तीसरी बार भी बेटी होने पर पत्नी को घर से निकाला… पर किस्मत ने जो खेल दिखाया, पति ने सोचा भी नहीं था…
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मीरा और अरुण की कहानी एक साधारण परिवार की थी, लेकिन इसमें गहरी भावनाएं और संघर्ष छिपे हुए थे। मीरा, एक समर्पित पत्नी और मां, अपने पति अरुण के साथ एक सुखद जीवन जीने की चाह रखती थी। लेकिन अरुण की सोच और उसके विचारों में एक बड़ा फर्क था। वह हमेशा एक बेटे की चाह में था, और जब भी मीरा ने एक बेटी को जन्म दिया, उसकी निराशा और गुस्सा बढ़ता गया।
एक रात, जब मीरा ने तीसरी बार एक बेटी को जन्म दिया, तो अस्पताल का माहौल काफी गंभीर था। मीरा के चेहरे पर खुशी थी, लेकिन अरुण की आंखों में निराशा। नर्स ने कहा, “बधाई हो, सर! बेटी हुई है।” अरुण ने सिर झुका लिया और बुदबुदाया, “तीसरी बार भी।” मीरा ने अपने नवजात को गोद में लिया और कहा, “मेरी बिटिया, तू आई है ना? अब सब ठीक हो जाएगा।” लेकिन अरुण की प्रतिक्रिया ने मीरा को अंदर से तोड़ दिया।
अरुण ने कहा, “तू जानती है मुझे क्या चाहिए था?” मीरा ने आश्चर्य से पूछा, “क्या चाहिए था?” अरुण ने कहा, “बेटा, जो मेरा नाम आगे बढ़ाए।” मीरा ने कहा, “भगवान ने जो दिया है वही हमारा है।” लेकिन अरुण ने हंसते हुए कहा, “प्यारी मीरा, अब तक तीन-तीन प्यारी बेटियां हो चुकी हैं। कभी सोचा है उनका खर्च? स्कूल, कपड़े, शादी?” मीरा की आंखों में आंसू आ गए।
अरुण ने कहा, “मुझे अपनी वंश की रेखा चाहिए।” मीरा ने कहा, “यह मेरी संतान है। तेरे ही खून से जन्मी है।” लेकिन अरुण ने बेरुखी से जवाब दिया, “यह मेरी किस्मत का अभिशाप है।” मीरा ने गहरी सांस ली और कहा, “भगवान कभी मजाक नहीं करता।” लेकिन अरुण ने कहा, “अब यह जिंदगी नहीं चल सकती।” मीरा कांप गई और कहा, “अरुण, ऐसा मत कहो।”

अरुण ने कहा, “मुझे तेरा उपदेश नहीं चाहिए। अब फैसला हो चुका है। या तो बेटा या फिर यह रिश्ता।” मीरा ने कहा, “अगर तुझे लगता है मैं बोझ हूं, तो मैं जा रही हूं।” उसने अपने नवजात बच्चे को गोद में लेकर तीनों बेटियों के साथ सास के पैर छूते हुए कहा, “मां, मुझे आशीर्वाद देना। मैं हारने नहीं जा रही। बस अपनी पहचान खोजने जा रही हूं।”
मीरा घर से बाहर निकल गई। बारिश हो रही थी, लेकिन उसकी चाल में अब पहले से ज्यादा मजबूती थी। वह अपनी बेटियों के साथ मंदिर पहुंची। मंदिर के बरामदे में, उसने आसमान की ओर देखा और कहा, “हे भगवान, अब तू ही इन बच्चियों का सहारा है।”
अगले दिन, मीरा मंदिर में सफाई करने लगी। वह झाड़ू, पोछा, और फूल माला बनाकर श्रद्धा से काम करती थी। जब लोग आरती में हाथ जोड़ते, वह मन ही मन कहती, “भगवान, मुझे बेटियों के लिए रोटी कमाने की ताकत दे देना।” दिन बीतते गए और मीरा ने अपनी बेटियों को सरकारी स्कूल में भर्ती कराया।
जब उसकी बेटियां स्कूल गईं, तो मीरा की आंखों में खुशी के आंसू थे। उसने सोचा, “अरुण, तूने जिन बेटियों को बोझ कहा था, देखना, यही एक दिन तेरी इज्जत का ताज बनेंगी।” लेकिन जिंदगी आसान नहीं थी। मीरा दिन में मंदिर में काम करती, शाम को गांव के घरों में बर्तन मांझती, और रात को दीपक की लौ में बेटियों को पढ़ाती।
जब कभी अनवी भूख से रोती, मीरा अपनी थाली उसे दे देती और खुद मंदिर की सीढ़ियों पर बैठ जाती। लेकिन उसने कभी हार नहीं मानी। हर कठिनाई उसके लिए भगवान का इम्तिहान थी। समय तेजी से बीतता गया। कुछ सालों बाद, दिया अब बड़ी हो चुकी थी।
एक दिन, प्रधानाचार्य ने मीरा को बुलाया और कहा, “आपकी बेटी में बहुत दम है। अगर आप चाहें तो इसे शहर भेज सकते हैं।” मीरा का दिल कांप गया। “बेटी मुझसे दूर कैसे जाएगी?” लेकिन उसने सोचा, “अगर मैं डर गई, तो इनका भविष्य भी डर जाएगा।” उसने बेटी का माथा चूमा और कहा, “उठ जा। तेरे पंखों में मां का आशीर्वाद है।”
अब नैना और अनवी की पढ़ाई की बारी थी। मीरा दिन-रात मेहनत करती। कभी मंदिर के बाहर फूल बेचती, कभी पूजा की थालियां। लोग कहते, “अरे, यह वही औरत है जिसे मर्द ने छोड़ा था।” मीरा मुस्कुराकर जवाब देती, “हां, वही जिसे भगवान ने संभाला।”
धीरे-धीरे उसके हाथों में छाले पड़ गए, चेहरे की चमक कम हो गई, लेकिन दिल की रोशनी और बढ़ती गई। साल दर साल बीतते गए। अब मीरा बूढ़ी लगने लगी थी, लेकिन उसकी बेटियां जवान हो चुकी थीं। दिया अब पुलिस विभाग में अधिकारी बन गई थी।
एक दिन, दिया ने मीरा को फोन किया। “मां, तेरी मेहनत रंग लाई। तेरी बेटी अब अफसर बन गई।” मीरा फूट-फूट कर रो पड़ी। “भगवान, अब मुझे और क्या चाहिए?” नैना अब डॉक्टर बन चुकी थी और अनवी सबसे छोटी अब अध्यापिका थी।
मीरा का जीवन बदल चुका था। वह उसी मंदिर के पास एक सुंदर मकान में रहती थी। मकान नहीं, एक छोटा सा बंगला जिसकी दीवारों पर मेहनत की कहानी लिखी थी। हर सुबह दिया ड्यूटी पर जाती, नैना अस्पताल में और अनवी बच्चों के बीच। मीरा की गोद अब अकेली थी, लेकिन दिल में सैकड़ों दुआएं पलती थीं।
शाम को जब तीनों लौटतीं, तो मीरा दरवाजे पर आरती की थाली लेकर खड़ी होती। “आ गई मेरी लक्ष्मियां!” तीनों हंसतीं और कहतीं, “हां मां, तेरी ही पूजा से तो सब शुरू हुआ था।” मीरा हंसते-हंसते कहती, “अब कोई अरुण अगर कहे कि बेटियां बोझ हैं, तो मैं उसे अपने घर बुलाऊंगी और कहूंगी, ‘यह देख, भगवान के तीन वरदान।’”
अब मीरा का छोटा सा संसार पूरे मोहल्ले के लिए मिसाल बन चुका था। लोग कहते, “जिसे पति ने घर से निकाला था, उसी ने अपने घर की नींव सबसे मजबूत बना दी।” मीरा हर सुबह भगवान के सामने दिया जलाती और आंखें बंद करके कहती, “प्रभु, अब और कुछ नहीं चाहिए। बस मेरी बेटियां हमेशा सच्चे रास्ते पर चलती रहें।”
एक शाम, जब आसमान में हल्का नीला उजाला था, नैना अस्पताल से लौट रही थी। उसने देखा एक दुबला, झुका हुआ आदमी दरवाजे के पास बैठा था। नैना ने ड्राइवर से कहा, “रुको जरा। यह कौन है?” ड्राइवर बोला, “मैडम, रोज आता है, कुछ नहीं मांगता, बस यही बैठा रहता है।” नैना ने कार से उतरकर धीरे-धीरे उस आदमी के पास बढ़ी।
जैसे ही उसने उस आदमी का चेहरा देखा, वह ठिठक गई। वह कोई और नहीं, उसका पिता अरुण था। नैना ने पहचानने में कोई गलती नहीं की। नैना का दिल कांप उठा। वह पीछे हटी और उसकी आंखों से आंसू झरने लगे। वह तुरंत घर पहुंची। मीरा देवी पूजा कर रही थी।
नैना ने रोते हुए कहा, “मां, कोई बाहर बैठा है, शायद पापा।” मीरा ने उसकी आंखों में देखा और भगवान को प्रणाम करते हुए बोली, “अरुण…” कुछ देर बाद बंगले का दरवाजा खुला। मीरा धीरे-धीरे बाहर आई। तीनों बेटियां उसके पीछे थीं।
वही बूढ़ा, झुकी कमर, झुर्रियों से भरा चेहरा और आंखों में शर्म और थकान का समंदर। वह कांपते हुए आंखों में आंसू लिए बोला, “मीरा…” मीरा ठिठक गई। सालों का दर्द उसकी आंखों में फिर से तैर गया, लेकिन चेहरे पर अब भी वही शांति थी।
वह कुछ पल चुप रही, फिर बोली, “किस्मत, तू सच में खेल खेलती है।” अरुण के हंठ कांपे। “मीरा, तू अब भी उतनी ही दयालु लगती है। क्या तू मुझे पहचान गई?” मीरा बोली, “कैसे भूल सकती हूं? वो चेहरा जिसने मेरी दुनिया उजाड़ दी थी।”
अरुण ने सिर झुका लिया। उसकी आंखों से आंसू गिरने लगे। “जब तू गई थी, मैंने समझा था जिंदगी आसान है। फिर मैंने दूसरी शादी कर ली। भगवान ने दो बेटे दिए। मैंने सोचा था अब मेरी वंश रेखा पूरी हो गई।” मीरा बस चुप खड़ी सुनती रही।
अरुण ने कहा, “मैंने सब कुछ उन बेटों के नाम कर दिया। घर, जमीन, बैंक बैलेंस सब। सोचा, बुढ़ापे में वही मेरा सहारा बनेंगे। लेकिन एक दिन उन्होंने ही मुझे घर से निकाल दिया। पत्नी कुछ साल पहले बीमारी में चली गई। अब मैं अकेला रह गया हूं।”
बेघर, बेसहारा, टूटा हुआ मीरा की आंखों से भी आंसू ढुलक पड़े। वह सोच रही थी, जिस आदमी ने बेटी को बोझ कहा था, वह आज खुद भगवान की दया का मोहताज है। अरुण ने कांपते हाथ जोड़े। “मीरा, मुझे माफ कर दे। मैंने तेरे साथ बहुत अन्याय किया। जिसे तू आशीर्वाद कहती थी, उन्हीं बेटियों को मैंने अभिशाप कहा था। अब समझ आया है, बेटे वारिस नहीं होते। सच्चा वारिस तो वही है जो मां-बाप का मान रखे।”
मीरा ने कोई जवाब नहीं दिया। हवा में एक भारी खामोशी थी। तीनों बेटियां पीछे खड़ी थीं। उनकी आंखों में आंसू थे, लेकिन नफरत नहीं। सिर्फ दया थी। दिया आगे बढ़ी, “मां, चाहे जैसा भी हो, आखिर यह हमारे पिता हैं।” मीरा ने सिर झुका लिया। उसका दिल दो हिस्सों में बंट गया था।
एक मां का जो बेटियों का गर्व थी और एक पत्नी का जिसने अपमान सहा था। वह कुछ पल शांत रही। फिर बोली, “भगवान का न्याय कभी अधूरा नहीं होता। लेकिन इंसान का दिल अगर मरे, तो वह जिंदा होकर भी लाश बन जाता है।” अरुण बस रोता रहा।
मीरा ने आसमान की ओर देखा। “हे भगवान, तूने मेरी बेटियों की मेहनत देखी। अब इनकी दया की परीक्षा मत ले।” फिर वह धीरे से बोली, “अरुण, मैं तुझे माफ नहीं कर सकती क्योंकि तूने सिर्फ मुझे नहीं, इन तीन देवियों को ठुकराया था।”
लेकिन तीनों बेटियां आगे आईं। अनवी ने मां का हाथ पकड़कर कहा, “मां, अगर तू हमें भगवान का रूप मानती है, तो हमें भी भगवान की तरह करुणा दिखाने दे।” मीरा ने बेटियों को देखा। उनकी आंखों में करुणा थी, वही सच्चाई जो उसने उन्हें सिखाई थी।
वह कुछ पल तक सोचती रही। फिर धीमी आवाज में बोली, “ठीक है। तेरे पिता हैं। पिता चाहे जैसे हों, पिता रहते हैं। लेकिन जो तूने खोया है, वो वापस नहीं मिलेगा।” वह अरुण की तरफ मुड़ी। “तू इस घर में रह सकता है, मगर रिश्तों की तरह नहीं। बस एक इंसान की तरह।”
अरुण की आंखें भर आईं। “मीरा, तू देवी है।” मीरा ने उसकी बात काट दी। “नहीं, अरुण, मैं देवी नहीं, बस एक मां हूं। जिसने अपने बच्चों से इंसानियत सीखी है।” कुछ दिनों बाद, अरुण बंगले के पीछे वाले हिस्से में रहने लगा। मीरा ने उसे एक कमरा दे दिया था।
वह अब उसी बंगले का माली बन गया। सुबह-सुबह पौधों में पानी डालता और जब बेटियां ऑफिस या हॉस्पिटल जातीं, तो चुपके से दरवाजे के पास खड़ा होकर देखता। वह गर्व जो कभी उसे समझ नहीं आया था, अब हर दिन उसकी आंखों में आंसू बनकर उतरता।
मीरा रोज शाम को मंदिर की घंटी बजाती और भगवान से कहती, “जिसे मेरे पति ने बोझ समझा था, वही अब मेरी ताकत है और जिसने मुझे ठुकराया था, वो आज तेरे न्याय का उदाहरण है।” अरुण अब बोलता कम था, लेकिन हर दिन बगीचे में बैठकर बच्चियों को आते-जाते देखता और मन ही मन कहता, “भगवान, तूने जो सजा दी, वह दरअसल सबसे बड़ा वरदान थी। क्योंकि बेटियां ही असली दौलत हैं।”
एक दिन मीरा ने देखा, अरुण चुपचाप मंदिर की घंटी के पास बैठा है। वह बोली, “अब भी पछता रहा है?” अरुण ने आंसू भरी आंखों से कहा, “अब नहीं, मीरा। अब तो तुझे धन्यवाद दे रहा हूं। क्योंकि अगर तू उस दिन घर से ना निकलती, तो मुझे यह सच्चाई कभी समझ में नहीं आती।”
मीरा ने शांत स्वर में कहा, “देर तो हुई, अरुण, पर चलो कम से कम तूने सच तो देखा।” मीरा कुछ पल उसे देखती रही और सोचती रही। कभी यही आदमी उसकी आंखों में आंसू भर देता था, आज वही उसके सामने टूटा हुआ पश्चाताप में डूबा बैठा था। लेकिन अब हवा में एक सुकून था।
अरुण की आंखों में पछतावे की चमक थी और मीरा की आंखों में क्षमा की। दिन इसी तरह बीतते रहे, लेकिन एक शाम मीरा ने देखा, अरुण पेड़ के नीचे बैठा है। हाथ में पानी का लोटा, सामने भगवान की छोटी मूर्ति रखी हुई। वह कुछ बुदबुदा रहा था, शायद अपनी जिंदगी का हिसाब।
मीरा धीरे से पास गई। अरुण बोला, “मीरा, अब मैं थक गया हूं। सारी उम्र जिस बेटे का सहारा ढूंढता रहा, वही मुझे सड़कों पर छोड़ गया और जिन बेटियों को मैंने बोझ कहा, उन्हीं के आंगन में आज मुझे छांव मिली है।” मीरा की आंखें भर आईं।
उसने कहा, “तूने तब जो किया, वो बहुत गलत था, अरुण। लेकिन भगवान ने तुझे वही सिखाया जो तूने कभी समझा नहीं था। बेटी सिर्फ जिम्मेदारी नहीं, जीवन की सबसे बड़ी दौलत होती है।” अरुण ने कांपते हाथों से सिर झुका लिया।
“मीरा, अगर मैं उस दिन तुम्हें निकालता, तो शायद आज हमारी दुनिया कुछ और होती। पर शायद भगवान को यही मंजूर था ताकि तू और तेरी बेटियां उस आसमान तक पहुंच सको, जहां तक मेरी सोच कभी नहीं पहुंच पाई।” मीरा ने शांत स्वर में कहा, “हर इंसान का अपना समय होता है समझने का।”
अरुण बस यही कहता रहा, “तूने बहुत देर कर दी।” उसी शाम, मीरा जब मंदिर से आरती के बाद लौटी, तो देखा, अरुण अपने कमरे में चारपाई पर लेटा है। आंखें बंद हैं। चेहरा शांत। वह धीरे से पास गई। उसकी हथेली पर कांपती रेखाएं थीं।
लेकिन होठों पर हल्की मुस्कान थी। मीरा ने धीमे स्वर में कहा, “अरुण, सो गए?” कोई जवाब नहीं मिला। उसने उसके माथे पर हाथ रखा और एक पल को ठिटक गई। उसका शरीर ठंडा पड़ चुका था। मीरा की आंखों से आंसू बह निकले।
वह फुसफुसाई, “भगवान, तूने जो फैसला किया, वो शायद सही था। उसने आखिर में वह सबक सीख लिया, जिसे समझने में जिंदगी बीत गई।” तीनों बेटियां दौड़कर आईं। दिया ने पिता का चेहरा देखा। नैना ने मां को संभाला और अनवी ने भगवान के आगे दीपक रखा।
तीनों बेटियां एक साथ बोलीं, “मां, अब उन्हें शांति मिल गई।” मीरा ने आंसू पोंछे और कहा, “हां बेटियों, अब उन्हें शांति मिल गई। जिस इंसान ने जिंदगी में बेटियों को ठुकराया, वह अब उन्हीं की दया से स्वर्ग जा रहा है।”
अगले दिन सुबह बंगले के आंगन में सब एकत्र थे। पंडित मंत्र पढ़ रहा था। मीरा की आंखें आसमान की ओर थीं। उसने धीमे स्वर में कहा, “हे भगवान, तूने जो भी किया, वो न्याय था। उसने हमें छोड़ा, तूने हमें संभाला और अब वो तेरे पास लौट गया।”
आसमान में हल्की हवा चली, जैसे भगवान ने उसकी बात सुन ली हो। उस रात मीरा ने भगवान से आखिरी बार प्रार्थना की। “हे प्रभु, अब मेरा कर्तव्य पूरा हुआ। तूने मुझे अपमान दिया ताकि मैं ताकत सीख सकूं। तूने बेटियां दी ताकि मैं तेरा चमत्कार देख सकूं। अब इन बेटियों का जीवन सुखमय बना रहना। यही मेरी आखिरी प्रार्थना है।”
दीपक की लौ झिलमिलाई और हवा में शांति घुल गई। मीरा ने भी हमेशा के लिए आंखें बंद कर लीं। लेकिन चेहरे पर संतोष था। होठों पर मुस्कान। उसकी कहानी अब पूरी हो चुकी थी, लेकिन उसकी सीख हमेशा जिंदा रहेगी।
दोस्तों, बेटी बोझ नहीं वरदान है। वंश सिर्फ नाम से नहीं, संस्कार और कर्म से आगे बढ़ता है। देर हो सकती है, लेकिन न्याय और सत्य कभी हारते नहीं। रिश्ते खून से नहीं, व्यवहार से बनते हैं। बेटा और बेटी समान हैं और हर बेटी घर की रोशनी है। खर्च नहीं, भविष्य है।

लेकिन क्या आज भी हमारे समाज में बेटी को बोझ कहने वाले लोग नहीं हैं? क्या आज भी हम यह नहीं समझ पाए कि बेटियां सिर्फ किसी की जिम्मेदारी नहीं, वो भगवान का सबसे सुंदर वरदान हैं? कमेंट में जरूर बताइएगा।
भगवान ने जो कर्मों की सजा दी ऐसे पति को, वो सही था या गलत? और अगर कहानी ने आपके दिल को छू लिया हो, तो वीडियो को लाइक कीजिए, शेयर कीजिए और चैनल “स्टोरी बाय अनिकेत” को सब्सक्राइब कीजिए। मिलते हैं आपसे अगली कहानी में। तब तक के लिए नमस्कार। जय हिंद, जय भारत।
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