नदी में कूदकर मरने जा रही थी लड़की, एक अजनबी लड़के ने बचाया… फिर जो हुआ

एक नई शुरुआत: पूनम की कहानी

भूमिका

कभी-कभी जिंदगी हमें ऐसे मोड़ों पर लाकर खड़ा कर देती है, जहां से निकलना मुश्किल होता है। यह कहानी एक ऐसी लड़की की है, जिसका नाम पूनम है। उसकी जिंदगी में दर्द, संघर्ष और फिर एक नई शुरुआत का सफर है। यह कहानी न केवल उसके जीवन की है, बल्कि उस इंसानियत की भी है, जो कभी-कभी हमें अजनबी से मिलती है, और वह हमारी जिंदगी बदल देती है।

गांव की कहानी

पूनम बिहार के एक छोटे से गांव में रहती थी। उसके पिता एक साधारण किसान थे, और उसकी मां एक घरेलू महिला। पूनम का बचपन खुशहाल था, लेकिन जब वह सिर्फ 5 साल की थी, उसकी मां एक गंभीर बीमारी के कारण चल बसी। उस दिन से पूनम की जिंदगी में एक अंधेरा छा गया। उसकी मां की कमी ने उसके पिता को तोड़ दिया, लेकिन उन्होंने अपनी बेटी के लिए जीने की कोशिश की।

पूनम के पिता ने कई बार दूसरी शादी करने का सोचा, लेकिन समाज के दबाव और अपनी पत्नी की याद ने उन्हें मजबूर कर दिया। लेकिन समय के साथ, उन्होंने एक दूसरी महिला से शादी कर ली, जिसे पूनम ने कभी मां कहने की हिम्मत नहीं जुटाई। उसकी सौतेली मां, सरोज, ने पूनम को हमेशा अपने घर में एक बोझ समझा।

पिता की चुप्पी

पूनम की सौतेली मां ने उसे स्कूल जाने की अनुमति तो दी, लेकिन घर लौटते ही उसे घर के कामों में उलझा दिया। सिर्फ 8 साल की उम्र में, वह एक घरेलू नौकरानी बन गई। उसके पिता चुप रहते थे, जब भी उन्होंने अपनी बेटी के लिए कुछ बोलने की कोशिश की, सरोज चिल्लाकर उन्हें शर्मिंदा कर देती।

“तुम्हारी बेटी निकम्मी है, बिगड़ जाएगी,” वह कहती। पूनम के पिता हमेशा खामोश हो जाते और अपनी ही परछाई से डरने लगते।

पूनम का संघर्ष

पूनम की जिंदगी में कोई प्यार नहीं था। उसकी सौतेली मां के दो बच्चे हुए, और जब वे बड़े हुए, तो उन्होंने भी पूनम को एक नौकर समझा। कभी-कभी पूनम सोचती, “क्या मैं वाकई अनचाही हूं? क्या मेरी मां के साथ मेरा भी अंत हो जाना चाहिए था?”

एक दिन, जब उसके पिता ने कहा कि उसे शहर भेजेंगे, तो पूनम का मन भर आया। लेकिन उसकी सौतेली मां ने ऐसा तमाशा किया कि उसके पिता खुद मुझसे कहने लगे, “रहने दे बेटा, यही ठीक है।” उस दिन कुछ टूट गया था उसके अंदर।

पूनम ने पढ़ाई छोड़ दी और अपने सपनों को जला दिया। वह रोज रोटियां सेंकती रही, अपने लिए नहीं, बल्कि उस परिवार के लिए जिसने उसे कभी बेटी माना ही नहीं।

नदी का किनारा

एक दिन, जब सब सो रहे थे, पूनम ने सोचा कि अगर वह सो जाएं हमेशा के लिए, तो कोई फर्क नहीं पड़ेगा। वह बिना कुछ कहे घर से निकल पड़ी और उस पुल पर आकर खुद को उस पानी के हवाले कर दिया। लेकिन तभी एक अजनबी लड़के ने उसे बचा लिया।

मुकेश नाम का वह लड़का, जिसने न केवल पूनम की जान बचाई, बल्कि उसे एक नई जिंदगी की ओर भी ले गया। जब पूनम ने मुकेश से पूछा, “तुमने मुझे क्यों बचाया?” तो उसकी आंखों में दर्द था, लेकिन मुकेश ने उसे समझाया कि जिंदगी से भागने का मतलब यह नहीं होता कि सब खत्म हो गया।

एक नई शुरुआत

मुकेश और उसका दोस्त राजीव पूनम के साथ खड़े हुए। उन्होंने उसे अपनी कहानी बताने के लिए प्रेरित किया। पूनम ने अपने पिता, सौतेली मां और अपने जीवन के संघर्षों के बारे में बताया। उसकी कहानी सुनकर मुकेश और राजीव दोनों भावुक हो गए।

“तुमने बहुत सहा है, लेकिन अब नहीं। अब तुम्हारे साथ कोई और जुल्म नहीं होगा,” मुकेश ने कहा। राजीव ने भी उसे अकेला नहीं छोड़ने का वादा किया।

पूनम की आंखों में पहली बार उम्मीद की झलक थी। मुकेश ने उसे अपने पापा का नंबर देने के लिए कहा ताकि वे उनकी मदद कर सकें। पूनम ने कांपते हाथों से नंबर दिया।

पिता से बातचीत

जब मुकेश ने पूनम के पिता को फोन किया, तो उसकी आवाज थकी हुई थी। “अच्छा, बचा लिया तो ठीक है। अब जो करना हो करो,” उन्होंने कहा। मुकेश का गुस्सा उबल पड़ा।

“क्या फर्क पड़ेगा बेटा? जब हर रोज अपनी बेटी को अंदर से मरते देखा हो, तो एक दिन वह बाहर से भी मर जाए, तो क्या रह जाता है?” मुकेश ने कहा।

इस बातचीत ने मुकेश को और भी मजबूत बना दिया। वह अब पुलिस स्टेशन जाने का फैसला किया।

पुलिस स्टेशन का सफर

पुलिस स्टेशन में मुकेश ने सब कुछ विस्तार से बताया। लड़की की आत्महत्या की कोशिश, घरेलू शोषण और सालों की मानसिक प्रताड़ना। पुलिस वाले पहले तो असहज हुए, लेकिन जब मुकेश ने कहा कि वह पूनम के साथ है और हर कार्रवाई में उसका साथ देगा, तब वह गंभीर हो गए।

इंस्पेक्टर ने पूनम से पूछा कि क्या वह बयान देना चाहती है। पूनम ने पहले थोड़ी हिचकिचाहट दिखाई, लेकिन फिर उसने हिम्मत जुटाई। “मैं बयान दूंगी साहब। मैं अब और नहीं झेल सकती,” उसने कहा।

बयान और कार्रवाई

पूनम का बयान हुआ, और कुछ ही घंटों में पुलिस बखूबी पूनम के गांव पहुंची और उसके पिता को सरोज के साथ थाने बुलवा लिया गया। जब पूनम के सौतेले मां और बाप पहुंचे, तो सौतेली मां ने आंखें घुमाई और कहा, “हमें नहीं पता यह लड़की कौन है।”

इंस्पेक्टर ने कहा, “यह वही लड़की है जिसने आपके घर में सालों सेवा की और आज उसी का नाम मिटाने आए हो।”

पूनम ने कांपते होठों से कहा, “मैं इनकी बेटी हूं। मेरी मां की मौत के बाद इन्हीं के घर में पली हूं। और अब मैं चाहती हूं कि कानून मेरे साथ न्याय करे।”

एक नया प्रस्ताव

पूनम के पिता कांपने लगे। उसने धीमी आवाज में कहा, “साहब, हम इसे घर ले जाते हैं।” लेकिन मुकेश ने हाथ उठाकर रोका। “अब यह आपके घर नहीं जाएगी क्योंकि अब यह मेरी जिम्मेदारी है,” उसने कहा।

पुलिस वाला बोला, “क्या मतलब?” मुकेश ने सीधा पूनम के पिता की ओर मुड़कर कहा, “मैं पूनम से शादी करना चाहता हूं। मैं इसे सिर्फ सहानुभूति नहीं देना चाहता, बल्कि सम्मान देना चाहता हूं।”

सौतेली मां सरोज ने हक्का-बक्का होकर पूछा, “तू पागल है? एक बेसहारा अपमानित लड़की से शादी करेगा?”

मुकेश ने दृढ़ता से कहा, “बिल्कुल, क्योंकि इंसान की कीमत उसके दुखों से होती है।”

शादी का प्रस्ताव

पूनम का चेहरा आश्चर्य में था। उसे यकीन नहीं हो रहा था कि कोई उसे, जिसे सबने बोझ समझा, अपना बनाने की बात कर रहा है। राजीव ने चुपचाप मुकेश की ओर देखा और धीरे से मुस्कुरा दिया।

पुलिस वाले ने पूछा, “लड़की क्या कहती है? क्या तुम शादी के लिए अपनी मर्जी से तैयार हो?” पूनम कुछ पल खामोश रही। फिर उसने मुकेश की ओर देखा और पहली बार उसके चेहरे पर हल्की सी मुस्कान उभरी।

“हां साहब, मैं तैयार हूं। लेकिन यह शादी सिर्फ दूल्हा-दुल्हन की नहीं होगी। यह दो जिंदगियों के पुनर्जन्म की शुरुआत होगी।”

शादी की तैयारी

मुकेश ने सिर झुकाया। “मैं वादा करता हूं, पूनम, तुम्हारा हर जख्म भरूंगा। तुम्हारे हर आंसू की वजह अब सिर्फ खुशी होगी।”

इंस्पेक्टर ने ताली बजाई। “तैयारी करो। यहां वरमाला लाओ। गवाह मौजूद है।”

कुछ ही देर में, थाने का कमरा गवाह बना और शादी की तैयारी शुरू हुई। पूनम ने मुकेश को वरमाला पहनाई। उसकी आंखों से बहते आंसू उसके चेहरे पर नई चमक दे रहे थे।

नई जिंदगी की शुरुआत

शादी पूरी होते ही, तीनों ने मिलकर बाइक पर सफर शुरू किया। पूनम, जो कुछ घंटे पहले आत्महत्या के लिए निकली थी, अब एक लाल चूड़ीदार सूट और सजी हुई मांग में सिंदूर लिए बाइक पर बैठी थी।

जब मुकेश अपने घर पहुंचा, तो उसकी मां ने हैरानी से पूछा, “मुकेश, यह लड़की कौन है?” मुकेश ने एक लंबी सांस ली और बोला, “मां, यह आपकी बहू है और मेरी पत्नी।”

मां का प्यार

उसके पिता का चेहरा सफेद हो गया। “कब कैसे?” उन्होंने पूछा। “अभी-अभी थाने में शादी की है,” मुकेश ने कहा।

मां दौड़ती हुई पूनम के पास आई और उसकी आंखों में झांक कर देखा। “बेटी, तू तो टूटी हुई थी, लेकिन अब यह घर तेरा है,” मां ने पूनम को गले से लगा लिया।

पिता भी मुस्कुराए। “हमने तो बस दुआ की थी कि मुकेश किसी ऐसी लड़की को लाए जो दिल से घर बसाए। तू तो दिल ही लेकर आई हो।”

सुकून की जिंदगी

पूनम वही दरवाजे पर बैठ गई और फूट-फूट कर रोने लगी। मुकेश ने कहा, “यह आंसू अब तकलीफ के नहीं, सुकून के हैं। इनसे अब नई जिंदगी की शुरुआत होगी।”

समय बीतने लगा, लेकिन इस बार वक्त का हर पल पूनम के लिए कुछ नया लेकर आ रहा था। उसने घर में जहां कभी कोई उसका चेहरा देखना नहीं चाहता था, अब वह एक ऐसे घर की रानी बन चुकी थी।

मुकेश के मां-बाप ने उसे अपनी बेटी से भी बढ़कर प्यार दिया। पूनम ने उस घर को सिर्फ संभाला नहीं, बल्कि संवार दिया। मुकेश ने भी कभी उसे पत्नी के दायरे में कैद नहीं किया।

एक नई जिम्मेदारी

एक दिन वह पल भी आया जब पूनम की गोद में एक प्यारा सा बच्चा आया। वह मां बन चुकी थी, लेकिन सिर्फ एक बच्चे की नहीं, उस पूरे घर की मुस्कान की। बच्चे के पहले जन्मदिन पर मुकेश ने पूनम से कहा, “तुम्हारी हंसी अब मेरे घर की सबसे बड़ी दौलत है।”

पूनम मुस्कुरा दी, लेकिन उसकी आंखों में वो बीते दिनों की परछाइयां अब भी कभी-कभी झलक जाती थीं।

पिता का सामना

एक दिन, जब मुकेश ऑफिस में था, तो अचानक एक बूढ़ा आदमी दरवाजे पर आया। पूनम की आंखें फटी की फटी रह गईं। वह उसके पिता थे। कमजोर, थके हुए और आंखों में पछतावे की आग लिए हुए।

“बेटी,” उन्होंने कहा, “अगर माफ कर सके तो बस एक बार गले लगा ले। बहुत देर हो गई। लेकिन अब सच्चाई का सामना करने का साहस जुटा पाया हूं।”

पूनम चुप रही। उसकी सांसे भारी थीं। उसने कुछ नहीं कहा, लेकिन एक कदम आगे बढ़ाया और उन्हें गले से लगा लिया।

सौतेले भाई का आना

पूनम का सौतेला भाई भी कभी-कभी मिलने आने लगा और उसकी नई भाभी, जो बहुत समझदार थी, ने घर के अंदर वो खालीपन भर दिया जो कभी पूनम की मां ने छोड़ा था।

लेकिन सौतेली मां सरोजा, जिसने पूनम के साथ वो सब किया जो कोई जमीर वाला इंसान सोच भी नहीं सकता, उसका अंत अलग ही था। गांव में जब सबको पूनम की कहानी का सच पता चला कि कैसे उसने आत्महत्या की कोशिश की, तो सरोजा को हर तरफ से तिरस्कार मिलने लगा।

बदला नहीं, माफी

पूनम ने फिर कभी उस घर का रुख नहीं किया और ना ही कोई शिकायत की, क्योंकि अब वह समझ चुकी थी। बदला लेना नहीं, माफ कर देना ही सबसे बड़ी सजा होती है। वह अब अपने बच्चों के साथ मुकेश और अपने सास-ससुर के बीच एक ऐसी जिंदगी जी रही थी, जिसकी हर सुबह आशीर्वाद बनकर आती थी और हर रात सुकून बनकर सो जाती थी।

निष्कर्ष

दोस्तों, कभी-कभी जिंदगी हमें बिल्कुल टूटे हुए मोड़ पर लाकर खड़ा कर देती है। लेकिन अगर उस मोड़ पर एक इंसान भी ऐसा मिल जाए जो दिल से आपका हाथ थाम ले, तो फिर वक्त की साजिशें भी मोहब्बत की कहानी बन जाती हैं।

पूनम की कहानी सिर्फ एक लड़की की नहीं, हर उस इंसान की कहानी है जो रिश्तों में सिर्फ सहता है, लेकिन बदले में इज्जत की एक बूंद भी नहीं पाता।

आपसे एक सवाल है: मुकेश का फैसला सही था या गलत? अगर आप मुकेश की जगह होते और आपके सामने भी एक ऐसी ही हालत होती, तो क्या आप भी मुकेश की तरह हिम्मत कर पाते या समाज, लोग और उसकी बीती जिंदगी देखकर पीछे हट जाते?

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