जूते पोलिश करने वाले बच्चे ने कैसे ठीक कर दिया 100 करोड़ का प्रोजेक्ट.….. जानकर हैरान रहे जाओगे

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जूते पोलिश करने वाले बच्चे ने कैसे ठीक किया 100 करोड़ का प्रोजेक्ट

भूमिका

कानपुर जिले में एक बड़ी कंपनी थी, जो आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और ऑटोमेशन की अत्याधुनिक मशीनें बनाती थी। यह कंपनी अपने तकनीकी नवाचारों के लिए जानी जाती थी, लेकिन अचानक एक गंभीर समस्या के कारण कंपनी का संचालन ठप हो गया। पिछले 10 दिनों से एक विशाल ऑटोमेशन मशीन खराब हो गई थी, जिससे कंपनी को करोड़ों का नुकसान हो रहा था। इस समस्या को हल करने के लिए दुनिया के सबसे बड़े इंजीनियरों की एक टीम को बुलाया गया, लेकिन कोई भी मशीन को ठीक नहीं कर सका।

कंपनी का संकट

कंपनी के मालिक अर्जुन शांतिनाथ, जो तकनीकी दुनिया के एक बड़े नाम थे, चिंता में थे। उनकी कंपनी का 100 करोड़ का प्रोजेक्ट ठप था। उन्होंने अपनी टीम को आदेश दिया कि वे मशीन की समस्या का समाधान करें, लेकिन सभी प्रयास विफल रहे। इंजीनियरों ने हर संभव प्रयास किया, लेकिन मशीन चालू नहीं हो रही थी। अर्जुन की चिंता बढ़ती जा रही थी क्योंकि अगर अगले सप्ताह भी मशीन बंद रही, तो कंपनी को भारी नुकसान उठाना पड़ेगा।

अंश का परिचय

इसी बीच, कंपनी के गेट के पास एक 15 साल का लड़का अंश बैठा था। वह एक गरीब जूते पोलिश करने वाला बच्चा था। उसके कपड़े फटे हुए थे, लेकिन उसकी आंखों में एक खास चमक थी। वह हर दिन कंपनी के पास आता था और जूते पॉलिश करता था। उसकी नजरें हमेशा कंपनी की मशीनों पर टिकी रहती थीं। अंश ने देखा कि मशीनें बंद हैं और इंजीनियर परेशान हैं। उसने सोचा, “अगर मुझे 5 मिनट भी मिल जाएं, तो मैं इसे ठीक कर सकता हूं।”

अंश की हिम्मत

एक दिन, अंश ने साहस जुटाया और कंपनी के अंदर जाने की कोशिश की। गार्ड ने उसे रोक दिया और कहा, “तू यहां क्या कर रहा है? भाग यहां से!” लेकिन अंश ने हार नहीं मानी। उसने गार्ड से कहा, “सर, मैं मशीन को ठीक कर सकता हूं।” गार्ड और अन्य इंजीनियर उसकी बात सुनकर हंस पड़े। किसी ने उसे पागल कहा, लेकिन अंश ने अपनी बात पर जोर दिया।

अर्जुन का ध्यान

कंपनी के मालिक अर्जुन ने उस बच्चे को देखा और उसकी आंखों में एक अजीब सी चमक देखी। उसने अंश से पूछा, “तुम्हें मशीनों के बारे में क्या पता है?” अंश ने कहा, “सर, मुझे मशीनें पसंद हैं। मैं रात को अपने नाना के गैराज में काम करता हूं।” अर्जुन को उसकी बातों में विश्वास नहीं हुआ, लेकिन उसने उसे अंदर आने दिया।

मशीन का निरीक्षण

अंश मशीन के पास गया और ध्यान से उसकी जांच करने लगा। उसने देखा कि मशीन में कुछ तार ढीले थे और एक बैकअप यूनिट में समस्या थी। उसने इंजीनियरों को बताया कि समस्या यहीं है, लेकिन किसी ने उसकी बात पर ध्यान नहीं दिया। फिर भी, उसने मशीन को ठीक करने का निश्चय किया।

सही समाधान

अंश ने धीरे-धीरे मशीन को ठीक करने के लिए आवश्यक उपकरण निकाले और काम करना शुरू किया। उसने सही तारों को जोड़ना शुरू किया। इंजीनियर और अन्य कर्मचारी उसकी गतिविधियों को ध्यान से देख रहे थे। कुछ ही मिनटों में, अंश ने मशीन को चालू करने का प्रयास किया। सभी की सांसें थम गईं।

मशीन का चालू होना

अंश ने बटन दबाया और मशीन चालू हो गई। सभी लोग दंग रह गए। अर्जुन और इंजीनियरों ने एक-दूसरे को देखा और फिर अंश की ओर मुड़कर कहा, “तुमने यह कैसे किया?” अंश ने मुस्कुराते हुए कहा, “सर, मैं सिर्फ मशीन को समझता था।”

अर्जुन का गर्व

अर्जुन ने अंश को गले लगाया और कहा, “तुमने हमारी कंपनी को बचा लिया। तुम बहुत प्रतिभाशाली हो।” अंश की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। उसने अपनी मेहनत और लगन से साबित कर दिया कि वह किसी भी चुनौती का सामना कर सकता है।

अंश की नई शुरुआत

कंपनी ने अंश को एक इंटर्नशिप का प्रस्ताव दिया। उसने खुशी-खुशी स्वीकार कर लिया। अंश ने अपने नाना को बताया और उसने गर्व से कहा, “देखो, मैं अब मशीनों के साथ काम कर सकता हूं!”

समाज में बदलाव

अंश की कहानी ने पूरे गांव में एक नई उम्मीद जगाई। लोग उसे प्रेरणा मानने लगे। उसने साबित कर दिया कि गरीब होना कोई बाधा नहीं है, बल्कि मेहनत और लगन से हर किसी को सफलता मिल सकती है।

निष्कर्ष

इस घटना ने हमें सिखाया कि हमें कभी भी किसी की क्षमता का मूल्यांकन उसके कपड़ों या आर्थिक स्थिति के आधार पर नहीं करना चाहिए। अंश जैसे बच्चों में अद्भुत प्रतिभा होती है, जो सही अवसर मिलने पर चमक सकती है।

इस प्रकार, एक जूते पोलिश करने वाले बच्चे ने अपनी मेहनत और समझदारी से 100 करोड़ के प्रोजेक्ट को ठीक कर दिया, और यह साबित कर दिया कि असली प्रतिभा कभी भी किसी भी रूप में सामने आ सकती है।

अंतिम शब्द

अंश की कहानी हमें यह सिखाती है कि हमें अपने सपनों का पीछा करना चाहिए, चाहे परिस्थितियाँ कितनी भी कठिन क्यों न हों। अगर हम मेहनत करें और अपने लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित करें, तो हम किसी भी चुनौती को पार कर सकते हैं।

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“बिहार के दबंग नेता का पतन – आ.ईपीएस विक्रम सिंह राठौर की कहानी”

अररिया – जहां .कानून नहीं, नेता का राज था

बिहार का पिछड़ा जिला अररिया, जहां कानून का नहीं बल्कि एक दबंग नेता का राज चलता था।
उस नेता का नाम था बिरजू यादव उर्फ़ राजा भैया
उसका रुतबा ऐसा था कि पुलिस के सिपाही से लेकर बड़े अधिकारी तक उसे सलाम ठोकते थे।
आम जनता उसके खिलाफ बोलने की हिम्मत नहीं करती थी।
नेता जो बोल देता, वही कानून बन जाता।

राजा भैया का एक भाई था – सरजू यादव
वह अपने भाई की दबंगई का फायदा उठाकर खुलेआम बाजार में मनमानी करता था।
कोई उसके खिलाफ उंगली उठाने की हिम्मत नहीं करता था।

 अपराध की हद – लड़की को उठा ले गया

एक दिन सरजू यादव अपने गुंडों के साथ बाजार में गया।
वहां उसे एक लड़की पसंद आ गई।
वह लड़की को जबरदस्ती जीप में बैठाकर जंगल की ओर ले गया।
गांव वाले विरोध करने लगे, लेकिन सरजू ने रिवॉल्वर निकालकर सबको भगा दिया।

गांव वाले मीडिया और पुलिस थाने पहुंचे, लेकिन पुलिस वाले सुनते ही कि वह राजा भैया का भाई है, कोई एक्शन नहीं लेते।
गांव वालों को ही उल्टा डांटकर भगा दिया जाता है।

मीडिया और पब्लिक ने धरना-प्रदर्शन शुरू किया।
डीआईजी साहब तक मामला पहुंचा।
डीआईजी ने दरोगा को आदेश दिया – “जाओ, गिरफ्तार करो।”
पर दरोगा डर के मारे बंगले पर नहीं गया।

 डीआईजी साहब का अपमान

डीआईजी साहब खुद पुलिस फोर्स और दरोगा को लेकर राजा भैया के बंगले पहुंचे।
नेता बिरजू यादव ने डीआईजी साहब को थप्पड़ मार दिया और बोला, “तुम्हारी औकात कैसे हुई मेरे बंगले पर आने की? मेरे खानदान में किसी ने पुलिस थाने में कदम नहीं रखा है, ना आगे रखेगा। भाग जाओ यहां से!”

सरेआम पुलिस वालों के सामने डीआईजी साहब का अपमान हुआ।
पुलिस वाले कुछ नहीं कर पाए।

 कानून का असली रखवाला – आईपीएस विक्रम सिंह राठौर

डीआईजी साहब ने मीटिंग बुलाई।
एक ऑफिसर ने सुझाव दिया – “अगर ईंट का जवाब पत्थर से देना है, तो एक एड़ा किस्म का एसपी चाहिए। मैं जानता हूं एक ऐसा एसपी – विक्रम सिंह राठौर।”

विक्रम सिंह राठौर सस्पेंड चल रहा था।
डीआईजी साहब ने ऊपर तक पैरवी लगाकर उसे ऑन ड्यूटी बुलाया और अररिया में पोस्टिंग करवाई।
विक्रम सिंह ने शर्त रखी, “मेरी टीम भी चाहिए – इंस्पेक्टर अजीत यादव, एसआई दिनेश ठाकुर, लेडी कांस्टेबल सविता और सरिता, कांस्टेबल अजय और विजय।”

 विक्रम सिंह की पहली चाल – गिरफ्तारी का वारंट

पोस्टिंग के बाद विक्रम सिंह राठौर ने सबसे पहला काम किया –
सरजू यादव के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट साइन करवाया।
फिर पूरी टीम के साथ नेता के बंगले पर पहुंचा।

राजा भैया ने सोचा, नया एसपी है, दोस्ती करेगा।
पर विक्रम सिंह ने सरजू यादव को नशे में धुत्त देखकर तुरंत गला पकड़ लिया, पिस्तौल उसकी गर्दन पर लगा दी, और बोला, “अब तेरा पतन शुरू हो गया है। तेरे भाई को ले जा रहा हूं, दम है तो छुड़ा के दिखा।”

सरजू को हथकड़ी लगाकर, पीटते हुए, पूरे गांव में जुलूस निकाला गया।
गांव वाले ताली बजा रहे थे।
राजा भैया ने गुंडों को आदेश दिया – “भाई को छुड़ाओ।”

गुंडे आगे बढ़े, विक्रम सिंह ने तीन-चार फायर किए, कई गुंडों की टांगे टूट गईं।
बाकी गुंडे भाग गए।
सरजू यादव और अन्य गुंडों को लॉकअप में डाल दिया गया।

बेल बॉन्ड का खेल – पुलिस का पलटवार

राजा भैया ने वकील को बुलाया, बेल बॉन्ड लेकर थाने भेजा।
वकील और गुंडे अकड़ते हुए बोले, “फटाफट छोड़ दो।”

विक्रम सिंह ने वकील को जोरदार मुक्का मारा, दांत टूट गए।
बोला, “अदब से बात करो।”

लेडी कांस्टेबल सविता और सरिता ने ड्रामा किया – कपड़े फाड़े, बाल बिखेरे, ‘बचाओ-बचाओ’ चिल्लाया।
विक्रम सिंह ने कहा, “इन गुंडों ने छेड़छाड़ की है।”
फिर सभी की पिटाई हुई, सबको फिर से लॉकअप में डाल दिया गया।

 बेल बॉन्ड बाहर से – पुलिस का नया पैंतरा

राजा भैया ने फिर वकील और गुंडों को भेजा, हिदायत दी – “थाने के अंदर मत जाना, बाहर से ही बेल बॉन्ड देना।”

पुलिस वाले बाहर निकलकर ईंट, पत्थर, डंडा लेकर पथराव करने लगे।
कांच, टेबल, फाइलें तोड़ी।
वकील और गुंडे घबरा गए – “ये पुलिस वाले पागल तो नहीं हो गए?”

विक्रम सिंह बोले, “तुम लोग पागल हो जाओगे। अब तुम पर केस लगेगा – थाने पर हमला, सरकारी संपत्ति का नुकसान।”

फिर सबकी पिटाई हुई, सबको लॉकअप में डाल दिया गया।
लॉकअप खचाखच भर गया।

 नेता का अंत – कानून की जीत

राजा भैया ने राज्य के नेताओं-मंत्रियों को फोन लगाया।
मंत्री ने डीआईजी साहब पर दबाव डाला, “एसपी को कहो, सबको छोड़ दे।”

विक्रम सिंह बोले, “जब तक राजा भैया खुद थाने नहीं आएगा, किसी को नहीं छोड़ूंगा।”

राजा भैया मजबूरी में पूरे लाव-लश्कर के साथ थाने आया।
चिल्लाया, “यह क्या गुंडागर्दी है?”

विक्रम सिंह बोले, “गुंडागर्दी तूने मचाई थी। अब देख, कानून क्या होता है।”

गुंडों का बयान लिया गया, वीडियो रिकॉर्डिंग हुई, सबने कबूल किया कि राजा भैया के कहने पर सब हुआ।
फिर विक्रम सिंह ने राजा भैया के खिलाफ अरेस्ट वारंट लिया और बंगले पर धावा बोला।

 जुलूस और न्याय

राजा भैया और उसके गुंडों को रस्सी में बांधकर, पूरे बाजार में जुलूस निकाला गया।
लोगों ने देखा – जो कभी कानून से ऊपर था, आज कानून के आगे झुका।

कोर्ट में पेशी हुई, इतने गवाह आए कि राजा भैया को विश्वास नहीं हुआ।
सबने डर छोड़कर गवाही दी।

दोनों भाइयों को आजीवन कारावास और गुंडों को 5 से 7 साल की सजा हुई।

सीख और समापन

एक समय था जब पूरा जिला एक नेता के डर से कांपता था।
लेकिन एक ईमानदार, तेजतर्रार आईपीएस अफसर ने कानून की ताकत दिखा दी।
विक्रम सिंह राठौर ने साबित कर दिया – कानून तोड़ने वालों को कानून ही तोड़ता है।
कभी-कभी गुंडों को उनकी ही भाषा में जवाब देना पड़ता है।

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