डॉक्टर बहू ने सास को अनपढ़ कहा… पर सास की असली जानकर पैर पकड़ ली फ़िर जो हुआ
जयपुर के एक शांत और सुंदर इलाके में सुनीता वर्मा का घर था। यह घर हर खुशी और उल्लास से भरा रहता था, खासकर उस दिन जब उनका इकलौता बेटा रोहित अपनी प्यारी सिया से शादी कर रहा था। पूरा परिवार, रिश्तेदार और मेहमान इस खुशी के मौके पर जुटे थे। घर में डीजे की धुन पर सभी थिरक रहे थे, और हर चेहरे पर मुस्कान थी। सुनीता जी, जो अपने बेटे के लिए सब कुछ थीं, आज अपने बेटे की शादी देखकर गर्व महसूस कर रही थीं।
रोहित एक पढ़ा-लिखा और समझदार युवक था, जिसने अपने माता-पिता की उम्मीदों पर खरा उतरते हुए अपने करियर में सफलता पाई थी। सिया, उसकी दुल्हन, एक होनहार डॉक्टर थी, जिसने अपने माता-पिता के सपनों को साकार किया था। उसके माता-पिता ने उसकी पढ़ाई में कोई कसर नहीं छोड़ी थी, और वह एक नामी अस्पताल में ऊंचा पद हासिल कर चुकी थी। लेकिन इस सफलता के साथ-साथ सिया के दिल में एक घमंड भी पनप चुका था। वह अपने ज्ञान, डिग्री और हैसियत पर बहुत गर्व करती थी और अक्सर दूसरों को नीचा दिखाने में लगी रहती थी।
शादी के अगले दिन, घर में नई बहू की मुंह दिखाई की रस्म थी। सुनीता जी ने अपनी बेटी नेहा को बुलाकर कहा, “बिटिया, जाओ अपनी भाभी को बोलो कि मेहमान हॉल में इकट्ठा हो गए हैं। उन्हें अच्छे से सजधज कर आने को कहो।” नेहा उत्साह से सिया के कमरे की ओर बढ़ी, लेकिन तभी सिया तेज कदमों से बाहर निकली। वह जींस और टॉप में थी, जबकि मेहमानों की उम्मीद थी कि वह पारंपरिक साड़ी और गहनों में होगी। मेहमान आपस में खुसुर-फुसुर करने लगे, और सुनीता जी ने धीरे से कहा, “बेटा, जाओ साड़ी पहन कर आओ। मेहमान तुम्हारी मुंह दिखाई के लिए आए हैं।”
सिया ने तीखे लहजे में जवाब दिया, “मां जी, मुझे क्या समझाने की कोशिश कर रही हैं? मैं पढ़ी-लिखी हूं, कोई आपकी जैसी गमवार नहीं कि साड़ी में लिपटी रहूं। इतनी गर्मी में पाँच मीटर की साड़ी मैं नहीं लपेट सकती। वैसे भी सुना है आप किसी छोटे से गांव की हैं, तभी आपकी सोच इतनी पुरानी है। हम मॉडल लोग जींस और टॉप पहनते हैं।” सुनीता जी का चेहरा लाल हो गया, लेकिन वह चुप रही। मेहमानों के सामने उसकी बहू ने उसकी ऐसी बेइज्जती की थी, जो उसने कभी सोचा भी नहीं था।
सुनीता जी ने मेहमानों की ओर देखा और हल्की मुस्कान के साथ कहा, “अरे गर्मी बहुत है ना, इसलिए बहू ने कपड़े बदल लिए। चलो कोई बात नहीं, रस्म ऐसे ही कर लेते हैं।” उनका दिल टूट रहा था, लेकिन उन्होंने घर की इज्जत बचाने के लिए अपनी भावनाओं को दबा लिया।

अगले दिन सुबह, पहली रसोई की रस्म थी। नेहा उत्साहित होकर सिया के कमरे में गई और मुस्कुराते हुए बोली, “भाभी, मां ने आपको किचन में बुलाया है। आज आपकी पहली रसोई की रस्म है। और हां, रस्म के बाद मेरे लिए गरमागरम पकोड़े और चाय बना देना। मेरी सहेलियां भी आएंगी, उन्हें भी आपके हाथ का खाना खिलाने का मन है।” नेहा की मासूम बात सुनकर सिया भड़क उठी। उसने सख्त लहजे में कहा, “ननद जी, जिसे चाय-पकोड़े खाने हैं, वह अपने हाथ-पैर चलाएं और बनाएं। मैं तुम्हारे घर शादी करके आई हूं, कोई नौकरानी नहीं बनी। समझी? मेरे सामने आर्डर देने की हिम्मत मत करना। यह मत सोचो कि भाभी आई है तो घर में रेस्टोरेंट खुल गया। मैं सिर्फ रस्म निभाने के लिए किचन में जाऊंगी। वैसे भी मैं तुमसे कहीं ज्यादा पढ़ी-लिखी हूं। मैंने डॉक्टर की डिग्री ली है। तुमने मुश्किल से ग्रेजुएशन किया होगा, वो भी शायद नकली डिग्री लेकर। मैं हॉस्पिटल में काम करती हूं, तुम्हारी तरह बेकार नहीं। अगर तुम्हें कोई छोटी-मोटी नौकरी भी मिल जाए तो ₹4000 से ज्यादा नहीं कमा पाओगी। यह घर तो मेरे और रोहित के पैसों से ही चलेगा।”
नेहा के दिल में सिया की बातें तीर की तरह चुभ गईं। उसकी आंखें छलक आईं, लेकिन वह चुप रही। वह नहीं चाहती थी कि घर का माहौल खराब हो। वह आंसुओं को छुपाते हुए अपने कमरे में चली गई। वहीं, सिया रसोई में पहुंची। सुनीता जी ने पहले से ही खीर बनाकर रखी थी। सिया ने बस कड़छी से खीर को हिलाया, थोड़ी चीनी और मेवे डाले और रस्म पूरी कर दी। जब वह मेहमानों को खीर परोसने गई तो उसने फिर सबके सामने चिल्लाकर कहा, “मां जी, मैं आज के जमाने की मॉडल लड़की हूं।”
रस्म के दौरान बड़ी मामी ने सिया को चांदी की अंगूठी दी। सिया ने मुंह बनाते हुए कहा, “मामी जी, हमारे यहां तो सिर्फ गोल्ड और डायमंड पहना जाता है। चांदी की अंगूठी तो नौकरानियां पहनती हैं।” बुआ जी ने उसे ₹1000 का नोट दिया तो उसने ताना मारा, “बुआ जी, ₹1000 में क्या होगा? हमारे यहां तो नौकरों को भी इतना नहीं दिया जाता। खैर, कोई बात नहीं। मेरे पापा ने सबके लिए लिफाफे दिए हैं।” वह कमरे से लिफाफे लाई और मेहमानों को बांटने लगी। “यह लीजिए, बुआ जी, ₹1100, और यह मामी जी, आपके लिए। हमारा रुतबा ही कुछ और है। हम छोटे-मोटे जॉब नहीं करते, बड़ी कंपनियों और हॉस्पिटल्स में काम करते हैं।”
सुनीता जी ने फिर समझाया, “बेटा, शगुन के लिफाफे तो ठीक हैं, लेकिन बड़ों के पैर छूकर आशीर्वाद भी ले लो।” लेकिन सिया फिर भड़क गई, “मां जी, आपने मुझे कोई नौकरानी समझ रखा है? इतने लोगों के पैर छूने से मेरी कमर टूट जाएगी। मैं कोई पुराने जमाने की बहू नहीं। मैंने डॉक्टर की डिग्री ली है, मेरा पैकेज तो आपको पता ही होगा। मुझसे यह उम्मीद मत रखना कि मैं आपके रिश्तेदारों के पैर दबाऊंगी।”

मेहमानों में खुसुर-फुसुर तेज हो गई। कोई बोल रहा था, “सुनीता की किस्मत ही खराब है जो ऐसी बहू मिली।” सुनीता जी की आंखें नम थीं, लेकिन वह फिर भी चुप रही।
एक दिन सिया का ममेरा भाई पवन विदेश से आया और उससे मिलने की बात की। सिया खुशी से झूम उठी और कहा, “भाई, शाम को 5 बजे किसी अच्छे रेस्टोरेंट में मिलते हैं। रोहित भी साथ आएगा।” लेकिन पवन सरप्राइज देने के लिए दो घंटे पहले ही ससुराल पहुंच गया। डोरबिल बजी। नेहा ने दरवाजा खोला। सामने एक स्मार्ट सूट-बूट में सजा शख्स खड़ा था। “जी, आप कौन?” नेहा ने पूछा। “मैं पवन, सिया का ममेरा भाई, दुबई से आया हूं।” नेहा ने उसे अंदर बुलाया।
तभी सुनीता जी किचन से बाहर आईं। “कौन है बिटिया?” “मां, यह भाभी के भाई हैं।” पवन ने सुनीता जी को देखा और उनकी आंखें चमक उठीं। वह दौड़कर उनके पैर छूने लगा। “मैम, मैं आपको कितने सालों से ढूंढ रहा था। क्या आप यहां सुनीता जी हैं?” सुनीता जी हैरान थीं। “बेटा, तुम कौन हो?” पवन ने कहा, “मैम, मैं पवन कुमार, दिल्ली यूनिवर्सिटी का आपका स्टूडेंट। आपको याद है? मेरे पास फीस भरने के पैसे नहीं थे। अगर आपने मेरी फीस नहीं भरी होती, किताबें नहीं दिलाई होती, मुझे फ्री में क्लासेस नहीं पढ़ाई होती, तो मैं आज कुछ भी नहीं होता। आज मैं जो कुछ भी हूं, आपकी वजह से हूं।”
धीरे-धीरे सुनीता जी को याद आने लगा। उनकी आंखें नम हो गईं। तभी सिया घर लौटी। उसने देखा कि उसका भाई पवन उसकी सास के पैर छू रहा है और उन्हें ‘मैम’ कह रहा है। सिया को यकीन नहीं हुआ। “पवन, तुम क्या कह रहे हो? मेरी सास तो अनपढ़ है। यह कोई प्रोफेसर नहीं हो सकती।” पवन ने गंभीरता से कहा, “गरिमा, तुम गलत हो। यह सुनीता वर्मा हैं, दिल्ली यूनिवर्सिटी की प्रोफेसर। इन्होंने मुझे पढ़ाया, मेरी जिंदगी बनाई।”
सिया का दिल धड़कने लगा। वह दौड़कर सुनीता जी के कमरे में गई और उनकी अलमारी खोली। वहां उसे ढेर सारी डिग्रियां, सर्टिफिकेट्स और अवार्ड्स मिले। उसकी आंखें चौंधिया गईं। वह रोते हुए बोली, “मां जी, अगर आप इतनी पढ़ी-लिखी थीं तो मुझे क्यों नहीं बताया? मैं आपको अनपढ़ समझकर इतना कुछ कहती रही।”
सुनीता जी शांत स्वर में बोलीं, “बेटा, मैंने कई बार कोशिश की, लेकिन तुमने मुझे बोलने का मौका ही नहीं दिया। मैं वही सुनीता वर्मा हूं, जो दिल्ली यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर थी। लेकिन मेरे लिए मेरे बच्चों की परवरिश और परिवार की जिम्मेदारी सबसे बड़ी थी। जब रोहित के पिता का देहांत हुआ, तब मुझे अकेले बच्चों को संभालना पड़ा। फिर जब मेरे ससुरजी बीमार हुए, तो मुझे जयपुर आना पड़ा। उनकी सेवा के लिए मैंने नौकरी छोड़ दी। मैंने ट्यूशन पढ़ाए, बच्चों को संभाला और हर मुश्किल का सामना किया।”
इसी वक्त दरवाजे की घंटी बजी। कुछ स्टूडेंट्स सुनीता जी को टीचर्स डे की बधाई देने आए थे। वे मिठाइयां, बुके और साड़ियां लेकर आए थे। एक स्टूडेंट बोला, “मैम, आपके बिना मैं गोल्ड मेडल नहीं जीत पाता।”
सिया की आंखें खुली की खुली रह गईं। जिस सास को वह अनपढ़ समझती थी, उन्हें लोग इतना सम्मान दे रहे थे। तभी पवन ने सुनीता जी से कहा, “मैम, मैं आपकी बेटी नेहा का हाथ मांगना चाहता हूं। मुझे विश्वास है कि आपने उसे अच्छे संस्कार दिए होंगे।” सुनीता जी ने खुशी से हां कर दी।
सिया का सिर झुक गया। वह रोते हुए सुनीता जी के पास गई और बोली, “मां जी, मुझे माफ कर दीजिए। मैंने आपको इतना बुरा-भला कहा।” सुनीता जी ने उसके आंसुओं को पोंछते हुए कहा, “बेटा, कभी किसी को कम मत समझना। हर इंसान की अपनी काबिलियत होती है। तुमने जो किया, वह तुम्हारी नादानी थी। अब इसे भूल जाओ और जाओ मेरे स्टूडेंट्स के लिए चाय और पकोड़े बनाओ। यही तुम्हारी सजा है।”

सिया मुस्कुराते हुए किचन में चली गई। उसने मन ही मन ठान लिया कि वह अब कभी अपनी नौकरी या डिग्री का घमंड नहीं करेगी और घर के काम में सुनीता जी की मदद करेगी।
यह कहानी हमें यह सिखाती है कि हमें कभी किसी को कम नहीं आंकना चाहिए। पढ़ाई-लिखाई, नौकरी या पैसा कमाना हमें दूसरों से ऊपर नहीं बनाता। बड़े बुजुर्गों का सम्मान करना, घर के काम में हाथ बटाना और अपने अहंकार को छोड़ना ही हमें सच्चा इंसान बनाता है। सुनीता जी ने अपनी काबिलियत को कभी घमंड नहीं बनने दिया, बल्कि अपने बच्चों को अच्छे संस्कार दिए, जो अंततः नेहा को एक अच्छा जीवन साथी दिलाने में मददगार साबित हुए।
क्या आपको लगता है कि सुनीता जी ने सिया को माफ कर सही किया? अपनी राय जरूर बताएं। अगर आपको यह कहानी पसंद आई हो, तो इसे अपने दोस्तों के साथ शेयर करें।
.
.
News
Footpath का भिखारी निकला करोड़पति CEO
Footpath का भिखारी निकला करोड़पति CEO . . मीरा की दया: एक अनोखी कहानी दिल्ली का पुराना बाजार हमेशा की…
जब इंस्पेक्टर ने खुले आम ऑटो वाले से मांगी रिश्वत | IPS मैडम ने उतरवादी वर्दी
जब इंस्पेक्टर ने खुले आम ऑटो वाले से मांगी रिश्वत | IPS मैडम ने उतरवादी वर्दी . . नंदिता कुमारी:…
बेटे ने विदेश जाने का बहाना देकर माँ को वृद्धाश्रम भेजा एक दिन वृद्धाश्रम का मालिक घर आया तब जो हुआ!
बेटे ने विदेश जाने का बहाना देकर माँ को वृद्धाश्रम भेजा एक दिन वृद्धाश्रम का मालिक घर आया तब जो…
दिवाली की छुट्टी पर घर जा रही थी गाँव की लडकी… जल्दबाजी में गलत ट्रेन में बैठ गई, फिर जो हुआ!
दिवाली की छुट्टी पर घर जा रही थी गाँव की लडकी… जल्दबाजी में गलत ट्रेन में बैठ गई, फिर जो…
नौकरानी बनकर गई असली मालकिन, मैनेजर ने थप्पड़ मार दिया.. फिर जो हुआ, पूरा ऑफिस हिल गया!
नौकरानी बनकर गई असली मालकिन, मैनेजर ने थप्पड़ मार दिया.. फिर जो हुआ, पूरा ऑफिस हिल गया! . . आरुष्य…
जब 9 इंजीनियर हार मान गए… लेकिन एक चाय बेचने वाली लड़की ने इंजन चालू कर दिया! 😱🔥
जब 9 इंजीनियर हार मान गए… लेकिन एक चाय बेचने वाली लड़की ने इंजन चालू कर दिया! 😱🔥 . ….
End of content
No more pages to load






