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अंधेरे से उजाले तक: प्रिया की यात्रा

भारत के हृदय में, जहाँ प्राचीन परंपराएँ और आधुनिकता की आहट एक साथ गूँजती थीं, वहीं एक छोटा सा गाँव था – शिवपुर। शिवपुर, अपनी हरी-भरी पहाड़ियों और साफ़ बहती नदी के लिए जाना जाता था, लेकिन गाँव की शांति के बीच एक गहरी उदासी भी पसरी हुई थी। यह उदासी प्रिया के कारण थी। प्रिया, एक युवा लड़की, जिसका जन्म एक अजीबोगरीब जन्मचिह्न के साथ हुआ था – उसके चेहरे का आधा हिस्सा गहरे नीले रंग का था, जैसे किसी ने उसे स्याही से रंग दिया हो। गाँव के लोग, जो अंधविश्वास और पुरानी कहानियों में गहरे विश्वास रखते थे, उसे “अपशकुनी” मानते थे। उनका मानना था कि प्रिया पर किसी बुरी आत्मा का साया है, और उसके करीब आने से दुर्भाग्य आता है।

प्रिया का बचपन अकेलापन और उपेक्षा से भरा था। बच्चे उससे दूर भागते, औरतें उसे देखकर मुँह फेर लेतीं, और पुरुष उसे घूरते, जैसे वह कोई अजूबा हो। उसकी माँ, जो उसे बहुत प्यार करती थी, भी गाँव वालों के डर से उसे ज़्यादा बाहर नहीं निकलने देती थी। प्रिया का एकमात्र सहारा उसकी दादी माँ थीं। दादी माँ, एक बूढ़ी, झुर्रियों वाली महिला थीं, जिनकी आँखों में दुनिया भर का ज्ञान और प्रेम भरा था। वह गाँव की पारंपरिक वैद्य थीं, जो जड़ी-बूटियों और प्राचीन नुस्खों से लोगों का इलाज करती थीं। लेकिन गाँव वाले, प्रिया के कारण, दादी माँ से भी दूरी बनाए रखते थे।

प्रिया अपना ज़्यादातर समय जंगल में बिताती थी, जहाँ उसे कोई जज नहीं करता था। वह पेड़ों से बातें करती, नदी की कलकल सुनती, और फूलों की खुशबू में खो जाती। उसे प्रकृति से एक अजीब सा जुड़ाव महसूस होता था। उसकी आँखें इतनी तेज़ थीं कि वह जंगल के हर पत्ते, हर फूल, और हर कीड़े को पहचान लेती थी। उसे पता था कि कौन सा पौधा धूप में पनपता है और कौन सा छाँव में, कौन सा फूल सुबह खिलता है और कौन सा रात में। दादी माँ ने यह सब देखा और समझ गईं कि प्रिया में एक विशेष गुण है – प्रकृति के साथ जुड़ने की अनोखी क्षमता।

एक दिन, दादी माँ ने प्रिया को अपने पास बुलाया। “प्रिया,” उन्होंने कहा, “तुम्हारी आँखों में वह सब कुछ है जो एक वैद्य को चाहिए – धैर्य, अवलोकन, और प्रकृति के प्रति सम्मान। मैं तुम्हें अपनी विद्या सिखाना चाहती हूँ।” प्रिया की आँखों में पहली बार आशा की किरण जगी। दादी माँ ने उसे जड़ी-बूटियों के बारे में सिखाना शुरू किया – कौन सी जड़ी-बूटी किस बीमारी के लिए है, उसे कैसे पहचानना है, कैसे इकट्ठा करना है, और कैसे तैयार करना है। उन्होंने उसे प्राचीन मंत्रों और उपचार की विधियों के बारे में भी बताया, जो पीढ़ी-दर-पीढ़ी चली आ रही थीं। प्रिया ने हर बात को ध्यान से सुना और सीखा। उसकी सीखने की क्षमता अद्भुत थी। वह एक बार में ही सब कुछ याद कर लेती थी, और उसकी उंगलियों में जड़ी-बूटियों को पीसने और मिलाने की एक अजीब सी कला थी।

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जल्द ही, प्रिया ने अपनी दादी माँ की मदद करना शुरू कर दिया। जब कोई जानवर बीमार पड़ता, तो वह उसे ठीक कर देती। जब किसी को छोटा-मोटा ज़ख्म होता, तो वह उसे अपनी जड़ी-बूटियों से ठीक कर देती। गाँव वाले अभी भी उससे दूर रहते थे, लेकिन धीरे-धीरे, कुछ लोग, जो हिम्मत वाले थे, अपनी छोटी-मोटी बीमारियों के लिए दादी माँ के पास आने लगे, और प्रिया भी उनका इलाज करने लगी। प्रिया के हाथों में एक अजीब सा जादू था। उसकी दवा से लोगों को जल्दी आराम मिलता था।

एक दिन, गाँव में एक भयानक बीमारी फैल गई। यह एक रहस्यमय बुखार था, जिसमें लोग अचानक कमज़ोर पड़ने लगते थे और कुछ ही दिनों में उनकी मौत हो जाती थी। गाँव में दहशत फैल गई। दादी माँ ने अपने सभी नुस्खे आज़माए, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। लोग मरने लगे, और गाँव में मातम छा गया। इसी बीच, शहर से एक युवा डॉक्टर, डॉक्टर समीर, गाँव आया। डॉक्टर समीर एक पढ़ा-लिखा और आधुनिक विचारों वाला व्यक्ति था। उसने शहर में रहकर पढ़ाई की थी और उसका मानना था कि केवल आधुनिक विज्ञान ही बीमारियों का इलाज कर सकता है।

जब डॉक्टर समीर ने गाँव की स्थिति देखी, तो वह हैरान रह गया। उसने तुरंत अपने उपकरणों से जाँच शुरू की और लोगों को आधुनिक दवाएँ देनी शुरू कीं। लेकिन बीमारी इतनी तेज़ी से फैल रही थी कि उसकी दवाएँ भी काम नहीं कर रही थीं। लोग अभी भी मर रहे थे। डॉक्टर समीर निराश होने लगा।

इसी दौरान, गाँव के मुखिया, सरपंच की बेटी, छोटी रीना, भी इस बीमारी की चपेट में आ गई। रीना गाँव की सबसे प्यारी बच्ची थी, और उसकी हालत तेज़ी से बिगड़ रही थी। सरपंच और उसकी पत्नी ने डॉक्टर समीर से मदद की गुहार लगाई, लेकिन डॉक्टर समीर ने कहा कि वह कुछ नहीं कर सकता, रीना के बचने की उम्मीद बहुत कम है। गाँव में हाहाकार मच गया।

इस गंभीर स्थिति में, प्रिया ने हिम्मत जुटाई। वह सरपंच के घर गई और बोली, “सरपंच जी, मुझे एक मौका दीजिए। मैं रीना का इलाज कर सकती हूँ।” सरपंच और उसकी पत्नी ने प्रिया को देखा। उन्हें प्रिया पर विश्वास नहीं था, क्योंकि वह “अपशकुनी” मानी जाती थी, लेकिन उनके पास कोई और विकल्प नहीं था। रीना की हालत इतनी ख़राब थी कि वे किसी भी उम्मीद को छोड़ना नहीं चाहते थे। डॉक्टर समीर भी वहीं था। उसने प्रिया को देखा और हँस पड़ा। “तुम? तुम एक बच्ची का इलाज करोगी? तुम्हें पता भी है कि यह कितनी गंभीर बीमारी है? तुम्हारी जड़ी-बूटियाँ इस बीमारी का कुछ नहीं कर सकतीं।” प्रिया ने शांत स्वर में कहा, “डॉक्टर साहब, आपकी दवाएँ भी तो काम नहीं कर रही हैं। एक बार मुझे मौका दीजिए। अगर रीना ठीक नहीं हुई, तो मैं गाँव छोड़कर चली जाऊँगी।” सरपंच ने अपनी पत्नी से सलाह ली, और अंत में, उन्होंने प्रिया को मौका देने का फैसला किया।

प्रिया ने तुरंत जंगल की ओर दौड़ लगाई। उसे पता था कि इस बीमारी का इलाज कहाँ मिलेगा। उसने कुछ दुर्लभ जड़ी-बूटियाँ इकट्ठा कीं, जिन्हें दादी माँ ने उसे सिखाया था। वह रात भर जागकर उन जड़ी-बूटियों को पीसती रही, उन्हें विशेष मंत्रों के साथ मिलाती रही। अगली सुबह, उसने रीना को वह दवा पिलाई। डॉक्टर समीर और गाँव के लोग यह सब देख रहे थे, लेकिन किसी को भी उम्मीद नहीं थी।

अगले कुछ घंटों में, चमत्कार होने लगा। रीना के शरीर का तापमान धीरे-धीरे कम होने लगा, और उसकी साँसें सामान्य होने लगीं। शाम तक, रीना ने अपनी आँखें खोलीं और अपनी माँ को देखकर मुस्कुराई। गाँव वाले हैरान रह गए। डॉक्टर समीर भी अपनी आँखों पर विश्वास नहीं कर पा रहा था। उसने रीना की जाँच की और पाया कि वह तेज़ी से ठीक हो रही थी।

यह घटना गाँव के लिए एक मोड़ साबित हुई। प्रिया, जो कभी “अपशकुनी” मानी जाती थी, अब एक “देवदूत” बन गई थी। लोग उसके पास अपनी बीमारियों के इलाज के लिए आने लगे। डॉक्टर समीर, जो पहले प्रिया के तरीकों पर हँसता था, अब उसके पास आया। “प्रिया,” उसने कहा, “मुझे माफ़ कर दो। मैंने तुम्हारी कला को नहीं समझा। तुम्हारी जड़ी-बूटियों में वाकई जादू है। मैं जानना चाहता हूँ कि तुमने यह सब कैसे किया।” प्रिया ने उसे अपनी दादी माँ की विद्या के बारे में बताया, और कैसे प्रकृति ने उसे यह ज्ञान दिया था। डॉक्टर समीर ने महसूस किया कि आधुनिक विज्ञान और पारंपरिक ज्ञान का मेल कितना शक्तिशाली हो सकता है। उसने प्रिया से सीखने की इच्छा व्यक्त की, और प्रिया ने उसे खुशी-खुशी सिखाना शुरू कर दिया।

डॉक्टर समीर और प्रिया ने मिलकर काम करना शुरू किया। डॉक्टर समीर ने आधुनिक उपकरणों से बीमारियों का निदान किया, और प्रिया ने अपनी जड़ी-बूटियों से उनका इलाज किया। उन्होंने गाँव वालों को स्वच्छता और स्वास्थ्य के बारे में भी शिक्षित किया, ताकि भविष्य में ऐसी बीमारियाँ न फैलें। धीरे-धीरे, शिवपुर गाँव एक स्वस्थ और खुशहाल गाँव बन गया।

प्रिया की कहानी दूर-दूर तक फैल गई। लोग उसे देखने और उससे इलाज करवाने के लिए दूर-दूर से आने लगे। उसका जन्मचिह्न, जो कभी उसके लिए एक अभिशाप था, अब उसकी पहचान बन गया था, एक ऐसी पहचान जो उसे दूसरों से अलग और विशेष बनाती थी। उसने गाँव में एक छोटा सा औषधालय खोला, जहाँ वह लोगों का इलाज करती थी और युवा लड़कियों को अपनी विद्या सिखाती थी।

सरपंच ने एक सार्वजनिक सभा में प्रिया को सम्मानित किया। “प्रिया,” उन्होंने कहा, “तुमने हमें सिखाया है कि असली सुंदरता और ज्ञान बाहर से नहीं, अंदर से आता है। तुमने हमें सिखाया है कि अंधविश्वास से ऊपर उठकर हमें सच्चाई को देखना चाहिए।” प्रिया ने अपनी दादी माँ को देखा, जिनकी आँखों में गर्व के आँसू थे। दादी माँ ने हमेशा उस पर विश्वास किया था, और आज, उसका विश्वास सही साबित हुआ था।

प्रिया ने अपनी यात्रा में बहुत कुछ सीखा था। उसने सीखा कि अकेलापन केवल एक स्थिति नहीं, बल्कि एक अवसर भी हो सकता है – आत्म-चिंतन और आत्म-विकास का अवसर। उसने सीखा कि अस्वीकृति कभी-कभी एक प्रेरणा बन सकती है – खुद को साबित करने की प्रेरणा। और उसने सीखा कि सच्ची शक्ति बाहरी दिखावे में नहीं, बल्कि अंदरूनी ज्ञान और दयालुता में होती है।

शिवपुर गाँव अब एक ऐसा गाँव था जहाँ आधुनिक विज्ञान और प्राचीन ज्ञान एक साथ फलते-फूलते थे। डॉक्टर समीर और प्रिया ने मिलकर एक ऐसा स्वास्थ्य मॉडल बनाया था जो पूरे क्षेत्र के लिए एक मिसाल बन गया था। प्रिया, जो कभी एक अछूत थी, अब गाँव की सबसे सम्मानित और पूजनीय व्यक्ति थी। उसकी धुन, जो कभी जंगल में अकेली गूँजती थी, अब पूरे गाँव में आशा और उपचार का संगीत बन गई थी।

प्रिया की कहानी सिर्फ़ एक लड़की की कहानी नहीं थी, बल्कि यह एक ऐसे समाज की कहानी थी जिसने अपने पूर्वाग्रहों को छोड़कर सच्चाई को अपनाया था। यह एक ऐसी कहानी थी जो हमें सिखाती है कि कभी-कभी, सबसे अंधेरे कोनों से ही सबसे चमकदार रोशनी निकलती है, और सबसे साधारण दिखने वाले व्यक्ति में ही सबसे असाधारण क्षमताएँ छिपी होती हैं। प्रिया ने साबित कर दिया था कि किसी के बाहरी रूप-रंग से उसकी कीमत नहीं आँकी जा सकती, और सच्ची सुंदरता और शक्ति हमेशा भीतर से आती है। उसकी यात्रा अंधेरे से उजाले तक की यात्रा थी, एक ऐसी यात्रा जिसने न केवल उसके जीवन को, बल्कि पूरे गाँव के जीवन को बदल दिया था।