जिस हॉस्पिटल में पति डॉक्टर था, उसी में तलाकशुदा प्रेग्नेंट पत्नी भर्ती थी, फिर पति ने जो किया…
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शुरुआत: स्वाति और अनिकेत की शादी
स्वाति, उत्तर प्रदेश के एक छोटे से कस्बे में रहने वाले धनराज सिंह की इकलौती बेटी थी। धनराज सिंह सरकारी विभाग में एक उच्च पद पर कार्यरत थे। चूंकि स्वाति उनकी इकलौती संतान थी, उन्होंने उसे बड़े लाड़-प्यार और शौक से पाला था। स्वाति के हर ख्वाब को पूरा करना उनके लिए गर्व की बात थी।
स्वाति पढ़ाई में अच्छी थी, लेकिन साथ ही साथ उसे महंगे कपड़े पहनने, बड़े-बड़े रेस्टोरेंट में खाना खाने और दोस्तों के साथ पार्टी करने का भी बहुत शौक था। धनराज जी ने कभी उसे रोका नहीं, क्योंकि वह अपनी बेटी को खुश देखना चाहते थे।
दूसरी तरफ, अनिकेत, एक साधारण किसान परिवार से था। उसके पिता मुकेश कुमार खेतीबाड़ी करते थे, लेकिन अनिकेत बचपन से ही पढ़ाई में होशियार था और उसका सपना था कि वह एक दिन डॉक्टर बने। उसकी मेहनत और लगन ने उसे मेडिकल कॉलेज में दाखिला दिलाया।
जब स्वाति ने ग्रेजुएशन पूरा किया, तो धनराज जी ने सोचा कि अब उसकी शादी करवा दी जाए। उन्होंने अपने पुराने मित्र मुकेश कुमार के बेटे अनिकेत को स्वाति के लिए उपयुक्त जीवनसाथी समझा। अनिकेत एक मेडिकल छात्र था, और धनराज जी को लगा कि वह उनकी बेटी को खुश रखेगा।
शादी और समस्याओं की शुरुआत
स्वाति और अनिकेत की शादी बड़े धूमधाम से हुई। शादी के बाद, स्वाति अपने ससुराल आ गई। लेकिन ससुराल का माहौल स्वाति के लिए बिल्कुल अलग था। अनिकेत का परिवार साधारण जीवन जीता था। वे मिडिल क्लास मानसिकता वाले लोग थे, जो फिजूलखर्ची को पसंद नहीं करते थे।
शादी के कुछ ही दिनों बाद, स्वाति के ऊंचे शौक और ससुराल वालों की साधारण सोच के बीच टकराव शुरू हो गया। स्वाति को महंगे कपड़े पहनने, दोस्तों के साथ घूमने और पार्टी करने की आदत थी। लेकिन ससुराल वालों को यह सब पसंद नहीं था।
अनिकेत, जो उस समय मेडिकल की पढ़ाई कर रहा था, अक्सर स्वाति को समझाने की कोशिश करता था। वह कहता, “स्वाति, मम्मी-पापा को तुम्हारा यह रहन-सहन पसंद नहीं आता। तुम थोड़ी जिम्मेदारी से रहो।”
लेकिन स्वाति को यह बातें सुनना पसंद नहीं था। वह उल्टा अनिकेत से कहती, “मैं ऐसे ही रहूंगी। अगर तुम्हें यह सब पसंद नहीं है, तो मुझे मायके भेज दो।”
गलतफहमियां और तलाक
धीरे-धीरे, स्वाति और अनिकेत के बीच झगड़े बढ़ने लगे। अनिकेत की पढ़ाई और करियर पर इसका असर पड़ने लगा। वह दिन-रात मेहनत करता, लेकिन स्वाति को लगता कि वह उसकी इच्छाओं को नजरअंदाज कर रहा है।
एक दिन, स्वाति ने अनिकेत से कहा, “तुम्हारे पास मुझे खुश रखने का समय नहीं है। तुम्हें मेरी परवाह नहीं है।”
अनिकेत ने जवाब दिया, “स्वाति, मेरी पढ़ाई पूरी होने दो। उसके बाद मैं तुम्हारे हर ख्वाब को पूरा करूंगा।”
लेकिन स्वाति ने यह बात मानने से इनकार कर दिया।
कुछ महीनों बाद, स्वाति ने अपने पिता के घर लौटने का फैसला किया। उसने तलाक के लिए अर्जी दाखिल कर दी। अनिकेत ने उसे रोकने की बहुत कोशिश की, लेकिन स्वाति ने उसकी एक न सुनी।
अंततः, दोनों का तलाक हो गया।
तलाक के बाद की जिंदगी
तलाक के बाद, अनिकेत ने पूरी तरह से अपने करियर पर ध्यान केंद्रित किया। उसने डॉक्टरी की पढ़ाई पूरी की और एक बड़े अस्पताल में नौकरी पा ली। वह अब एक सफल डॉक्टर बन चुका था।
दूसरी तरफ, स्वाति अपने पिता के घर लौट आई। लेकिन तलाक के बाद भी वह अपने ऊंचे शौक पूरे करने से बाज नहीं आई। वह अपने दोस्तों के साथ घूमती, पार्टी करती, और अपने पुराने जीवन को जीने की कोशिश करती।
समय बीतता गया, और स्वाति को पता चला कि वह अनिकेत के बच्चे की मां बनने वाली है। यह खबर सुनकर वह घबरा गई। उसके दोस्तों ने धीरे-धीरे उससे दूरी बनानी शुरू कर दी। अब वह अकेली पड़ गई थी।
डिलीवरी का समय और अस्पताल में मुलाकात
जब स्वाति का डिलीवरी का समय आया, तो उसे बहुत दर्द होने लगा। उसके पिता ने उसे तुरंत एंबुलेंस बुलाकर अस्पताल में भर्ती करवाया।
संयोग से, वह अस्पताल वही था, जहां अनिकेत डॉक्टर था। जब अनिकेत ने स्वाति को देखा, तो वह चौंक गया। उसे समझ नहीं आया कि वह क्या करे। लेकिन जब उसने देखा कि स्वाति को बहुत दर्द हो रहा है और उसकी हालत गंभीर है, तो उसने तुरंत इलाज शुरू किया।
डॉक्टरों ने बताया कि स्वाति के शरीर में खून की कमी है और डिलीवरी के लिए तुरंत खून चढ़ाना होगा। लेकिन दुर्भाग्य से, उसका ब्लड ग्रुप अस्पताल में उपलब्ध नहीं था।
अनिकेत ने बिना कुछ सोचे-समझे अपना खून देने का फैसला किया। उसने अपने खून से स्वाति की जान बचाई।
पुनर्मिलन
डिलीवरी के बाद, जब स्वाति को होश आया, तो उसने अपने बगल में अपने नवजात बच्चे को देखा। वह बहुत खुश हुई। उसने डॉक्टर से पूछा कि उसकी जान किसने बचाई। जब डॉक्टर ने बताया कि अनिकेत ने अपना खून देकर उसकी जान बचाई है, तो स्वाति की आंखों से आंसू बहने लगे।
अनिकेत को बुलाया गया। जब स्वाति ने उसे देखा, तो वह फूट-फूट कर रोने लगी। उसने कहा, “अनिकेत, मुझे माफ कर दो। मैंने तुम्हारे साथ बहुत गलत किया।”
अनिकेत ने कहा, “स्वाति, मैं तुम्हें माफ कर चुका हूं। लेकिन अब हमारे बीच कुछ भी नहीं बचा है।”
स्वाति ने हाथ जोड़कर कहा, “मैंने अपनी गलतियों का एहसास कर लिया है। मुझे एक और मौका दो। मैं अपने बच्चे के साथ कहां जाऊंगी?”
अनिकेत ने कुछ देर तक सोचा। उसने अपने दिल की सुनी और स्वाति को माफ कर दिया। उसने कहा, “यह बच्चा मेरा भी है। मैं इसे पिता का प्यार और नाम दूंगा।”
नई शुरुआत
स्वाति और अनिकेत ने एक नई शुरुआत की। इस बार, स्वाति ने अपने ऊंचे शौक और आदतों को छोड़ दिया। उसने अपने परिवार को प्राथमिकता दी।
अनिकेत और स्वाति ने मिलकर अपने बच्चे की परवरिश की। उनके रिश्ते में प्यार और समझदारी वापस आ गई।
संदेश
यह कहानी हमें सिखाती है कि रिश्ते प्यार, समझदारी और आपसी तालमेल से चलते हैं। गलतफहमियां और अहंकार रिश्तों को बर्बाद कर सकते हैं। लेकिन अगर हम अपनी गलतियों को सुधारने और दूसरा मौका देने के लिए तैयार हों, तो जिंदगी में सबकुछ ठीक हो सकता है।
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