दोस्त की शादी में गया था लेकिन खुद ही दुल्हन लेकर लौटा घर वाले हो गए हैरान और फिर

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लक्ष्मी का घर

अध्याय 1: गाँव की सुबह

उत्तर प्रदेश के एक छोटे से कस्बे में सुबह की हलचल शुरू हो चुकी थी। गाँव के लोग अपने-अपने कामों में जुट गए थे। इसी गाँव में एक साधारण सा परिवार रहता था—दीनानाथ जी, उनकी पत्नी कमला और इकलौती बेटी पूजा। दीनानाथ जी सरकारी नौकरी से रिटायर हो चुके थे और अब पेंशन पर अपना जीवन गुजार रहे थे। पूजा पढ़ाई में तेज थी। उसने एमए कर लिया था और पास के स्कूल में बच्चों को पढ़ाती थी। माँ-बेटी दोनों सुबह जल्दी उठ जातीं, पूजा स्कूल चली जाती और कमला घर के कामों में लग जाती।

अध्याय 2: चिंता और उम्मीद

दीनानाथ जी की सबसे बड़ी चिंता थी—पूजा की शादी। वे जानते थे कि समाज में लड़की की शादी समय पर होनी चाहिए, वरना लोग तरह-तरह की बातें करने लगते हैं। कई रिश्ते आए, लेकिन पूजा को कोई पसंद नहीं आया। दीनानाथ जी ने सोचा, “अब बेटी की उम्र भी हो गई है, पढ़ाई भी पूरी कर ली है, अब शादी कर देनी चाहिए।”

एक दिन, पड़ोस के गाँव से रिश्ता आया। लड़के का नाम रमेश था। रमेश अपने पिता बनवारी लाल के साथ अपना बिजनेस करता था। परिवार अच्छा था, पैसे की भी कमी नहीं थी। दीनानाथ जी को लगा, “यह रिश्ता मेरी बेटी के लिए परफेक्ट है।”

अध्याय 3: रिश्ते की बात

रिश्ते की बात हुई। पूजा और रमेश की मुलाकात करवाई गई। पूजा थोड़ी शर्मीली थी, लेकिन रमेश ने उसे सहज महसूस कराया। पूजा के पिता ने देखा, “लड़का ठीक है, परिवार भी अच्छा है।” रमेश के पिता बनवारी लाल ने पूजा को देखा और तुरंत कह दिया, “आपकी बेटी तो लक्ष्मी का रूप है, हमें दहेज की कोई जरूरत नहीं।”

दीनानाथ जी बहुत खुश हुए। उन्होंने अपनी पत्नी से कहा, “कमला, अब हमारी पूजा का घर बस जाएगा।”

अध्याय 4: शादी की तैयारी

शादी की तैयारियाँ शुरू हो गईं। गाँव में खुशी का माहौल था। पूजा के पिता ने अपनी सारी जमा-पूंजी शादी में लगा दी। जेवर बनवाए, कपड़े खरीदे, बारात के स्वागत के लिए खास इंतजाम किए। पूजा भी खुश थी, उसके चेहरे पर मुस्कान थी।

शादी की तारीख आ गई। रमेश अपने परिवार और दोस्तों के साथ बारात लेकर आया। बारात का स्वागत धूमधाम से हुआ। गाँव के लोग, रिश्तेदार, सब लोग खुश थे।

अध्याय 5: फेरों से पहले

बारात में रमेश का एक खास दोस्त भी था—विकास। विकास बैंक में क्लर्क था, सरल स्वभाव का, और रमेश का सच्चा दोस्त। शादी की रस्में चल रही थीं। तभी मंडप के पास रमेश के पिता बनवारी लाल ने दीनानाथ जी को एक तरफ बुलाया। उन्होंने कहा, “समधी जी, मेरे बेटे को बिजनेस के लिए एक नई कार और एक लाख रुपये चाहिए। वरना शादी नहीं होगी।”

दीनानाथ जी के पैरों तले जमीन खिसक गई। उन्होंने हाथ जोड़कर विनती की, “भाई साहब, मेरे पास और पैसे नहीं हैं। मैंने सब कुछ बेटी की शादी में लगा दिया है। आप ऐसा मत कीजिए।”

लेकिन बनवारी लाल ने साफ मना कर दिया। “अगर दहेज नहीं मिलेगा, तो शादी नहीं होगी।”

अध्याय 6: मंडप में तूफान

मंडप में अफरा-तफरी मच गई। बनवारी लाल ने सबके सामने ऐलान कर दिया, “यह शादी नहीं होगी।” पूजा के पिता फूट-फूटकर रोने लगे। बारात में आये लोग भी हैरान थे। गाँव में चर्चा फैल गई—”इतनी अच्छी लड़की, इतना अच्छा परिवार, फिर भी दहेज के लिए शादी तोड़ दी!”

विकास ने यह सब देखा। उसने रमेश और उसके पिता को खूब खरी-खोटी सुनाई, “तुम लोग कितने लालची हो! एक पिता की सारी कमाई बेटी की शादी में लगी है, और तुम लोग फेरों के वक्त शादी तोड़ रहे हो?”

रमेश और उसके पिता ने सिर झुका लिया, लेकिन अपनी मांग पर अड़े रहे।

अध्याय 7: दोस्ती का इम्तिहान

विकास ने पूजा के पिता से कहा, “अंकल जी, अगर आपको कोई आपत्ति न हो, तो मैं पूजा से शादी करना चाहता हूँ। मैं सरकारी क्लर्क हूँ, ज्यादा पैसे नहीं हैं, लेकिन आपकी बेटी को कभी भूखा नहीं रहने दूंगा।”

पूजा के पिता चुप थे। विकास ने पूजा से पूछा, “क्या तुम मुझसे शादी करना चाहोगी?” पूजा ने आँसू भरी आँखों से हामी भर दी।

मंडप में ही पूजा और विकास की शादी हो गई। गाँव के लोगों ने दोनों को आशीर्वाद दिया।

अध्याय 8: नया घर, नई शुरुआत

शादी के बाद विकास पूजा को अपने घर ले गया। माँ ने जब बहू को देखा तो भावुक हो गई। विकास ने सारी कहानी माँ को बताई। माँ ने पूजा को गले लगा लिया। पूजा ने महसूस किया कि घर छोटा है, लेकिन प्यार बहुत है। विकास ने पूजा से कहा, “तुम आगे पढ़ना चाहो, नौकरी करना चाहो, मैं तुम्हें कभी नहीं रोकूंगा।”

पूजा ने सरकारी नौकरी की तैयारी शुरू कर दी। कुछ ही महीनों में उसकी नौकरी लग गई। अब दोनों पति-पत्नी सरकारी नौकरी में थे।

अध्याय 9: गाँव में बदलाव

पूजा और विकास का जीवन खुशहाल था। गाँव में उनकी मिसाल दी जाती थी। पूजा के मायके में जब भी जाती, उसका गर्मजोशी से स्वागत होता। गाँव के लोग कहते, “विकास ने जो किया, वो बहुत बड़ा काम था।”

दूसरी तरफ रमेश और उसके पिता की बदनामी हो गई। कोई भी अपनी बेटी की शादी रमेश से नहीं करना चाहता था। बिजनेस में घाटा हुआ, जमीन बिक गई, घर बिक गया। बाप-बेटे किराए के घर में रहने लगे। रमेश शराब पीने लगा, और पूरी तरह टूट गया।

अध्याय 10: पछतावा

गाँव के लोग चर्चा करते, “अगर रमेश ने पूजा से शादी कर ली होती, तो उसकी किस्मत बदल जाती। लड़की घर की लक्ष्मी होती है।” अब बनवारी लाल और रमेश पछताते थे, लेकिन अब कुछ नहीं हो सकता था।

अध्याय 11: खुशियों की कहानी

पूजा और विकास ने गाँव के बाहर एक सुंदर सा घर बनाया। दोनों मिलकर जीवन जीते, एक-दूसरे का साथ निभाते। पूजा ने गाँव की लड़कियों को पढ़ाना शुरू किया, उन्हें आत्मनिर्भर बनने के लिए प्रेरित किया। विकास ने भी गाँव के बच्चों को बैंकिंग की जानकारी देना शुरू किया।

अध्याय 12: संदेश

यह कहानी हमें सिखाती है कि लालच का अंत हमेशा बुरा होता है। सच्चा प्यार, सम्मान और ईमानदारी ही जीवन को खुशियों से भरता है। बहुएं घर की लक्ष्मी होती हैं। अगर उन्हें सम्मान और प्यार मिले, तो पूरा परिवार खुश रहता है।

समाप्त