डिलीवरी बॉय ने अपनी बूढ़ी माँ की मदद अपनी तनख्वाह देकर की, फिर उसके करोड़पति बेटे ने क्या किया…
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अर्जुन की नेकी: एक छोटी सी भलाई की बड़ी ताकत
एक छोटी सी नेकी में कितनी ताकत हो सकती है? क्या किसी अनजान के लिए किया गया एक त्याग आपकी पूरी जिंदगी की दिशा बदल सकता है? यह कहानी है अर्जुन की, एक मामूली डिलीवरी बॉय की, जिसके कंधों पर जिम्मेदारियों का भारी बोझ था और जेब में सपनों को पूरा करने के लिए नाकाफी पैसे। उसने एक बूढ़ी मां के आंसू पोंछने के लिए अपनी महीने भर की कमाई, अपनी बहन के भविष्य की उम्मीद एक पल में कुर्बान कर दी। उसे पता नहीं था कि जिस बूढ़ी मां को वह सड़क पर उजड़ने से बचा रहा है, वह उस विशाल कंपनी के मालिक की अपनी मां है, जिसके पैकेट वह दिन-रात पहुंचाता था। जब सच्चाई सामने आई तो उस अमीर मालिक ने अर्जुन को एक ऐसा इनाम दिया, जिसके बारे में उसने कभी सपने में भी नहीं सोचा था।
दिल्ली की भीड़-भाड़ वाली गली में अर्जुन की दुनिया
दिल्ली, करोड़ों लोगों और उनकी अनगिनत कहानियों का शहर। इसी शहर की एक घुमावदार, भीड़-भाड़ वाली गली में एक पुराने मकान के दो कमरों में अर्जुन की दुनिया बसती थी। 23 साल का अर्जुन, जिसकी आंखों में सपने तो बहुत थे, पर उन्हें पूरा करने के रास्ते बेहद पथरीले थे। कुछ साल पहले उसके पिता का साया सिर से उठ गया था और तब से घर की सारी जिम्मेदारी उसके कंधों पर आ गई थी।
घर में उसकी बूढ़ी मां थीं, जो अक्सर बीमार रहती थीं, और एक छोटी बहन प्रिया थी, जो 12वीं के बाद कॉलेज में दाखिला लेने का सपना देख रही थी। अर्जुन एक बड़ी ऑनलाइन शॉपिंग कंपनी Swift कार्ट में डिलीवरी बॉय का काम करता था। उसकी जिंदगी सुबह 5 बजे शुरू होती और देर रात थके-हारे शरीर के साथ खत्म होती।
दिल्ली की चिलचिलाती धूप, सर्दियों की ठिठुरन और बारिश की बौछारें—सब झेलते हुए वह अपनी पुरानी बाइक पर शहर की सड़कों को नापता रहता। उसका काम था लोगों की खुशियों के डिब्बे उन तक पहुंचाना। पर उसकी अपनी खुशियां जरूरतों के बोझ तले दबी हुई थीं।
महीने की तनख्वाह ₹12,000 थी, जिसमें से किराया, मां की दवाइयां, राशन, पानी और प्रिया की ट्यूशन की फीस निकालकर कुछ बचता नहीं था। कई बार उसे दिन में एक वक्त का खाना छोड़ना पड़ता ताकि मां के लिए फल या प्रिया के लिए किताब आ सके। इन सब मुश्किलों के बावजूद अर्जुन के चेहरे पर कभी शिकन नहीं दिखती थी। उसकी मां ने उसे सिखाया था कि मेहनत और ईमानदारी ही इंसान की सबसे बड़ी पूंजी होती है, और अर्जुन ने इस सीख को अपनी जिंदगी का उसूल बना लिया था।
सपनों की दौड़: प्रिया की फीस और अर्जुन की उम्मीद
उस महीने अर्जुन को अपनी सैलरी का बेसब्री से इंतजार था। प्रिया ने अच्छे नंबरों से 12वीं पास कर ली थी और उसे शहर के एक अच्छे कॉलेज में दाखिला मिल रहा था। दाखिले की आखिरी तारीख बस कुछ ही दिन दूर थी और फीस जमा करने के लिए पूरे ₹10,000 चाहिए थे। अर्जुन ने मन ही मन हिसाब लगा लिया था कि सैलरी आते ही वह सबसे पहले प्रिया की फीस जमा करेगा, चाहे इसके लिए उसे कुछ दिन भूखा ही क्यों न रहना पड़े।
बहन की आंखों में डॉक्टर बनने के सपने की चमक के आगे उसकी अपनी हर तकलीफ छोटी लगती थी। आखिरकार महीने की 7 तारीख को उसकी सैलरी बैंक में आ गई। अर्जुन के चेहरे पर एक सुकून भरी मुस्कान थी। उसने बैंक से ₹10,000 निकाले और उन्हें संभालकर अपनी जेब में रख लिया। आज वह बहुत खुश था। उसने फैसला किया कि घर जाते समय वह मां के लिए जलेबियां और प्रिया के लिए उसकी पसंदीदा किताब लेकर जाएगा।
रास्ते में मिली एक बूढ़ी मां की कहानी
अर्जुन अपना आखिरी पैकेट डिलीवर करने के लिए निकला। पता एक पुरानी मध्यमवर्गीय कॉलोनी का था। उसने अपनी बाइक गली के बाहर खड़ी करके उस पते पर पहुंचा। घर के बाहर कुछ अजीब सा माहौल था। उसने देखा कि एक बूढ़ी अम्मा, जिनकी उम्र लगभग 70 साल होगी, घर के बाहर खड़ी रो रही थीं और उनका सारा सामान फुटपाथ पर बिखरा पड़ा था।
एक कठोर चेहरे वाला आदमी, जो शायद मकान मालिक था, उन पर चिल्ला रहा था, “निकल जाओ मेरे घर से! तीन महीने हो गए, एक पैसा नहीं दिया। मैंने कोई धर्मशाला नहीं खोली है।”
बूढ़ी अम्मा हाथ जोड़कर गिड़गिड़ा रही थीं, “बेटा, बस कुछ दिन की मोहलत दे दो। मेरा बेटा पैसे भेज देगा। मैं तेरा सारा किराया चुका दूंगी। भगवान तेरा भला करेगा।”
मकान मालिक पत्थर दिल था। वह उनका बच्चा खुचा सामान बाहर फेंक रहा था। यह सब देखकर अर्जुन का दिल पसीज गया। उसे उस बूढ़ी अम्मा के चेहरे में अपनी मां की छवि दिखी। एक पल के लिए वह रुक गया।
उसके दिमाग में दो ख्याल आपस में टकराने लगे। एक तरफ उसकी बहन प्रिया का चेहरा था, जिसकी कॉलेज की फीस के ₹10,000 उसकी जेब में थे, उसका भविष्य था। दूसरी तरफ यह अनजान बूढ़ी मां थीं, जिनके आंसू वह देख नहीं पा रहा था। उसका मन कह रहा था, “अर्जुन, तू इसमें मत पड़। यह तेरा मामला नहीं है। तू एक पैकेट देने आया है। देकर चला जा। अगर तूने ये पैसे दे दिए तो प्रिया का क्या होगा? उसका पूरा साल बर्बाद हो जाएगा।”
पर उसका दिल कुछ और ही कह रहा था। उसका जमीर उसे कचोट रहा था। “क्या मैं अपनी आंखों के सामने एक मां को इस तरह सड़क पर उजड़ते हुए देख सकता हूं? क्या मैं चैन से सो पाऊंगा? पढ़ाई तो अगले साल भी हो सकती है। पर किसी की इज्जत एक बार चली गई तो वापस नहीं आती।”
अर्जुन का फैसला: नेकी की मिसाल
यह जंग बस कुछ पलों की थी, पर अर्जुन ने अपनी जिंदगी का सबसे बड़ा फैसला ले लिया था। उसने अपनी आत्मा की आवाज सुनी। वह सीधे मकान मालिक के पास गया और बोला, “साहब, इन्हें परेशान मत कीजिए। इनका कितना किराया बाकी है?”
मकान मालिक ने उसे घूर कर देखा, “तू कौन है रे? बड़ा हमदर्द बन रहा है। पूरे ₹9000 बाकी हैं तीन महीने के। है तेरे पास?”
अर्जुन ने एक पल भी नहीं सोचा। उसने अपनी जेब से ₹10,000 निकाले। ₹9000 मकान मालिक के हाथ पर रख दिए और बाकी के ₹1000 बूढ़ी अम्मा को दे दिए। मकान मालिक और बूढ़ी अम्मा दोनों हैरान होकर उसे देखने लगे। मकान मालिक ने पैसे गिने और चुपचाप वहां से चला गया।
बूढ़ी अम्मा की आंखों से आंसुओं की धारा बह निकली। वह अर्जुन के सिर पर हाथ रखकर बोली, “जीता रह बेटा। भगवान तुझे बहुत बड़ी तरक्की दे। तूने आज मेरी लाज रख ली। तू कौन है बेटा? कहां रहता है?”
अर्जुन मुस्कुराया, “अम्मा जी, बस यह समझ लीजिए कि मैं भी आपका एक बेटा हूं।” यह कहकर उसने वह पैकेट उन्हें दिया जिस पर उनका नाम लिखा था – श्रीमती सावित्री देवी।
पैकेट देकर अर्जुन वहां से मुड़ गया। उसके कदम भारी थे, पर उसका दिल बहुत हल्का था। उसे एक अजीब सा सुकून महसूस हो रहा था। साथ ही एक गहरी चिंता भी थी कि वह घर जाकर मां और प्रिया से क्या कहेगा।
घर की हकीकत और अर्जुन की चिंता
घर पहुंचकर उसने मां और प्रिया को झूठी कहानी सुना दी कि कंपनी में कुछ दिक्कत हो गई है, इसलिए सैलरी कुछ दिन बाद मिलेगी। प्रिया का चेहरा उतर गया। उसकी आंखों में सपनों की चमक धुंधली पड़ गई। मां भी चिंतित हो गईं।
उस रात अर्जुन सो नहीं सका। उसे अपनी बहन का उदास चेहरा और अपनी बेबसी बार-बार याद आ रही थी। पर जब भी वह आंखें बंद करता, उसे सावित्री देवी के दुआ देते हुए हाथ नजर आते और उसका मन शांत हो जाता।
सावित्री देवी की प्रतिक्रिया और राजन मल्होत्रा की हकीकत
उधर उसी कॉलोनी में सावित्री देवी पैकेट खोलकर देख रही थीं। उसमें एक पुरानी किताब थी, जिसे उनके बेटे ने भेजा था। वे अपने बेटे से कुछ नाराज थीं, इसलिए उन्होंने अपनी आर्थिक तंगी के बारे में नहीं बताया था। पर आज एक अनजान लड़के की नेकी ने उनके दिल को पिघला दिया।
उन्होंने सालों बाद अपने बेटे को फोन किया। उनका बेटा कोई मामूली इंसान नहीं था। वह था श्री राजन मल्होत्रा, Swift कार्ट कंपनी का अरबपति संस्थापक और सीईओ। राजन अपनी मां से बेहद प्यार करते थे, पर कुछ साल पहले पारिवारिक विवाद के कारण दोनों दूर हो गए थे। मां अपनी स्वाभिमानी स्वभाव के कारण साधारण जिंदगी जी रही थीं और राजन से कोई मदद नहीं लेती थीं।
राजन को भी नहीं पता था कि उनकी मां इतने बुरे हालात में हैं। वे बस कंपनी के जरिए छोटी-मोटी चीजें भेजकर तसल्ली करते थे कि मां ठीक हैं। जब सावित्री देवी ने रोते हुए उस डिलीवरी बॉय की कहानी सुनाई, तो राजन के पैरों तले जमीन खिसक गई।
उन्हें विश्वास नहीं हुआ कि उनकी मां सड़क पर आने वाली थीं और उन्हें खबर तक नहीं थी। वे खुद पर शर्मिंदा और गुस्से में थे। पर उससे ज्यादा हैरानी उन्हें उस अनजान डिलीवरी बॉय पर हुई। कौन था वह फरिश्ता जिसने अपनी शायद महीने भर की कमाई एक अनजान बूढ़ी औरत के लिए लुटा दी?
राजन ने फौरन उस डिलीवरी बॉय को ट्रैक किया। कुछ ही मिनटों में सारी जानकारी उनकी कंप्यूटर स्क्रीन पर थी। नाम अर्जुन, पता, सैलरी, परिवार की हालत। राजन को समझ आ गया कि अर्जुन ने कितनी बड़ी कुर्बानी दी है।
राजन का बड़ा फैसला और अर्जुन की नई जिंदगी
राजन की आंखों में आंसू आ गए। उन्हें लगा कि आज इस लड़के ने उन्हें इंसानियत का वह पाठ पढ़ा दिया है जो वे बड़े-बड़े बिजनेस स्कूलों में भी नहीं सीख पाए। उन्होंने फैसला किया कि वे इस लड़के की जिंदगी हमेशा के लिए बदल देंगे।
अगली सुबह अर्जुन जब काम पर जाने की तैयारी कर रहा था, तो उसके फोन पर एक अनजान नंबर से कॉल आई। “हेलो, क्या मैं अर्जुन से बात कर रहा हूं? मैं Swift कार्ट के हेड ऑफिस से बोल रहा हूं। आपको सीईओ साहब ने तुरंत ऑफिस बुलाया है।”
अर्जुन घबरा गया। उसे लगा कि जरूर उससे कोई गलती हो गई है। वह डरते-डरते हेड ऑफिस पहुंचा। वह विशाल शीशे की इमारत थी, जहां वह शायद कभी अंदर जाने की सोच भी नहीं सकता था।
उसे सीधा सीईओ के आलीशान ऑफिस में ले जाया गया। ऑफिस किसी महल से कम नहीं था। बड़ी सी मेज के पीछे गंभीर चेहरे वाले शख्स बैठे थे। वह राजन मल्होत्रा थे।
राजन ने उसे बैठने को कहा। अर्जुन का दिल जोर-जोर से धड़क रहा था। राजन ने शांत स्वर में पूछा, “अर्जुन, तुम्हारी इस महीने की सैलरी मिल गई?”
अर्जुन ने डरते हुए सिर झुका लिया, “जी साहब, मिल गई। और आपकी बहन की फीस का क्या हुआ?”
यह सवाल सुनकर अर्जुन की आंखों में आंसू आ गए। वह और झूठ नहीं बोल सका। उसने रोते हुए पूरी कहानी सुनाई।
राजन अपनी कुर्सी से उठे और अर्जुन के कंधे पर हाथ रखा। “मैं सब जानता हूं, अर्जुन। जिस बूढ़ी अम्मा की तुमने मदद की, वह मेरी मां है। तुमने मेरी मां की इज्जत बचाई और मुझे मेरी गलतियों का एहसास कराया। तुमने मुझे एक अच्छा बेटा बनने का मौका दिया। मैं तुम्हारा एहसान कभी नहीं चुका सकता।”
उन्होंने अपनी दराज से लिफाफा निकाला। “इसमें तुम्हारी बहन की पूरी फीस है। आज से उसकी पढ़ाई की पूरी जिम्मेदारी मेरी है। और यह तुम्हारे लिए एक तोहफा।”
राजन ने दूसरा लिफाफा दिया, जिसमें एक नए घर की चाबी और कागजात थे। अर्जुन कांपते हाथों से बोला, “नहीं साहब, मैं यह सब कैसे ले सकता हूं?”
राजन मुस्कुराए, “यह तो कुछ भी नहीं है। असली इनाम तो अब मैं तुम्हें देने जा रहा हूं। एक ऐसा इंसान, जिसके दिल में इतनी इंसानियत और चरित्र में इतनी ईमानदारी हो, उसकी जगह सड़कों पर पैकेट डिलीवर करना नहीं है।”
उन्होंने अपने मैनेजर को बुलाया और कहा, “आज से अर्जुन हमारी कंपनी की CSR विंग Swift कार्ट केयर्स फाउंडेशन का हेड होगा।”
मैनेजर हैरान रह गया, “सर, इसे तो कोई अनुभव नहीं है।”
राजन ने दृढ़ता से कहा, “अनुभव काम करने से आता है, पर ईमानदारी और करुणा जन्म से होती है। इस फाउंडेशन का काम है जरूरतमंदों की मदद करना, और यह काम अर्जुन से बेहतर कोई नहीं समझ सकता। यह मेरी कंपनी का दिल है, और आज से मैं इस दिल की जिम्मेदारी अर्जुन को सौंपता हूं।”
अर्जुन की नई शुरुआत और प्रेरणा
उस दिन अर्जुन की दुनिया हमेशा के लिए बदल गई। वह रो रहा था, पर यह खुशी के आंसू थे। उसने कभी कल्पना भी नहीं की थी कि उसकी एक छोटी सी नेकी उसे इस मुकाम पर पहुंचा देगी।
अर्जुन ने अपनी नई जिम्मेदारी पूरी लगन और ईमानदारी से निभाई। उसने हजारों जरूरतमंद बच्चों की पढ़ाई, गरीबों के इलाज और बेसहारा लोगों की मदद के लिए काम किया। उसकी बहन एक बड़ी डॉक्टर बनी और उसकी मां को हर सुख मिला, जिसकी वह हकदार थी।
राजन मल्होत्रा और उनकी मां भी पहले से ज्यादा खुश थे, क्योंकि अर्जुन ने उनके परिवार को फिर से जोड़ दिया था।
कहानी का संदेश
दोस्तों, अर्जुन की यह कहानी हमें सिखाती है कि जब आप बिना किसी स्वार्थ के किसी की मदद करते हैं, तो पूरी कायनात आपकी मदद करने में जुट जाती है। आपकी नेकी कभी खाली नहीं जाती। वह एक दिन आपकी किस्मत को ऐसे शिखर पर पहुंचाती है, जहां दुनिया आपको सलाम करती है।
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