साफ लिखा था कि हरिदत्त बिष्ट इस होटल के 70% शेयर होल्डर हैं।

लॉबी में सन्नाटा छा गया। विक्रम का चेहरा सफेद पड़ गया। हरिदत्त ने कहा, “यह तो शुरुआत है, असली कहानी अभी बाकी है।” विनय ने एक और पुराना पत्र पढ़ा, जिसमें हरिदत्त की पत्नी सरिता की आखिरी इच्छा और एक गुप्त ट्रस्ट की जानकारी थी, जो गरीबों और जरूरतमंदों की मदद करता था।

हरिदत्त ने बताया कि इस ट्रस्ट की देखरेख सौरभ चौहान करता है, जो उनका गोद लिया रिश्तेदार था। यह सुनकर सौरभ की आंखें नम हो गईं। हरिदत्त ने कहा, “अब यह जिम्मेदारी तुम्हारे हाथों में है कि इस होटल को हमारे सपनों के अनुसार चलाओ।”

फिर हरिदत्त ने विक्रम को डांटा, “तुमने इस होटल को सिर्फ पैसे कमाने की मशीन बना दिया है। अब तुम्हें हटाया जाएगा।” विक्रम ने विरोध किया, लेकिन हरिदत्त ने कहा, “मेरे पास सबूत हैं। अब तुम्हें इसका हिसाब देना होगा।”

लॉबी में तालियां गूंजने लगीं। रिया ने माफी मांगी और कहा कि वह अब हर मेहमान का सम्मान करेगी। अगले दिन होटल का माहौल पूरी तरह बदल गया। सौरभ मैनेजर बन गया और विक्रम को फील्ड वर्क पर भेज दिया गया।

हरिदत्त ने कहा, “असली अमीरी पैसे में नहीं, इंसानियत में होती है। यह होटल अब इंसानियत की मिसाल बनेगा।” उनकी यह कहानी एक प्रेरणा बन गई कि सच्चाई और न्याय की जीत होती है, चाहे परिस्थितियाँ कितनी भी कठिन क्यों न हों।