तलाक के 10 साल बाद पत्नी सड़क किनारे पानी बेच रही थी उसके बाद पति ने जो किया..
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अरविंद और सिया की कहानी एक छोटे से कस्बे से शुरू हुई, जहां अरविंद एक मेहनती और पढ़ाकू लड़का था। उसने शहर जाकर नौकरी की और बैंक में अच्छी पोस्ट पर पहुंचा। वहीं उसकी मुलाकात सिया से हुई, जो कॉलेज की छात्रा थी। सिया की सादगी और मासूमियत ने अरविंद के दिल को पहली नजर में छू लिया। दोनों की मुलाकातें बढ़ीं, और जल्द ही वे एक-दूसरे के हो गए। शादी के बाद उनका जीवन खुशहाल था। सुबह से शाम तक वे साथ रहते, एक-दूसरे की खुशी में अपनी खुशी देखते।
लेकिन वक्त के साथ सब बदल गया। अरविंद को शहर की बड़ी शाखा में ट्रांसफर मिला, सैलरी दुगनी हुई, नया घर और गाड़ी मिली। वह अब अपने दर्जे और शान-शौकत को लेकर सजग रहने लगा। उसे सिया की सादगी में कमी नजर आने लगी। उसने सिया से कहा कि वह मॉडर्न बने, कपड़े बदले, लोगों के बीच खुलकर बात करे। सिया ने उसकी हर बात मुस्कुराकर सुनी और खुद को सुधारने की कोशिश की, लेकिन उसके दिल में दर्द बढ़ता गया। अरविंद का ऑफिस बड़ा था, वहां नए लोग थे, देर रात तक मीटिंग्स, बिजनेस पार्टियां। सिया इंतजार करती, खाना ठंडा हो जाता, अरविंद थका हुआ आता।
धीरे-धीरे उनके बीच खामोशी बढ़ी, प्यार कम होता गया। एक दिन सिया ने पूछा, क्या वह अब भी उससे प्यार करता है? अरविंद ने गुस्से में कहा, अगर नहीं करता तो साथ क्यों रहता? उस लहजे ने सिया का दिल तोड़ दिया। बातें झगड़ों में बदल गईं, छोटी-छोटी बातों पर तकरार होने लगी। अरविंद ने कहा कि उनकी सोच कभी मेल नहीं खा सकती, और रहना मुश्किल हो गया है। सिया ने आंसू पोछे और चुपचाप मायके चली गई।

अरविंद को लगा कि अब वह आजाद है, लेकिन उसे अकेलापन सताने लगा। घर की दीवारें खाली लगने लगीं। वह सिया की यादों में खोया रहता। कई बार फोन किया, पर खुद को रोक लिया। उसने रिश्ता तोड़ा था, अब जोड़ने का हक नहीं। साल बीते, अरविंद शहर का नामी आदमी बन गया, लेकिन अंदर खालीपन था। सिया ने भी जिंदगी थाम ली, टिफिन सर्विस शुरू की, काम में लगी रही। उसकी आंखों में उम्मीद की जगह मजबूती थी।
एक गर्म दोपहर को अरविंद की कार उसी कस्बे की सड़क से गुजरी। उसने सड़क किनारे पानी बेचती सिया को देखा। बाल सफेद हो चुके थे, चेहरा थका हुआ। अरविंद का दिल बैठ गया। वह गाड़ी रोकना चाहता था, पर ट्रैफिक बढ़ गया। वह पीछे मुड़ा, सिया वहीं थी। उस रात वह सो नहीं पाया, सिया की आंखें याद आईं, जो पहले प्यार से भरी थीं, अब थकान से। उसने खुद से कहा, “क्यों छोड़ा मैंने उसे? सिर्फ अहंकार के लिए।”
अगले दिन वह सड़क पर गया, पर ठेला खाली था। दुकानदार ने बताया कि सिया बीमार है। अरविंद ने पता लगाया कि वह शहर के पुराने मोहल्ले में मां के साथ रहती है। वहां पहुंचा तो देखा सिया बीमार पड़ी थी, मां पास थी। उसने मां से कहा, “मैं बहुत देर से आया हूं।” सिया ने मुस्कुराते हुए कहा, “वक्त तो वही है, बस हालात बदल गए हैं।” अरविंद की आंखों से आंसू गिर पड़े। उसने कहा, “मैं तुम्हारे लिए कुछ करना चाहता हूं।” सिया ने कहा, “जो खोया वह वापस नहीं आ सकता, पर जो बचा है, वह काफी है।”
अरविंद बाहर निकला, मन भारी था। उसने ठाना कि अब वह चुप नहीं रहेगा, सिया को फिर से मुस्कुराते देखना चाहता है। उसने ठेले के पास साफ-सफाई करवाई, पेड़ लगवाए, ताकि धूप कम पड़े। सिया हैरान थी कि यह सब कौन कर रहा है, पर अंदर से उसे पता था कि कोई है जो उसकी मदद कर रहा है।
धीरे-धीरे सिया का स्वास्थ्य सुधरने लगा। अरविंद ने रोज दवाइयां और खाना भेजना शुरू किया। एक दिन बारिश में अरविंद छाता लेकर आया, सिया के ऊपर रखा और बोला, “तुम अब भी मजबूत हो सिया, मैं चाहता हूं कि तुम सुरक्षित रहो।” सिया ने मुस्कुराकर सिर हिलाया। अरविंद अब सिर्फ पछतावा नहीं करता था, कर्म कर रहा था।
सिया ने महसूस किया कि उसकी जिंदगी आसान हो रही है, वह अकेली नहीं है। अरविंद ने खुद को इस कार्य में समर्पित कर दिया। उसकी मां खुश थी, सिया की जिंदगी में खुशहाली लौट रही थी। एक शाम अरविंद ठेले के पास आया, बोला, “अब तुम सुरक्षित हो, मैं चाहता हूं कि तुम खुश रहो।” सिया ने मुस्कुराते हुए कहा, “अब लगता है सब ठीक होगा।”

दोनों की आंखों में पुरानी यादें नहीं, नया विश्वास था। अरविंद ने कहा, “अब मैं हमेशा तुम्हारे साथ रहूंगा, बिना शर्त मदद के लिए।” सिया ने हंसते हुए कहा, “अब मैं सुरक्षित हूं, अपनी दुनिया में जी रही हूं।” सूरज ढल रहा था, सड़क पर हलचल थी। दोनों के बीच जिम्मेदारी और विश्वास ने रिश्ते को फिर से जोड़ दिया था।
इस तरह, दस साल की दूरी, दर्द और पछतावे के बाद, अरविंद और सिया की जिंदगी में नई सुबह आई। उन्होंने जाना कि जीवन केवल दर्द और संघर्ष नहीं, बल्कि मदद और प्रायश्चित से भी बना है। उन्होंने समझा कि सच्चा प्रेम कर्म से साबित होता है, न कि केवल पछतावे से। अरविंद ने तय किया कि वह हर दिन सिया की मदद करेगा और उसे कभी अकेला नहीं देखेगा। सिया ने अपने भीतर बदलाव महसूस किया, उम्मीद की किरण को अपनाया।
यह कहानी हमें सिखाती है कि रिश्तों में टूटन के बाद भी, अगर हम सच्चे मन से प्रयास करें तो फिर से जुड़ाव संभव है। पछतावा अगर कर्म में बदले तो जीवन में नई खुशियां लौट आती हैं। अरविंद और सिया की कहानी यही संदेश देती है कि प्यार, माफी और जिम्मेदारी से हम किसी भी टूटे हुए रिश्ते को फिर से मजबूत बना सकते हैं।
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