जिस तरह से यह घटना घटी थी, उसे देखकर पुलिसकर्मियों की आँखों में भी आँसू आ गए थे — प्रियंका मामले की छिपी हुई सच्चाई

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प्रियंका केस की छुपी सच्चाई – एक दर्दनाक कहानी

कर्नाटक के बेंगलुरु शहर के हुलिमाबू इलाके में मीनाक्षी मंदिर के पास एक तीन मंजिला फ्लैट में रहते थे सतीश कुमार गुप्ता और उनकी पत्नी प्रियंका गुप्ता। दोनों पढ़े-लिखे, नौकरीपेशा थे – सतीश Infosys में HR मैनेजर और प्रियंका दिल्ली पब्लिक स्कूल में गणित की टीचर। शादी को तीन साल हुए थे, दोनों की कोई संतान नहीं थी। हाल ही में उन्होंने एक प्लॉट खरीदा था, जहां वे अपना घर बनवाने का सपना देख रहे थे।

लेकिन 10 अगस्त 2010 की सुबह सब बदल गया। रोज की तरह सतीश सुबह 5:40 पर मॉर्निंग वॉक के लिए निकला। प्रियंका घर पर योगा कर रही थी। करीब 5:55 पर प्रियंका ने सतीश को फोन किया – “दो रद्दी वाले बाहर खड़े हैं, रद्दी मांग रहे हैं।” सतीश को शक हुआ, इतनी सुबह रद्दी वाला? उसने प्रियंका से दरवाजा न खोलने को कहा और खुद लौटने लगा।

6:40 पर सतीश घर पहुंचा, डोर बेल बजाई – कोई जवाब नहीं। फोन किया – प्रियंका ने नहीं उठाया। दरवाजा तोड़ने की कोशिश की, लेकिन लॉक अंदर-बाहर दोनों तरफ से खुल सकता था। उसके पास दूसरी चाबी ऑफिस में थी। वह तुरंत ऑफिस गया, चाबी लेकर लौटा और दरवाजा खोला।

घर के अंदर का दृश्य दिल दहला देने वाला था। प्रियंका चेयर पर बैठी थी, हाथ कुर्सी के हैंडल से बंधे, गले पर गहरा कट, खून से लथपथ। सतीश टूट गया, पुलिस को फोन किया। पुलिस मौके पर आई, प्रियंका का शव पोस्टमार्टम के लिए भेजा गया। घर में रखे पांच लाख रुपये और गहने गायब थे। पुलिस ने लूटपाट का मामला दर्ज किया, लेकिन शक सतीश पर ही था।

पुलिस ने जांच शुरू की। आस-पड़ोस से पूछताछ, कोई रद्दी वाला नहीं देखा गया था। प्रियंका के पहने हुए गहने सुरक्षित थे। अलमारी में 10,000 रुपये आसानी से मिल गए, लुटेरे क्यों छोड़ गए? पोस्टमार्टम रिपोर्ट – प्रियंका के गले को पहले रस्सी से घोंटा गया, फिर चाकू से वार किया गया। शरीर पर और कोई चोट नहीं थी।

सतीश का बयान बार-बार बदल रहा था। कॉल डिटेल्स से पता चला – प्रियंका के फोन करने के 45 मिनट बाद सतीश घर लौटा, जबकि उसे तुरंत लौटना चाहिए था। ऑफिस के सीसीटीवी में दिखा – सतीश ऑफिस गया ही नहीं, बाहर ही टहलता रहा। कॉल लोकेशन से पता चला – हत्या के वक्त दोनों के फोन एक ही टावर की रेंज में थे, यानी सतीश घर पर ही था।

पुलिस ने सख्ती से पूछताछ की। सतीश टूट गया, जुर्म कबूल कर लिया। उसने बताया – शादी के बाद प्रियंका उसे उसके माता-पिता से दूर करने लगी थी, पैसे देने से रोकती थी, अपने माता-पिता से रोज बात करती थी लेकिन सतीश को रोकती थी। जमीन खरीदने के बाद भूमि पूजन पर प्रियंका ने सतीश के माता-पिता को घर से बाहर कर दिया। सतीश ने उसी दिन प्रियंका को मारने की ठान ली। तीन महीने तक प्लानिंग की। प्रियंका को गिफ्ट देने के बहाने आंखों पर पट्टी बांधता, हाथ बांधता। 10 अगस्त को रस्सी से गला घोंटा, चाकू से वार किया, सबूत मिटाए और बाहर चला गया।

प्रियंका अब इस दुनिया में नहीं थी, अपना पक्ष नहीं रख सकती थी। लेकिन उसके घर वालों ने अलग कहानी बताई। शादी के दो महीने बाद ही सतीश और उसके परिवार ने प्रियंका को परेशान करना शुरू कर दिया था। वे नहीं चाहते थे कि प्रियंका नौकरी करे। नौकरी छोड़ने से इनकार किया तो मानसिक उत्पीड़न शुरू हो गया। छोटी-छोटी बातों पर ताना, गुस्सा, अकेली प्रियंका सब सहती रही। माता-पिता ने समझाया – एडजस्ट करो। दो साल बाद भी हालात नहीं बदले। प्रियंका टूट गई, माता-पिता ने सलाह दी – अलग रहो। जनवरी 2010 में दोनों अलग रहने लगे, लेकिन प्रियंका के मन में सास-ससुर के लिए कोई हमदर्दी नहीं बची थी।

असल में सतीश दूसरी शादी करना चाहता था, एक घरेलू पत्नी चाहता था। प्रियंका की पढ़ाई, नौकरी, आत्मनिर्भरता – सब उसके खिलाफ था। मानसिक उत्पीड़न, दबाव – सब एक साजिश थी। पुलिस को सतीश के खिलाफ कई सबूत मिले, माता-पिता के खिलाफ नहीं। कोर्ट ने सतीश को उम्रकैद की सजा दी, ₹25,000 जुर्माना लगाया। हाईकोर्ट ने भी सजा बरकरार रखी।

जेल में सतीश कैदियों को पढ़ाता है, कई कैदियों ने डिग्री हासिल की। उसने सजा कम करने की अर्जी लगाई, कोर्ट ने जुर्माना माफ किया लेकिन सजा नहीं।

कहानी का अंत अदालत के फैसले के साथ हुआ, लेकिन कई सवाल आज भी जिंदा हैं।

क्या एक औरत का पढ़ा-लिखा होना, नौकरी करना, अपनी पहचान बनाना गुनाह है? क्या सिर्फ इसलिए उसे मार दिया गया क्योंकि वह किसी के बनाए दायरे में फिट नहीं बैठती थी? प्रियंका अब नहीं है, लेकिन उसकी कहानी सोचने पर मजबूर करती है – चुप रहना हर बार समझदारी नहीं होता। जुल्म चाहे छोटा हो या बड़ा, वक्त रहते आवाज उठाना जरूरी है।

समाप्त